scorecardresearch
Tuesday, 12 November, 2024
होमफीचरभूपेश बघेल का कौशल्या मंदिर छत्तीसगढ़ का अपना राम पथ है, लेकिन इससे BJP 'असहज' है

भूपेश बघेल का कौशल्या मंदिर छत्तीसगढ़ का अपना राम पथ है, लेकिन इससे BJP ‘असहज’ है

गाय के गोबर का बने बजट ब्रीफकेस के बाद कौशल्या मंदिर सीएम भूपेश बघेल की हिंदू प्रतीकवाद की राजनीति के लिए एक अहम मील का पत्थर है.

Text Size:

चंदखुरी: एक पुल, भगवान राम की 65 फुट ऊंची प्रतिमा, फव्वारे और चारों तरफ जगमगाती रोशनी ने छत्तीसगढ़ के कौशल्या माता मंदिर को भारत के धार्मिक पर्यटन मानचित्र पर ला दिया है.

रायपुर के बाहरी इलाके में चंदखुरी गांव में एक अज्ञात द्वीप मंदिर अब एक हलचल भरा पर्यटन स्थल है. लेकिन बहुत कम स्थानीय निवासी या पर्यटक जानते हैं कि हिंदू देवी कौशल्या को समर्पित दुनिया का एकमात्र मंदिर कांग्रेस सरकार के महत्वाकांक्षी राम वन गमन पारिपथ कॉरिडोर का हिस्सा है. यह परियोजना उन सभी स्थलों को जोड़ती है जहां राम अपने वनवास के दौरान रुके थे.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की हिंदू प्रतीकवाद की राजनीति में कौशल्या मंदिर एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसकी शुरुआत गाय के गोबर से बने बजट ब्रीफकेस, गाय के गोबर की बिक्री और गोमूत्र उत्पादों के प्रचार से हुई थी. उन्होंने गाय के गोबर से प्राप्त सामग्री का उपयोग करके सभी सरकारी भवनों की पेंटिंग भी अनिवार्य कर दी थी. विशेष रूप से, उन्होंने अयोध्या के राम मंदिर के शिलान्यास समारोह से कुछ दिन पहले जुलाई 2020 में मंदिर जीर्णोद्धार परियोजना की शुरुआत की थी. राजस्थान और मध्य प्रदेश के साथ-साथ इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए काम का एक बड़ा हिस्सा पहले ही पूरा हो चुका है.

Flex of Chhattisgarh Ram corridor | Shubhangi Misra, ThePrint
छत्तीसगढ़ राम कॉरिडोर का फ्लेक्स | शुभांगी मिश्रा, दिप्रिंट

लेकिन कौशल्या मंदिर अयोध्या में नहीं है. इसके विकास की मांग आरएसएस-विहिप-भाजपा से नहीं, बल्कि बुद्धिजीवी हिंदू हलकों से आई थी. कांग्रेस इसका प्रचार नहीं कर रही है, या मीडिया कवरेज के लिए जोर नहीं दे रही है. मंदिर गलियारों के लिए अपने जोर के साथ परियोजना को संरेखित करने के बावजूद, भाजपा की चुप्पी समान रूप से बनी हुई है.

अप्रैल में कौशल्या माता महोत्सव के दौरान परिसर की यात्रा के दौरान बघेल ने कहा, “वे हमारे कौशल्या मंदिर के विकास से असहज हैं. वे हमें यह साबित करने के लिए कहते हैं कि क्या वह (राम की मां) यहां पैदा हुई थीं. ” उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा ने पिछले 15 वर्षों में छत्तीसगढ़ में राम कॉरिडोर के विकास के लिए कुछ नहीं किया.

उन्होंने कहा, “उन्हें यह पसंद नहीं है कि हम अब राम कॉरिडोर पर काम कर रहे हैं.” “वे हमारे कौशल्या मंदिर के विकास से असहज हैं. वे हमें यह साबित करने के लिए कहते हैं कि क्या वह (राम की मां) यहां पैदा हुईं थीं, ”अप्रैल में कौशल्या माता महोत्सव’ के लिए परिसर की यात्रा के दौरान बघेल ने कहा. उन्होंने आगे भाजपा पर पिछले 15 वर्षों में छत्तीसगढ़ में राम कॉरिडोर के विकास के लिए कुछ नहीं करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “उन्हें यह पसंद नहीं है कि हम अब राम कॉरिडोर पर काम कर रहे हैं.”

बघेल ने पिछले साल सितंबर में सार्वजनिक रूप से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पर भी ताना मारा था और अपनी ‘आशा’ व्यक्त की थी कि सरसंघचालक नए विकसित मंदिर का दौरा करेंगे. भागवत उसी महीने कौशल्या मंदिर भी गए थे.


यह भी पढ़ें: ट्रांसजेंडर पुलिसकर्मी का दावा सहकर्मियों ने परेशान किया, भारत के समलैंगिक कार्यबल को दर्शाती यह कहानी


 

छत्तीसगढ़ का राम गलियारा

चंदखुरी के गांव वाले इस बात से चकित हैं कि कैसे उनका मंदिर एक छोटी सी अवधि में बदल गया है.

कौशल्या मंदिर पर अपनी हामी भरते हुए, एक स्कूल शिक्षक, नीता वर्मा ने कहा, “सिर्फ तीन साल पहले, यहां केवल एक जर्जर लकड़ी का पुल था. लोग दर्शन के लिए सरोवर को तैरकर पार करते थे. यह अब शानदार लग रहा है, ”

Sandstone causeway leading to the temple | Shubhangi Misra, ThePrint
मंदिर की ओर जाने वाला बलुआ पत्थर का मार्ग | शुभांगी मिश्रा, दिप्रिंट

1975 की शरद ऋतु में, इतिहास के प्रोफेसर और छत्तीसगढ़ अस्मिता संस्थान, एक सांस्कृतिक संगठन के सदस्य, रामेंद्र मिश्रा ने चंदखुरी तक 35 किलोमीटर तक अपने स्कूटर की यात्रा की थी. उन्होंने तालाब के पार तैरकर एक साधारण मूर्ति की खुदाई की, जिसे उन्होंने कौशल्या के रूप में पहचाना. “उस छोटे से द्वीप पर चारों ओर मूर्तियां पड़ी थीं. ग्रामीणों को इसके बारे में पता था और मैंने इसका पालन किया, ”मिश्रा ने एक पुरानी डायरी से कुछ पन्नों को बाहर निकालते हुए कहा, जहां उन्होंने महिला मूर्ति की खोज का दस्तावेजीकरण किया था. कौशल्या मंदिर की स्थापना को चिह्नित करते हुए एक छोटा मंदिर बनाया गया था.

अलग राज्य की मांग करने वाले नागरिकों के लिए यह मूर्ति इस बात का प्रमाण थी कि छत्तीसगढ़, जो उस समय मध्य प्रदेश का हिस्सा था, कभी दक्षिण कौशल कहलाता था. पच्चीस साल बाद, 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग हो गया.

सालों तक मंदिर उपेक्षित रहा. ग्रामीणों को याद है कि कैसे लोग तैर कर मंदिर तक दर्शन के लिए जाते थे, जब तक कि इसपर लकड़ी का पुल नहीं बन गया. हालांकि, समय के साथ इसकी हालत बिगड़ती गई और कई लोग राम के ननिहाल में पूजा करने के लिए तैर कर आते रहे.

2019 में सब कुछ बदल गया जब बघेल ने मंदिर का दौरा किया और इसकी वास्तविक क्षमता को पहचाना.

राम वन गमन पारिपथ शोध संस्थान के महासचिव,वह संगठन को उन सभी 75 स्थानों पर नज़र रखने का श्रेय दिया जाता है, जहा राम वनवास के दौरान गए थे और भाजपा नेता श्याम बैस ने कहा, “उन्होंने नक्शे का एक बड़ा फ्लेक्स देखा जो मैंने पुलिस अकादमी के सामने लगाया था और तय किया कि यह एक विकास परियोजना हो सकती है. बाद में, हमारा इंटरव्यू लिया गया और कांग्रेस सरकार ने हमारे शोध और नक्शों को छीन लिया. ”

आज, जर्जर लकड़ी के पुल की जगह एक बलुआ पत्थर का रास्ता बन गया है जो मंदिर को मुख्य रास्ते से जोड़ता है. सरोवर से दो मूर्तियां निकली हैं- एक राम की और दूसरी समुद्र मंथन की. परियोजना के हिस्से के रूप में, कौशल्या के पिता, राजा कौशल द्वारा एक दरबार भी बनाया गया है.

इसके साथ ही बघेल सरकार राज्य में हिंदुत्व समर्थकों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा कर रही है, लेकिन इससे उन्हें कोई राजनीतिक लाभ मिलेगा या नहीं, इसमें कई लोगों को संदेह है.

छत्तीसगढ़ के भीतर राम वन गमन पथ के बारे में जागरूकता कम है और सरकार ने इसका समाधान करने के लिए बहुत कम काम किया है. सीएम की तस्वीर वाले होर्डिंग्स और होर्डिंग्स में बेरोजगारी योजना और बिजली सब्सिडी जैसी विभिन्न योजनाओं की सूची है. लेकिन कौशल्या मंदिर कहीं नहीं मिलता.

रायपुर की वर्षा बंसल ने मंदिर का दौरा करने के बाद कहा,“कौशल्या मंदिर एक अच्छा नया पर्यटन स्थल है. मुझे नहीं पता था कि यह राम कॉरिडोर का हिस्सा था. ”

राजनीतिक टिप्पणीकार और राज्य के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील कुमार त्रिवेदी ने कहा कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान पर ‘गर्भो नवा छत्तीसगढ़’ टैगलाइन के साथ जोर दे रही है. ”

“ध्यान दें कि उन्होंने इसे एक पर्यटक गलियारा कहा है न कि धार्मिक आउटरीच. ऐसा इसलिए है क्योंकि बघेल जानते हैं कि यह अयोध्या के राम मंदिर का मुकाबला नहीं कर सकता है और सॉफ्ट हिंदुत्व भाजपा के कट्टर हिंदुत्व का जवाब नहीं हो सकता है.

और जबकि कांग्रेस मंदिर बनाम पर्यटन की राजनीतिक कसौटी पर चल रही है, कौशल्या मंदिर बघेल की पसंदीदा परियोजना है – ईसाइयों और आदिवासियों के साथ-साथ हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कई सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद एक हिंदू आउटरीच.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि परियोजना मुख्यमंत्री के करीब है, भले ही यह पार्टी की राजनीति के अनुकूल न हो, नेता ने कहा, “मुख्यमंत्री एक धार्मिक व्यक्ति हैं, एक भक्त हैं. यह परियोजना व्यक्तिगत है. ”

बीजेपी मंदिर और कॉरिडोर के चक्कर लगा रही है, लेकिन केंद्र को छत्तीसगढ़ के प्रोजेक्ट को संसद में मान्यता देनी पड़ी. जब भाजपा सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौर ने देश में राम वन गमन पथ की स्थिति के बारे में पूछा, तो केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने जवाब दिया कि केंद्र सरकार द्वारा ऐसी कोई परियोजना नहीं चल रही थी, लेकिन छत्तीसगढ़ एक निर्माण कर रहा था.

बाद में, केंद्र ने घोषणा की कि स्वदेश दर्शन योजना के तहत पर्यटन मंत्रालय द्वारा बनाए जाने वाले रामायण सर्किट के तहत मध्य प्रदेश में चित्रकूट को विकसित किया जा रहा है.

लंबे समय से चली आ रही मांग

छत्तीसगढ़ को राम का ननिहाल माना जाता है. यह भी माना जाता है कि उन्होंने अपने 14 वर्षों में से 10 वर्ष बनवास के दौरान यहीं के जंगलों में घूमते हुए बिताए थे.

2008 में, लेखकों, राजनेताओं, इतिहासकारों, पुरातत्वविदों के एक समूह ने राम के अपने प्रवास के दौरान जिस मार्ग का अनुसरण किया, उसका चार्ट बनाने के लिए एक साथ आए. कॉरिडोर के नक्शे के अनुसार, उन्होंने सबसे उत्तरी जिले कोरिया से लेकर दक्षिण में सुकमा तक 75 प्रमुख स्थानों की पहचान की, जहां से माना जाता है कि राम, लक्ष्मण और सीता यहां से गुजरे थे.

कॉरिडोर की मांग उतनी ही पुरानी है, जितनी छत्तीसगढ़ की मांग. मिश्रा का दावा है, “एक अलग राज्य के लिए आंदोलन के दौरान, हम छत्तीसगढ़िया पहचान को महिमामंडित करने के तरीकों की तलाश कर रहे थे, और हमारे संगठन, छत्तीसगढ़ अस्मिता संस्थान ने डॉ यदु के नेतृत्व में राम वन गमन पथ की पहचान करने पर काम करना शुरू कर दिया.” 1995 में स्थापित संस्थान ने छत्तीसगढ़ को एक अलग राज्य के रूप में मान्यता देने का समर्थन किया.

कॉरिडोर को विकसित करने में छत्तीसगढ़ सरकार अब तक 165 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है. 75 स्थानों में से नौ – जांजगीर-चांपा में शिवरीनारायण, बस्तर में जगदलपुर और धमतर में सिहावा सप्तऋषि आश्रम सहित – पहले चरण में हैं. उनके पास राम की 60 फीट ऊंची मूर्तियां और पारंपरिक छत्तीसगढ़ भोजन परोसने वाले कैफे होंगे. मंदिर की दीवारों पर रामायण की कहानियों को चित्रित करने वाले भित्ति चित्र होंगे. अधिकांश काम पूरा हो चुका है, सरकार का दावा है कि इन स्थलों पर पर्यटकों की संख्या में दस गुना वृद्धि हुई है.

Devotees on their way to the temple | Shubhangi Misra, ThePrint
मंदिर की ओर जाते भक्त | शुभांगी मिश्रा, दिप्रिंट

यह किसका प्रोजेक्ट है

सीएम बघेल ने कॉरिडोर परियोजना को भले ही अंजाम दिया हो, लेकिन राम वन गमन पारिपथ शोध संस्थान का दावा है कि उसने 2008 की शुरुआत में ही इसकी नींव रख दी थी. इसके महासचिव बैस ने कहा कि उन्होंने और अन्य सदस्यों ने इसके लिए रूट मैप पर एक दशक तक काम किया था. . इतिहासकारों, पुरातत्वविदों, भूवैज्ञानिकों और संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने अनुसंधान में योगदान दिया.

संगठन ने राम द्वारा देखे गए स्थानों के बारे में विभिन्न पुस्तिकाओं के साथ-साथ छत्तीसगढ़ रामायण नामक पुस्तक प्रकाशित की. इसे राम वन गमन पारिपथ शोध संस्थान के प्रमुख स्वर्गीय मनु यादव ने लिखा था. पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने पुस्तक की प्रस्तावना में एक निबंध लिखा है.

बैस ने कहा, “हमने रमन सिंह को परियोजना और हमारे शोध के बारे में विधिवत जानकारी दी.” उन्होंने दावा किया कि 2019 में बघेल सरकार ने उनके नक्शे और शोध कार्य लिए. बैस ने कहा, “कॉरिडोर के विकास में हमारे संगठन से किसी से भी सलाह नहीं ली गई थी.”

भाजपा अब दावा करती है कि कांग्रेस ने उनकी बनाई योजना को हड़प लिया.

छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रवक्ता अमित चिन्मानी ने कहा, “राम वन गमन पथ का नाम किसने दिया? वो थी भारतीय जनता पार्टी. उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया शोध तीन समितियों द्वारा किया गया था जिन्हें हमने स्थापित किया था.”

हालांकि, बैस का कहना है कि परियोजना के संबंध में राम वन गमन परिपथ शोध संस्थान कभी भी भाजपा की रमन सिंह सरकार के संपर्क में नहीं था. “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी सरकार कॉरिडोर विकसित कर रही है. चीजें सही समय पर ही होनी चाहिए.”

मंदिर में आने वाले पर्यटक और भक्त इन दावों और प्रतिदावों से किसी दवाब में नहीं हैं. उनके लिए, राम का ननिहाल एक दिन की बहुत अच्छी यात्रा है. श्रद्धालू मंदिर में दर्शन करने और पूजा-अर्चना करने के बाद बगीचे में सेल्फी और तस्वीरें लेते हुए समय बिताते हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

संपादन- पूजा मेहरोत्रा


यह भी पढ़ें: कर्नाटक विधानसभा सत्र: कांग्रेस विधायकों ने छिड़का गोमूत्र, DK शिवकुमार ने लिया BJP नेता का आशीर्वाद


 

share & View comments