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Saturday, 4 May, 2024
होमफीचर‘मोदी फैन, हिंदू एक्टिविस्ट’, कौन हैं जॉयंता कर्मोकर, जो बांग्लादेश में पीड़ित हिंदुओं की आवाज बन गए हैं

‘मोदी फैन, हिंदू एक्टिविस्ट’, कौन हैं जॉयंता कर्मोकर, जो बांग्लादेश में पीड़ित हिंदुओं की आवाज बन गए हैं

27 वर्षीय एक्टिविस्ट जॉयंता कार्मोकर का कहना है कि इस साल दुर्गा पूजा के दौरान पूरे बांग्लादेश में मूर्तियां तोड़ने की कम से कम सात कथित घटनाएं हुईं. लेकिन स्थानीय मीडिया ने इसे कवर नहीं किया.

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नई दिल्ली: इस साल दुर्गा पूजा जॉयंता कर्मोकर के लिए खुशियां लेकर नहीं आई. जैसे ही पड़ोस के हिंदू लोग उन्हें ‘शुभो बिजोया’ की शुभकामनाएं देने आए और उनका सोशल मीडिया बधाइयों से भर गया, 27 वर्षीय कार्यकर्ता ने पूरे बांग्लादेश में दुर्गा मूर्तियों और पूजा पंडालों पर हुए हमलों को याद किया. हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग ने दावा किया है कि इस साल देश में सब कुछ शांतिपूर्ण रहा है.

इन प्रतिस्पर्धी दावों के बीच बांग्लादेश की नाजुक सामाजिक शांति लटकी हुई है, जहां हाल के वर्षों में हिंदू अल्पसंख्यकों को तेजी से कम उम्मीदों और कृतज्ञता के कोने में धकेल दिया गया है. ऐसे समय में कर्मोकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर आशा के साथ देखते हैं. वह बांग्लादेश के सबसे बड़े मोदी प्रशंसकों में से एक हैं और अन्याय के खिलाफ अवाज उठाने वाले लोगों में से हैं.

हिंदू राइट एक्टिविस्ट और बारीसाल जिले के पटुआखली गांव के निवासी फोन पर दिप्रिंट से कहते हैं, “इस साल दुर्गा पूजा के दौरान हिंदुओं की हत्या नहीं की गई. न ही हत्यारी इस्लामी भीड़ ने टीवी कैमरों के सामने पूजा पंडालों पर हमला किया. लेकिन नफरत को इतना सामान्य बना दिया गया है कि हम इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं कि कई गांवों और कस्बों में दुर्गा मूर्तियां तोड़ी गईं. एक व्यक्ति को पूजा पंडालों के अंदर कुरान की प्रतियां रखने और 2021 जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया.” 

आज, कर्मोकर न केवल दुर्गा पूजा के दौरान बल्कि पूरे साल बांग्लादेश में हिंदू-विरोधी हिंसा का रिकॉर्ड रखने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, साथ ही बचे लोगों की कहानियां को भी लोगों के सामने लाता है. उनका कहना है कि मुख्यधारा का मीडिया अक्सर ऐसा नहीं करती है. वह कहते हैं कि यह एक तरह का नफरत फैलाने वाला ट्रैकर है, जो यह जानना चाहता है कि मुस्लिम-बहुल बांग्लादेश में एक हिंदू के लिए यह कितना मुश्किल हो सकता है.

एक समय था जब कर्मोकर बांग्लादेश में हिंदुओं पर होने वाले किसी भी हमले की जानकारी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देते थे, जिसके बारे में उसे पता चलता था. लेकिन अब कठोर डिजिटल सुरक्षा अधिनियम ने उन्हें सतर्क कर दिया है. उनकी टाइमलाइन हिंदू सभ्यता के लोकाचार और विरासत वाली पोस्ट से भरी हुई है. फेसबुक पर एक हालिया पोस्ट में, उन्होंने शस्त्र पूजा और हिंदुओं को आत्मरक्षा सीखने की आवश्यकता के बारे में बात की. ट्विटर पर कार्मोकर भारत के हिंदू दक्षिणपंथी और प्रभावशाली लोगों को फॉलो करता है. वह नियमित रूप से उनके ट्वीट को रीट्वीट करते रहते हैं.

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कर्मोकर की आवाज लड़खड़ा रही है क्योंकि उन्हें याद है कि कैसे 2021 में कुमिला जिले के एक पूजा पंडाल में हनुमान के चरणों के पास कुरान की एक प्रति रखी गई थी, जिसके कारण पूरे बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले हुए जिसके परिणामस्वरूप चार भक्तों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए. वह कहते हैं, “2021 दुर्गा पूजा ने अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं. 2023 हमलों को स्थानीय प्रेस ने भी कवर नहीं किया. बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों के बारे में बहुत कम लोग बात करते हैं जब तक कि वे बड़े पैमाने पर न हों. मैं फेसबुक पोस्ट लिखकर और ट्वीट करके अपना योगदान देता हूं.” 

आज के धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश में, धार्मिक स्वतंत्रता सशर्त प्रतीत होती है क्योंकि सरकार बहुसंख्यकों को परेशान न करने के प्रति सचेत होकर एक अच्छी रेखा पर चलती है. एक सरकारी धार्मिक एजेंसी इस्लामिक फाउंडेशन ने कथित तौर पर निर्देश भेजकर अधिकारियों से नमाज के समय के दौरान “दुर्गा पूजा अनुष्ठानों को रोकने या सीमित करने” के लिए कहा. बता दें कि पूजा उत्सव के समय पूरे दिन ढोल बजाया जाता है.

एक अकेला योद्धा

हिंदुओं पर हमलों का रिकॉर्ड बनाए रखने का विचार कर्मोकर के दिमाग में जल्दी आया. बचपन की एक घटना से उन्हें एहसास हुआ कि अगर हिंदू अपने लिए नहीं बोलेंगे तो कोई भी नहीं बोलेगा. जब उनके पिता, जो कि एक गांव के सुनार थे, को पुलिस ने उठा ले गई और इस बात को लेकर उन्हें परेशान किया गया कि कार्मोकर ने एक व्यापारिक सौदे के गलत होने का फर्जी आरोप लगाया था. उनका कहना है कि उस समय उनके साथ खड़ा होने वाला कोई नहीं था. धीरे-धीरे जैसे वो बड़े हुए उन्हें शेख मुजीबुर रहमान के देश का असली रूप देखा. शेख मुजीबुर रहमान ने सभी धर्मों के नागरिकों के लिए इस भूमि का वादा किया था लेकिन यहां हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव होता रहा है.

जहां भी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा होती है, कर्मोकर वहां पहुंचने की कोशिश करते हैं.

वह कहते हैं, “मेरे पास कोई नौकरी नहीं है. परिवार की आय काफी कम है और मेरे पास संसाधन भी नहीं हैं. लेकिन मैंने 2021 में रंगपुर में हिंदू-विरोधी हिंसा से बचे लोगों की मदद की, जो भी मैं क्राउडफंड से कर सकता था, उससे किया. उनकी दुकानें और झोपड़ियां जलकर खाक हो गईं. हमने उनके जीवन को दोबारा शुरू करने में मदद की.” 

बांग्लादेश के रंगपुर में जीवित बचे लोगों के साथ जॉयंता कर्मोकर | फोटो: विशेष प्रबंधन

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कर्मोकर अपना सामाजिक कार्य अकेले ही करते हैं. उनका कहना है कि किसी संगठन का हिस्सा होने का मतलब अपनी काम करने की स्वतंत्रता को खोना है जो उन्हें सही नहीं लगता है. संगठनों की अक्सर अपनी प्राथमिकताएं और राजनीति होती है, जबकि उनका काम किसी भी जरूरतमंद हिंदू के लिए है. उसके गांव और बाहर के दोस्त, जिनका नाम वह सुरक्षा कारणों से बताने से इनकार करता है, हमलों से बचे लोगों की सहायता के लिए धन देकर अक्सर उसकी मदद करते हैं.

कर्मोकर किसी एसोसिएशन का हिस्सा नहीं है. उनका कहना है कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया है, क्योंकि एसोसिएशन कुछ ही समय में राजनीतिक हो जाते हैं. वह कहते हैं, “वे वही करते हैं जो उन्हें कहा जाता है. जैसे लगभग कोई भी आपको नहीं बताएगा कि इस साल दुर्गा पंडालों पर हमले हुए थे.” 

पिरोजपुर जिले के एक बांग्लादेशी पत्रकार अविजित मजूमदार हृदयॉय, जो बंगाली टीवी समाचार चैनल कोलकाता टीवी के लिए काम करते हैं, का दावा है कि उन्होंने इस साल फरीदपुर के तंबुलखाना बाजार में एक पंडाल के अंदर टूटी हुई मूर्तियों को देखा है. हृदयोय ने दिप्रिंट को बताया, “भगवान गणेश की मूर्ति का सिर, लक्ष्मी की मूर्ति के दोनों हाथ और दुर्गा मूर्ति की भुजाएं तोड़ दी गईं. दुर्गा प्रतिमा की अंगुलियां तोड़ दी गई थी. वही उंगलियां जिसमें वह राक्षस को मारने के लिए हथियार रखती हैं.” पत्रकार का दावा है कि यह दुर्गा पूजा समारोह शुरू होने से ठीक पहले हुआ और पंडाल को बिना सुरक्षा के छोड़ दिया गया था.

कर्मोकर का कहना है कि पूरे बांग्लादेश में मूर्तियां तोड़ने की कम से कम सात ऐसी कथित घटनाएं हुईं, लेकिन देश में मुख्यधारा के मीडिया ने उन्हें कवर नहीं किया है. वह कहते हैं, “आज के बांग्लादेश में हिंदू धार्मिक प्रतीकों को प्रदर्शित करना खतरे से भरा है. चाहे वह दुर्गा पूजा उत्सव हो या एक हिंदू विवाहित महिला के रूप में सिंदुर पहनना. आप कहीं भी, किसी भी समय हमले का शिकार हो सकते हैं.” 

बांग्लादेश में रंगपुर हिंसा से बचे लोग | फोटो: विशेष प्रबंधन

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मोदी का बड़ा समर्थक

कर्मोकर की मोदी भक्ति ने कुछ दोस्तों और अजनबियों को उनके कट्टर आलोचकों में बदल दिया है. उनका कहना है कि यह उन्हें आश्चर्यचकित करता है कि जहां भारत और बांग्लादेश के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध हैं, वहीं भारतीय प्रधानमंत्री के समर्थन में पोस्ट डालने से उन्हें बांग्लादेश में परेशानी हो रही है.

कर्मोकर कहते हैं, “मुझे मोदी का प्रशंसक होने के कारण सोशल मीडिया और अन्य जगहों पर RSS एजेंट, एक भारतीय एजेंट और न जाने क्या-क्या कहा गया है. मैं उन्हें इसलिए पसंद करता हूं क्योंकि यहां एक ऐसा विश्व नेता है जो निर्विवाद रूप से हिंदू है. ऐसा व्यक्ति है जिसे अपनी जड़ों और अपनी सभ्यता और लोकाचार पर गर्व है. अगर कोई बांग्लादेशी हिंदू उनका प्रशंसक बन जाए तो इसमें दिक्कत क्यों है?” 

2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी के बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के साथ काफी अच्छे संबंध हैं और उन्होंने ऐतिहासिक मुद्दों को सुलझाने और व्यापार संबंधों को मजबूत करने की दिशा में काम करने के लिए पड़ोसी देश को प्राथमिकता दी है, जिससे ढाका को फायदा हुआ है. हालांकि, भारतीय प्रधानमंत्री वहां के मुस्लिम बहुसंख्यकों के बीच लोकप्रिय नहीं हैं. बांग्लादेश के 50वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेने के लिए उनकी 2021 की देश यात्रा के कारण विरोध प्रदर्शन हुआ जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई.

कर्मोकर का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की एक बड़ी आबादी एक नेता के रूप में मोदी की प्रशंसा करती है. बांग्लादेश में भी कई मुस्लिम हैं जो उनका आदर करते हैं. लेकिन बहुत से लोग इसके बारे में मुखर नहीं होंगे, यह जानते हुए कि उनकी आलोचना की जाएगी. कर्मोकर का कहना है कि मोदी जैसा कट्टर हिंदू होने में कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि हिंदू धर्म दुनिया को वास्तव में धर्मनिरपेक्ष और शांतिपूर्ण होना सिखा सकता है.

कर्मोकर आगे कहते हैं, “रूस-यूक्रेन या इज़रायल-फ़िलिस्तीन में संकट को देखते हुए, मुझे लगता है कि सनातन धर्म की शिक्षाओं को दुनिया भर में फैलाने की ज़रूरत है. सनातन धर्म युद्ध नहीं सिखाता. यह आपको महिलाओं और बच्चों का सिर काटने के लिए नहीं कहता है. यह सार्वभौमिक भाईचारे और शांति की वकालत करता है. जब बांग्लादेश में धार्मिक नेता हिंदुओं को गाली देते हैं, तो मुझे लगता है कि मोदी जैसा कोई व्यक्ति है जो दुनिया के सभी हिंदुओं के लिए गर्व से खड़ा है.” 

यह कोई विश्वदृष्टिकोण नहीं है जिसे बांग्लादेश में बहुत सारे युवा हिंदू, कम से कम सार्वजनिक रूप से, अपनाते हैं. बांग्लादेश पत्रकारिता छात्र परिषद के संगठन सचिव निलय कुमार विश्वास कहते हैं कि किसी भी धर्म में चरमपंथ उनके लिए अस्वीकार्य है. उन्होंने कहा, “हां, इस्लामी कट्टरवाद है, लेकिन इसका उत्तर यह कहना नहीं है कि कोई अन्य धर्म श्रेष्ठ है. हमें श्रेष्ठतावादी बने बिना शांति से एक-दूसरे के साथ रहना सीखना चाहिए.”

क्या चुनाव बांग्लादेश को बदल सकते हैं?

कर्मोकर का कहना है कि शेख हसीना के तहत चीजें बेहतर हुई हैं. लेकिन बांग्लादेशी समाज आज भी हिंदुओं के साथ भेदभाव करता है. उन्हें उम्मीद है कि आगामी राष्ट्रीय चुनावों के बाद बांग्लादेश बेहतरी के लिए बदल जाएगा. कर्मोकर का कहना है कि उनके देश ने ढांचागत विकास में तेजी से प्रगति की है लेकिन सामाजिक सूचकांकों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है.

कर्मोकर कहते हैं, “हिंदुओं को विकास की कहानी का हिस्सा बनाएं. इस देश में हिंदू आबादी के एक वर्ग ने प्रगति की है लेकिन सभी हिंदुओं के जीवन में बदलाव नहीं आया है. दुर्गा पूजा के साथ-साथ चुनावों के दौरान, हिंदू नागरिक अपने जीवन और संपत्तियों पर हिंसक हमलों के डर में रहते हैं. मैं चाहता हूं कि मेरी सरकार मुझे सांप्रदायिकता से बचाए और मुझे यह महसूस कराए कि मैं भी इस देश का उतना ही हिस्सा हूं जितना एक मुसलमान.” 

हिंदू एक्टिविस्ट का कहना है कि हिंदू सांसद भी अक्सर संसद में हिंदुओं का आवाज़ उठाने में विफल रहते हैं. उन्होंने कहा, “मैं एक ऐसे बांग्लादेश का सपना देखता हूं जहां कम से कम एक हिंदू सांसद साथी हिंदुओं के अधिकारों के बारे में स्वतंत्र रूप से बात कर सके. हम इज़रायल और फिलिस्तीन पर बहस करते हैं. आइए हम भी अपने देश पर एक नज़र डालें कि यहां क्या स्थिति है.”

बांग्लादेश सरकार फिलिस्तीन के समर्थन में उतर आई है. ढाका की सड़कों पर ग़ज़ावासियों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए जुलूस निकल रहे हैं.

लेकिन कर्मोकर चाहते हैं कि विवादास्पद डिजिटल सुरक्षा अधिनियम ख़त्म हो. यह कानून उनके काम को बेहद कठिन बना देता है क्योंकि यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने, किसी भी परिसर की तलाशी लेने और किसी भी उपकरण को जब्त करने की शक्ति देता है. कर्मोकर आगे कहते हैं, “पत्रकारों, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और एनजीओ के लोगों को इस अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया है. अब आप सोच लीजिए कि मेरा काम कितना कठिन है.” 

उसका डर अकेले उसका नहीं है. 1 अक्टूबर 2018 को लागू होने वाले इस कानून की इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए बांग्लादेश के भीतर और बाहर आलोचना की गई है. 9 दिसंबर 2021 को अमेरिकी थिंक-टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस द्वारा प्रकाशित एक लेख में, बांग्लादेशी अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक अली रियाज़ ने लिखा कि यह अधिनियम बांग्लादेश के सत्तावाद की ओर बढ़ते रुझान का एक स्पष्ट संकेत है.

कर्मोकर कहते हैं, “शेख हसीना ने मेरे देश में कई ग़लतियों को सुधारा है. अगर वह सत्ता में वापस आती है, तो मुझे उम्मीद है कि वह अधिनियम को निरस्त करके मेरी जैसी आवाजों को मजबूत बनाएगी.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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