scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमफीचर2 दिनों तक अन्नपूर्णा पर्वत में बिना ऑक्सीजन के बर्फ के नीचे दबे रहे, 3 चमत्कारों के बाद बचे अनुराग मालू

2 दिनों तक अन्नपूर्णा पर्वत में बिना ऑक्सीजन के बर्फ के नीचे दबे रहे, 3 चमत्कारों के बाद बचे अनुराग मालू

2 विदेशी पर्वतारोहियों के साथ एक दल ने दरार में प्रवेश किया, और अनुराग का शव बर्फ के नीचे मिला. उन्होंने मान लिया कि वह मर चुका है.

Text Size:

काठमांडू: किशनगढ़ के उद्यमी और पर्वतारोही अनुराग मालू का अन्नपूर्णा पर्वत से उतरना तीन चमत्कारों की कहानी है. पहला चमत्कार कि वह मिल गया. दूसरा, कि वह जिंदा मिल गया. और तीसरा, कि उसके बॉडी को रेस्क्यू कर लिया गया था.

पांच शेरपाओं और दो विदेशी पर्वतारोहियों की सात सदस्यीय टीम ने अनुराग के बेहोश शरीर को एक गहरी दरार से बाहर निकालने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली. आसपास कोई भी जीवित प्राणी नहीं था, दूर-दूर तक कुछ भी नजर नहीं आ रहा था सिवाय सफेद, सफेद बर्फ के. वह पूरे दो दिनों तक बर्फ के नीचे दबा रहा, बिना किसी अतिरिक्त ऑक्सीजन के ठंड को झेलते हुए – 19 अप्रैल को एक हिमस्खलन (एवालांश) के बाद वह और भी खतरनाक स्थिति में पहुंच गया था. अंतिम बचाव प्रयासों में दो दिन की देरी हुई. और उन दिनों का एक-एक पल अनुराग और उसको बचाने वालों के लिए प्रथम उत्तरदाताओं और अनुराग दोनों के लिए दिल दहलाने वाला और काफी कीमती था. उसका बचना नामुमकिन से कम नहीं था.

उनकी यह रोमांचक और काफी अनिश्चित पर्वतारोहण की कहानी काफी सुंदर लेकिन भयानक है. अनुराग इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में हैं. उसे अभी होश नहीं आया है लेकिन वह स्थिर है.

अनुराग इस हफ्ते माउंट अन्नपूर्णा से रेस्क्यू किए जाने वाले दूसरे भारतीय हैं.  बलजीत कौर भी लगभग उसी समय लापता हो गई थी – और उसे मृत मान लिया गया था और 18 अप्रैल को एक शोक संदेश वायरल होने लगा था. उसी दिन कुछ घंटे बाद, उन्हें एक मौत को मात देने वाले मिशन में बचाया गया, और सुरक्षित एयरलिफ्ट किया गया.

एक्यूट माउंटेन सिकनेस (AMS) पहले ही शुरू हो चुकी थी. बचाव के समय वह कम से कम 36 घंटे तक ऑक्सीजन के बिना रही थी, और उन्हें मतिभ्रम हो रहा था. वह पहाड़ पर बिल्कुल अकेली थी, उसके आस पास कोई भी नहीं था. उसके अंदर से एंकर को छोड़ने और पहाड़ से “उतरने” की आवाजें आ रही थीं: उसके दिमाग का एक हिस्सा उसे मारने की कोशिश कर रहा था, दूसरा हिस्सा उसे बचाने की कोशिश कर रहा था. वह जागते हुए अपने आप को थप्पड़ मारती रही, “उठो, आगे बढ़ो, उठो, हारो मत, उठो.”

समय का उसके लिए कोई मतलब नहीं रह गया था. लेकिन बेहोशी की हालत में उसने गुरबानी सुनने के लिए अपना फोन निकाला. उसने समय नोट किया: 18 अप्रैल को सुबह 7:56 बजे. और फिर उसने डिवाइस पर एसओएस साइन देखा: उसने रेस्क्यू के लिए एक इमरजेंसी एलर्ट भेजा.

जब वह वापस अन्नपूर्णा बेस कैंप पहुंचीं तो उन्हें पता चला कि उनका करीबी दोस्त अनुराग गायब है. उनके अंदर दहशत फिर से घर कर गई.

बलजीत उन्हें होश में देखने वाले आखिरी लोगों में से एक थी: 16 अप्रैल को दोपहर करीब 3 बजे, दोनों वास्तव में पहाड़ की चोटी और कैंप 4 के बीच के रास्ते को पार कर चुके थे, जबकि वह चढ़ रही थी और वह नीचे उतर रहा था.

उन्होंने बताया कि अनुराग पहाड़ पर न चढ़ पाने की वजह से निराश और परेशान था.

बलजीत याद करते हुए कहती हैं कि उन्होंने अनुराग को सतर्क रहने, सावधानी से चलने और अपने दिमाग पर नियंत्रण रखने के लिए कहा था. “अनुराग ध्यान से, सम्हल के,” वह कहते हुए याद करती हैं. उसकी प्रतिक्रिया अस्पष्ट और धुंधली थी – वह उसकी बॉडी लैंग्वेज से बता सकती थी कि एएमएस शुरू हो गया था, और वह बीमार था: उसे याद है कि वह अपनी सेफ्टी हुक तक नहीं लगा सका.

22 अप्रैल को काठमांडू के एक अस्पताल से छुट्टी मिलने के कुछ दिनों बाद पहली बार ठीक से भोजन करते हुए बलजीत कहती हैं, “मैं अभी भी इस पर विश्वास नहीं कर सकती.” वह अभी भी कमजोर है और मुश्किल से खुद चल पाती हैं. उनकी उंगलियां और पंजे सूजे हुए हैं जिसकी वजह से उन्होंने बैंडेज बांध रखा है. लेकिन इसी हालत मेंं वह अनुराग के ठीक होने के लिए प्रार्थना करने के लिए पशुपतिनाथ मंदिर जाती है.

पशुपतिनाथ मंदिर में अनुराग के लिए प्रार्थना करते बलजीत और दो अन्य पर्वतारोही। | वंदना मेनन | दिप्रिंट

“जब वह जिंदगी में वापस आएगा, तो मैं केवल उसे मार डालूंगी.”

ऊपर की चढ़ाई

बलजीत दूसरी व्यक्ति थीं जिन्होंने ध्यान दिया था कि अनुराग की हालत ठीक नहीं है.

एक विशेषज्ञ पर्वतारोही गाइड छेपाल शेरपा ने भी 16 अप्रैल को दोपहर के आसपास अनुराग को रास्ते में क्रॉस किया. उन्होंने कहा, ‘वह बिल्कुल फिट नहीं थे. “वह सिर्फ चोटी पर चढ़ने के लिए फोकस कर रहे थे.


यह भी पढ़ेंः पंजाब की राजनीति के ग्रैंड मास्टर प्रकाश सिंह बादल अपने पीछे एक ऐतिहासिक विरासत छोड़ गए हैं 


छेपाल ने कहा, “मैंने कहा, अनुराग मालू, प्लीज, यह काफी खतरनाक है. अगर आप शाम 5 बजे चढ़ाई करते हैं, तो आप वापस कैसे आएंगे? आपको एनर्जी की जरूरत है,”

उसने अनुराग को आराम करने और पहाड़ पर चढ़ाई रोकने की सलाह दी – वह धीमा और सुस्त था, और कमजोर दिख रहा था. AMS पहले ही शुरू हो चुका था और अनुराग बिना ऑक्सीजन के अन्नपूर्णा पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था. छेपाल अनुराग के बारे में चिंतित थे, लेकिन उन्होंने अपने क्लाइंट्स के साथ अपने अभियान पर उतरना जारी रखा.

अपनी राहत के लिए, अनुराग ने उस दिन शिखर पर नहीं जाने का फैसला किया. लेकिन यात्रा में खतरे को लेकर अभी भी कुछ कहा नहीं जा सकता था: उन सभी को हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्र पार करना होगा. यहीं पर अनुराग लड़खड़ा गए.

अनुराग को सावधान करने वाला तीसरा व्यक्ति भी उसे होश में देखने वाला आखिरी व्यक्ति था.

ब्राजील के पर्वतारोही मोएसेस फियामोनसिनी 17 अप्रैल को उसी समय अनुराग और उनके शेरपा के साथ कैंप III से उतर रहे थे. नीचे उतरने के लिए वे तीन रस्सियों का इस्तेमाल कर सकते थे: फियामोनसिनी ने उतरना शुरू किया, जब अचानक उसने ऊपर देखा और देखा कि अनुराग गलत रस्सी से खुद को जोड़ रहा है.

रस्सी सामान ढोने के लिए थी, इंसानों के लिए नहीं. और यह बहुत छोटी थी.

और वही हो गया जो होने वाला था: फियामोनसिनी के “इसे रोको, इसे रोको!” चिल्लाने के बावजूद अनुराग छोटी रस्सी पर उतरने लगा, फिसला और 70 मीटर गहरी दरार में गिर गया. गिरते ही उसका शरीर फियामोनसिनी से टकरा गया.

फियामोनसिनी याद करते हुए कहते हैं, “वह नीचे देख रहा था, लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह कुछ देख रहा था. और फिर रस्सी खत्म हो गई और वह बिल्कुल…शायद 8 या 10 मीटर नीचे गिर गया?” “और फिर वह दरार में लुढ़क गया. मैं अभी भी पहाड़ से नीचे उतर रहा था.

फियामोनसिनी एक पल के लिए सन्न रह गए और यह समझने की कोशिश की क्या हुआ है, फिर उन्होंने होश संभाला और अपने को सुरक्षित करने की कोशिश की. लेकिन गिरने, दरार की गहराई और मौसम की स्थिति को देखते हुए, फियामोनसिनी को यकीन था कि अनुराग बच नहीं पाएगा. किसी तरह, वह डर पर काबू पाते हुए नीचे उतरे और शेरपा को अलर्ट किया.

अनुराग 17 अप्रैल को दोपहर करीब 2:30 बजे गिरे थे. छेपाल ने अनुराग के शेरपा से खबर सुनी, जिन्होंने उसे रेडियो पर संदेश दिया था कि अनुराग दरार में गिर गया है. काठमांडू में अनुराग की बीमा कंपनी, ASC360 की सहायता से उन्होंने तुरंत एक योजना को अमल में लाना शुरू किया. उसने लोगों को स्की और रस्सी लाने के लिए कहा ताकि वह उसे उठा सके. ASC360 ने 17 अप्रैल को हवाई खोज के लिए हेलीकाप्टरों का इंतजाम किया, लेकिन दृश्यता कम थी. बचाव का प्रयास करने के लिए उन्हें अगले दिन – कम से कम बारह घंटे तक – इंतजार करना होगा. लेकिन बात फिट शेरपाओं तक पहुंची जो अनुराग को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने को तैयार हो सकते थे, खासकर बिना यह जाने कि वह मर चुका है या जिंदा है. छेपाल ने कहा. “कोई भी अपनी जान जोखिम में नहीं डालना चाहता था, लोगों को अनुराग को रेस्क्यू करने के लिए मनाना मुश्किल था.”

कोई भी पर्वतारोही के लिए अपने जीवन को दांव पर नहीं लगाना चाहता था, खासकर ऐसे पर्वतारोही के लिए जिसे माना जा रहा था कि वह मृत हो चुका होगा.

18 अप्रैल को, जबकि अनुराग के भाई आशीष मालू और सुधीर मालू नेपाल पहुंचे, छेपाल ने दो बचाव अभियानों में से पहला अभियान शुरू किया.

दोनों अभियान असफल रहे.

लेकिन कम से कम उन्होंने ठीक से पता लगा लिया था कि अनुराग कहां था, और उस दरार की बेहतर समझ थी जिसमें वह गिर गया था. यह एक छोटा सा छेद था जो तीन छेदों से जुड़े एक बड़े गुफानुमा स्थान में परिवर्तित हो गया था. 19 अप्रैल को, एक हिमस्खलन ने योजनाओं को और भी विलंबित कर दिया. उसके बचने की संभावना क्षीण होती जा रही थी.

रेस्क्यू ऑपरेशन

उन दो दिनों के दौरान अनुराग मर चुका था या जिंदा था, यह कोई नहीं जानता था. लेकिन काठमांडू में जमीनी स्तर पर बचाव अभियान का नेतृत्व करने वाले दृढ़ संकल्प थे: वे उसे अन्नपूर्णा के चंगुल से छुड़ाएंगे.

अनुराग के दोस्त और मोटिवेशनल स्पीकर सौनक भट्टा ने लॉजिस्टिक्स को जुटाना शुरू किया. वह केवल दो बार अनुराग से मिले थे – कई साल पहले इस्लामाबाद में और कुछ महीने पहले काठमांडू में. भट्टा ने कहा, लेकिन अनुराग में कुछ बात थी.

भट्टा ने कहा, “यह एक प्रतिशत संभावना के लिए सौ प्रतिशत प्रयास था.” “यह अत्यधिक निराशावाद और अत्यधिक आशावाद के बीच की लड़ाई थी.”

भट्टा और अनुराग के भाई प्रयासों को गति देने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे. फियामोनसिनी और छेपाल की बुद्धि को सलाम, वे जानते थे कि अनुराग कहां है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि वह दरार में कितनी गहराई पर है, या वह किस एंगल पर गिरा था. लगभग 500 लोगों के साथ एक व्हाट्सएप ग्रुप जल्दी से बनाया गया था, और उसे कैसे बचाया जाए, इस पर सुझाव क्राउडसोर्स किए जा रहे थे. समूह के पर्वतारोहियों को बचाव रणनीति का सुझाव दिया गया था, जबकि अन्य गैर-सरकारी संगठनों से थे और कॉन्टैक्ट्स व Change.org पर पेटीशन पेज सेट करके ज्यादा से ज्यादा रिसोर्स को जुटाने की कोशिश कर रहे थे. भारतीय दूतावास, साथ ही कई अन्य राजनेताओं से संपर्क किया गया. नेपाल के राष्ट्रपति के कार्यालय ने भी मदद की पेशकश करने के लिए भट्टा से संपर्क किया. ASC360, बीमा कंपनी, ने अधिकतम लागत को कवर करने का आश्वासन दिया.

“कुछ भी हो जाए, मुझे परवाह नहीं है. मैं अपने भाई के साथ वापस आऊंगा, ”जो कोई भी सुनता उससे आशीष वही दोहराता रहा.

उन्होंने ऐसे उपकरणों को इकट्ठा करना शुरू किया जो अनुराग का पता लगाने में मदद कर सकते थे: थर्मल कैमरे, कार्बन डाइऑक्साइड डिटेक्टर, मेटल डिटेक्टर और विशेष ड्रोन. नेपाली सशस्त्र बलों ने उन्हें एक ड्रोन दिया, थर्मल कैमरों के लिए एक गैर-लाभकारी संस्था ने व्यवस्था की, त्रिभुवन विश्वविद्यालय ने कार्बन डाइऑक्साइड डिटेक्टरों का इंतज़ाम किया, और मेटल डिटेक्टर सेवेन समिट ट्रेक्स से आए, जो छेपाल की कंपनी थी और अनुराग ने इस विशेष ट्रैक के लिए हायर किया था. दुर्भाग्य से, जैसे ही अनुराग के भाई आशीष 19 अप्रैल को सेवेन समिट ट्रेक कंपनी और सशस्त्र बलों के लोगों के साथ पोखरा पहुंचे उनके उपकरणों को काठमांडू हवाई अड्डे पर रोक दिया गया.

विशेषज्ञ पर्वतारोहियों से लेकर स्थानीय शेरपाओं और सरकार तक – नेपाल के पर्वतारोहण से संबंधित सभी लोग एक साथ आ गए.

लेकिन आखिर में किस चीज ने काम किया? भट्टा ने कहा, “बस रस्सी और साहस, बहुत ज्यादा साहस”

और इसके लिए थोड़े साहस की आवश्यकता थी. छेपाल ने स्वयं सहित सात सदस्यीय टीम को इकट्ठा किया, लक्पा नूरबू शेरपा, दावा नूरबू शेरपा, लक्पा शेरपा, ताशी शेरपा, और दो विशेषज्ञ विदेशी पर्वतारोही – एडम बेलेकी और मारियस हटाला. 20 अप्रैल को सुबह लगभग 7 बजे, बेलेकी और ताशी दरार में घुसे, और अनुराग का शव बर्फ के नीचे दबा पाया. वे मानकर चल रहे थे कि अनुराग मर चुका है – तभी बेलेकी ने देखा कि उसका शरीर प्रतिक्रिया कर रहा था.

काम तेजी से किया जाने लगा: अनुराग जीवित था. वे लगभग चार घंटे में उसे बाहर निकालने में कामयाब रहे और बचाव पायलट सोबित गौचन ने उन्हें हेलीकॉप्टर से पोखरा पहुंचाया. पूरे ऑपरेशन में छह घंटे लगे.

दोपहर 1 बजे के करीब जब अनुराग को लेकर हेलिकॉप्टर उतरा तो उसका इंतजार कर रहे लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि क्या हो रहा है. भट्टा को बस खुशी से ताली बजाना याद है, और हवा में स्पष्ट राहत महसूस कर सकता था.

यह सभी बाधाओं के खिलाफ था – ऑक्सीजन की आपूर्ति के बिना दिनों तक जिंदा रहने के बाद, अनुराग 6000 मीटर गहरी खाई में बर्फ के नीचे दबे होने के बावजूद बच गया था.

किसी तरह अन्नपूर्णा से उन्हें आजाद कराया जा सका था.

पहाड़ों की छाया

बलजीत जानती हैं कि पहाड़ कभी माफ नहीं करता. लेकिन उसके लिए, वे उसका घर भी हैं.

“पहाड़ मेरे परिवार की तरह हैं. मैं उनके साथ नहीं लड़ती – और मुझे लगता है कि इसीलिए पहाड़ों ने मुझे बचाया. मुझे पहाड़ों पर भरोसा है. वे कहीं नहीं जा रहे हैं.” उन्होंने कहा. “इसलिए यदि पहाड़ आपके सामने कठिन परिस्थितियां पेश करते हैं, तो आपको इसे स्वीकार करना होगा और सही निर्णय लेने होंगे. मैं इस बार कोई रिकॉर्ड नहीं बनाना चाहती थी, मैं बस जिंदा रहना चाहती थी.


यह भी पढ़ेंः ‘निकलेंगे, फिर आगे की सोचेंगे’, आनंद मोहन के बयान पर मारे गए IAS की पत्नी बोलीं- दोहरा अन्याय हुआ


खेल मनोवैज्ञानिक और पर्वतारोही मैथ्यू बार्लो के शोध के अनुसार, जो मौत के साथ खिलवाड़ करते हैं क्योंकि “वे अपने जीवन पर नियंत्रण की भावना चाहते हैं” जोखिम उन पर्वतारोहियों के जीवन का हिस्सा है.

जैसा कि बीबीसी द्वारा उद्धृत किया गया है, बार्लो के शोध से पता चलता है कि अन्य एथलीटों की तुलना में पर्वतारोहियों के पास “अंग ज्यादा बेहतर तरीके से काम” करने चाहिए. वे काउंटरफ़ोबिया भी प्रदर्शित करते हैं – जो तब होता है जब कोई अपने डर से बचने के बजाय उसका सामना करता है. जोखिम चढ़ाई को और अधिक रोमांचकारी बना देता है, यही कारण है कि पर्वतारोही अक्सर अधिक चुनौतीपूर्ण मार्गों और परिस्थितियों को अपनाते हैं.

सफलता की इच्छा – और चोटी तक पहुंचना – सुरक्षा की आवश्यकता से आगे निकल जाती है. गलाकाट प्रतियोगिता है: एक समुदाय होने के बावजूद, पर्वतारोही भी एक-दूसरे से जीतने की इच्छा रखते हैं. और जब विश्व रिकॉर्ड स्थापित करने, या साहसिक खेलों की सीमाओं को आगे बढ़ाने की इच्छा होती है, तो शारीरिक फिटनेस पीछे रह जाती है. यही कारण है कि ये एथलीट लगातार अगले असंभव कार्य की तलाश में रहते हैं, और इसे पूरा करने के लिए पहाड़ों पर चलते हैं.

पहाड़ पर चढ़ना भी राष्ट्रीय गौरव की बात है: अनुराग कर्मवीर चक्र पुरस्कार के प्राप्तकर्ता हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के साथ साझेदारी में दिया जाने वाला एक वैश्विक नागरिक सम्मान है. वह भारत से 2041 अंटार्कटिक युवा राजदूत भी हैं, और संयुक्त राष्ट्र वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में जागरूकता पैदा करने और कार्रवाई करने में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं. बलजीत बिना ऑक्सीजन के 8,163 मीटर माउंट मानसलू पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं, और अन्नपूर्णा पर चढ़कर इस लक्ष्य को दोहराने का प्रयास कर रही थीं.

नेपाल पर्वतारोहियों का मक्का है – हिमालय की भूमि 8,000 मीटर से ज्यादा ऊंचे आठ पहाड़ हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा और अन्नपूर्णा हैं.

और नेपाल सरकार इस उद्योग से बढ़ने वाली देश की कीमत को पहचानती है. नेपाल के पर्यटन विभाग (पर्वतारोहण) के निदेशक युबराज खातीवाड़ा ने कहा, “यह कहना आसान है कि पर्वतारोहण हमारे पर्यटन का आधार है.” कई स्थानीय लोग अभियान गाइड के रूप में काम करने का विकल्प चुन रहे हैं – और खातीवाड़ा का कहना है कि एक अभियान दल को सफल होने के लिए लगभग 15 लोगों की आवश्यकता होगी.

वह जिस टीम का जिक्र कर रहे हैं, वह आमतौर पर सेवेन समिट्स ट्रैक्स जैसी कंपनियों द्वारा आयोजित की जाती है, जिसे अनुराग ने हायर किया था. ये कंपनियां निडर पर्वतारोहियों का साथ देने के लिए शेरपाओं को नियुक्त करती हैं क्योंकि वे चोटियों पर चढ़ते हैं.

पर्वतारोहण करने वालों की संख्या में भी वृद्धि हुई है. Fourteen Peaks और समिट फीवर जैसी फिल्में बढ़ते उद्योग को बढ़ावा देने में एक भूमिका निभाती हैं, लोगों को खुद के लिए चुनौती लेने के लिए प्रेरित करती हैं. नतीजतन, इंडस्ट्री की तरफ लोगों का ध्यान बढ़ा है. मात्रा और गुणवत्ता के बीच सदियों पुराने रस्साकशी ने अधिक से अधिक अनुभवहीन ट्रेकर्स और शेरपाओं को उन चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित किया है जिनके लिए उन्हें ठीक से प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता है.

और इस सब में भी पैसा एक भूमिका निभाता है – किसी पहाड़ पर चढ़ना सस्ता नहीं है. यही कारण है कि बलजीत और अनुराग जैसे निपुण पर्वतारोही स्पॉन्सरशिप पर भरोसा करते हैं, और अपने को बेहतर करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.

स्पॉन्सरशिप और मान्यता की दौड़ भी पर्वतारोहण की दुनिया के भीतर गलाकाट प्रतियोगिता पैदा करती है. लेकिन प्रतिस्पर्धा जीवन पर जीत नहीं दर्ज कर पाती. जब बलजीत ने महसूस किया कि उसकी जान खतरे में है, तो भले ही उसके दिमाम ने काम करना बंद कर दिया पर उसकी मांसपेशियों की याददाश्त में ऊर्जा आ गई. उसने अपने कारबिनर को चॉपर से जोड़ा जो कि उसे बचाने आया था.

“दिमाग उस ऊंचाई पर ठीक से काम नहीं करता है,” उसने अपने कुछ मतिभ्रमों के बारे में बताते हुए कहा. “और अनुराग चूंकि पहले से ही निराश था क्योंकि वह पहाड़ पर चढ़ाई नहीं कर पाया था. जिसकी वजह से चीजें और ज्यादा बिगड़ गईं.

रेस्क्यू किया गया, रिकवरी हो रही

अनुराग जब पोखरा के अस्पताल पहुंचे तो उनका दिल धड़क नहीं रहा था. अगले तीन घंटों में, डॉक्टरों ने उसकी जिंदगी बचाने और सांसों को नियमित करने के लिए सीपीआर किया.

रेस्क्यू किया जाना एक ऐसी सफलता थी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी – उसका परिवार और दोस्त विजयी महसूस कर रहे थे, उन्होंने अनुराग को जिंदा बचाने के लिए हर संभव कोशिश की थी.

उन्हें 20 अप्रैल की शाम को पोखरा से काठमांडू के एक अस्पताल में लाया गया था, और वहां उनकी हालत गंभीर बनी हुई गै. उनके परिवार और डॉक्टरों ने उनकी स्थिति में सुधार होने तक उन्हें काठमांडू में रखने का फैसला किया है, और फिर उन्हें नई दिल्ली या मुंबई में इलाज जारी रखने के लिए ले जाया जाएगा. 24 अप्रैल को, यह बताया गया कि जब उनका नाम पुकारा गया तो उसकी आंखें में हलचल होने लगी – जो कि स्वास्थ्य में सुधार का एक स्पष्ट संकेत है.

एडवेंचर स्पोर्ट्स कवर (ASC) 360 के संस्थापक और सीईओ प्रतीक गुप्ता का दावा है कि उनकी कंपनी 99 प्रतिशत भारतीय पर्वतारोहियों को बीमा प्रदान करती है. ASC360 खोज और बचाव कार्यों और चिकित्सा इवैकुएशन के लिए भारत का सबसे बड़ा एडवेंचर बीमाकर्ता है.

जब बचाव अभियान की बात आती है तो गुप्ता ही सबसे आगे रहते हैं, क्योंकि वह इसकी फाइनेंसिंग कर रहे थे. पर्वतारोही को कैसे कवर किया गया है और बचाव कैसा दिखना चाहिए – यह पता लगाने के लिए बचाव दल हमेशा ASC360 के संपर्क में रहते हैं – क्योंकि वही पैसे मंजूर करते हैं. 8000 मीटर चोटियों के लिए बीमा कवरेज $100,000-$300,000 के बीच का हो सकता है.

संभावनाएं धूमिल दिख रही थीं. 18 तारीख तक, ASC360 ने अनुराग की खोज और बचाव के लिए अलग रखा पैसा समाप्त कर दिया था. गुप्ता ने मालू भाइयों को बुलाया, उन्हें बिठाया और उनसे पूछा कि वे क्या करना चाहेंगे. वे मदद के लिए भारत सरकार के पास जाने की एक योजना लेकर आए. 19 अप्रैल को सुबह 7 बजे वे भारतीय दूतावास से मिले. दोपहर 1 बजे तक, भारतीय दूतावास गहन बातचीत के बाद सहमत हो गया और काठमांडू में कई स्थानीय मारवाड़ी – मालू समुदाय – भी वित्तीय सहायता की पेशकश करने के लिए आगे आए. उन्होंने सेवेन समिट टीम के लिए जमा के रूप में 10 लाख रुपये का टोकन अमाउंट रखा, ताकि शेरपाओं को जोखिम भरा बचाव करने के लिए प्रेरित किया जा सके.

18 अप्रैल को बलजीत के बचाव – गुप्ता द्वारा वित्तपोषित – ने अनुराग के बचाव को बहुत आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान किया था. अगर वह जीवित बच सकती थी, तो वह भी बच सकता था. और अंत में, भारतीय दूतावास ने अनुराग के खोज और बचाव अभियान की लागत को कवर किया, और ASC360 ने चिकित्सा लागत को कवर किया. अनुराग किशनगढ़ के रहने वाले हैं, इसलिए राजस्थान सरकार से भी मदद मिलने की उम्मीद है.

गुप्ता ने कहा, “मुझे लगता है कि मैं इस पागल फिल्म का निर्माता हूं. मैं कभी नहीं घबराता. आप इस लाइन में घबरा भी नहीं सकता. बस इतना ही हुआ कि मुझे हमेशा विश्वास था, मैं हर रोज प्रार्थना कर रहा था.”

ASC360 ने पिछले पांच वर्षों में लगभग 3,50,000 लोगों को बचाया है, लेकिन बलजीत और अनुराग के मामले दुर्लभ थे. इतनी ऊंचाई पर रेस्क्यू करना – बलजीत 7,300 मीटर पर और अनुराग करीब 6,000 मीटर पर लापता हो गए – अविश्वसनीय रूप से खतरनाक है, खासकर इतनी ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले पायलटों के लिए. मौसम की स्थिति चरम पर होती हैं, दृश्यता कम होती है और दुर्घटना की संभावना अधिक होती है. लेकिन दो दिन के भीतर किए गए दोनों ऑपरेशन सफल रहे.

गुप्ता ने कहा, “उम्मीद सबसे अच्छा फैसला है.”

उठने का इंतजार

अनुराग का लक्ष्य 8000 मीटर से ऊपर की सभी चौदह चोटियों को फतह करना है. उनके कुछ पर्वतारोही सहयोगियों के अनुसार, उनका लक्ष्य एक महीने में छह चोटियों को फतह करना था.

उन्होंने कहा, यह महत्वाकांक्षी है, लेकिन असंभव नहीं है. लेकिन अनुराग के फिटनेस स्तर को इसके लिए बेहतर होने की जरूरत है – और दरार में गिरने से केवल यह संकेत मिलता है कि वह अभी तक बिना ऑक्सीजन के अन्नपूर्णा पर चढ़ाई करने के लिए तैयार नहीं थे.

पर्वतारोहियों का एक समूह लापरवाही पर विचार कर रहा है, और बलजीत डिस्चार्ज होने के बाद अपना पहला भोजन खाती है – तरबूज का रस, दाल मखनी, चावल, रोटियां और मशरूम की करी.

उनमें से एक एवरेस्ट बेस कैंप तक ट्रैक का नेतृत्व करने वाला है, जबकि दूसरा अन्नपूर्णा को ऑक्सीजन के साथ शिखर पर ले जाने के लिए है. जो उनके करीबी दोस्तों के साथ हाल ही में हुआ है, उससे वे भयभीत नहीं हैं. बलजीत भी नहीं है – वह पहले से ही अपने अगले ट्रैक के लिए योजना बना रही है, लेकिन पहले हिमाचल प्रदेश में सोलन वापस अपने घर जाएगी.

”मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अन्नपूर्णा में मरूंगी.” बलजीत कहती हैं, “मैं पहाड़ों में महफ़ूज़ (सुरक्षित) महसूस करती हूं.”

पूरनपुर की एक पर्वतारोही उसकी सहेली सत्या ने हस्तक्षेप किया. “लेकिन आपका अनुभव लोगों को यह भी सिखाना चाहिए कि प्रशिक्षण कितना महत्वपूर्ण है. पर्वतारोहण आसान नहीं है, यह किसी प्रकार का लक्ज़री पर्यटक अनुभव नहीं है. हर कोई बस एवरेस्ट पर चढ़ना चाहता है और कहता है कि उन्होंने ऐसा कर लिया है – लेकिन एवरेस्ट से भी कठिन चोटियां हैं, और लोगों को बस यह एहसास नहीं है कि वे क्या शुरू करने जा रहे हैं,” उन्होंने कहा. “पहाड़ और पहाड़. आपको उनका सम्मान करना होगा.”

बलजीत इससे सहमत हैं. उसने कहा, “लोगों को किसी संस्थान में जाकर प्रशिक्षण लेने की जरूरत है. हमारे पास भारत में महान सरकारी संस्थान हैं. अगर मैं अपना मार्गदर्शन करने के लिए पूरी तरह से एक शेरपा पर निर्भर होती, या नहीं जानती कि मुझे क्या करना है, तो मैं मर जाती.”

पूरा ग्रुप चुप हो गया. तथ्य यह है कि अनुराग अभी भी अपने जीवन के लिए लड़ रहा है, और तथ्य यह है कि बलजीत को फ्रॉस्टबाइट या लिगामेंट टियर जैसी कोई चोट नहीं आई थी.

पर्वतारोही समुदाय चुस्त-दुरुस्त है: आखिर कितने लोग चोटियों को फतह करने के लिए खुद को इस तरह के खतरे में डालने की इच्छा को समझ सकते हैं? जैसे ही बलजीत ने दोपहर का भोजन किया, उसके पर्वतारोही मित्र उसे गले लगाने और शुभकामनाएं देने के लिए आ गए. वे अपने स्वयं के नियर-डेथ दुर्घटनाओं पर चर्चा करते हैं, कहानियां एक-दूसरे को सुनाते हैं.

ये सालों से बने रिश्ते हैं. लेकिन वे हमेशा एक साथ यात्रा या ट्रेक नहीं करते हैं: प्रत्येक कट्टर पर्वतारोही एक अलग लक्ष्य का पीछा कर रहा है, एक अलग लक्ष्य को पूरा करने की कोशिश कर रहा है, और इसलिए वे एक दूसरे के रास्ते में नहीं आना चाहते हैं.

“चलो चलते हैं?” बलजीत ने खाना खत्म करते हुए कहा. टेबल पर हर कोई तुरंत समझ जाता है कि वह कहां जाना चाहती है: अनुराग के ठीक होने के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर. बलजीत के लिए नेपाली पर्वत की हर तीर्थयात्रा इस मंदिर से शुरू और खत्म होती है. और इस बार, उसके पास आभारी होने के लिए उसका जिंदा बचना भी है.

अनुराग के लिए दुआएं जारी हैं. वह जीवित है, और वह सुरक्षित है, लेकिन वह अभी तक खतरे से बाहर नहीं आया है. उनके परिवार ने 23 अप्रैल को काठमांडू में उन सभी के लिए आभार व्यक्त करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जिन्होंने बचाव प्रयासों के दौरान मदद करने की कोशिश की थी.

अनुराग मालू के परिवार और बचाव दल द्वारा आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस। | वंदना मेनन

“यह किसी चमत्कार से कम नहीं है,” आशीष मालू ने एक स्क्रीन के सामने खड़े होकर दोहराया, जो दिखाता है- “अनुराग इज बैक”.

प्रसिद्ध फ्रांसीसी पर्वतारोही मौरिस हर्ज़ोग ने 1950 में 8,000 मीटर की चोटी की पहली विजय का नेतृत्व करने पर अपनी मौलिक पुस्तक अन्नपूर्णा में यह अंतिम पंक्ति लिखी: “पुरुषों के जीवन में अन्य अन्नपूर्णाएं भी हैं.”

अब अनुराग को बस जागने की जरूरत है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रीज में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः चुनावी रैली करते करते डोसा बनाने होटल में घुसी प्रियंका गांधी, बोलीं- बहुत स्वादिष्ट बना है 


 

share & View comments