आंबेडकर नगर: उत्तर प्रदेश के आंबेडकर नगर जिले के एक छोटे से गांव की कोई भी लड़की स्कूल नहीं जाना चाहती. उनके पड़ोसी के साथ जो हुआ उसके बाद से वो स्कूल जाने से डर रही हैं – 11वीं कक्षा के 17 वर्षीय छात्र की मृत्यु हो गई, जिसे ग्रामीण अब ‘हत्या-छेड़छाड़ दुर्घटना’ कह रहे हैं.
वह छात्रा 15 सितंबर को स्कूल से घर वापस साइकिल से जा रही थी, तभी बाइक सवार दो युवकों ने कथित तौर पर उसका दुपट्टा खींचा. वह अपना संतुलन खो बैठी, व्यस्त सड़क पर गिर गई और एक अन्य मोटरसाइकिल चालक ने उसे कुचल दिया.
दुर्घटना के एक घंटे के भीतर, तीन मुस्लिम लड़कों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिनमें से दो को बाद में पुलिस ने घुटने में गोली मार दी. इस घटना ने पड़ोस को विभाजित कर दिया है, एक तरफ पुलिस की बर्बरता पर आक्रोश है और दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ के एनकाउंटर राज में ‘आधे मुठभेड़ों’ की जय-जयकार हो रही है. इसने दो गांवों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया है और दोनों ने वास्तव में जो हुआ उसके अलग-अलग संस्करण तय किए हैं – पुरुषों द्वारा उसे परेशान करना बनाम लड़की की साइकिल का हैंडल बाइक पर पीछे बैठे व्यक्ति के बैग में उलझ जाना. और अब, लड़की के पिता आदित्यनाथ के बुलडोजर न्याय की मांग कर रहे हैं.
उन्होंने ऊंची आवाज़ में कहा, “मैं चाहता हूं कि मेरे योगी बाबा का बुलडोजर उनके घरों को ढहा दे. उन्हें फांसी दी जानी चाहिए.”
किसी भी दिन, आंबेडकर नगर जिले के इस गांव की सड़कें साइकिल चलाकर स्कूल आने-जाने वाली लड़कियों से भरी रहती हैं. उनके बालों में हवा, व्यस्त बाज़ार और हरे-भरे खेतों से गुज़रती सड़कों पर गूंजती उनकी हंसी। 15 सितंबर से यह सब बंद हो गया है.
रामराजी इंटर कॉलेज के 13 वर्षीय आदर्श वर्मा ने कहा, “उस दिन के बाद से, अन्य छात्राओं ने कक्षा में आने से इनकार कर दिया है. वो डरी हुई हैं.”माता-पिता और गांव के बुजुर्गों का कहना है कि वे अपनी बेटियों को तब तक स्कूल नहीं भेजेंगे जब तक उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं हो जाती.
लेकिन पुलिस के लिए मामला सरल है.
आंबेडकर नगर के एसपी सिन्हा ने कहा, “परिवार ने पहले इसे दुर्घटना बताया, लेकिन प्रथम दृष्टया हम इसे हत्या मानते हैं.”
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उत्पीड़न का इतिहास
दुर्घटना का सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया पर वायरल होने के 48 घंटे से भी कम समय के बाद, पुलिस ने पड़ोसी हरसिम्हर गांव के तीन मुस्लिम युवकों- मोहम्मद शबाज़ (18), उसके भाई अरबाज़ (16), कथित तौर पर उसे परेशान के आरोप में अरेस्ट कर लिया, और फैज़ल (24) को आरिबपुर से गिरफ्तार किया गया. फैज़ल लड़की को कुचलने वाली बाइक पर कथित सवार था. 17 सितंबर को, फैज़ल और शाहबाज़ दोनों को पुलिस ने घुटने में गोली मार दी थी, पुलिस का दावा है कि मेडिकल जांच के लिए ले जाते समय दोनों ने उन पर ‘हमला’ किया. उन्होंने कहा, अगर सरकार ने अधिकारियों को कार्रवाई करने का निर्देश नहीं दिया होता तो वे अपराधियों को मिठाई खिलाते.
पुलिस ने चौथे व्यक्ति की पहचान मुन्नू के रूप में की है, जो फ़ैज़ल की बाइक पर पीछे बैठा था. उसे अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है. गिरफ्तार किए गए तीनों लोगों पर पोक्सो अधिनियम के साथ-साथ आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए आपराधिक बल का उपयोग करना) और 279 (लापरवाही से गाड़ी चलाना) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
लेकिन लड़की के पिता पुलिस से नाराज हैं. परिवार के अनुसार, लोग महीनों से लड़की को परेशान कर रहे थे, जब वह साइकिल से जाती थी तो उसका पीछा करते थे.
पिता ने कहा, “घटना से कुछ दिन पहले, मैंने मौखिक रूप से पुलिस से शिकायत की थी लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.” उनका कहना है कि अगर उन्होंने उनकी शिकायत पर कार्रवाई की होती तो उनकी बेटी जीवित होती. शिकायत दर्ज करने में विफल रहने पर एसएचओ को निलंबित कर दिया गया है.
पिता ने चौथे व्यक्ति की पहचान करने का भी दावा किया है, क्योंकि उसकी भतीजी, जो उसकी बेटी के साथ साइकिल चला रही थी, ने उसे पहचान लिया.
अब, स्थानीय राजनेताओं, मीडियाकर्मियों और यूट्यूबर्स का परिवार के दरवाजे पर दस्तक देने का सिलसिला जारी है. पंचायत अध्यक्ष श्याम सुंदर वर्मा (भाजपा), जिला ब्लॉक प्रमुख आनंद वर्मा (बसपा) और पूर्व एमएलसी विकास पटेल (बसपा) ने परिवार से मुलाकात की और उन्हें न्याय का आश्वासन दिया.
लड़की की बड़ी बहन का कहना है कि उसे करीब छह महीने पहले उत्पीड़न के बारे में पता चला. “उसने मुझे बताया कि वे हीरापुर मंडी में स्कूल और कोचिंग सेंटरों के बाहर घूमते थे.” वह दावा करती है कि एक बार उसकी बहन यह कहते हुए घर में दौड़ी आई कि पुरुष बाहर थे. बहन ने कहा, “मैं उन्हें पकड़ने के लिए दौड़ी लेकिन वे बाइक पर थे और भाग गए.” घटना के बारे में सुनकर वह सदमे में चली गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. उसने कहा, “मेरी बहन का डॉक्टर बनने का सपना था.”
लेकिन पुलिस अभी तक यह साबित नहीं कर पाई है कि सड़क हादसे में शामिल चारों वही लोग थे जो लड़की को परेशान कर रहे थे.
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‘उत्पीड़न’ के ख़िलाफ़ संघर्ष
ग्रामीणों का दावा है कि हाल के महीनों में सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न और छेड़छाड़ के मामलों में वृद्धि हुई है. हालांकि क्षेत्राधिकारी हंसवर थाने की पुलिस का कहना है कि उन्हें शिकायत नहीं मिली है. संयोग से, यह वही थाना था जहां पिता अपनी बेटी को परेशान किए जाने की शिकायत करने गए थे.
यह त्रासदी छोटे से गांव के लगभग सभी 30 परिवारों के लिए एक रैली का मुद्दा बन गई है, जो इस बात पर जोर देते हैं कि उनकी बेटियों को सार्वजनिक स्थानों पर परेशान किया जा रहा है.
गांव के एक बुजुर्ग ने कहा, “कोई भी लड़की स्कूल जाने के लिए तैयार नहीं है और अब हम उन्हें अकेले नहीं भेजेंगे. हम उन्हें तब तक जाने नहीं देंगे जब तक हमें यकीन नहीं हो जाता कि प्रशासन हमारे साथ है.”
11वीं कक्षा की छात्रा रिया गौतम, जो मृतक लड़की के ही स्कूल में पढ़ती है, अभी भी साइकिल से स्कूल जाती है. लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि वह दूसरे गांव में रहती है; उसके माता-पिता ने उसे किसी से भी बात करने से मना कर दिया है.
गौतम कहती हैं, “15 सितंबर के बाद से कोई क्लासवर्क नहीं हुआ है. सभी बहुत रो रहे थे. और हमारे माता-पिता ने हमें स्कूल जाते समय सावधान रहने को कहा है.”
लेकिन स्कूल के प्रिंसिपल ध्यानचंद वर्मा का कहना है कि न केवल उपस्थिति कम नहीं हुई है, बल्कि उन्हें स्कूल भवन के बाहर लड़कियों को परेशान किए जाने की कोई शिकायत भी नहीं मिली है.
उन्होंने कहा, “ऐसा कुछ नहीं है. छात्र स्कूल आ रहे हैं.”
पुलिस ने स्कूल के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी है. आसपास के बाजार की बैरिकेडिंग कर दी गई है और विभिन्न स्थानों पर पुलिस अधिकारियों को तैनात किया गया है.
अधिकारियों को चिंता है कि यह भ्रम अन्य गांवों में भी फैल जाएगा. भारत में उत्तर प्रदेश में स्कूल न जाने वाली लड़कियों का अनुपात सबसे अधिक है. शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2022 के अनुसार, जहां राष्ट्रीय औसत गिरकर 2 प्रतिशत हो गया, वहीं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ-साथ यूपी के लिए यह 10 प्रतिशत से अधिक था.
यूपी पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा आदित्यनाथ सरकार के लिए प्राथमिकता है.
उनकी तरफ से पूरी सावधानी बरती जाने के बारे में बताते हुए कुमार ने कहा, “हमारे पास एंटी-रोमियो स्क्वॉड हैं और बहुत सारी अनुकरणीय कार्रवाई भी की जाती है. उन्हें वर्दी और सादे कपड़ों में स्कूलों और कॉलेजों के बाहर ड्यूटी पर तैनात किया जा रहा है.
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‘यह मेरे बेटे नहीं’
पड़ोसी हरसिम्हर गांव में भी अधिकारियों के ख़िलाफ़ आक्रोश बढ़ रहा है. ग्रामीण, विशेष रूप से युवा और किशोर लड़के, पुलिस कार्रवाई से डरे हुए हैं और जिस तरह से पुलिस ने शबाज़ और अरबाज़ के साथ व्यवहार किया है उससे वे नाराज हैं.
घटना के एक घंटे बाद 15 सितंबर की शाम करीब 4.30 बजे पुलिस ने दोनों भाइयों को उठाया. फैजल को मौके से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था. भाइयों के पिता, जमाल अहमद, इलाके में एक गैरेज चलाते हैं और उनके बेटों के साथ भी उन्हें पुलिस स्टेशन ले गई थी.
उन्होंने कहा, अहमद का कहना है कि उनके बेटों पर लड़की को परेशान करने का झूठा आरोप लगाया गया है. “मैंने अपने फोन पर सीसीटीवी फुटेज देखा. वे मेरे बेटे नहीं हैं.”
उनकी चाची फरहाना खातून ने दोनों लड़कों की एक तस्वीर निकाली और क्लिप के स्क्रीनग्रैब से उनकी तुलना की. उन्होंने कहा “देखिए, वे वही लोग नहीं हैं. बाइक पर सवार लोग अधिक उम्र के हैं.”
शबाज़ और अरबाज़ दोनों मृतक लड़की के साथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे. पड़ोसियों का दावा है कि स्कूल खत्म होने के बाद, लड़के अपने पिता की मदद के लिए उनके गैरेज में जाते थे, जो दुर्घटनास्थल से 10 मिनट की पैदल दूरी पर था. भाइयों के पास कोई मोटरसाइकिल नहीं है, लेकिन अक्सर मरम्मत के लिए उनके गैराज में आने वाली मोटरसाइकिलों को टेस्ट ड्राइव करना पड़ता है.
अहमद ने कहा, “स्टेशन पर, पुलिस ने मुझे बताया कि मेरे बेटे सीसीटीवी फुटेज में दिखाई नहीं दे रहे हैं और हम सभी को जल्द ही रिहा कर दिया जाएगा. हम रो रहे थे. अधिकारी हमसे पूछते रहे कि हम क्यों घबराए हुए थे और क्यों रो रहे हैं.”
आख़िरकार उन्हें पांच दिनों के बाद स्टेशन छोड़ने की अनुमति दी गई, जबकि उनके बेटों को औपचारिक रूप से गिरफ्तार कर लिया गया था.
पिता ने कहा, “उन्होंने हम सभी को बेल्ट से पीटा, जिसमें अरबाज़ भी शामिल था, जो नाबालिग है.”
दोनों भाई फिलहाल अकबरपुर जेल में बंद हैं, लेकिन उनके वकील बालकृष्ण ने उन दोनों को किशोर न्याय गृह में स्थानांतरित करने के लिए अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां याचिका दायर की है. जहां शाहबाज के आधार कार्ड में उसकी उम्र 18 साल बताई गई है, वहीं उसके स्कूल की मार्कशीट में उसकी उम्र 16 साल बताई गई है.
अहमद की तरह दूसरे गांव में रहने वाला फैज़ल का परिवार भी उसकी रिहाई की गुहार लगा रहा है. फैज़ल घटनास्थल पर था, लेकिन उसके माता-पिता का कहना है कि वह लड़की की मदद कर रहा था.
चाचा मोहम्मद अतीक (52) ने कहा, “लेकिन पुलिस ने उसे मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया. यह एक दुर्घटना थी, जिसे हत्या बताया जा रहा है. मेरा भतीजा हाफ़िज़ (कुरान कंठस्थ करने वाला व्यक्ति) है. वह अपनी शालीनता के लिए जाने जाता है.”
उनका दावा है कि उन लोगों ने लड़की का दुपट्टा नहीं खींचा, बल्कि उनमें से एक के हाथ में जो बैग था वह लड़की की साइकिल के हैंडल में फंस गया, जिससे उसका संतुलन बिगड़ गया. दुर्घटना स्थल पर मौजूद कई लोगों ने, जिन्होंने गवाह होने का दावा किया था, दिप्रिंट से बात की और इस संस्करण को दोहराया और इसे “एक दुर्घटना” कहा. हालांकि, इनमें से किसी ने भी पुलिस को अपना बयान नहीं दिया है.
जो कुछ हुआ उसे देखने वाले एक दुकानदार ने कहा, “पुलिस ने मुझसे पूछताछ नहीं की है.”
हालांकि, जिस बात ने समुदाय को क्रोधित किया है, वह है पुलिस द्वारा इस्तेमाल किया गया बल और यह तथ्य कि उन्होंने लोगों को गोली मार दी. अपनी रिपोर्ट में, पुलिस ने दावा किया है कि उसने तब गोलीबारी की जब शाहबाज़ और फैज़ल ने उन्हें अस्पताल ले जा रहे पुलिसकर्मियों में से एक से राइफल छीन ली.
अहमद ने पुलिस के संस्करण को खारिज कर दिया. पिता ने बताया, “शाहबाज़ ने हमें बताया कि पुलिस पहले उसे सिंहपुर के पास ले गई और कार से बाहर निकलने और भागने के लिए कहा. इसके बाद उन्होंने उसके दाहिने पैर में गोली मार दी. उन्होंने अरबाज को पीटा और उसका पैर तोड़ दिया.”
आंबेडकर नगर के एसपी सिन्हा ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि पुलिस ने कम से कम बल प्रयोग किया, इसलिए उनके पैरों को निशाना बनाया गया.
लेकिन गांव में, पुलिस के बयान ने कई लोगों को उनकी योग्यता पर सवाल खड़ा कर दिया है. एक युवक ने पूछा. “जिन पुलिसकर्मियों की राइफलें 16-17 साल के बच्चे छीन लेते हैं वे किसी लड़की या देश की रक्षा कैसे करेंगे?”
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‘हाल्फ़ एनकाउंटर्स’ में बढ़ोतरी
उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ सरकार के तहत ऐसी ‘मुठभेड़ों’ में वृद्धि हुई है.
अपराध और गिरोहियों से निपटना आदित्यनाथ के एजेंडे में सबसे ऊपर है, और आंबेडकर नगर जिला राज्य के शीर्ष अपराधियों में से एक खान मुबारक का घर था, जो अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन का शार्पशूटर और करीबी सहयोगी था. उस पर अन्य अपराधों के अलावा अपहरण, हत्या और जबरन वसूली के 40 मामलों का आरोप लगाया गया था.
हालांकि तीन महीने पहले उनकी मृत्यु हरदोई जिला अस्पताल में हो गई, लेकिन ग्रामीण डरे हुए हैं कि वे गिरोह के खिलाफ कार्रवाई में पुलिस के जाल में फंस जाएंगे.
एक युवा ग्रामीण ने कहा, “हमें डर है कि हमें खान मुबारक का गिरोह करार दिया जाएगा और झूठे आरोपों में जेल में डाल दिया जाएगा.”
मार्च 2017 में आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से, 6 मार्च 2023 तक कम से कम 178 ‘सूचीबद्ध अपराधियों’ को मार गिराया गया है, और 4,911 घायल हुए हैं. यूपी सरकार द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, इसी अवधि के दौरान कम से कम 13 पुलिस अधिकारी मारे गए और 1,424 अन्य घायल हो गए.
मुख्यमंत्री बनने के बाद 2017 में आदित्यनाथ ने कहा था, “अगर अपराध करेंगे तो ठोक दिए जाएंगे.”
कैदियों के साथ काम करने वाले मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता ‘हाल्फ़ एनकाउंटर्स’ के मामलों का हवाला देते हैं जहां आरोपियों को कथित तौर पर सुनसान जगहों पर ले जाया जाता है, आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और फिर घुटने में गोली मार दी जाती है.
यूपी पुलिस ने इन आरोपों का खंडन किया है. एडीजी कुमार ने कहा कि मुठभेड़ सरकार की नीति नहीं है, हालांकि, पुलिस “आत्मरक्षा” में गोली चला सकती है.
कुमार ने कहा, “पुलिस पहले उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए कहती है. जब वे फायरिंग करते हैं तो पुलिस भी जवाबी कार्रवाई करती है. हमारे पुलिसकर्मी भी शहीद हुए हैं. ऐसे में अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार की नीति है. एनसीआरबी डेटा से पता चलता है कि राज्य में अपराध दर में कमी आई है.”
तीन कमरों का कच्चा घर जहां अरबाज़ और शाहबाज़ अपने परिवार के साथ रहते हैं, एक व्यस्त सड़क से सटा हुआ है. बाहर राजनेताओं, मीडियाकर्मियों और यूट्यूबर्स की भीड़ नहीं है. दरवाज़ा बंद है, लेकिन अंदर, महिलाओं को रोते हुए, दो पुरुषों की खबर का इंतज़ार करते हुए सुना जा सकता है.
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