उत्तराखंड के ऋषिकेश में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की कार्यकारी निदेशक डॉ. मीनू सिंह एक स्वास्थ्य मंत्रालय के वीडियो कॉन्फ्रेंस से दूसरे में दौड़ती रहती हैं, तब जब संस्थान की एक लंबी फेहरिस्त है जिसे उन्हें तत्काल ध्यान देने की जरूरत है. जिसका नेतृत्व वह सात महीने से कर रही हैं.
माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉक्टर ने इस्तीफा दे दिया है, और उन्हें किसी और एचओडी की बेटी के लिए टेनिस कोच ढूंढना होगा. यही नहीं उन्हें संस्थान में हो रही भर्तियों को पारदर्शी बनाने, रोगी कतारों को छोटा करने और ग्रुप डी के हड़ताली कर्मचारियों की मांगों पर बातचीत करने का भी एक तरीका खोजना होगा.
और इन सबसे अलग, हर दिन कम से कम दो नए आरटीआई (सूचना का अधिकार) आवेदन भी उनका इंतजार कर रहे हैं, जैसे, “2018 में हुए ब्यूटीशियन की परीक्षा के परिणाम का क्या हुआ? त्रिवेणी मेडिकोज को टेंडर कैसे मिला? इन 32 डॉक्टरों की नियुक्ति के दौरान किस प्रक्रिया का पालन किया गया?”
पिछले साल, जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिंह को एम्स-ऋषिकेश के कार्यकारी निदेशक के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी तब सभी ने उनसे पूछा था, “आप ऋषिकेश एम्स क्यों जा रहीं हैं? वहां बहुत अधिक भ्रष्टाचार है वहां की इमेज ठीक नहीं है.”
हालांकि एम्स-ऋषिकेश अभी बहुत पुराना नहीं है लेकिन यहां होनेवाले भ्रष्टाचार की कतार मरीजों के कतार से भी लंबी है. इसपर काफी कीचड़ भी खूब उछला है. इसमें भर्ती के दौरान बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और उपकरणों की खरीद में धोखाधड़ी के आरोपों की जांच के लिए फरवरी 2022 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा कई छापे मारी की गई. अब, दो एफआईआर में चार्जशीट चल रही है. और उत्तराखंड हाई कोर्ट अभी भी 2021 में एक स्थानीय कार्यकर्ता द्वारा दायर की गई पारदर्शिता जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है.
चंडीगढ़ से पोस्टग्रेजुएट, इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) में तीन दशक से अधिक समय तक काम कर चुकीं, सिंह आखिरकार जुलाई 2022 में एम्स-ऋषिकेश में पहली महिला निदेशक बनीं. जुलाई से अब तक उनका एकमात्र लक्ष्य है संस्था की छवि को सुधारना.
उन्होंने ऑडिटोरियम को काम करने के लायक बना दिया है जो पिछले 10 साल से ठप पड़ा था. यही नहीं उन्होंने कुमाऊं में दूसरे परिसर के निर्माण के लिए निविदाएं जारी कीं और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए एक समग्र स्वास्थ्य केंद्र, जहां योग, ध्यान और चिकित्सा पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, अपनी पसंदीदा परियोजना, हील इन इंडिया को लॉन्च करने के लिए भी हरी झंडी दे दी है, वो काम भी ट्रैक पर है. उनके ये कदम एम्स-ऋषिकेश की छवि को सुधारने की दिशा में उठाए गए कई कदमों में से एक है.
सिंह कहती हैं, “इस संस्थान को टेलीमेडिसिन का हब बनाने और ओपीडी [आउट पेशेंट डिपार्टमेंट] के रोगियों के बीच ABHA [आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट] ऐप को लोकप्रिय बनाने पर खास ध्यान दिया जा रहा है, ताकि लंबी कतारें कम हो सकें.”
बता दें कि पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री जसवंत सिंह के 2004 के बजट भाषण में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के स्वतंत्रता दिवस के दौरान देश की जनता से किए गए एक विशाल दूरंदेशी नीतिगत वादे का पालन किया गया था. इसमें घोषणा की गई थी कि देशभर में सभी के लिए प्रमुख स्वास्थ्य सेवा सुलभ बनाने के लिए दिल्ली स्थित एम्स की उत्कृष्टता को पूरे भारत के छोटे शहरों और कस्बों में फैलाने के लिए तैयार किया जा रहा है.
उन्होंने 2004-05 के बजट में घोषणा की थी कि “गरीबी और बीमारी आपस में जुड़े हुए हैं … इस ‘प्रधान मंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना’ में छह नए एम्स जैसे अस्पतालों की परिकल्पना की गई थी, जिसमें बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तरांचल राज्यों में एक-एक एम्स शामिल थे.”
लगभग दो दशक बाद, ‘छोटे शहरों’ में एम्स की कहानी लगभग मिली-जुली है -जैसे, गरीब रोगियों के लिए बड़ी आशा और राहत, स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं और महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देने और लाखों ग्रामीणों को निजी अस्पतालों से बचाने की. लेकिन कुछ मामलों में एम्स का यह ब्रांड भ्रष्टाचार, शॉर्टकट और लालफीताशाही की गाथा बन कर रह गया है.
क्षेत्रीय एम्स अस्पतालों पर इस श्रृंखला के पहले भाग में, दिप्रिंट को पता चला है कि कैसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान वर्षों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और नौकरी के घोटालों का केंद्र बन गया.
भ्रष्टाचार, अराजकता और सीबीआई छापे
उत्तराखंड की राजधानी, देहरादून से एक घंटे की ड्राइव के बाद योगी, पर्यटक, एडवेंचर और आध्यात्मिकता की चाह रखने वाले ऋषिकेश पहुंचते हैं. यह पहला शहर था जहां एम्स की नई पीढ़ी मैदान में उतरी और एम्स की घोषणा ने पहुंच और आकांक्षाओं में भी नई आशा की लहर जगाई.
शुरुआत में, संस्थान को कुल 860 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया था, लेकिन जब 2014 में इसका उद्घाटन किया गया, तब तक लागत 1,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई थी. बाद में एमबीबीएस पाठ्यक्रमों के लिए सीटों की संख्या 50 से बढ़ाकर 100 कर दी गई.
तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा था,“राज्य को अपने कठिन भौगोलिक इलाके के कारण हमेशा विशेष चिकित्सा उपचार सुविधाओं की आवश्यकता होती है. एम्स-ऋषिकेश के खुलने से उत्तराखंड के लोगों को आवश्यक विशेष चिकित्सा उपचार प्राप्त करने में मदद मिलेगी.”
सैकड़ों एकड़ में फैले, एम्स-ऋषिकेश ने शुरुआत में अपनी धीमे निर्माण कार्य के लिए सुर्खियां बटोरीं थीं. निदेशकों में म्यूजिकल चेयर जैसी भाग दौड़ भी जारी रही – चार साल में तीन – इसके बाद फेकल्टी के लिए घरों की कमी ने डॉक्टरों को परिसर के बाहर आवास किराए पर लेने के लिए मजबूर किया.
इन सबके बीच भ्रष्टाचार के आरोप जोर-शोर से बढ़ते गए – मरीजों से अधिक पैसे वसूलने से लेकर टेंडर प्रोसेस में छेड़छाड़ तक. जब लखनऊ में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति, प्रोफेसर रविकांत 2017 में संस्थान के प्रमुख के रूप में शामिल हुए, तो उन्होंने एम्स-ऋषिकेश को प्रभावित करने वाले सभी मुद्दों पर इंडियन एक्सप्रेस को एक इंटरव्यू दिया.
उन्होंने उस समय कहा था, “रुका हुआ निर्माण कार्य और भर्ती मानदंडों में लचीलेपन की कमी, एम्स-ऋषिकेश को उत्तराखंड के लोगों के लिए एक पसंदीदा मेडिकल इंस्टीट्यूट बनने से पहले अभी भी कुछ रास्ता तय करना है.” लेकिन इसके बाद उनपर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं और उपकरणों के ओवर-इनवॉइसिंग के आरोप लगे. 2022 की शुरुआत तक सत्ता के राजनीतिक गलियारों में इन आरोपों की गूंज सुनाई दी. एफआईआर की झड़ी के बीच, सीबीआई ने संस्थान में तलाशी और जब्ती अभियान शुरू किया. 3 से 8 फरवरी तक अस्पताल में सीबीआई की टीमों ने दनादन टेंडर पेपर्स, चालानों, डेस्कटॉप, लैपटॉप और मोबाइल फोन की जांच की.
हालांकि, इस छापे ने अस्पताल के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को तो प्रभावित नहीं किया, लेकिन इसने नींव हिला कर रख दी. हर कोई – मरीजों से लेकर डॉक्टर, नर्स से लेकर अर्दली तक – कैंपस में असहज दिखाई दे रहा था.वहीं अस्पताल के बाहर, इसने निवासियों को गपशप के लिए खूब मसाला दिया, खासकर इसलिए क्योंकि एफआईआर में कई डॉक्टरों पर अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया था.
संदेह, रहस्य और सदमे के इसी माहौल में सिंह ने ऋषिकेश में कदम रखा था.
सिंह कहती हैं, “भ्रष्टाचार के आरोपों ने निश्चित रूप से साथियों के बीच संस्थान की धारणा को बहुत नुकसान पहुंचाया है, लेकिन हम एजेंसियों के साथ सहयोग कर रहे हैं.” लेकिन वह एम्स-ऋषिकेश को लेकर की जा रही उम्मीद को बरकरार रखे हुए हैं.
वह कहती हैं, ‘हमसे जो भी मांगा जाता है, हम मुहैया करा रहे हैं.’
युवा चिकित्सक रुचि नहीं दिखा रहे हैं
संस्थान की बिखरी प्रतिष्ठा को बहाल करना सिंह की प्राथमिकता है, लेकिन उन्हें यह महसूस करने में देर नहीं लगी कि बाहर से सामान्य दिख रही एक गंभीर समस्या उनके हाथ लगी है. एम्स-ऋषिकेश के मुद्दे भ्रष्टाचार के ड्रामे से परे हैं; संस्थान में डॉक्टर भी नहीं आ रहे हैं. ऋषिकेश हिमालय की तलहटी पर बसा एक खूबसूरत नदी वाला शहर हो सकता है, लेकिन यह उनकी आकांक्षाओं की सीढ़ी पर बहुत अच्छी तरह से नहीं बैठता है.
डॉक्टर जो देश में बेहतरीन माने जाते हैं, अपने करियर के महत्वपूर्ण वर्ष ग्रामीण इलाकों में नहीं बिताना चाहते हैं. वे युवा हैं, बेचैन हैं और अपने परिवारों के लिए सर्वोत्तम संसाधन चाहते हैं. और यहीं पर ऋषिकेश पिछड़ा हुआ नजर आता है.
सिंह कहती हैं, “एक विभाग प्रमुख, जिसकी बेटी राज्य में एक शीर्ष टेनिस खिलाड़ी हैं, एक कोच खोजने के लिए संघर्ष कर रही हैं. क्योंकि ऋषिकेश में एक भी कोच कोई नहीं है. उन्होंने अपनी बेटी के भविष्य के लिए हैदराबाद जाने की योजना बनाई है”. उसे या तो उसे जाने देना होगा या ऋषिकेश में ही एक अच्छा टेनिस कोच ढूंढना होगा.
एचओडी के लिए- जो अपना नाम नहीं बताना चाहता- प्रश्न पूछने पर कहते हैं, पद की चमक तेजी से फीकी पड़ गई, खासकर जब उन्होंने महसूस किया कि कैसे इसने उनके दीर्घकालिक कैरियर की संभावनाओं और उनके परिवार के भविष्य को खतरे में डाल दिया है.
एचओडी कहते हैं, “आप एक विभाग के पद के प्रमुख हो सकते हैं, लेकिन तब आप खुद को असफल पाते हैं जब आप अपने बच्चों की शिक्षा में वह नहीं दे पाते हैं जिसके वो हकदार हैं. छोटे शहर हमारे बच्चों की शिक्षा, जीवनसाथी के करियर और निजी जीवन के लिए यहां बहुत कुछ नही है.’
“क्षेत्रीय एम्स उनके लिए हैं जो सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं. ”
प्रतिभा को बनाए रखने की समस्या केवल एम्स-ऋषिकेश तक ही सीमित नहीं है. छोटे शहरों में भी एम्स को यही ‘बीमारी’ जकड़ रही है. भोपाल, पटना, जोधपुर, भुवनेश्वर, रायपुर और ऋषिकेश एम्स संस्थानों के पहले चरण का हिस्सा हैं जिन्हें एम्स संशोधन अधिनियम, 2012 के तहत स्थापित किया गया था.
एक क्षेत्रीय एम्स के एक अन्य निदेशक ने कहा, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, “जब भी कोई डॉक्टर मेरे पास इस्तीफा देने के लिए आते है, मैं प्रक्रिया में देरी करती हूं, लेकिन आखिरकार मुझे उसे जाने देना होता है. मानव संसाधन और संकायों की भारी कमी है. ”
समस्या सिर्फ अच्छी सड़कों और कनेक्टिविटी से परे है: टीयर -2 और टीयर -3 शहरों में अच्छे स्कूलों, पाठ्येतर गतिविधियां बहुत कम हैं जो डॉक्टरों को दूरी बनाने में अहम भूमिका अदा कर रही है.
संस्थान के एक अन्य विभाग के प्रमुख एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, “शुरुआत में, पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ और दिल्ली एम्स से सहायक प्रोफेसरों और एसोसिएट प्रोफेसरों की क्रीमी लेयर [ऋषिकेश में] आई थी. लेकिन जल्द ही उनका यहां से मोहभंग हो गया. ”
सिंह के लिए, यह मनोबल बनाने, संस्थान की प्रतिष्ठा को बहाल करने और इसके सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने की उनकी भव्य योजना में एक बाधा है. एम्स-ऋषिकेश में वर्तमान में 1,500 से अधिक छात्र हैं, 31 विभागों में 58 विशेष क्लीनिक, 960 बिस्तर हैं, और 4,000 से अधिक लोग कार्यरत हैं.
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टेंडर, केमिस्ट घोटाले
सिंह सीबीआई जांच को पछाड़ देना चाहती हैं और वो इसके लिए उत्सुक हैं ताकि संस्थान वापस पटरी पर आ सके. लेकिन जिस तरह से एम्स की कोठरी से खबरों के रूप में कंकाल बाहर आ रहे हैं वो मीडिया के लिए पर्याप्त चारा उपलब्ध करा रही हैं. अपनी जांच के दौरान, सीबीआई ने दो मामले दर्ज किए: एक रोड-स्वीपिंग मशीन की खरीद के लिए टेंडर देते समय कथित भ्रष्टाचार का आरोप था, और दूसरा एक केमिस्ट की दुकान पर. दोनों एफआईआर 20 अप्रैल 2022 को दर्ज की गई थीं, लेकिन जांच एजेंसी ने अभी चार्जशीट फाइल नहीं की है.
ऋषिकेश एम्स घोटाला: 3 करोड़ में खरीदें हड्डी और कंकाल’ एक हिंदी न्यूजपेपर की हेडलाइन है. ‘हड्डी और कंकाल’, या हड्डियों और कंकाल का संदर्भ, आरोपों पर आधारित है कि एनाटोमी विभाग के लिए मूल हड्डी सेट के लिए एक टेंडर 2017 में संयोग से उसी अनधिकृत विक्रेता को दिया गया था जिसे पहले प्रो मेडिसिन के लिए दिया गया था. उसी वर्ष रोड-स्वीपिंग मशीनों के लिए टेंडर दिए गए थे.
एफआईआर कहती है, “मूल मानव हड्डियों के सेट के लिए, अव्यवस्थित मूल और अव्यवस्थित मूल कंकाल (5 न.), कुल 2.9 करोड़ रुपये का चालान प्रो मेडिक द्वारा किया गया था.”
सीबीआई कॉम्पैक्ट रोड स्वीपिंग मशीनों के लिए टेंडर प्रोसेस की भी जांच कर रही है, जिसे एम्स-ऋषिकेश ने 27 अक्टूबर 2017 को जारी किया था.यह उसी एफआईआर का हिस्सा है.
जांच से पता चला कि संस्थान की निविदा मूल्यांकन समिति (टीईसी) के सदस्यों ने कथित तौर पर “लोक सेवकों के रूप में अपनी आधिकारिक स्थिति का दुरुपयोग किया” और “प्रो मेडिक डिवाइसेस के साथ एक आपराधिक साजिश की.” उन पर एम्स को धोखा देने का आरोप है, जिसके परिणामस्वरूप 2.05 करोड़ रुपये का ” नुकसान” हुआ.
टीईसी पर प्रो मेडिक को मैदान में रखने के लिए फर्जी आधार पर सभी प्रतिष्ठित बोलीदाताओं की स्क्रीनिंग करने का आरोप लगाया गया है. इस प्राथमिकी में डॉक्टरों समेत सात लोगों को नामजद किया गया है. आरोपियों की सूची में माइक्रोबायोलॉजी विभाग में एक पूर्व अतिरिक्त प्रोफेसर, एनाटॉमी विभाग के एक पूर्व एचओडी, एक सहायक प्रोफेसर (अस्पताल प्रशासन), एक लेखा अधिकारी और एक प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं.
एफआईआर के अनुसार, प्रो मेडिक डिवाइसेस, जिसका दिल्ली के शकरपुर में ऑफिस है, ने कथित रूप से एक नोटरीकृत हलफनामा प्रस्तुत किया जिसमें झूठा दावा किया गया कि यह एक स्टार्ट-अप फर्म है.
उसी दिन दर्ज की गई दूसरी एफआईआर, 14 नवंबर 2018 को परिसर के अंदर एक केमिस्ट की दुकान स्थापित करने के लिए ऋषिकेश-एम्स द्वारा जारी एक अन्य निविदा पर आधारित है. यहां, टीईसी सदस्यों ने कथित तौर पर दिल्ली के एक व्यक्ति के साथ “आपराधिक साजिश” में प्रवेश किया. फार्मेसी “भारत सरकार के नियमों और दिशानिर्देशों को दरकिनार” करके.
अन्य बोलीदाताओं को कथित तौर पर झूठे आधार पर निविदा प्रक्रिया से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. एफआईआर कहती है, इसके बजाय, दिल्ली स्थित एक फ़ार्मेसी को एम्स-ऋषिकेश परिसर में एक केमिस्ट की दुकान चलाने का ठेका 50.4 लाख रुपये प्रति वर्ष की मामूली कीमत पर दिया गया, जबकि एक अन्य प्रसिद्ध फ़ार्मेसी ने 2.51 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की बोली लगाई थी.
उस समय डायरेक्टर रहे रविकांत का नाम एफआईआर में नहीं है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने व्यक्तिगत तौर पर किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया है.’
लेकिन एक स्थानीय कार्यकर्ता आशुतोष शर्मा ने भी प्रोफेसर कांत के कार्यकाल में आरक्षित सीटों पर 32 डॉक्टरों की नियुक्तियों में अनियमितता का आरोप लगाते हुए 2021 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘भ्रष्टाचार का पैमाना इस हद तक था कि अगर वे एक सुई या एक इंजेक्शन भी खरीदते हैं, तो वे दो बार और तीन बार कीमत का चालान करते हैं.’
शर्मा ने यह भी आरोप लगाया कि कांत की पत्नी, जो एक डॉक्टर भी हैं, को बिना किसी प्रक्रिया के सर्जरी विभाग में संविदा प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था. याचिका में कांत के एक अन्य करीबी परिचित का नाम है, जिसे बिना साक्षात्कार के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग में नियुक्त किया गया था.
अगस्त 2022 में, जनहित याचिका के आधार पर, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार, केंद्र सरकार और एम्स-ऋषिकेश के निदेशक को अपना जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया.
सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम एजेंसियों के साथ सहयोग कर रहे हैं और मांगी जा रही सभी जानकारी प्रदान कर रहे हैं.’
एम्स-ऋषिकेश में मरीजों का तांता लगा रहता है
लगभग हर दिन, एम्स-ऋषिकेश में ओपीडी में 3,000 मरीज आते हैं, जिनमें से कई उत्तर प्रदेश से आते हैं.
उनमें से एक मुजफ्फरनगर स्थित ट्रैक्टर मैकेनिक था, जो 45 वर्षीय व्यक्ति था, जो पिछले साल बाइक दुर्घटना का शिकार हो गया था. उन्हें मेरठ स्थित जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया और बाद में पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ रेफर कर दिया गया. सरकारी और निजी अस्पतालों में 8 लाख रुपये से ज्यादा खर्च करने के बाद वहां के डॉक्टरों ने बताया कि
“संक्रमण फैल गया है. उस पैर को काटने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. ”
ट्रैक्टर मैकेनिक तबाह हो गया. छह महीने पहले, वह एम्स-ऋषिकेश पहुंचे, और चार ऑपरेशन के बाद, वे अपने पैर को बचाने और व्हीलचेयर का उपयोग करने में सक्षम हुए.
“एम्स तो एम्स है,” उसने जोर देते हुए कहा. “एक बार जब आप वहां पहुंचेंगे, तो आपका इलाज किया ही जाएगा.”
यह आस्था ही है जो 68 वर्षीय स्थानीय निवासी जलकपुरी को अपने बेटे के साथ इस अस्पताल में लाई, जिसे कार्डियक अरेस्ट हुआ था. देर रात उसे इमरजेंसी वार्ड में ले जाया गया.
ओपीडी भवन के बाहर एक पार्किंग-बेंच पर प्रतीक्षा कर रहीं जलकपुरी कहती हैं,“उन्हें कुछ दिन पहले छुट्टी दे दी गई थी. हम यहां उनकी कुछ रिपोर्ट्स लेकर आए हैं. मेरी बांहों में लगातार दर्द हो रहा है.’ जब उनके बेटे और बहू डॉक्टर से बातचीत कर रहे थे तब मैंने उन्हें सहारा देने की कोशिश की.
ओपीडी मरीजों से खचाखच भरी है. तो ट्रॉमा सेंटर और आपातकालीन कक्ष भी भरे हुए हैं. रोगियों की भीड़ शायद ही कभी कम होती हो. तमाम आंतरिक समस्याओं के बावजूद एम्स-ऋषिकेश मरीजों के लिए स्वर्ग बन गया है. फ्लू से लेकर गुर्दे की पथरी से लेकर जटिल सर्जरी तक, मरीज कुछ भी और सब कुछ ठीक करने के लिए अस्पताल पर भरोसा करते हैं.
जलकपुरी कहती हैं,”डॉक्टर अच्छे हैं. वे आपसे बात करते हैं और आपको सुनते भी हैं.”
क्षेत्र के सबसे पुराने फार्मेसियों में से एक को चला रहे न्यू साई मेडिकोज के श्री सथ कहते हैं, संस्थान ने स्थानीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को पुनर्जीवित किया है. वह आगे कहते हैं, “यह हमारे लिए बहुत सारे अवसर लेकर आया है. लॉज, ढाबा, मेडिकोज से लेकर टेस्टिंग लैब तक, यहां एक पूरा नया इकोसिस्टम फल-फूल रहा है. ”
सिंह एम्स-ऋषिकेश की प्रतिष्ठा के पुनर्निर्माण के लिए इस सद्भावना का उपयोग करना चाहती हैं. लेकिन पहले उन्हें अपनी प्रतिभा को बनाए रखना होगा.
एक और डॉक्टर, जिन्होंने दो साल पहले ऋषिकेश संस्थान में शामिल होने के लिए एम्स-दिल्ली छोड़ दिया था, ने अभी-अभी अपना त्याग पत्र जमा किया है. वह नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “आपके पास संस्थागत बुनियादी ढांचा तो है, लेकिन आप उसी संस्कृति को विकसित करने में सक्षम नहीं हैं.”
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