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सोमवार, 21 अप्रैल, 2025
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73 प्रीलिम्स, 43 मेन्स, 8 इंटरव्यू — मिलिए 47 साल के एस्पिरेंट से जो अफसर बनने तक नहीं रुकेंगे

एस्पिरेंट्स आए और गए, लेकिन पुष्पेंद्र श्रीवास्तव दिल्ली के मुखर्जी नगर में अपने एक कमरे के फ्लैट में ही बसे हुए हैं. उनकी अगली परीक्षा मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग का इंटरव्यू है.

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नई दिल्ली: पुष्पेंद्र श्रीवास्तव यूपीएससी कोचिंग संस्थानों के केंद्र, नई दिल्ली के मुखर्जी नगर में सबसे उम्रदराज सरकारी नौकरी के उम्मीदवार हैं. उन्होंने पिछले 27 साल में राज्य और संघ लोक सेवा आयोगों के लिए 73 प्रिलिम्स, 43 मेन्स और 8 इंटरव्यू दिए हैं. 47 की उम्र अब 48 होने जा रही है, लेकिन वे नहीं रुकेंगे.

श्रीवास्तव ने आयु में छूट सहित नियुक्तियों के संबंध में सभी सरकारी अधिसूचनाओं में शीर्ष पर रहना सीख लिया है.

उन्होंने कहा, “मैंने एक अधिकारी बनने का फैसला किया है और जब तक मैं अधिकारी नहीं बन जाता, मैं नहीं रुकूंगा.”

बुधवार की गर्म दोपहर को वे मुखर्जी नगर के पास अपने एक कमरे के फ्लैट में अपनी मेज पर अखबारों, नक्शों, किताबों और चल रहे चुनाव प्रचार, चुनावी बांड की जटिलता और समसामयिक मामलों पर अपने नोट्स से घिरे हुए बैठे थे. वे मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के इंटरव्यू की तैयारी में व्यस्त हैं. मध्य प्रदेश में कट-ऑफ आयु 40 वर्ष थी, जिसे राज्य सरकार ने 2022 में कोविड-19 महामारी के बाद बढ़ाकर 43 वर्ष कर दिया, जबकि आरक्षित श्रेणियों (ईडब्ल्यूएस, एससी, एसटी, ओबीसी) और महिलाओं के लिए आयु सीमा में पांच और वर्ष की छूट दी गई है. श्रीवास्तव ने मेन्स परीक्षा पास कर ली है और उन्हें अगला स्तर भी पास करने का भरोसा है. वे इतना करीब हैं कि वे सफलता का स्वाद लगभग चख सकते हैं.

47-साल के एस्पिरेंट पुष्पेंद्र श्रीवास्तव | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

“मैं प्रीलिम्स और मेन्स क्लियर कर रहा हूं; मैं अपने आगामी परिणाम को लेकर पॉजिटिव हूं.”

लेकिन अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उनकी झोली में एक और परीक्षा है.

वे मुस्कुराते हुए बताते हैं, “बिहार लोक सेवा आयोग में ब्लॉक शिक्षा अधिकारी के लिए एक पद 2011 में खाली होना था, लेकिन इसमें देरी हो गई. मैं परीक्षा के लिए पात्र हूं और अधिसूचना जारी होने पर परीक्षा दूंगा.”

मैंने एक अधिकारी बनने का फैसला किया और मैं तब तक नहीं रुकूंगा जब तक मैं अधिकारी नहीं बन जाता

श्रीवास्तव 24 साल पहले मुखर्जी नगर आए थे. उनके साथ पढ़ने वाले लोग आईपीएस और आईएएस अधिकारी बन गए. कुछ लोग शीर्ष संस्थानों में कोच बन गए हैं और अधिकांश ने हार मान ली और अलग-अलग करियर ट्रैक पर चले गए, लेकिन श्रीवास्तव इस उफनती नदी में उस नावक की तरह हैं, जो किनारे पर आकर ही रुकेगा.

दृष्टि आईएएस कोचिंग संस्थान में पढ़ाने वाले लेखक-शिक्षक यूट्यूब इन्फ्लुएंसर का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, “मैंने विकास दिव्यकीर्ति के साथ पढ़ाई की है”. “मैंने (आईपीएस) मनोज शर्मा और (आईआरएस) श्रद्धा शर्मा (वास्तविक कपल जिनके जीवन पर हाल ही में आई फिल्म 12वीं फेल आधारित है) के साथ भी पढ़ाई की है. वो सभी मुझे फोन करते हैं और मेरा अच्छे होने की कामना करते हैं.” किसी ने भी मुझे हतोत्साहित नहीं किया या मुझे नौकरी छोड़ने के लिए नहीं कहा.” श्रीवास्तव एक वैनिटी वैन में मनोज शर्मा के साथ अपनी तस्वीरों को स्क्रॉल करते हुए कहते हैं. बॉलीवुड फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही और इसे आलोचनात्मक प्रशंसा मिली.

पुष्पेंद्र श्रीवास्तव का स्टडी डेस्क | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट
पुष्पेंद्र श्रीवास्तव के कमरे में रखा उनका सामान | फोटो: दानिशमंद खान/दिप्रिंट

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कभी न खत्म होने वाली परीक्षा

श्रीवास्तव को मुखर्जी नगर के अपने कोने में प्रसिद्धि मिली है. वे नए साथियों के लिए “पुष्पेंद्र भैया” हैं. यह इस बात की याद दिलाता है कि सरकारी अधिकारी बनने की इस बेताब दौड़ में उन सभी के साथ क्या हो सकता है.

उन हज़ारों उम्मीदवारों में से एक जिन्होंने मुखर्जी नगर को अपना अस्थायी घर बना लिया है, जयदीप मिश्रा ने कहा, “यह परीक्षा सच में महत्वपूर्ण है, लेकिन उन्हें देखकर मुझे हैरानी होती है कि क्या यह इतना ज़रूरी है और हमारी पूरी जवानी गंवा देने के लायक है. यह पागलपन है.”

श्रीवास्तव सरकारी नौकरियों के प्रति भारत की दीवानगी का प्रतीक हैं, जिसे संजीव सान्याल “युवा ऊर्जा की बर्बादी” कहते हैं.

मैं साल 2000 में दिल्ली आ गया था और मुझे 750 रुपये किराया देना पड़ता था. वर्तमान में मेरे कमरे का किराया 12,000 रुपये प्रति माह है

लेकिन मिश्रा के सेट-अप के विपरीत, श्रीवास्तव के रहने वाले क्वार्टर में एक स्थायित्व है. वे 2009 से तीन मंजिला इमारत के उसी कमरे में रह रहे हैं.

श्रीवास्तव ने शेल्फ से नमकीन का बॉक्स निकालते हुए कहा, “मैं साल 2000 में दिल्ली आया था और मैं 750 रुपये किराया देता था. वर्तमान में मेरे कमरे का किराया 12,000 रुपये प्रति माह है.” एक छोटा सा बिस्तर, लकड़ी की अलमारी, एक एयर कंडीशनर और एक हीटर उनके कुल सामान हैं. अपने परिवार से वित्तीय सहायता के अलावा, वे एक कोचिंग संस्थान में जॉब करके पैसे कमाते हैं.

सिविल सेवा एस्पिरेंट्स के केंद्र मुखर्जी नगर के पास नेहरू विहार में अपने एक कमरे के फ्लैट में पुष्पेंद्र श्रीवास्तव | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट
पुष्पेंद्र श्रीवास्तव के कमरे में एक बुकशेल्फ | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

भारत में नौ हिंदी भाषी राज्य हैं और श्रीवास्तव ने पिछले कुछ साल में इन राज्यों में आयोजित हर एक लोक सेवा आयोग की परीक्षा देने की कोशिश की है. उन्होंने लखनऊ, पटना, हरिद्वार और मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अपने गृह नगर की यात्रा के लिए फ्लाईट, ट्रेन और बसें ली हैं. कई बार तो दो परीक्षाओं के बीच उनके पास एक दिन से भी कम समय होता था.

श्रीवास्तव, जो परीक्षाओं की तारीखें टकराने के कारण कुछ परीक्षाओं से चूक गए थे, ने कहा, “एक साल, मेरी एक परीक्षा लखनऊ में और दूसरी परीक्षा 24 घंटे के भीतर हरिद्वार में हुई. मुझे लखनऊ से दिल्ली की फ्लाइट पकड़नी थी और फिर हरिद्वार के लिए बस पकड़नी थी. दूसरी बार मैं मेरठ से पटना गया.”

मैंने अपना बी.एड और एमपीपीसीएस फॉर्म भरा और दोनों परीक्षाएं पास कर लीं, लेकिन मैं शिक्षक नहीं बनना चाहता था

श्रीवास्तव के माता-पिता, दोनों शिक्षक, चाहते थे कि वे उनके नक्शेकदम पर चलें, लेकिन उनका दिल यह नहीं चाहता था. विज्ञान में मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद, उन्होंने उनके लिए बताए गए रास्ते पर चलने की कोशिश की.

उन्होंने कहा, “मैंने अपना बीएड और एमपीपीसीएस फॉर्म भरा और दोनों परीक्षाएं पास कर लीं, लेकिन मैं शिक्षक नहीं बनना चाहता था.”

इसके बजाय, अनगिनत भारतीयों की तरह, उन्होंने भारत की नौकरशाही पर अपनी नज़रें गड़ाएं रखीं. दिल्ली शिफ्ट होने से पहले तीन साल वहां बिताने के बाद श्रीवास्तव ने बताया, “मैं इलाहाबाद गया और यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी.”

20 साल की उम्र में श्रीवास्तव द्वारा यूपीएससी की कोशिश के बाद से परीक्षा पैटर्न में बदलाव आया है. उस समय, जनरल कैटेगरी के उम्मीदवारों को चार अटेंप्ट की अनुमति थी और आयु सीमा 30 थी. आज, जनरल कैटेगरी के उम्मीदवार छह अटेंप्ट दे सकते हैं और उनकी आयु 32 वर्ष से अधिक होनी चाहिए.

यह परीक्षा सच में महत्वपूर्ण है, लेकिन उन्हें देखकर मुझे हैरानी होती है कि क्या यह इतना अहम है और हमारी पूरी जवानी गंवा देने के लायक है. यह पागलपन है
—मुखर्जी नगर में एक यूपीएससी एस्पिरेंट

श्रीवास्तव, जो कभी यूपीएससी इंटरव्यू से आगे नहीं बढ़े हैं, ने कहा, “मैंने दो वैकल्पिक विषयों के साथ परीक्षा दी और हर बार प्रीलिम्स पास किया.” हारकर, लेकिन बाहर नहीं, उन्होंने अपना ध्यान राज्य लोक सेवा आयोगों (पीएससी) की ओर लगाया, जहां आयु कट-ऑफ अधिक है. उत्तर प्रदेश में यह सीमा 40 वर्ष, उत्तराखंड में 42 वर्ष और हरियाणा तथा मध्य प्रदेश में 43 वर्ष है.

उन्होंने कहा, “मैं अभी भी यह कर रहा हूं क्योंकि मेरे पास अटेंप्ट बाकी हैं और मुझे पॉजिटिव परिणाम मिल रहे हैं. मुझे यकीन है कि मैं सफल हो सकता हूं. मैंने अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया है और मैं उसका पीछा कर रहा हूं.”

पुष्पेंद्र श्रीवास्तव के कमरे में एक बुकशेल्फ | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

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सपोर्ट जो उन्हें आगे बढ़ाता है

अगर श्रीवास्तव को कोई पछतावा है तो वे उसके बारे में बात नहीं करते हैं. हालांकि, वे समय को बीतने से नहीं रोक सकते, फिर भी वे मुखर्जी नगर के अंदर और बाहर आने वाले युवा उम्मीदवारों के ज्वार में शामिल होने के लिए अपने रास्ते से हट जाते हैं.

उनके लिए युवा दिखना ज़रूरी है. वे अपने बालों को रंगते हैं, टी-शर्ट और जींस पहनते हैं और फिट रहने के लिए योग भी करते हैं.

उन्होंने कहा, “मैं एक स्वस्थ ज़िंदगी जीता हूं. हर दिन 6-7 घंटे सोने की कोशिश करता हूं और योग भी करता हूं और मैं स्वस्थ रहता हूं, जो पढ़ाई के दौरान महत्वपूर्ण है.”

ऐसा लगता है कि उनके परिवार ने भी उनके दृढ़ संकल्प को स्वीकार कर लिया है. शादी करने का कोई दबाव नहीं है — अब और नहीं.

श्रीवास्तव ने याद करते हुए कहा, “जब मेरे पिता जीवित थे, तो उन्होंने मुझसे शादी करने के लिए कहा. मैं उनसे कहा करता था कि वे मेरे इंटरव्यू के बाद किसी लड़की की तलाश कर सकते हैं. जब मैं उस इंटरव्यू तक नहीं पहुंच पाया, तो एक और परीक्षा मेरा इंतज़ार कर रही थी और इस तरह समय बीतता गया.”

प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करना एक महंगा प्रयास हो सकता है — जिसमें कोचिंग फीस से लेकर घर, भोजन और पढ़ाई की सामग्री तक लाखों रुपये का खर्च होता हैं.

जब से उन्होंने अपनी तैयारी शुरू की, हमेशा परीक्षाएं होती रहीं. हम चाहते हैं कि वे सफल हो. वे भी यही चाहते हैं
—भाई जयेन्द्र श्रीवास्तव

श्रीवास्तव, जिनका छोटा भाई, 37-वर्षीय जयेंद्र एक वकील है और मध्य प्रदेश की स्थानीय राजनिती में सक्रिय रहता है, बताते हैं, “2004 में मुझे एक प्रकाशन में नौकरी मिल गई, लेकिन मुझे लगा कि मैं पीसीएस की तैयारी में अपना बेस्ट नहीं दे पा रहा हूं, इसलिए मैंने एक महीने के भीतर ही नौकरी छोड़ दी. भगवान की कृपा से, मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे वित्तीय पहलुओं के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि मुझे अपने परिवार से मदद मिल रही थी.”

जयेंद्र ने भी सिविल सेवाओं में जाने की कोशिश की. हालांकि, पांच साल तक कहीं नहीं मिलने के बाद, उन्होंने वकालत की ओर रुख किया. फिर भी, वे चाहते हैं कि उनका भाई आगे बढ़ता रहे.

जयेंद्र ने कहा, “जब से उन्होंने अपनी तैयारी शुरू की, हमेशा परीक्षाएं होती रहीं. हम चाहते हैं कि वे सफल हों. वे भी यही चाहते हैं.”

पढ़ाई और परीक्षा देने के इस कभी न खत्म होने वाले चक्र में भी, श्रीवास्तव स्वीकार करते हैं कि वे भाग्यशाली हैं कि उनके पास मजबूत सपोर्ट सिस्टम है.

वे कहते हैं, “मेरा भाई कलयुग का लक्ष्मण है, उससे भी बेहतर.”


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दूसरों के लिए एक चेतावनी

इन वर्षों में श्रीवास्तव ने उन युवा एस्पिरेंट्स के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई है जो अपने छोटे शहरों को छोड़कर दिल्ली आए हैं. कुछ ने कर्ज़ा लिया है. कुछ लोग पहले कभी किसी बड़े शहर में नहीं रहे हैं. वे प्रीलिम्स और मेन्स को कैसे पास करें, इस पर रणनीतियां शेयर करते हैं, “सोकर उठो, फिर से प्रैक्टिस करो और फिर उसे रिपीट करो”.

संरक्षण शुक्ला, जिन्होंने चार बार यूपीएससी प्रीलिम्स, एक बार यूपीपीएससी मेन्स का अटेंप्ट दिया है और अपने उत्तराखंड पीएससी इंटरव्यू की तैयारी कर रहे हैं और पिछले पांच साल से मुखर्जी नगर में रह रहे हैं, बताते हैं, “सबसे पहले, यह एक झटके की तरह था कि कोई इतने लंबे समय तक तैयारी कर सकता है, लेकिन जैसे-जैसे मेरी यात्रा शुरू हुई, मुझे एहसास होने लगा कि आप इस तैयारी को जीना शुरू कर देते हैं. अगर आप इंटरव्यू तक पहुंच जाते हैं, तो आपके अंदर कुछ क्षमता है.”

हालांकि, अन्य उम्मीदवारों के लिए श्रीवास्तव एक चेतावनी हैं कि उनमें से किसी के साथ क्या कुछ हो सकता है. एक अनुस्मारक कि उनके चयनित होने की संभावना कम है. पिछले साल, लगभग 10 लाख लोगों ने यूपीएससी के लिए आवेदन किया था; केवल 1,016 का चयन हुआ था.

जिस इमारत में श्रीवास्तव रहते हैं, वहां के सभी निवासी सिविल सेवा के इच्छुक हैं, जिनमें से अधिकांश की उम्र बीस के आसपास है. जैसे ही वे अपने कमरे से बाहर निकलते हैं और सीढ़ियों से नीचे चलते हैं, हर कोई उनका स्वागत करने के लिए रुकता है.

आगे बढ़ते हुए एक एस्पिरेंट ने कहा, “इंटरव्यू के लिए शुभकामनाएं, भैया! आप निश्चित रूप से इस बार फाइनल लिस्ट में जगह बनाएंगे.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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