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Monday, 6 May, 2024
होमफीचरUPSC कोचिंग इंडस्ट्री IAS बनने के कभी न पूरे होने वाले ख्वाब बेच रही है, पानी अब सर से ऊपर हो रहा है

UPSC कोचिंग इंडस्ट्री IAS बनने के कभी न पूरे होने वाले ख्वाब बेच रही है, पानी अब सर से ऊपर हो रहा है

मुखर्जी नगर और करोल बाग की हर गली में एक कोचिंग संस्थान होने से दिल्ली सिकुड़ती जा रही है और अब संस्थान हर राज्य की राजधानी में एक मुखर्जी नगर बनाना चाहते हैं.

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नई दिल्ली: 24-वर्षीय अरविंद सोनवर उन लोगों को देखने के लिए करोल बाग मेट्रो स्टेशन के आसपास घूमते हैं जो यूपीएससी कोचिंग संस्थानों की तलाश में हैं. जनपथ और पालिका बाज़ार में ग्राहकों को खींचने वाले एक विक्रेता की तरह, सोनवार की नज़र यूपीएससी के सपने देखने वाले छात्रों पर है. वे पूछते हैं, “क्या आप यूपीएससी कोचिंग की तलाश में हैं?” महज़ “हाँ” से वो अपना काम संभालना शुरू कर देते हैं, भले ही चारो-ओर ट्रेफिक का शोर हो. यह लगभग एक पिच की तरह है जिसमें अक्सर तात्कालिकता की भावना जुड़ी होती है — अभी नहीं तो कभी नहीं.

वे एक कार सेल्समैन की तरह भारत के युवाओं को महान आईएएस-आईपीएस-आईएफएस-आईआरएस के ख्वाब बेच रहे हैं.

सोनवर ने कहा, “आपको एक टेस्ट सीरीज़ और एक मेंटरशिप प्रोग्राम मिलेगा. सीटें तेज़ी से भर रही हैं. एक काम कीजिए, बस हमारे ऑफिस आएइ और संस्थापक आपको बाकी डिटेल्स देंगे. उन्होंने यह परीक्षा पास कर ली, वे एक आईआरएस अधिकारी थे.”

वर्तमान में यूपीएससी कोचिंग इंडस्ट्री जिस मशीन में तब्दील हो गया है, अरविंद सोनवार उसका एक हिस्सा मात्र हैं. वे एक कोचिंग संस्थान की मार्केटिंग टीम का सिपाही हैं, लेकिन जिस तरह से वो दौड़ते हैं, वो भारत के 3,000 करोड़ रुपये के यूपीएससी कोचिंग इंडस्ट्री के विशाल, अति-प्रतिस्पर्धी और प्रेशर कुकर वाले माहौल की बात करते हैं, जो असंगठित सेटअप से शुरू हुआ था, लेकिन आज कॉर्पोरेट की तरह चलाया जाता है. फीस की लड़ाई, टैलेंट की खोज, सेलिब्रिटी-फैकल्टी एंडोर्सर्स की तलाश और आक्रामक मार्केटिंग और पीआर – यूपीएससी कोचिंग इंडस्ट्री में प्रसिद्ध कोला युद्धों की सभी सामग्रियां हैं. यह इतना बड़ा हो गया है कि अब यह हताश युवाओं को कभी न पूरे होने वाले ख्वाब की तरह दिखने लगा है और सरकार भी इसमें दिलचस्पी लेने लगी है.

सड़क किनारे इंडक्शन देने के लिए कोर्स की जानकारी वाली एक किताब पकड़े अरविंद सोनवार | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

संस्थानों के लिए जलग्रहण क्षेत्र बहुत बड़ा है. प्रतिष्ठित परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों की संख्या पिछले एक दशक में दोगुनी हो गई है — 2012 में पांच लाख से बढ़कर 2022 में 11 लाख से अधिक हो गई है. इसमें राज्य सेवा परीक्षाओं को भी जोड़ दें तो बाज़ार समुद्र जितना बड़ा हो गया है. जो बात यूपीएससी की कोशिशों को किसी जुए से कम नहीं बनाती, वो यह है कि पदों की संख्या पिछले कुछ साल से लगभग स्थिर बनी हुई है. 2022 में 1,022 पद थे, जो 2012 में 1,091 से कम हैं. इस प्रकार के अनुपात के साथ, यह लगभग राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में शामिल होने जैसा है जहां केवल 11 ही भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए जगह बनाते हैं. विफलता यहां अपवाद नहीं बल्कि एक नियम है. यह कड़ी प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न होने वाली कमजोरी है जिसका कुछ संस्थानों द्वारा फायदा उठाया जा रहा है.

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पिछले साल केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने लगभग 20 कोचिंग संस्थानों को “भ्रामक विज्ञापन” के बारे में नोटिस भेजा था. इसके बाद डीओपीटी ने कहा था कि चयनित उम्मीदवार कोचिंग संस्थानों के साथ कॉन्ट्रैक्ट नहीं कर सकते. शिक्षा मंत्रालय ने उद्योग के लिए नियम भी जारी किए हैं.

पिछले 20 साल में एक चक्करदार उछाल देखा गया है, या जिसे कुछ लोग एक अस्थिर बुलबुला कह सकते हैं. यह एक विशाल इंडस्ट्री में परिवर्तित होने लगा है. शिक्षक-उन्मुख से लेकर राजस्व-उन्मुख तक, संस्थानों में कई नए कार्यक्षेत्र सामने आए हैं और शिक्षक अब गुमनाम नहीं रहे.

एक स्टार लाइनअप है: अवध ओझा, विकास दिव्यकीर्ति, खान सर, हालांकि, लिस्ट लंबी है और संस्थान आधुनिक शैली की कॉर्पोरेट मशीनों में तब्दील हो गए हैं. उनके पास लक्ष्य, लंबे समय तक काम करने के घंटे और विविध टीमें हैं जो कोचिंग व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं को देखती हैं.

मार्केटिंग टीमें विज्ञापनों को देखती हैं, ग्राफिक्स टीमें वीडियो के लिए ग्राफिक्स तैयार करती हैं जो कोर्स कंटेंट और सोशल मीडिया पोस्ट में जाते हैं. कुछ के पास पीआर टीमें भी हैं जो उन्हें अपने ब्रांड को बढ़ावा देने में मदद करती हैं.

कोचिंग इंडस्ट्री काफी समय तक सरकार की नज़रों से दूर थी, लेकिन जब सरकार ने देखा कि इंडस्ट्री को कुछ नियम-कायदों की ज़रूरत है तो उसने एक एडवाइजरी जारी की. कोचिंग संस्थानों को नोटिस भेजने से लेकर गाइडलाइन जारी करने तक ये संस्थान अब सरकार के रडार पर आ गए हैं.

लगभग दो दशक पहले, सरकार ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा के नियमों में बदलाव किया था, जिसमें स्कूली कोर्स पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रयासों की संख्या दो तक सीमित कर दी गई थी. इसका उद्देश्य कोचिंग संस्थानों पर निर्भरता कम करना भी था. योजना स्पष्ट रूप से काम नहीं आई, चाहे वो आईआईटी कोचिंग हो या यूपीएससी, क्योंकि वो उन पर नियंत्रण नहीं रख सके, अब उन्हें नियंत्रित करना चाहते हैं.

यूपीएससी कोचिंग बाज़ार ज्वालामुखी बन रहा है क्योंकि यह आशाजनक है, यह BYJU’S जैसे एड-टेक प्लेटफॉर्म के विपरीत नहीं है जिसने हाल के वर्षों में बाज़ार में केवल भीड़ बढ़ाई है.

कोचिंग इंडस्ट्री के एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “सरकार ने देखा है कि इस इंडस्ट्री के पास पैसा है. क्रिप्टो और जुआ ऐप्स की तरह, सरकार इसके बारे में भी कुछ करेगी.”


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मोटा पैसा, आईएएस फैकल्टी

यूपीएससी कोचिंग संस्थानों के पूरे पेज के अखबारी विज्ञापनों पर एक नज़र बड़े पैसे, बड़े सितारों और बड़े सपनों की ओर इशारा करती है.

अखबारों के विज्ञापन, होर्डिंग्स पर अव्वल तस्वीरें और सोशल मीडिया पोस्ट- कोचिंग संस्थान विज्ञापनों में बहुत अधिक निवेश करते हैं. वे उन लोगों को चौंका देने वाली मोटी रकम देते हैं जिनका सिलेक्शन हो चुका है या जो नौकरशाह के रूप में रिटायर्ड हो चुके हैं.

एक आईएएस अधिकारी, जिन्होंने अपनी तैयारी के दिनों में कोचिंग भी ली थी, नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, “मुझे हर हफ्ते एक घंटे तक चलने वाले दो मेंटरशिप सत्र लेने के लिए प्रति माह 2 लाख रुपये की पेशकश की गई थी.”

और स्टार शिक्षकों को दी जाने वाली प्रीमियम सैलरी करोड़ों में है, जहां तक रिटायर्ड नौकरशाहों का सवाल है, ऐसे केंद्रों पर कई लोगों की मांग काफी अधिक रहती है. नौकरशाही अक्सर नौकरशाहों के लिए नौकरियां पैदा करती है, शिक्षा उद्योग उनके लिए एक नया मौका है.

एक रिटायर्ड अधिकारी ने बताया, “विज्ञापनों में आपकी तस्वीर और छात्र को आपके द्वारा दिए गए मार्गदर्शन के लिए ही आपको लाखों रुपये की पेशकश की जा रही है.”

लेकिन यह हमेशा प्रत्यक्ष मौद्रिक लाभ नहीं होता है जो प्राप्त होता है.

कोचिंग इंडस्ट्री के एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “वे विभिन्न प्रकार के सौदे करते हैं, कभी-कभी संस्थान उनकी सेवाओं और जिस ब्रांड छवि का लाभ उठाते हैं, उसके बदले में उनकी (नौकरशाहों की) किताबें खरीदते हैं.”

शिक्षक, टॉपर्स और रिटायर्ड अधिकारी कोचिंग जगत के चमकदार पहलू हैं. इस चमक के पीछे सपनों का रोज़ मरना, गलाकाट प्रतिस्पर्धा, शिकारी मूल्य निर्धारण और आक्रामक मार्केटिंग की रणनीतियां हैं जो नए ग्राहकों को आकर्षित करती हैं.

जैसे ही बड़े मेट्रो बाज़ार फैलने लगे और कोविड-19 ने घर से पढ़ने के कल्चर की शुरुआत की, कोचिंग संस्थान ऑनलाइन मोड के जरिए से इस अप्रयुक्त बाज़ार पर कब्ज़ा करने के लिए तैयार हो गए हैं. वे किफायती शुल्क संरचना का वादा करते हैं.

कोविड-19 के बाद ऑनलाइन कोचिंग का महत्व बढ़ गया है और ऑनलाइन कोचिंग मॉडल के साथ ये संस्थान किफायती शुल्क ढांचे के साथ देश के छोटे शहरों तक पहुंच गए हैं, लेकिन ये संस्थान केवल राजस्व और निवेश पर टिके रहते हैं.

वायरस ने दुनिया को रोक दिया, लेकिन यूपीएससी कोचिंग इंडस्ट्री को नहीं. अभ्यर्थी अध्ययन सामग्री और शिक्षकों को खोजने के लिए इंटरनेट के हर कोने को देख रहे थे. उन्होंने कोचिंग केंद्रों को छोड़ दिया था, लेकिन अपने सपने को नहीं. चूंकि, ऑनलाइन कक्षाओं के मॉडल ने मुनाफा कमाया, इसलिए संस्थानों ने यह सुनिश्चित किया कि वे उम्मीदवारों से जितना संभव हो उतना लाभ कमा सकें.

विकास दिव्यकीर्ति या विजेंदर चौहान का पोस्टर आसानी से स्टूडेंट्स को यूपीएससी हब के मक्का यानी मुखर्जी नगर तक खींच सकता है, लेकिन बिहार के मोतिहारी में हज़ारों किलोमीटर दूर बैठे किसी अभ्यर्थी को कोर्स बेचना अधिक मुश्किल है.

ऑनलाइन कोचिंग इंस्टीट्यूट स्टडी आईक्यू में एक फैकल्टी अमित किल्होर ने बताया, “ऑनलाइन कोचिंग संस्थानों में यह बिक्री टीम है जो संस्थानों के लिए 70 प्रतिशत प्रवेश प्राप्त करती है. ऑफलाइन कोचिंग संस्थानों में चीज़ें थोड़ी अलग हैं, शिक्षक और अध्ययन सामग्री वहां अधिक मायने रखती है.”


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‘कोचिंग इंस्टीट्यूट से भी अधिक’

कोचिंग इंडस्ट्री भारत के लाखों बेरोज़गार युवाओं को एक विशिष्ट सेवा में आने का मौका देने का वादा करता है और उस प्रक्रिया में हज़ारों नौकरियां भी देता है. वे प्रोफाइल्स जो सपनों की नौकरी से बहुत दूर हैं, उन्हें बेचने के लिए किराए पर लिया गया है.

एड-टेक और यूपीएससी कोचिंग इंडस्ट्री हर तरह के बैकग्राउंड के लोगों को रोज़गार दे रही है, जिसमें सोशल मीडिया, एमबीए, वीडियो एडिटिंग, डिजिटल मार्केटिंग आदि शामिल हैं. यहां तक कि यूपीएससी की नकारात्मकता – जो इसे नहीं पा सके – को भी आत्मसात कर लेती है.

यूपीएससी उम्मीदवारों के मॉक इंटरव्यू लेने वाले शिक्षक विजेंद्र चौहान ने कहा, “ये अब केवल कोचिंग सेंटर नहीं हैं, बल्कि एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है – कोचिंग, सलाह, आवास, भोजन, सामग्री, प्रकाशन, विशाल मीडिया, इंटरनेट-आधारित सेवाएं, आदि सभी शामिल हैं. इसने उन लोगों के लिए सफलता को लगभग असंभव बना दिया है जो इससे नहीं जुड़े हैं.”

उन्होंने कहा, कई लोग अब एड-टेक सामग्री को पूर्णकालिक काम के रूप में देखते हैं.

जब 26-वर्षीय आरती को एक कोचिंग इंस्टीट्यूट के बिक्री विभाग में नौकरी मिली, तो उन्हें नहीं पता था कि उन्हें अपने वीकली टार्गेट को पूरा करने के लिए कोल्ड कॉल करने होंगे और कोर्स बेचने होंगे. उन्हें छात्रों को फोन कॉल पर परामर्श देना पड़ता है और झूठे वादे करने पड़ते थे.

इंस्टीट्यूट उन्हें सिविल सेवाओं के लिए कोचिंग क्लास लेने में रुचि रखने वाले संभावित स्टूडेंट्स की एक लिस्ट देता था.

लेकिन हर कोचिंग इंस्टीट्यूट के पास सेल्स टीम नहीं होती है. यह अधिकतर ऑनलाइन आधारित कोचिंग में देखा जाता है.

दूसरी सबसे महत्वपूर्ण टीम

यूपीएससी की लड़ाई में छात्रों को जीत दिलाने के लिए एक सेना की ज़रूरत पड़ती है. कोचिंग इंस्टीट्यूट के लिए यह उनके सामग्री लेखक हैं, जो फैकल्टी मेंबर्स के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण टीम है. वे एक उम्मीदवार के लिए प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हर दिन सैकड़ों लेख, किताबें, व्याख्यान डालते हैं. उन्हें सिलेबस का ध्यानपूर्वक पालन करना चाहिए, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्यूरेटेड सामग्री छात्रों को बढ़त दिलाए.

दिल्ली स्थित NEXT IAS ने अपने करोल बाग ऑफिस में कंटेंट लेखकों के लिए चार कमरे बनाए हैं. करंट अफेयर्स, साप्ताहिक नोट्स, टेस्ट सीरीज़, विषय-विशिष्ट नोट्स, पिछले साल के क्वेश्चन पेपर से लेकर सब्जेक्ट के कंटेंट तक, जिन असाइनमेंट पर वे काम करते हैं उनकी लंबी लिस्ट है.

करोल बाग, दिल्ली का दूसरा आईएएस हब | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

एक प्रसिद्ध यूपीएससी कोचिंग इंस्टीट्यूट में कंटेंट टीम के हेड ने कहा, “हम स्टूडेंट्स की ज़रूरतों के अनुसार काम करते हैं. सामग्री टीमें विभिन्न समसामयिक विषयों पर शोध करती हैं. वे अखबारों, अदालत के फैसलों और सरकारी साइट्स को पढ़ते हैं. प्रकाशन से पहले सामग्री की समीक्षा करने के लिए तीन लेयर्स होती हैं.”

जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड पर अपना फैसला सुनाया, कंटेंट तैयार करने वालों ने विषय पर अपना रिसर्च शुरू कर दी और कुछ ही घंटों में ये तैयार हो गया. जो सामने आया वो एक व्याख्यात्मक लेख था, जिसमें उपशीर्षक थे ‘खबरों में क्यों’, ‘के बारे में’, ‘लाभ’ आदि.

उक्त कंटेंट हेड ने कहा, “प्रत्येक कोचिंग इंस्टीट्यूट की अपनी बनावट होती है जिसमें वे अपना पढ़ने वाला कंटेंट प्रकाशित करते हैं. हम इस मामले को परीक्षा के संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं. हम इतिहास, पक्ष-विपक्ष आदि बताते हैं.”

इन टीमों में काम करने वाले अधिकांश लोग पहले से आकांक्षी हैं और 30 साल से अधिक उम्र के हैं. वे इस भूमिका में अच्छी तरह से फिट बैठते हैं, वे उसी स्थिति में हैं जैसे आज एस्पिरेंट्स हैं. हेड ने कहा, “इस भूमिका के लिए अधिकांश संस्थानों में पात्रता मानदंड यह है कि उम्मीदवारों ने यूपीएससी की मेन्स की परीक्षा दी हो. हम उनके वैकल्पिक विषय और उनकी रुचि के क्षेत्र को जानने के बाद ही काम सौंपते हैं.”

25-वर्षीय नेहा शर्मा एक प्रसिद्ध ऑनलाइन कोचिंग इंस्टीट्यूट के लिए घर से काम करती हैं. उनका दिन सुबह 10 बजे शुरू होता है और जागने के बाद वे सबसे पहले अपने फोन को देखती हैं क्योंकि उनके टीम लीडर के मैसेज उन्हें डे-प्लान बताते हैं. उनके काम में परीक्षा पर लेख लिखना शामिल है – चाहे प्रारंभिक परीक्षा में 101 अंक हों या उस साल चयनों की संख्या हो.

शर्मा विषय के बारे में शोध से शुरुआत करती हैं और चैटजीपीटी उनका सबसे अच्छा दोस्त है. ‘पिछले पांच साल के प्रश्नपत्र’ पूछने का एक साधारण वॉयस कमांड उनके लिए तत्काल परिणाम देता है.

शर्मा कहती हैं, “मैं परीक्षा अधिसूचना, पैटर्न, रिक्तियों की संख्या और उपस्थित होने वाले उम्मीदवारों, पात्रता मानदंड आदि पर उनकी ऑनलाइन वेबसाइट के लिए लेख लिखती हूं.”

हर एक वेबसाइट का अपना डिज़ाइन और पैटर्न होता है, जो यूपीएससी के सिलेबस से लेकर अधिसूचनाओं और पिछली परीक्षाओं की उत्तर कुंजी तक की ढेरों जानकारियों से भरा होता है. वे शुरुआती लोगों के हर सवाल का जवाब देते हैं:

‘यूपीएससी के विषय क्या हैं?’, ‘क्या कोई उम्मीदवार मराठी में यूपीएससी कोर्स डाउनलोड कर सकता है?’, ‘क्या आईएएस कोर्स मुश्किल है?’ लगभग यूपीएससी कंटेंट के एक ऑनलाइन सरोजिनी बाज़ार की तरह.

वेबसाइटों के विभिन्न टैब्स पर लिखा है,‘न्यू करेंट अफेयर्स, यूपीएससी कोर्स, स्टेट पीसीएस’.

हालांकि, सोशल मीडिया चैनल थोड़े अलग हैं. वे मीम्स और ट्रेंडिंग रील्स, मोटिवेशनल वीडियो, शिक्षकों के व्याख्यान के छोटे एडिशन और स्टूडेंट्स को संलग्न करने के लिए कुछ रोज़ाना के क्विज़ के जरिए से हल्का कंटेंट देते हैं. एक प्रसिद्ध कोचिंग सेंटर के इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्टर में लिखा है, “भारत में संपत्ति के अधिकार की स्थिति क्या है?”

कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में दो प्रकार के कंटेंट होते हैं. एक है स्थिर, जिसमें वो लोग विषयवार किताबें छापते हैं. दूसरा निरंतर चलने वाला कंटेंट है, जिसमें साप्ताहिक और मासिक पत्रिकाएं और दिन-प्रतिदिन की पीडीएफ शामिल हैं.

कुछ इंस्टीट्यूट में एक परिचालन टीम भी होती है जो व्यापक दर्शकों तक पहुंच सुनिश्चित करती है.

32-वर्षीय आशीष शर्मा (बदला हुआ नाम) ने विज़न आईएएस में तीन साल तक कंटेंट राइटर के रूप में काम किया. उन्होंने 15,000 रुपये प्रति माह की मामूली रकम से शुरुआत की. 2019 में जब उन्होंने नौकरी छोड़ी तो उनकी सैलरी 57,000 रुपये थी. उनके काम में अंग्रेज़ी कंटेंट का हिंदी में अनुवाद करना शामिल था. उनका बिज़ी शिड्यूल था और कोई निश्चित साप्ताहिक छुट्टी भी नहीं थी.

शर्मा ने बताया, “शुरुआत में यह एक अनौपचारिक मामला हुआ करता था, लेकिन जब तक मैंने नौकरी छोड़ी, यह सुव्यवस्थित और औपचारिक हो गया था. लोगों के लिए मैनेजमेंट, अधिक काम और रिक्तियां थीं क्योंकि वहां अधिक उम्मीदवार थे.”

शर्मा 2013 में यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली आए. उन्होंने 2014 में अपनी पहली कोशिश की और 2015 में अपना पहला मेन्स दिया, लेकिन इसे पास नहीं कर पाए. एक दिन एक लेक्चर के दौरान, शिक्षक ने घोषणा की कि वे कुछ ऐसे लोगों की तलाश कर रहे हैं जो अंग्रेज़ी कंटेंट का हिंदी में अनुवाद कर सकें.

शर्मा ने बताया, “मुझे पैसे चाहिए थे और नौकरी कोचिंग सेंटर में ही थी. मैंने सोचा था कि पैसा कमाने के साथ-साथ मैं यूपीएससी इकोसिस्टम से जुड़ा रहूंगा, लेकिन यह उस तरह से काम नहीं कर सका.”

जैसे-जैसे समय बीतता गया, अंशकालिक काम पूर्णकालिक हो गया, जिससे उनका यूपीएससी का सपना दफन हो गया.

आशीष जिनकी यूपीएससी की यात्रा दो कोशिशों के बाद खत्म हो गई, ने बताया, “समय के साथ, मैं समझ गया कि पढ़ने के लिए सीखना और काम के लिए सीखना अलग है. मैं अन्य अभ्यर्थियों को बेहतर प्रदर्शन करते हुए देख रहा था. मैं फंस गया था. तभी मैंने इस इंडस्ट्री को छोड़ने का फैसला किया.”

आरती ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएश की डिग्री ली और ट्रैवल एजेंसियों और कोचिंग इंस्टीट्यूट् में अलग-अलग नौकरियों में तीन साल बिताए. उन्होंने कभी यूपीएससी की तैयारी नहीं की, लेकिन अब इसके बारे में सब कुछ जानती हैं. इंदौर जैसे छोटे शहर से आने वाली आरती आईएएस अधिकारी बनने का सपना नहीं देख सकती थीं. अब, वो अपने चचेरे भाइयों को मार्गदर्शन देती हैं कि इसे कैसे करना है.

आरती ने बताया, “जब भी मैं अपने घर जाती हूं, मैं अपने युवा चचेरे भाइयों से इस परीक्षा का विकल्प चुनने के लिए कहती हूं. मैंने करीब से देखा है कि लोगों की ज़िंदगी कैसे बदल गई है. मैं यह नहीं कर सकती, लेकिन परिवार के अन्य सदस्य कर सकते हैं.”

जबकि वो अब अन्य नौकरियों की तलाश में है, उन्हें यूपीएससी की दुनिया के बारे में सब कुछ याद है. जिस संस्थान में वो काम करती थीं, वहां हर नए एडमिशन के लिए उन्हें 100 रुपये मिलते थे. इस काम में फोन कॉल पर यूपीएससी कोर्स बेचना शामिल था.


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एक लगभग असंभव ख्वाब

यूपीएससी एक लगभग असंभव सपना है-ओलंपिक में गोल्ड जीतने जितना मुश्किल. इस सपने से बंधे लाखों भारतीय परिवार अपने बच्चों को यूपीएससी ट्रेडमिल पर भेज रहे हैं. यह गरीबी से बाहर निकलने और समाज में शक्ति हासिल करने का उनका तरीका है.

सागर चौहान जो तैयारी शुरू करने के बाद से ओल्ड राजिंदर नगर में रह रहे हैं, ने कहा, “मैंने अपनी तैयारी के पिछले चार साल में लगभग 10 लाख रुपये खर्च किए हैं. अब, मैं अपने खर्चों को सीमित करने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन दिल्ली सस्ती नहीं है. इस परीक्षा के लिए हम पैसा और मानसिक स्वास्थ्य दोनों से समझौता करते हैं.”

लाखों माता-पिता मानते हैं कि यूपीएससी परीक्षा पास करना एक ऐसी सीढ़ी तक पहुंचना है जो उनके बच्चे और उनके साथ उनके परिवार को सामाजिक स्तर के शीर्ष पर ले जाती है. या फिर अच्छा-खासा दहेज लाने के लिए. कुछ सफलता की कहानियां जो बहुत कम हैं, उन्हें सभी बाधाओं से लड़ने और असंभव सपने का पीछा करने के लिए अपने जीवन के सबसे उत्पादक वर्ष समर्पित करने के लिए प्रेरित करती हैं. जबकि सफलता उम्मीदवारों को रातों-रात एक अलग शक्ति समूह में ले जा सकती है, असफलता का अर्थ है आजीवन समायोजन करना. सबसे बुरी बात यह है कि अपने सीवी के तहत कम स्किल के साथ नौकरियों के बाज़ार में घुसना. कई लोगों के लिए यह असल ज़िंदगी में 12वीं फेल की स्क्रिप्ट है.

किल्होर ने कहा, “विधु विनोद चोपड़ा की 12वीं फेल एक असाधारण नायक की कहानी है, लेकिन इसके केंद्र में गुड्डु भैया जैसे साइड किरदार भरे हुए हैं, जिन्होंने चाय की दुकान खोली और मनोज शर्मा के दोस्त पांडे जो बाद में लेखक बन गए.”

एक अमीर-से-अमीर दलित कहानी एक अच्छा मनोरंजन है, लेकिन चयनित उम्मीदवारों में से लगभग 50 प्रतिशत सरकारी अधिकारियों के परिवारों से हैं. देश की शीर्ष सेवा प्रशिक्षण अकादमी, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) के आंकड़ों के अनुसार, 2019 में फाउंडेशन कोर्स करने वाले 326 अधिकारी प्रशिक्षुओं (ओटी) में से 166 के पिता – 50.9 प्रतिशत – सरकारी सेवाओं से संबंधित थे.

किल्होर ने कहा, “यूपीएससी के ये भविष्यवक्ता आपको यह बताए बिना एक सफलता की कहानी बेचते हैं कि 99 प्रतिशत उम्मीदवारों के सपने इस यूपीएससी कब्रिस्तान के नीचे दफन हो रहे हैं. वे आपको विफलताओं के बारे में नहीं बता रहे हैं.”

लेकिन इससे करोल बाग और मुखर्जी नगर में कोचिंग इंस्टीट्यूट चलाने वाली इमारतों का प्रसार नहीं रुक रहा है.

मुखर्जी नगर का क्षितिज एक विज्ञापन कैनवास है जो स्टार शिक्षकों और छात्रों की सफलता की कहानियों को प्रदर्शित करता है, जो लगातार अपने अगले ग्राहक की ओर देखते रहते हैं और यूपीएससी परीक्षा के मौसम और चक्र के अनुसार कैनवास बदलता रहता है – प्रीलीयम, मेन्स और इंटरव्यू.

मुखर्जी नगर इन आकांक्षाओं के एक छोटे ग्रह की तरह है. हर समय सक्रिय रहते हुए अभ्यर्थी अपना दिन लाइब्रेरी में बिताते हैं और ब्रेक के दौरान, वे अपने आरामदायक भोजन – चाय और मोमोज़ – की ओर भागते हैं. वे इन ब्रेक के दौरान दोस्तों और उनकी तैयारियों का एक क्विक चैक लेते हैं.

सोनवर ने बताया, “जब मैंने काम करना शुरू किया, तब उतने इंस्टीट्यूट नहीं थे जितने आज हम देखते हैं. मैंने इस जगह को बनते हुए देखा है.”

एक नवनिर्मित तीन मंजिला इमारत की ओर इशारा करते हुए वे कहते हैं, “यह भी जल्द ही एक कोचिंग इंस्टीट्यूट होगा.”

करोल बाग में निर्माणाधीन एक न्यू कोचिंग सेंटर | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

मुखर्जी नगर और करोल बाग के हर इलाके में यूपीएससी कोचिंग संस्थान होने से दिल्ली धीरे-धीरे संतृप्त होती जा रही है और यह संस्थानों को क्षेत्रीय बाज़ारों तक पहुंचने के लिए मजबूर कर रहा है. वे पटना से लेकर इंदौर और जयपुर तक हर राज्य की राजधानी में मुखर्जी नगर बनाने का वादा कर रहे हैं और एस्पिरेंट्स इसका लाभ भी उठा रहे हैं. दिल्ली की यात्रा न करने और मुखर्जी नगर या जिया सराय में एक कमरा किराए पर लेने से उनके लिए काफी बचत होती है.

कभी न छूटने वाली लत

यूपीएससी चक्र व्यसनी है. पूरी प्रक्रिया को पूरा होने में एक साल का समय लगता है. अधिकांश लोग यह सोचकर यहां आते हैं कि उन्हें मुखर्जी नगर की गलियों में कई साल नहीं बिताने पड़ेंगे, लेकिन आशा और कोशिशों की थकावट को लेकर निरंतर सावधानी उन्हें लंबे समय तक शिकार में बनाए रखती है, इतना लंबा कि कई लोग अपना पूरा एक दशक गंवा देते हैं.

हर साल लाखों लोग हारकर और कम आत्मसम्मान के साथ इस चक्र से बाहर निकलते हैं, लेकिन कुछ लोग खुद को संभालते हैं और शिक्षण और सामाजिक सेवाओं जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपनी तैयारी के अनुभव का उपयोग करने का प्रयास करते हैं, जिनके पास अभी भी ऊर्जा बची है वे राज्य सेवाओं का ऑप्शन चुनते हैं.

रजत संब्याल ने अपनी ज़िंदगी के 10 साल यूपीएससी की तैयारी में बिताए और इंटरव्यू तक पहुंचे, लेकिन वो इसे क्लियर नहीं कर सके. इसके बाद उन्होंने स्टेट सर्विस की ओर रुख किया और जेकेपीएससी सीएसई 2022 पास किया.

लेकिन 33 साल के कुंदन कुमार अभी भी संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने आठ साल बिताए और उनके हाथ कुछ नहीं लगा. अपने अंतिम प्रयास में असफल होने के बाद, उन्हें अपने मूल स्थान दरभंगा लौटना पड़ा, जहां वे वे अभी भी नौकरी के अवसरों की तलाश में हैं.

कुमार ने कहा, “खुद को इससे बाहर निकालने के लिए मुझे डिप्रेशन की गोलियां लेनी पड़ीं.”


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विज्ञापनों और पैसों पर बैंकिंग

कोचिंग इंडस्ट्री आज जितना बड़ी और पैसे से भरी हुई नहीं थी. सोशल मीडिया, परीक्षा की जटिलता और अभ्यर्थियों की बड़ी संख्या ने इसे आकार दिया है.

किल्होर ने कहा, “उस समय बहुत कम कोचिंग इंस्टीट्यूट थे. हम होर्डिंग्स पर विज्ञापन देखते थे, लेकिन इतना पागलपन नहीं था. पिछले कुछ साल में परीक्षाओं का पैटर्न भी बदल गया है. हमने 2011 में CSAT परीक्षा दी और कठिनाई का स्तर हर साल बढ़ रहा है. मार्गदर्शन की ज़रूरत भी बढ़ती जा रही है. कोचिंग सेंटर इस यात्रा को आसान बनाने के लिए मार्गदर्शन, परामर्श और अध्ययन सामग्री प्रदान कर रहे हैं.”

लेकिन रिटायर्ड आईएएस अधिकारी, जो कोचिंग बूम से दशकों पहले सेवाओं में आए थे, उन्हें नहीं लगता कि स्टूडेंट्स को इस पारिस्थितिकी तंत्र की ज़रूरत है.

“मैंने एक कोचिंग इंस्टीट्यूट ज्वाइन किया और चार दिनों में ही इसे छोड़ दिया, क्योंकि मुझे इससे फायदा नहीं मिला. मेरा मानना है कि मार्गदर्शन कोचिंग से अधिक महत्वपूर्ण है. इंस्टीट्यूट सब्जेक्ट पढ़ाते हैं, लेकिन स्टूडेंट्स को ज्ञान, विश्लेषणात्मक और संचार कौशल की ज़रूरत है.” रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अनिल स्वरूप ने कहा,

बिरादरी के भीतर से ऐसे लोग भी हैं जो पूर्व नौकरशाहों को इन कोचिंग संस्थानों का चेहरा बनना स्वीकार नहीं करते हैं. पूर्व आईएएस अधिकारी शैलजा चंद्रा ने कहा, “पिछले 15 साल में यह कोचिंग इंडस्ट्री इतना बड़ा दर्द बन गया है और इन केंद्रों को चलाने वाले इतने सारे नौकरशाह सैकड़ों बच्चों को आशा देते हैं, यह सही नहीं है. चाहे उन्हें कितनी भी कोचिंग क्यों न मिल जाए, 10 में से नौ छात्र सफल नहीं होंगे.”

पिछले साल किसी समय, दानिक्स कैडर के आईएएस अधिकारी अभिनव सिवाच से उनके कार्यालय में और फोन पर एक सवाल पूछा गया था: सेवाओं में प्रवेश करने से पहले उन्होंने किस कोचिंग इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया था? सिवाच को परेशान किया गया था, कई कोचिंग इंस्टीट्यूटों ने उनकी सफलता का दावा करते हुए उनके चेहरे का इस्तेमाल किया. हर अखबार में उनका चेहरा था.”

सिवाच ने पिछले साल दिप्रिंट को बताया था, “इस प्रयास के लिए मैं किसी कोचिंग सेंटर में नहीं गया. हालांकि मैंने एक कोचिंग सेंटर से कुछ नोट्स लिए और मॉक इंटरव्यू दिए.”

जब भी यूपीएससी के नतीजे घोषित होते हैं, तो अखबार और होर्डिंग बोर्ड सफल उम्मीदवारों की तस्वीरों और रैंकों से भर जाते हैं. अधिकांश समय, उम्मीदवार को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती है. विज्ञापन तथ्यों को अलंकृत और तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं.

इन विज्ञापनों में प्रदर्शित होने के लिए टॉपर्स को कोर्स में दाखिला लेने या कोचिंग क्लास में जाने की भी ज़रूरत नहीं है. यहां तक कि अंतिम समय में एक संक्षिप्त, क्षणभंगुर व्यस्तता भी पर्याप्त है, जैसे टेस्ट सीरीज़ या नोट्स खरीदना या मॉक इंटरव्यू के लिए आना.

प्रमुख चेहरों वाले यूपीएससी कोचिंग सेंटर के पोस्टर | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

आज कोचिंग सेंटर इंडस्ट्री तेज़ी से बढ़ रही है, लेकिन यह सब एक छोटे लक्ष्य के साथ शुरू हुआ: उम्मीदवारों को मार्गदर्शन देना.

उदाहरण के लिए विकास दिव्यकीर्ति ने एक हॉस्टल के कमरे में स्टूडेंट्स को पढ़ाना शुरू किया, लेकिन बाद में, बैचों का विस्तार हुआ और अब, दृष्टि आईएएस यूपीएससी कोचिंग इंडस्ट्री में सबसे बड़े नामों में से एक है.

चौहान ने कहा, “विकास एक कमरे में स्टूडेंट्स को पढ़ाते थे. इन छात्रों को मदद की ज़रूरत थी और उन्हें पढ़ाना पसंद था और यह समय के साथ बढ़ता गया. दृष्टि पहला इंस्टीट्यूट था जिसने हिंदी उम्मीदवारों के लिए मॉक इंटरव्यू लेना शुरू किया.”

सबसे पुराने कोचिंग इंस्टीट्यूट में से एक, राऊ के आईएएस ने 1953 में स्टूडेंट्स को पढ़ाना शुरू किया था, लेकिन अब ये सभी इंस्टीट्यूट इस इंडस्ट्री की बड़ी मछलियां हैं जो लाखों स्टूडेंट्स की असफलताओं के बावजूद फलफूल रहे हैं.

करोल बाग में राऊ का स्टडी सर्कल | नूतन शर्मा/दिप्रिंट

कोचिंग इंडस्ट्री मामूली वादे और मोटी रकम के आदान-प्रदान पर चलती है. लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी दिन के अंत में कोई स्किल नहीं जुड़ पाता. यह एक ऐसा जुआ है जिसे कुछ ही लोग स्वीकार करने को तैयार हैं.

किल्होर ने कहा, “ये सभी बड़े कोचिंग इंस्टीट्यूट एक साल में 5,000-10,000 स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे हैं, वे हर साल फीस के रूप में 2-3 लाख रुपये लेते हैं, जो कि भारत के अधिकांश प्रीमियम कॉलेज लेते हैं. इनमें से केवल 20/30 छात्र ही सफल हो पाएंगे. अगर ऐसा किसी विश्वविद्यालय में हुआ होगा जो इतना पैसा लेता है, तो हम इसे आधिकारिक धोखाधड़ी घोषित करेंगे.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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