अयोध्या: 82 साल की लतादेवी एक मिशन के साथ अयोध्या एक्सप्रेस से उतरीं. उनके सभी दुख-दर्द तब गायब हो गए जब उन्होंने ट्रेन के जनरल डिब्बे में दिल्ली से रात भर यात्रा करके सरयू नदी के ठंडे पानी में डुबकी लगाई और अपने 55 वर्षीय बेटे सूरज सिंह के साथ अयोध्या से होते हुए नवनिर्मित राम मंदिर की ओर चल दीं. ये सबकुछ पलक झपकते ही बीत गया क्योंकि उन्हें देख के ऐसा लग रहा था, मानों राम लला अपनी दर्शन लिए उन्हें अपनी ओर खींच रहे हो.
उन्हें नव-प्रतिष्ठित काले रंग की, अपेक्षा से अधिक बड़ी मूर्ति को देखने के लिए केवल एक क्षण की झलक मिली. और फिर उसे सुरक्षा गार्डों द्वारा सुगंधित गर्भगृह से बाहर मंदिर परिसर में वापस धकेल दिया गया.
लेकिन उनके लिए इतना ही काफी था. लतादेवी ने अपनी उम्र में वापस डूबने से पहले, गेंदे के फूल में लिपटे एक धातु के बैरिकेड के सामने आराम करते हुए कहा, “मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैंने एक पल के लिए स्वर्ग देख लिया हो.”
आखिरी बार वह साठ साल पहले यहां आई थी, तब उनकी नई-नई शादी हुई थी और उनके पति भी साथ थे, और जहां अब राम मंदिर है, पहले वहां मस्जिद थी. जैसे ही वह मंदिर परिसर से बाहर निकली, उन्होंने अपने नीले शॉल को अपने ऊपर अच्छे से लपेट लिया और फूलों से सजे मंदिर को आखिरी बार देखने के लिए मुड़ी.
जो बात राम मंदिर को सबरीमाला और तिरूपति जैसे अन्य तीर्थ स्थलों से अलग करती है, वह सभ्यतागत मील का पत्थर है जो लोगों के मन में बस गया है. यह एक युग-परिभाषित क्षण है जिसने भारतीय राजनीतिक कल्पना को कभी नहीं छोड़ा. यह हिंदू सभ्यता के गौरव के प्रतीक के रूप में दशकों तक सामूहिक स्मृति में एक सपने के रूप में मौजूद रहा.
अब, अयोध्या और राम मंदिर लतादेवी, उनके बेटे और उनके जैसे हजारों लोगों के लिए आंशिक रूप से तीर्थयात्रा, पर्यटन स्थल और एक शक्ति हैं. यह वह प्रचार है जिसके पीछे लोग भाग रहे हैं, जीत और प्रतिशोध की साझा भावना का जश्न मना रहे हैं और फिर इसे ऑनलाइन पोस्ट कर रहे हैं. यही वह बात है जो राम मंदिर को सभी पीढ़ियों के लिए आकर्षित करती है: इसका राजनीतिकरण इस तथ्य के साथ हो रहा है कि धर्म फिर से प्रचलन में है.
लतादेवी ने कांपती आवाज़ में कहा, “बाबरी के साथ जो कुछ भी हुआ, अच्छा हुआ.” उन्होंने स्वतंत्र भारत के जन्म और उत्थान को देखा था, और कहा कि यह इतिहास का एक ऐसा क्षण था जिसका वह वास्तव में हिस्सा बनना चाहती थीं.
मां और बेटे ने ट्रेन स्टेशन से सीधे मंदिर के लिए लाइन लगाई, अयोध्या के लता मंगेशकर चौक पर थोड़ा आराम करने के बाद और फिर अपना सामान कई किलोमीटर तक खींचते हुए, पहले हनुमान गढ़ी के हनुमान मंदिर में दर्शन किए, और फिर बिल्कुल नए राम मंदिर में जाकर ही रूके.
सिंह ने कहा, “मैंने बस यही प्रार्थना की कि हमारा अगला कदम पिछले कदम से बेहतर हो और मेरे परिवार का सौभाग्य बना रहे.”
मंदिर शहर के साथ उनका रिश्ता भी अब थोड़ा बदल गया है. सिंह ने कहा, “हम यहीं से हैं, इसलिए हमारे लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी. मैंने सोचा, अब तो मंदिर देख ही लेंगे.” लेकिन जब वह वापस लौटे, तो उस क्षण तक जो कुछ भी घटित हुआ था, उसका महत्व उन्हें बाद में समझ आया. “भगवान राम आखिरकार 500 साल बाद अपने महल में वापस आ गए हैं, और मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपनी सारी चिंताएं भूल ही गई हूं.”
परिवार की प्रमुख चिंताओं में से एक सिंह की सबसे बड़ी बेटी की शादी है.
सिंह, उनके पास बैठी उनकी मां ने कहा, “राम मंदिर भारत के लिए एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है और यह दर्शन हमारे परिवार के लिए एक शुभ समय है.”
यह भी पढ़ें: राम के ननिहाल और ससुराल ने अयोध्या में भेजे भव्य उपहार — चांदी के खड़ाऊ, आभूषण, चावल के ट्रक
इंस्टा जनरेशन, कैमरा और अयोध्या तक सफर
दिल्ली से अयोध्या एक्सप्रेस रास्ते में भक्तों को इकट्ठा करते हुए अयोध्या की ओर बढ़ी. हापुड और मुरादाबाद में समूह ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए कोच पर चढ़ गए. एक यात्री रचित अवस्थी ने अपने भगवा राम ध्वज के साथ एक फोटो अवश्य ली. अन्य यात्री इस मौज-मस्ती का फिल्मांकन करने लगे.
हर किसी की जुबान पर यही सवाल था कि “क्या आप भी अयोध्या जा रहे हैं? दर्शन के लिए?”
कई लोग स्थानीय निवासी थे जो घर लौट रहे थे – एक यात्री, अयोध्या की स्थानीय प्रमिला देवी, ने दिल्ली के व्यवसायी से तीर्थयात्री बने अवस्थी द्वारा पूछे गए इस सवाल का तुरंत जवाब दिया.
उन्होंने कहा, “हां बिल्कुल! हम भला क्यों नहीं जाएंगे, राम जी घर वापस आये है.”
स्मार्ट फोन, कैमरे और सेल्फी स्टिक भगवा झंडे और तिलक की तरह सर्वव्यापी थे, क्योंकि आगंतुक अपनी भक्ति का दस्तावेजीकरण करने में किसी से पीछे नहींं रहना चाहते थे. इसकी शुरुआत अयोध्या एक्सप्रेस से हुई जहां सभी भक्त GoPros और कैमरे ले जा रहे थे और तस्वीरें ले रहे थे – जो उन्हें संघ परिवार कैडर से अलग कर रहा था.
अवस्थी ने कहा, जो मंदिर देखने के लिए अकेले यात्रा पर अयोध्या एक्सप्रेस से गए थे, हम ‘इंस्टा जनरेशन’ हैं, इसलिए निश्चित रूप से हम तस्वीरें लेंगे और उन्हें पोस्ट करेंगे.” वे राम के भगवा झंडे के साथ अपनी और ट्रेन की तस्वीरें लेना नहीं भूले. वह मंदिर का दौरा करने के लिए इंतजार नहीं कर सकते थे, और इसलिए उन्होंने अपने दोस्तों और परिवार के बिना ही पवित्र भूमि पर पहली यात्रा करने का फैसला किया.
ऐसा प्रतीत होता है कि अयोध्या एक्सप्रेस में यह एक ट्रेंड थी: पुरुषों के कई छोटे समूह एक साथ यात्रा कर रहे थे और अपनी यात्रा को तस्वीरों और वीडियो में कैद कर रहे थे. दिल्ली के 35 वर्षीय मार्केटिंग प्रोफेशनल, योगेश ने यात्रा के लिए स्पष्ट रूप से एक GoPro खरीदा था. वह अपने दो दोस्तों के साथ यात्रा कर रहे थे, और अयोध्या उनका अगला स्टॉप था.
एक अन्य व्लॉगर, गौतम, जो नोमैडिक सफ़र नामक एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं, भी गोप्रो पर अपनी ट्रेन के सफर को कैद कर रहे थे, और अपने फॉलोवर्स को अपना उत्साह बता रहे थे. वह ट्रेन से उतरे और तुरंत “जय श्री राम” के नारे लगा रहे लोगों का वीडियो बनाना शुरू कर दिया – यहां तक कि अयोध्या कैंट स्टेशन प्रबंधक भी भीड़ का उत्साहवर्धन कर रहे थे.
अयोध्या में उतरते समय लतादेवी और सिंह के मन में प्रत्याशा का संचार हो गया, क्योंकि कोहरे के कारण उनकी यात्रा में एक घंटे की देरी हुई. वे दर्शन के लिए इंतजार नहीं कर सकते थे, लेकिन मां और बेटे का पहला पड़ाव सरयू नदी था.
कड़ाके की ठंड में दोनों ने चुपचाप नदी में स्नान किया और अपने कपडे़ बदले, सिंह ने एक साफ शर्ट और पतलून, लतादेवी ने एक पीली साड़ी पहनी और फिर वे एक पुजारी के पास गए. उन्होंने अपने माथे पर “श्री राम” का तिलक भी लगवाया.
उनका अगला पड़ाव राम को समर्पित एक छोटा, मंदिर था – जो उनके मुख्य गंतव्य से लगभग 2 किमी दूर था. उन्होंने अपने बैग नीचे रखे और वहां प्रार्थना की. लतादेवी ने शौचालय का उपयोग किया, जबकि सिंह ने सबसे अच्छा दिखने के लिए जल्दी से खुद को शेव किया और अपना तिलक दोबारा लगाया.
छोटे मंदिर के महंत, जगनायक दास, पूरी सुबह फोन पर मुख्य राम मंदिर के दर्शन कैसे करें, इस सवाल का जवाब देते रहे हैं. पिछला दिन, 23 जनवरी, पहला दिन था जब मंदिर जनता के लिए खुला और भीड़ को कम करने के लिए लाठीचार्ज किया गया था – अब सुरक्षा बढ़ा दी गई है, और फोन और बैग को मंदिर के लॉकर में जमा करना होगा.
दास राम मंदिर चलाते हुए पिछले कुछ दशकों से राम मंदिर की राजनीति को देख रहे हैं. वह पिछले 25 वर्षों से बमुश्किल किसी भी फंड के साथ एक मंदिर चलाने का कठिन काम कर रहे हैं, और अब वह राम मंदिर के निर्माण में शामिल एल एंड टी इंजीनियरों से फोन पर बात कर रहे हैं – वह अयोध्या के स्थानीय निवासी हैं, और कई तीर्थयात्रियों के लिए संपर्क का एक बिंदु हैं. उनका कहना है कि आखिरकार हिंदुओं को भारत में अपना सम्मान मिल रहा है और उनके समर्पण को आखिरकार वह पहचान मिल रही है जिसका वह हकदार है.
दास को लतादेवी पर संदेह हुआ, और उन्होंने सिंह से कहा कि उनके लिए भीड़ का सामना करना और मंदिर तक पैदल चलना कठिन हो सकता है. वह कहते हैं, ”वहां बहुत ज्यादा भीड़ है.”
सिंह मुस्कुराते हुए कहते हैं, “उनके पास बहुत हिम्मत है.”
और उनकी मां इसे दिखाती भी है, वह धीरे-धीरे घंटों तक अपने बेटे के पीछे चलती रहती है.
वह बताती हैं, ”मैं अप्रैल से घर लौटने के बारे में सोच रही थी. अब देखो, ऐसा लगता है जैसे भगवान राम ने हमें स्वयं अपने घर बुलाया है!”
सिंह ने नवंबर में उद्घाटन की तारीख की घोषणा के ठीक बाद अयोध्या के लिए टिकट बुक किए थे. उनकी पत्नी और तीन बच्चे – दो स्कूल शिक्षिका बेटियां और बेटा एक एमबीए छात्र – गर्मियों की छुट्टियों के दौरान संभवतः उनके साथ यात्रा करेंगे. लेकिन अगले कुछ महीनों के लिए अपने पैतृक गांव में रिश्तेदारों के पास उन्हें छोड़ने से पहले, उनके लिए अपनी बुजुर्ग मां के साथ जल्द से जल्द मंदिर जाना महत्वपूर्ण था.
मंदिर की लंबी पैदल यात्रा में – भक्तों के साथ ‘जय श्री राम’ के नारे और भजन गाते हुए – सिंह कभी-कभी इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अपने सहयोगी को वीडियो कॉल करने के लिए अपना फोन निकालते हैं, जहां वह एक एकाउंट्स मैनेजर के रूप में काम करते हैं. उनके सहकर्मी भी दर्शन करना चाहते थे.
मंदिर की ओर यात्रा के दौरान उन्होंने लगभग तीन बार वीडियो कॉल पर बात की. चाय ब्रेक के दौरान एक कॉल की गई, जबकि लतादेवी बैठी थीं. उनके सहकर्मी सिंह को तीर्थयात्रा का हिस्सा बनाने के लिए धन्यवाद देते रहे.
यहां इतनी भीड़ है कि अतिरिक्त केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल को लाया गया है, लेकिन लोगों की खुशी देखने लायक थी. यहां तक कि सुरक्षा बल भी इस दबाव का विरोध नहीं कर सकते हैं – वे अपने फोन बाहर रखते हैं – अपना कर्तव्य निभाने के बजाय तस्वारों और वीडियो बनाता हैं. एक हाथ में फोन और दूसरे हाथ में डंडा लिए वे व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे और भगवा रंग के इस समुद्र में उनकी वर्दी चमक रही थी.
राम की अयोध्या वापसी (‘राम आएंगे’) के बारे में ये भजन अयोध्या एक्सप्रेस से अयोध्या तक मां और बेटे के साथ चल रहा है – वही मंत्र जो राम की प्रशंसा कर रहे हैं, वही भजन उनकी नैतिकता, उनकी आंखों, उनके श्याम रंग, उनकी महिमा, दया, उनका प्रेम, उनका राज्य का बखान कर रहे हैं. लेकिन यह केवल प्रत्याशा के उत्साह और चरमोत्कर्ष की उन्मादी भावना को बढ़ा रहा है.
सिंह 20 रुपये का भगवा दुपट्टा खरीदने के लिए रुकते हैं, जिस पर “जय श्री राम” और ओम लिखा होता है. उनके चारों ओर, लोगों के अन्य समूह “जय श्री राम” का नारा लगाते हैं, सभी एक ही गंतव्य की ओर बढ़ रहे हैं – भगवा का एक सामूहिक प्रवाह, जो मंदिर की ओर बह रहा है. लतादेवी कभी-कभी मंत्रोच्चार में शामिल हो जाती हैं, उनकी कांपती बूढ़ी आवाज़ हमेशा अंत में पीछे रह जाती है.
यह भी पढ़ें: 500 साल तक अयोध्या रही ‘श्रीहीन’, अब लौटी है रौनक
‘यह सब भगवान राम ने किया है’
सिंह और लतादेवी को पता चलने से पहले ही दर्शन समाप्त हो गया था, और इसीलिए यात्रा को रिकॉर्ड करना और रील बनाना अधिक महत्वपूर्ण हो गया. भव्य मंदिर में प्रवेश जबरदस्त था, लेकिन भीड़ भी उतनी ही थी. इस बिंदु पर, मंदिर के रास्ते पर सुरक्षा व्यवस्था की गई है, जिससे भक्तों की लाइन आगे बढ़ते रहे.
मंदिर में, सिंह यह जानकर निराश हो गए कि उन्हें अपना फोन लॉकर में जमा करना होगा, क्योंकि इसका मतलब था कि वह मंदिर के अंदर सेल्फी नहीं ले सकते. फिर वह यह बात सोचकर थोड़ा शांत हुए कि वह यहां कभी भी वापस आ सकते है.
उन्होंने कहा, “अब राम राज्य शुरू हो गया है, यह मंदिर कहीं नहीं जा रहा है. बहुत उत्साह है क्योंकि अब पूरा देश राम की शक्ति को महसूस करता है, इसलिए वे तस्वीरें लेना और इसे साझा करना चाहते हैं.”
उस दोपहर तक, वह उल्लेखनीय रूप से और ज्यादा भगवा रंग में रंगे नज़र आ रहे थे, तिलक और विभिन्न प्रकार के भगवा सामानों से रंगे हुए थे. वह राम लला की एक झलक पाने के बाद अपनी भावनाओं को रिकॉर्ड कर रहे थे. उन्होंने अपने चारों ओर इशारा करते हुए कहा, “यह सब भगवान राम ने किया है.”
सिंह ने अपने कैमरे की वजह से रेलवे स्टेशन पर गौतम को पहचान लिया. सिंह ने बाद में कहा, “देखिए, जब हम बच्चे थे तब से हर कोई भगवान राम के बारे में सुन रहा है. हर हिंदू अपने बचपन के नायक को देखने के लिए समान उत्साह, समान इच्छा रखते हैं. और हम सभी इस उत्साह को एक-दूसरे के साथ साझा करना चाहते हैं.”
उन्होंने हनुमान के प्रति अपने प्रेम के बारे में बात की और बताया कि वह राम के प्रति हनुमान की भक्ति की कितनी प्रशंसा करते हैं – इसलिए हनुमान के मंदिर में उनका पहला पड़ाव था. सिंह के लिए, जो कहते हैं कि वह बचपन से ही राम भक्त रहे हैं, राम एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के अंतिम प्रतीक हैं जो सभी के पालनहार हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि पौराणिक कथाओं में राम को कृष्ण की तरह एक बच्चे के रूप में याद नहीं किया गया है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि रामायण, सिंह के बचपन का एक बड़ा हिस्सा था.
उन्होंने प्रसिद्ध भजन भये प्रगट कृपाला को उद्धृत किया, जिसमें बताया गया है कि कैसे राम ने अपनी मां को विष्णु के वास्तविक रूप में दर्शन दिए और फिर उन्होंने उनसे एक बच्चे का रूप धारण करने का अनुरोध किया.
सिंह ने कहा, “जो भगवान पीड़ित लोगों के दया और करुणा रखते हैं, वे कौशल्या के सामने प्रकट हुए और उनकी मां कौशल्या उन्हें देखकर बहुत खुश हुईं, वह अपने महान वास्तविक रूप में थे.”
मंदिर की राजनीति
हालांकि, राम मंदिर की राजनीति की स्मृति पीछे रह गई है.
मंदिर भाजपा की सबसे बड़ी वैचारिक परियोजना है, और अयोध्या में कई भक्तों का कहना है कि इसने ही भाजपा को लोकप्रिय जनादेश दिया है. और इसके निर्माण के साथ, जनादेश अब पूरा हो गया है.
“सब कुछ बहुत शानदार था!” रात में मंदिर देखकर लौटने से कुछ समय पहले, 24 जनवरी की शाम को दर्शन के बारे में अवस्थी ने लिखा. वह उस दिन तीन बार गए, ट्रेन से उतरने के ठीक बाद और फैजाबाद के एक होटल में चेक इन करने के बाद.
सिंह और अवस्थी दोनों को यकीन है कि एक नई मस्जिद बनाई जाएगी, लेकिन दोनों को विश्वास नहीं है कि उसके बाद अयोध्या शांतिपूर्ण होगी. जब सिंह और अवस्थी को मंदिर की उद्घाटन के बाद भारत भर में हिंदुत्ववादी भीड़ की हिंसा की कई घटनाओं के बारे में बताया गया, तो उन्होंने इसके लिए चरमपंथी तत्वों को जिम्मेदार ठहराया और इसकी निंदा की.
मंदिर इनमें से किसी भी भक्त के लिए उपयुक्त है; यह हिंदुओं और भाजपा दोनों के लिए एक शुरुआती बिंदु है.
अवस्थी ने अपने चारों ओर के भगवा माहौल की ओर इशारा करते हुए कहा, “आखिरकार, यहां हर कोई धार्मिक है. अयोध्या में हर किसी की एक ही कहानी होगी. अब मंदिर बन गया है, ऐसा लगता है जैसे हिंदुस्तान फिर से हिंदुओं का हो गया है.”
मंदिर की राजनीति के इर्द-गिर्द बातचीत हमेशा विभाजन पर आती है, कि यह धार्मिक आधार पर किया गया था – मुसलमानों के लिए पाकिस्तान, हिंदुओं के लिए हिंदुस्तान. एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र राज्य के निर्माण का गांधीवादी और नेहरूवादी सपना भुला दिया गया है. अवस्थी के मुस्लिम ‘मित्र’ हैं, लेकिन इससे हिंदू भारत के बारे में उनका विचार नहीं बदलता है.
मंदिर से बाहर निकलते हुए लतादेवी कहती हैं, ”बाबरी मस्जिद खूबसूरत थी लेकिन इस मंदिर में आने के बाद मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, अब मेरी कोई इच्छा नहीं है.” वह रेत में पत्थरों के छोटे-छोटे ढेरों की ओर इशारा करती है, और बताती है कि जिनके पास घर नहीं हैं, उन्होंने उन्हें इस उम्मीद में वहां रखा है कि राम उनके सपनों को साकार करेंगे और उनका बोझ कम करेंगे.
“आप देखना. एक साल के अंदर उनके पास घर होंगे. यही राम की शक्ति है और यही राम राज्य है.”
(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: अयोध्या राम मंदिर मोदी-BJP के लिए राजनीतिक गेम-चेंजर? धर्म पर क्या कहते हैं प्यू सर्वे के निष्कर्ष