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Wednesday, 24 April, 2024
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500 साल तक अयोध्या रही ‘श्रीहीन’, अब लौटी है रौनक

लगता है कुछ तो बदल गया है - किसी से कोई दुश्मनी का भाव नहीं. छोटी चीज़ों का फिर से अर्थ समझ आ रहा है- अक्षत की छोटी थैली, पांच दीये, लोक गीत और आरती तक.

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लक्ष्य किसी भी समाज के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने व्यक्तियों के लिए. ऐसा लक्ष्य एक यूटोपिया के रूप में हो सकता है – पूर्णता की परिकल्पना – जो पूरी तरह से हासिल नहीं होती, लेकिन समाज को उस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करता है. अलग-अलग दार्शनिकों ने समय-समय पर अलग-अलग यूटोपिया के बारे में सोचा है. प्लेटो ने एक आदर्श राज्य की बात की है, कार्ल मार्क्स ने कम्यून की चर्चा की है, संत रविदास ने बेगमपुरा की बात की है और मोहनदास करमचंद गांधी और कई भारतीय दार्शनिकों के लिए वह आदर्श राज्य राम राज्य है. ये यूटोपिया भौतिक कल्याण, समानता, सामाजिक सद्भाव और बंधुत्व के बारे में अपने अलग-अलग तरीकों से बात करते हैं.

एक आदर्श राज्य (राम राज्य) की भारतीय अवधारणा एक कदम आगे बढ़कर भौतिक और आध्यात्मिक कल्याण दोनों की बात करती है. इसका वर्णन महर्षि कणाद ने वैशेषिक दर्शन के एक सूत्र में, जो कि हिंदू विचार की छह प्रमुख शाखाओं में से एक है, खूबसूरती से किया है: ‘यतो अभ्युदय नि-श्रेयस संसिद्धि स धर्म’. अर्थात्, “वह, जो संसार में अभ्युदय (भौतिक कल्याण) की प्राप्ति का निर्देशन और नेतृत्व करता है; जो दुःख और दर्द की समाप्ति का मार्ग दिखाता है और उसके बाद निःश्रेयस (आध्यात्मिक कल्याण) की ओर ले जाता है, वह धर्म है.”


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राम राज्य क्या दर्शाता है?

राम राज्य एक ऐसा विचार है जो अभ्युदय और नि:श्रेयस – भौतिक और आध्यात्मिक कल्याण दोनों को समाहित करता है. हाल के वर्षों में समस्याओं (जैसे कोविड-19) का मुकाबला करने के बाद, हमने सीखा है कि केवल भौतिक समृद्धि मानव जाति को धीरज नहीं दे सकती है. हमें एक ऐसे मॉडल की ज़रूरत है जो मानसिक कल्याण, आंतरिक और बाहरी शांति और सामाजिक सद्भाव के लिए जगह सुनिश्चित करे.

व्यक्ति और प्रकृति में न्यूनतम संघर्ष हो; पुरुषों और महिलाओं; प्राच्य और पाश्चात्य सभ्यताएं. हमें ऐसी राजनीति की ज़रूरत नहीं है जो एक दूसरे के ‘बनाम’ हो, बल्कि ऐसी राजनीति की ज़रूरत है जो एक दूसरे का पूरक हो; जहां हर कोई एकीकरण के सूत्र में बंधा हो; जहां व्यक्ति उस मूलभूत एकता को समझता है जो विविध तरीकों से प्रकट होती है. व्यक्तिवाद की विचारधारा जिसने पिछली दो शताब्दियों में लोकप्रियता हासिल की है, हर संस्था के खिलाफ युद्ध छेड़ती है, मौलिक एकता को खारिज करती है और दुश्मनों से घिरे होने की धारणा पैदा करती है. सांसारिक सुखों की निरंतर खोज ने हमें अपनी इंद्रियों का गुलाम बना दिया है. हम खुशी की आड़ में दुःख खरीद लेते हैं.

लेकिन अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का जश्न को देखिए. लगता है कुछ तो बदल गया है. किसी से कोई दुश्मनी का भाव नहीं है. छोटी-छोटी चीज़ें मायने रख रही हैं -अक्षत (चावल) की छोटी थैली से लेकर पांच दीये, सरल गीत और आरती से लेकर कला और शिल्प तक. ऐसा प्रतीत होता है कि लोग इस क्षण के साक्षी बनने के लिए धन्य महसूस कर रहे हैं और सदियां बीतने और विरेचन की भावना प्रकट हो रही है.

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यह उत्सव इस बात का प्रतीक है कि राम राज्य का क्षण आ गया है. निस्संदेह, राम को उनकी जन्मभूमि में वापस लाए बिना यह संभव नहीं था, जहां से उन्हें लगभग 500 साल पहले हटा दिया गया था.


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राम राज्य की शुरुआत

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की, यह इस बात का स्मरण था कि भारत में राम राज्य की शुरुआत हो गई है. उनका दावा उनकी सरकार के पिछले 10 साल में किए काम पर विश्वास से आता है. सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में समाज के विभिन्न वर्गों के लिए उन्होंने जो काम किया है, वह उनके पूर्ववर्तियों द्वारा इसी अवधि में किए गए कार्यों की तुलना में अद्वितीय है. ऐसे कई बड़े प्रोजेक्ट हैं जहां उन्होंने शिलान्यास समारोह किए और परियोजनाओं पूरी होने पर उद्घाटन भी किया.

कई लंबित परियोजनाएं, -जो अतीत की दयनीय विरासत थीं – को उनकी सरकार ने पूरा किया है. जन-धन, उज्ज्वला, आयुष्मान भारत, पीएम आवास, पीएम-किसान सम्मान निधि, मुद्रा ऋण, स्टैंड अप इंडिया, स्वच्छ भारत और कई अन्य योजनाएं प्रभावी ढंग से लागू की गईं. इनमें से कुछ नीतियों के लाभार्थी अब 50 करोड़ की संख्या को पार कर रहे हैं, जो संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस की संयुक्त जनसंख्या के कुछ हद तक बराबर है.

भारत में लगभग 80 करोड़ लोग (यूरोप की जनसंख्या से अधिक) मुफ्त राशन के हकदार हैं और अगले कुछ साल तक उन्हें यह मिलता रहेगा. महामारी के दौरान और उसके बाद लोगों को 200 करोड़ से अधिक टीके लगाए गए और हम दुनिया के इतिहास में सबसे बड़े मानव संकट से बच गए. नीतियां, कार्यक्रम और योजनाएं संख्या में विशाल, प्रभावशीलता में उच्च और न्यूनतम रिसाव और चोरी के साथ हैं.

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं, ‘‘दैहिक दैविक भौतिक तप, रामराज नहिं काहुहि व्यापा’’, जिसका अर्थ है कि राम राज्य में किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं था. पीएम मोदी ने अयोध्या जाने से पहले कई वर्षों तक यही सुनिश्चित करने की कोशिश की है.

सैकड़ों वर्षों तक, अयोध्या ‘‘श्रीहीन’’ (बिना रौनक के) थी क्योंकि राम लगभग 500 साल तक वनवास में थे. जैसे ही 22 जनवरी को भगवान वापस लौटे हैं, अयोध्या समृद्धि के एक नए चरण की उम्मीद में फिर से जगमगा उठी है. उनके आगमन की उलटी गिनती में समृद्धि की प्रारंभिक गूंज अयोध्या और उसके आसपास सुनी और महसूस की जा सकती थी.

यह अवधि एक नए युग की शुरुआत के रूप में दिखाई देती है, जिसमें समाज और शासन के इंजनों की तरह आकांक्षाएं और आशाएं ऊंची उड़ान भर रही हैं. अब अधिकांश मुद्दों और उनसे कैसे निपटना है, इस पर व्यापक सहमति है. देश को आगे ले जाने के लिए हमने संख्या के मामले में एक सीमा पार कर ली है. राम राज्य का विचार इस आमसहमति की ओर ले जाता है जहां सांस्कृतिक मूल्य और शासन साथ-साथ चलते हैं.

(स्वदेश सिंह दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं और रूपा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘Ayodhya Ram Mandir: Bharat’s Quest for Ram-Rajya’ के लेखक हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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