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Thursday, 10 October, 2024
होमफीचर10 करोड़ जीतने वाली केरल की 11 कचरा बीनने वाली महिलाएं, कैसे पड़ोसियों-रिश्तेदारों के आंख की बनीं किरकिरी

10 करोड़ जीतने वाली केरल की 11 कचरा बीनने वाली महिलाएं, कैसे पड़ोसियों-रिश्तेदारों के आंख की बनीं किरकिरी

एक बार जब उनके बैंक खातों में नकदी जमा हो गई तो उनके इर्द-गिर्द के लोगों में ईर्ष्या बहुत तेजी से बढ़ी. लेकिन वे सभी इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं. विजेताओं में से एक का कहना है, "गंजेपन और ईर्ष्या का कोई इलाज नहीं है."

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परप्पनांगड़ी: कुछ दिनों तक लक्ष्मी को सड़क पर देखकर हर कोई मुस्कुराता रहा. केरल के मलप्पुरम में कचरा बीनने वाली महिला ने स्वच्छता विभाग में अपने दस सहयोगियों के साथ 10 करोड़ रुपये की मानसून बम्पर लॉटरी जीती.

पहले तो ऐसा लगा मानो पूरा परप्पनांगड़ी शहर उसकी खुशी का जश्न मना रहा हो. लेकिन एक महीने से अधिक समय हो गया है और अब मुस्कुराहट धीरे-धीरे फीकी पड़ रही है.

क्योंकि अब उनके लिए लोगों के मन जलन करने का समय आ चुका था.

स्थानीय सरकार द्वारा संचालित उचित मूल्य की दुकान पर सब्सिडी वाले खाद्यान्न का जिक्र करते हुए, लक्ष्मी ने कहा, “पड़ोस के लोग राशन की दुकान पर गए और उनसे कहा कि वे मुझे अब चावल न दें.” “उन्होंने कहा कि वे मुझे केवल तभी राशन देंगे जब मैं अपना राशन कार्ड गरीबी रेखा से नीचे वाले कार्ड से नियमित कार्ड में बदलूंगी.”

वह अपने भाग्य को लेकर निशाना बनाए जाने पर गुस्से से उबल रही हैं.

“उन लोगों का क्या जिनके पास पीले बीपीएल कार्ड हैं, भले ही वे इसके हकदार नहीं हैं? उनसे क्यों नहीं पूछा?”

पिछले दिनों उस समय 11 महिला सफाई कर्मचारियों का जीवन एक रात में ऐसा बदला कि वो रातों रात न केवल मीडिया में छा गए बल्कि छोटे से सेलिब्रिटी भी बन गए. पहले तो खूब मिठाइयां बांटी गईं और स्वागत में मालाएं तक पहनाई गईं. वह लगातार इंटरनेट पर छाई रहीं और सारे रिकॉर्ड तोड़ दिया. बीबीसी, द गार्जियन और यहां तक कि अल जज़ीरा ने रातों-रात धनवान बनने की इस अप्रत्याशित उपलब्धि को प्रमुखता से छापा.

लक्ष्मी ने याद करते हुए कहती हैं कि कैसे लोग उनके पास आते थे और उन्हें चिढ़ाते थे कि वे अब कैसे वो अमीर हो गई हैं. यह सब एक मजाक था.

फिर नजरें और बॉडी लैंग्वेज बदलती गई.

जीत के लगभग दो महीने बाद जैसे ही 23 अगस्त को जब उनके बैंक खातों में नकदी आ गई तो उन्होंने पाया कि उन लोगों के लिए लोगों और पड़ोसियों के दिल में जलन और ईर्ष्या बढ़ती जा रही है. जैसे जैसे उनका सोशल स्टेटस बढ़ रहा है.

लॉटरी जीतने वाली एक दूसरी महिला लीला ने कहा, “अब जब हम उन्हें देखकर मुस्कुराते हैं, तो वे कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. हम अब भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं, लेकिन वे हमारी आंखों से आंखें नहीं मिलाते हैं. वे सोचते हैं कि हम अमीर और बेहतर हो गये हैं. लेकिन हमें आज भी ऐसा नहीं लगता.”

लक्ष्मी के पास एक और काउंटर है. वह जानती है कि जीत का एक हिस्सा टैक्स में चला गया है, जिसे नागरिकों पर खर्च किया जाएगा.

उन्होंने कहा, “अगर हमने 1 करोड़ रुपये जीते हैं, तो 40 लाख रु. जनता के लिए रखे गए हैं. फिर उन्हें ईर्ष्या करने की क्या ज़रूरत है, लोगों को यह समझना होगा.”

लीला ने कहा, वे [पड़ोसी] सोचते हैं कि हम अमीर और बेहतर हो गए हैं. लेकिन हमें ऐसा महसूस नहीं होता.

एक अन्य विजेता बिंदू कहती हैं, दूसरों ने दुश्मनी से आंखें मूंद ली हैं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि न तो इसपर ध्यान देना चाहिए और न ही इसका कोई मतलब है.”


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अभी भी कचरा उठा रही हैं

हरिथा कर्म सेना – परप्पनांगड़ी का वह समूह जो घरों से नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरे को छांटता है और बीनता है – की इन महिलाओं की किस्मत ने ऐसे पलटी मारी है जिसपर फिल्में बनाई जाती हैं. इस समूह की महिलाएं जिनमें से छह दलित हैं, पिछले पांच साल से अधिक समय से नगर पालिका कचरा बीनने और छांटने का काम कर रही हैं और आने वाले कई दिनों तक इसे छोड़ने की उनकी कोई योजना नहीं है.

The garbage collection centre where the women work | Tina Das | ThePrint
कचरा संग्रहण केंद्र जहां महिलाएं काम करती हैं | टीना दास | दिप्रिंट

विजेताओं में से एक राधा कहती हैं, “हम नहीं जानते कि इस जीत से क्या बदलाव होने वाला है, तो हम ऐसे में काम किए बिना कैसे रह सकते हैं.”

लॉटरी हो या न हो, उनका दिन अभी भी सुबह 8:30 बजे शुरू होता है जब वे बस में चढ़ती हैं या परप्पनांगड़ी के नगरपालिका कार्यालय के ठीक पीछे बने कचरा पृथक्करण केंद्र की ओर चल देती हैं. यह तीन दीवारों वाली एक विशाल जगह है जो एक गली में खुलती है जहां एक मछुआरे की दुकान है. मछली और कचरे की गंध हवा में मौजूद है और यहीं पास में मौजूद चाय की दुकान पर लोग झुंड बनाकर खड़े हैं.

साड़ी और हरा लैब कोट पहने, अपने बालों का जूड़ा बनाए हुए, महिलाएं अपने चेहरे पर मास्क और दस्ताने पहने हुए हैं और फर्श पर बैठ कर सूखे कचरे के पहाड़ों को हाथ से छांट रही हैं जिसमें ज्यादातर प्लास्टिक, कागज और बोतलें हैं. कुछ कुछ देर में दूसरे कर्मचारी मलप्पुरम के कचरे से भरी हुई हाथ से चलने वाली गाड़ियां लिए इधर-उधर घूमते दिखाई देते हैं.

राधा ने कहा, हम शाॅक में थे और इससे पहले कि हम यह विश्वास कर पाते कि हम अंततः जीत गए हैं, हमने कई लोगों से इसकी पुष्टि करने के लिए कहा.

ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है जो 11 लॉटरी विजेताओं को इस केंद्र की दूसरी महिलाओं से अलग करता हो. वे अभी भी पुराने कीपैड फोन का ही उपयोग कर रही हैं, वही पॉलिएस्टर की साड़ी पहने हुई हैं और सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर हैं. विलासिता पर खर्च करने के लिए इतना पैसा नहीं है. उन्होंने लॉटरी में मिली जीत का अधिकांश हिस्सा कर्ज चुकाने के लिए पहले ही इस्तेमाल कर लिया है. और अब, वे ऋण-मुक्त हैं.

लेकिन वे जिस नए जीवन का निर्माण करने की कोशिश कर रही हैं वह उनके दिमाग से कभी भी बहुत दूर नहीं है.

हालांकि कुछ दिनों से, लक्ष्मी अपने काम पर एक या दो घंटे देर से आ रही हैं. वह अपने लॉटरी से मिले पैसे से प्लॉट खरीदने की जुगत में लगी हैं. उन्होंने कहा, “लेकिन हम कभी काम पर आना नहीं छोड़ते हैं. भले ही हम थोड़ी देर से आएं, हम हमेशा आते हैं.”

जिन घरों से कचरा एकत्र किया जाता है, उनके मासिक भुगतान के हिस्से के रूप में वे प्रतिदिन लगभग 250 रुपये कमाती हैं. यह उनके विजेता लॉटरी टिकट MB200261 की सटीक कीमत भी है. कभी-कभी कूड़ा बेचकर नगर निगम से जो पैसा मिलता है, उसमें से उन्हें भी हिस्सा मिल जाता है.

The winning lottery ticket | By special arrangement
लॉटरी टिकट | विशेष व्यवस्था द्वारा

इस साल जून में, समूह की सफाई कर्मचारियों ने केरल सरकार की मानसून बम्पर लॉटरी टिकट खरीदने का फैसला किया था.

राधा, जो आमतौर पर समूह के लिए लॉटरी टिकट खरीदा है, हर किसी से 25 रुपये लेकर इकट्ठा कर रही थीं. तब 65 वर्षीय कुट्टिमलु को एहसास हुआ कि उनके पास उसे देने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं है. समूह की एक अन्य महिला, चेरुमानिल बेबी, नहीं चाहती थी कि उसकी दोस्त छूट जाए और उसने उसके साथ 25 रुपये देने की पेशकश की. उन्हें याद नहीं है कि उन्होंने टिकट कब खरीदा था, लेकिन नतीजे घोषित होने का दिन, 26 जुलाई उन्हें बहुत अच्छे से याद है.

10 करोड़ रुपये अब समूह के बीच बांट दिए गए हैं. 25 रुपये का योगदान देने वाली नौ महिलाओं में से प्रत्येक को 63 लाख रुपये मिले. बेबी और कुट्टिमलु ने 63 लाख रुपये का बंटवारा किया, जैसा कि उन्होंने टिकट की कीमत के साथ किया था. बाकी रकम टैक्स के तौर पर काट ली गई है.

राधा ने कहा, “हमें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि हम जीत गए हैं.. सदमे में थे और हमने कई लोगों से पुष्टि करने के लिए कहा, इससे पहले कि हम विश्वास कर सकें कि हम आखिरकार जीत गए.” स्वर्ण पदक जीतने का यह उनका चौथा प्रयास था.

11 महिलाएं- कार्थियानी (74), कुट्टिमलु (65), चंद्रिका (63), चेरुमनिल बेबी (60), पार्वती (55), लीला (50), राधा (49), श्रीजा (48), बिंदू (47), शोभा (44) और लक्ष्मी (43) – एक ऐसी चीज़ को पकड़े हुए हैं जिसने उनकी जिंदगी को उलट पलट कर रख दिया है. उनका काम कूड़ा-कचरा छांटने और इकट्ठा करने का है. यह वह काम है जो महिलाओं को एक साथ लाया. और यह आज भी उन्हें और उनकी जिंदगी की लाइफ लाइन है.

लक्ष्मी ने कहा, “मुझे आंगनवाड़ी शिक्षक की भूमिका की पेशकश की गई थी, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया. मेरे सभी रिश्तेदारों ने मुझसे इसे लेने के लिए कहा, लेकिन मैंने कहा कि मैं नहीं करूंगी क्योंकि मुझे इसमें मजा आ रहा है और मुझे इन लोगों के साथ रहना है. ”

राधा कूड़ा-कचरा को छांटने से छुट्टी लेती हैं.

वह हंसते हुए कहती हैं, “यह मज़ा वहां नहीं रहेगा.”

लक्ष्मी कचरे को कुशलता से अलग-अलग छांटने का काम करती हुए हंसती हैं और सिर हिलाती हैं. और उन्हें जो पैसा लॉटरी का मिला है उन सबके बीच सभी हंस रही हैं और मजाक करते हुए बहुत ही अच्छे से काम कर रही हैं.

दुनिया की नजर में हैं वो

कारें और आलीशान घर भले ही उनकी योजनाओं का हिस्सा न हों, लेकिन महिलाएं पत्रकारों के सवालों का जवाब देने में माहिर हो गई हैं. उन्होंने स्वास्थ्य निरीक्षक श्रीजी श्रीधरन को अपना अनुवादक नियुक्त किया है. वह देश और दुनिया के अन्य हिस्सों के पत्रकारों के लिए मलयालम से अंग्रेजी में स्विच करने वाली उनकी कचरा बीनने वाली-से-अमीर बनने की कहानी के कहानीकार हैं.

श्रीधरन ने अपने व्हाट्सएप पर स्क्रॉल करते हुए कहा, “एक जर्मन रिपोर्टर भी उनकी स्टोरी करना चाहता था. मैंने उन्हें मूल लॉटरी टिकट की एक तस्वीर भेजी. ”

छोटे से शहर परप्पनांगड़ी में हर कोई अब भाग्यशाली स्वच्छता कर्मचारियों के बारे में पूछताछ करने के लिए आने वाले “मीडिया के लोगों” का आदी हो गया है.

लक्ष्मी ने कहा, “हमें हर दिन बहुत सारी कॉल आ रही हैं. अभी हमारे पास इतना ही समय है. पत्रकारों के अलावा, एलआईसी और बैंकों के लोग भी हमें बुला रहे हैं. लोग हमें फोन करके पूछ रहे हैं कि क्या हम कार खरीदना चाहते हैं.”

19 अगस्त को, वे एक स्थानीय समाचार चैनल द्वारा आयोजित ओणम विशेष कार्यक्रम में भाग लेने में व्यस्त थे. पारंपरिक कसावु साड़ी, आर्टीफीशियल सोने की ज्वेलरी और बालों में फूल लगाए महिलाएं एक पुराने हेरिटेज हाउस में न्यूज एंकर के आसपास बैठी हैं. उनके ‘लॉटरी वाले’, जिन्होंने उन्हें टिकट खरीदने में मदद की थी, उन्होंने ही उनके लिए साड़ियां और ज्वेलरी भेजी थीं.

The lottery winners (in white) decked up in Kerala saris for an Onam programme | Tina Das | ThePrint
ओणम कार्यक्रम के लिए केरल की पारंपरिक साड़ियों में लॉटरी विजेता (सफ़ेद साड़ी में) | टीना दास | दिप्रिंट

वे कैमरे के एंगल और कहां देखना है, जो कैमरामैन जो बता रहा है उसे बहुत ध्यान से सुनती हैं. शॉट्स के बीच में, वे हेरिटेज होम की सीढ़ियों पर बैठती हैं और सेट पर होने वाली गतिविधियों को देख रही हैं.

बेबी ने शर्माते हुए कहती हैं, “मैं असली सोने के गहने खरीदना और पहनना चाहती हूं. हमें अपना कर्ज चुकाने और दूसरे खर्चों को पूरा करने के लिए सोने के गहने बेचने पड़े थे. ”

लेकिन अभी फिलहाल उनकी प्राथमिकता अपने घर को ठीक करना है.

नकली मुस्कान, उदासीन रवैया

महिलाएं परप्पनांगड़ी के किनारे एक दलदली जमीन पर बने एक मिली जुली जाति और भीड़भाड़ वाले इलाके में रहती हैं. इनमें से लगभग सभी 2018 की विनाशकारी केरल बाढ़ से प्रभावित हैं और मानसून की बारिश का खामियाजा भुगत रहे हैं. बारिश ने उनके घरों की नींव को हिला कर रख दिया है. दीवारों में दरारें पड़ गई हैं और बाढ़ के कारण उनके घर लगभग हमेशा सीलन से भरे रहते हैं. मरम्मत कार्य एक प्राथमिकता है, और उम्मीद है कि पेंट भी उनकी जरूरतों में से एक है.

लॉटरी की जीत और मीडिया में चर्चा के बाद से, उन्हें एक अलग तरह का अनुभव होने लगा है. वे हवा में आक्रोश की गंध महसूस कर सकते हैं. जातिगत पूर्वाग्रह जो हर दिन की बातचीत में कहीं दबा छुपा था अब प्रखरता से सामने आ रहा है.

श्रीधरन ने कहा, “पड़ोसियों को लगता है कि महिलाएं कचरा इकट्ठा करने और छांटने का ‘घृणित और अस्वास्थ्यकर’ काम करती हैं.”

लीला ने कहा, “ईर्ष्या और गंजेपन का कोई इलाज नहीं होता है.”

उनके घरों की मरम्मत और बेहतर फाइनेंशियल सिचुएशन के साथ, उनके रहन सहन और क्लास में भी बदलाव आया है. कुछ पड़ोसियों ने इसे स्वीकार कर लिया है, लेकिन कई लोग महिलाओं से नाराज़ दिखाई देते हैं. उन्हें महसूस हो रहा है कि उनका मिलना जुलना कम हो गया है उनकी मुस्कुराहट नकली है. उनके पास किसी पारिवारिक फंक्शन के निमंत्रण कम आ रहे हैं.

लॉटरी जीतने वाले 11 सफाई कर्मचारियों का कहना है कि वे नगर पालिका में अपना काम जारी रखेंगे। | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

 

श्रीधरन कहती हैं, “उनके बदले हुए भाग्य ने उन्हें नई जिंदगी दी है और उनके जीवन स्तर को सुधार दिया है जिसकी वजह से उनके पड़ोसी बदल गए हैं .”

महिलाएं अपने लिए आस-पास बढ़ती नाराजगी से भली-भांति परिचित हैं लेकिन वे इससे चिंतित नहीं हैं. लीला हंसते हुए कहती हैं, “ईर्ष्या और गंजेपन का कोई इलाज नहीं है.”


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सर्जरी, कर्ज़, शिक्षा

लॉटरी की जीत की ख़ुशी के पीछे कठिनाइयों का पहाड़ छिपा है जिसने अब तक उनके जीवन को परिभाषित किया है. वे कहती हैं कि 63 लाख रुपये एक ईश्वरीय उपहार है. इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने अतीत में इतने भारी भरकम कर्ज़ के नीचे डूब हुए थे कि उन्हें पता नहीं था कि ये कैसे चुका पाएंगे. लीला की चौथी बेटी का दो साल पहले रेलवे ट्रैक पर एक्सीडेंट हो गया था और उसे सर्जरी की जरूरत थी, जिसके लिए उसने 2.5 लाख का लोन लिया था. अब उसे अपनी बेटी के लिए फॉलो अप सर्जरी के लिए पैसे बचाने की जरूरत है.

शोभा की बेटी ने लगभग नौ महीने पहले आत्महत्या कर ली थी, और उसकी सारी उम्मीदें अपने बेटे पर टिकी हैं. वह अब लॉटरी के पैसे का उपयोग उसकी शादी के लिए और उसे पेशेवर रूप से स्थापित करने के लिए करना चाहती है.

बिंदु ने दो साल पहले अपने पति को खो दिया क्योंकि परिवार किडनी प्रत्यारोपण का खर्च उठाने में सक्षम नहीं था. उनके पति अक्सर उस बड़ी जीत की उम्मीद में अपने डायलिसिस के लिए कड़ी मेहनत से इकट्ठा किए गए पैसे से लॉटरी टिकट खरीदते थे. लॉटरी जीतना उसके लिए एक कड़वा अनुभव है.

वह अपनी किशोर बेटी को शिक्षित करने और अपने घर का निर्माण पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित है. उन पर घर का कर्ज है और पैसे भी हैं जो उन्होंने अपने पति के इलाज के लिए उधार लिए थे.

और पार्वती उस पैसे का उपयोग अपने परिवार का समर्थन करने के लिए करेगी. उनके पति बिस्तर पर हैं, और उनका छोटा बेटा सरकारी क्लर्क की परीक्षा की तैयारी कर रहा है. उनका बड़ा बेटा एक गैर-बैंकिंग वित्तीय निगम में संविदा कर्मचारी है, लेकिन उसे कोई निश्चित वेतन नहीं मिलता है.

चंद्रिका जो आंशिक लकवा और हाई ब्लड प्रेशर से जूझ रही हैं, अंततः बीमार होने पर एक दिन की मजदूरी खोने की चिंता किए बिना अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे सकती हैं.

लीला और लक्ष्मी अब सक्रिय रूप से परप्पनांगड़ी से लगभग 14 किमी दूर तेजी से विकसित हो रहे रमन्नाट्टुकारा में भूमि भूखंड की तलाश कर रहे हैं. लीला इलाके में रहती है लेकिन लक्ष्मी लगभग 40 किमी दूर वैलाथुर-तिरूर क्षेत्र में रहती है.

रमन्नाट्टुकारा ऊंची भूमि पर है, यह बाढ़ से सुरक्षित है और कोझिकोड को विकसित करने के लिए सरकार के मास्टर प्लान का हिस्सा है. हालांकि जिंदगी से अलग यह उनके बढ़ते क्लास का महत्वपूर्ण हिस्सा है.

लेकिन लक्ष्मी के लिए यह थोड़ा अलग है.

वह कहती हैं, “जब मैं अपने क्षेत्र में प्लॉट की तलाश में जाती हूं, तो वे मुझे पहचान लेते हैं और कीमत बढ़ा देते हैं.”

वह अपनी भतीजी की सिफारिश पर रमन्नाट्टुकारा की ओर मुड़ी. लक्ष्मी कहती हैं, “उसने कहा कि वहां जमीन का एक सस्ता प्लॉट है. मैं इस पर एक नजर डालने गई थी, लेकिन मैं इंतजार कर रही हूं कि निर्णय लेने से पहले मेरे भाई भी इसे एक बार देख लें.”

लॉटरी ने उन्हें थोड़ा सपना देखने का मौका दिया है.

लॉटरी चिंता लाई

परप्पनांगड़ी नगर निगम के सदस्यों के लिए, 11 महिलाएं गर्व और प्रतिष्ठा बन चुकी हैं. वे लॉटरी की जीत से उनके निगम पर आए राष्ट्रीय ध्यान का भी आनंद ले रहे हैं.

परप्पनांगड़ी नगर पालिका अध्यक्ष ए उस्मान ने कहा, “ये महिलाएं यहां काम करने वाली सबसे मेहनती टीमों में से एक हैं, और हमें खुशी है कि उन्होंने लॉटरी जीती. वे यहां काम करना जारी रखना चाहती हैं, और यह उनके समर्पण को दर्शाता है. ”

और अपने पड़ोसियों के विपरीत, उनके सहकर्मी महिलाओं के सौभाग्य का जश्न मनाकर खुश होते हैं. यहां तक कि उनकी सहयोगी गंगा भी, जो विजयी पूल से चूक गईं, उन्हें इस बात की कोई नाराजगी नहीं है. जब राधा पैसे इकट्ठा कर रही थी तो उसके पास अतिरिक्त 25 रुपये नहीं थे. अपने सहकर्मियों से उधार लेने का ख्याल उसके मन में नहीं आया क्योंकि उसे जीत की उम्मीद नहीं थी.

लीला ने कहा, “यहां बिल्कुल भी कोई तनाव नहीं है. पूरी टीम, हम सभी, परिवार की तरह हैं. ”

विजेताओं के विस्तृत परिवार के सदस्यों ने उनसे पैसे की मांग करते हुए संपर्क किया है. लेकिन कर्ज़ चुकाने, घर खरीदने या मरम्मत करने, और स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए पैसा अलग रखने के बाद, बहुत कुछ नहीं बचता है.

लीला ने कहा, “हमें यह भी बताया गया है कि छह महीने के बाद कुछ जीएसटी देना होगा, इसलिए हमें खाते में पैसे की जरूरत है.”

लेकिन उन्होंने नगर पालिका कार्यालय में सभी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए एक भव्य ओणम सद्या का आयोजन किया. उन्होंने दोस्तों और पड़ोसियों के लिए एक अलग दावत का भी आयोजन किया.

जो लोग उनसे उधार लेना चाहते हैं और जो उनसे ईर्ष्या करते हैं, वे सभी महिलाओं को केवल पैसों की थैली के रूप में देखते हैं. लेकिन लॉटरी चिंता भी लाती है.

लीला ने कहा, “उन्हें भी लॉटरी जीतनी चाहिए, तभी वे इसकी कठिनाई को समझेंगे.”

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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