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Friday, 3 May, 2024
होमएजुकेशन‘पक्षी पर सवार होकर भारत गए थे सावरकर’- कर्नाटक पाठ्यपुस्तक समिति ने इसे बताया साहित्यिक 'शृंगार'

‘पक्षी पर सवार होकर भारत गए थे सावरकर’- कर्नाटक पाठ्यपुस्तक समिति ने इसे बताया साहित्यिक ‘शृंगार’

कक्षा 8 के पाठ्यक्रम में शामिल किए गए एक अध्याय पर आपत्तियां जताई जा रही हैं जिसमें लिखा गया है कि सावरकर एक पक्षी के पंखों पर सवार होकर हर दिन अंडमान सेल से अपनी मातृभूमि का सफर करते थे.

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नई दिल्ली: 8वीं कक्षा की कन्नड़ भाषा पाठ्यपुस्तक से एक अध्याय को हटाकर उसकी जगह लेखक केटी गट्टी के ट्रैवलॉग के कुछ अंश शामिल कर दिए गए हैं जिसमें उनके अंडमान सेल जाने का वर्णन किया गया है, जहां सावरकर को रखा गया था. इसमें लिखा गया है कि सावरकर ने एक बुलबुल पक्षी के पंख पर बैठकर भारत के लिए उड़ान भरी थी.

अध्याय के हिस्सों के कन्नड़ से अनुवाद में कहा गया है, ‘सावरकर को उस अंधेरी कोठरी में रखा गया था, कमरे के अंदर पीछे की दीवार की तरफ, जहां से न तो आसमान दिखता था, न कोई रोशनी नजर आती थी. हालांकि, कहीं से कुछ बुलबुलें उड़कर सेल के अंदर आ रहीं थीं. उनके पंखों पर बैठकर सावरकर हर रोज अपनी मातृभूमि पर जाया करते थे.’

दि हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, बहुत से अध्यापकों ने इस पैराग्राफ पर ये कहकर आपत्ति जताई है कि इसका किताब में इस तरह उल्लेख किया गया है जैसे कि ये कोई ‘शाब्दिक तथ्य’ हो और सावरकर वास्तव में पक्षी के ऊपर बैठे थे.

कर्नाटक टेक्स्ट बुक रिवीजन कमेटी के अध्यक्ष रोहित चक्रतीर्थ ने कहा, ‘मैं सोचता हूं कि क्या हमारे बुद्धिजीवियों का बौद्धिक स्तर इतना नीचे गिर गया है. सावरकर, जो ये भी नहीं देख सकते थे कि उनके आसपास की दुनिया में क्या हो रहा है, वो एक पक्षी के पंखों पर बैठे थे और कहीं दूर स्थित अपनी मातृभूमि को छू रहे थे, जो एक तरह का साहित्यिक अलंकरण (डेकोरेशन) है. इसे उत्प्रेक्षालंकार कहा जा सकता है.

उनके जवाब में कहा गया, ‘किसी भी पारखी को पता होगा कि इस वाक्य का मतलब कि सावरकर एक पक्षी के पंखों पर बैठकर अपनी मातृभूमि जाया करते थे, ये नहीं है कि सावरकर स्वयं किसी पक्षी के पंखों पर बैठा करते थे. लेकिन, हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों को इस वाक्य में समस्या दिख गई है, इसका मतलब है कि उनकी समझ में कहीं कोई खामी है’.

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दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि लोगों को वाक्य की साहित्यिक व्याख्या को समझना चाहिए. उन्होंने पूछा, ‘लेखक ये कहने का प्रयास कर रहा है, कि सावरकर अपनी भावनाओं और अनुभूति के ज़रिए अपनी मातृभूमि पहुंच जाया करते थे. मुझे नजर नहीं आता कि इस तरह के एक हिस्से को जोड़कर हम उन्हें महिमामंडित कैसे कर रहे हैं’.

‘हमने सावरकर का महिमामंडन नहीं किया’

पिछले सप्ताह सोशल मीडिया कर्नाटक के संशोधित स्कूल पाठ्यक्रम की कन्नड़ पाठ्य पुस्तकों में, विनायक दामोदर सावरकर के कथित ‘महिमामंडन’ पर उठी बहस से भरा रहा है. कर्नाटक पाठ्यपुस्तक संशोधन समिति के अध्यक्ष रोहित चक्रतीर्थ ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने अपनी पाठ्यपुस्तकों में वीडी सावरकर को महिमामंडित नहीं किया है, लोग उन्हें शामिल किए जाने को लेकर इस मुद्दे पर अनावश्यक रूप से राजनीति कर रहे हैं’.

उन्होंने कहा कि कर्नाटक में पहले दिन से ही पाठ्यक्रम मुद्दे का राजनीतिकरण किया गया है क्योंकि अगले वर्ष राज्य में चुनाव होने जा रहे हैं. इससे पहले चक्रतीर्थ की अगुवाई में इसी कमेटी पर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और गौरी लंकेश जैसे प्रगतिशील लेखकों पर एक चैप्टर हटाने और आरएसएस विचारक केबी हेडगेवार पर एक हिस्सा जोड़ने का आरोप लगाया था.

सावरकर, जो सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और उसकी वैचारिक विंग आरएसएस के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, राज्य में पहले भी एक विवाद का विषय रह चुके हैं, जब शिवमोगा में उनके फ्लेक्स बैनर्स हटाने पर हिंसा हो गई थी.

उन्होंने आगे कहा, ‘पाठ्यपुस्तक कमेटी जो भी कर रही है, उसका पहले दिन से राजनीतिकरण किया गया है. कुछ वर्गों को हमारे खिलाफ उकसाया जा रहा है, उन लोगों की वजह से जिन्हें चुनावों के लिए एक एजेंडा चाहिए. वो पाठ्यक्रम के संशोधनों को एक राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं’.

उन्होंने ये भी कहा कि जो भी ये विवाद खड़ा कर रहा है वो वाक्य के अर्थ की की गलत व्याख्या करके ‘लोगों को गुमराह’ कर रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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