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Friday, 22 November, 2024
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ISRO के पूर्व अध्यक्ष के.कस्तूरीरंगन कैसे बने मोदी सरकार के शीर्ष शिक्षाविद

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की यह कहते हुए सराहना की गई कि यह 'शिक्षाविदों पर फोकस' करती है. दरअसल इसे बनाने के पीछे कस्तूरीरंगन का दिमाग रहा है. वह अब नए करिकुलम फ्रेमवर्क पैनल का नेतृत्व कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: ‘हालांकि मैंने कई अंतरिक्ष मिशन की देखरेख की है, लेकिन अपने सार्वजनिक जीवन में ‘सबसे बड़ी चुनौती’ का सामना कर रहा हूं’ के.कस्तूरीरंगन ने ये तब कहा था, जब मोदी सरकार ने उन्हें देश के लिए एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) तैयार करने का काम सौंपा था.

देश भर में शैक्षिक सुधारों के लिए एक रोडमैप बनाने में खास योगदान देने के अलावा, उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष, राज्यसभा सांसद और तत्कालीन योजना आयोग के सदस्य के रूप में अपने पूर्व कार्यकाल में गहरी छाप छोड़ी है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, कि इन तीन अनुभवों ने उनके समग्र ज्ञान को समृद्ध किया और ‘राष्ट्रीय विकास के लिए एक सही शिक्षा नीति तैयार करने की चुनौतियों’ को प्रभावी ढंग से समझने में उनकी मदद की.

शिक्षकों, उद्योग निकायों, वैज्ञानिकों और गांवों से लेकर जिला स्तर तक के प्रतिनिधियों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ तीन साल के विचार-विमर्श के बाद, नीति को आखिरकार जुलाई 2020 में सबके सामने लाया गया.

NEP 2020 का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली में कई तरह की क्रांति लाना है. कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (FYUP) जैसे बदलाव लाना, स्कूलों और कॉलेजों में कौशल-आधारित शिक्षा पर अधिक ध्यान देना और वोकेशनल और पाठ्यपुस्तक आधारित शिक्षा के बीच की अंतर को कम करना है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय के रूप में जाना जाता है) के साथ काम करने वाले सरकारी अधिकारियों ने बताया कि कस्तूरीरंगन को उनकी शैक्षणिक योग्यता और विभिन्न नॉलेज कमीशन के साथ जुड़ाव के कारण चुना गया था. ये सभी अधिकारी 2017 से पैनल की शुरुआत के समय से उसके साथ जुड़े हुए थे.

दिप्रिंट ने जिन भी अधिकारियों से बात की थी, उन सभी ने कहा कि पैनल के साथ कस्तूरीरंगन का काम ‘उम्मीदों से कहीं ज्यादा’ था.

82 साल के पूर्व अंतरिक्ष वैज्ञानिक और पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित कस्तूरीरंगन अब नरेंद्र मोदी सरकार के मुख्य शिक्षाविद हैं. मौजूदा समय में वह नए नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) पर काम कर रहे पैनल का नेतृत्व कर रहे हैं. यह पैनल देश भर के स्कूलों के पाठ्यक्रम को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.


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‘गैर-राजनीतिक और शिक्षाविदों पर फोकस’

केंद्र सरकार ने कस्तूरीरंगन को 2017 में नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने वाली नौ सदस्यीय समिति की बागडोर सौंपी थी. इससे पहले 2015 में पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रमण्यन के नेतृत्व में भी एक कमेटी बनाई गई थी, लेकिन इसकी सिफारिशें पर काम नहीं हो पाया था.

एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘वह एक एजुकेशन पैनल का नेतृत्व करने के लिए बिलकुल सही व्यक्ति थे. हम पैनल की बागडोर किसी ऐसे शख्स के हाथ में चाहते थे जो तटस्थ हो, गैर-विवादास्पद और गैर-राजनीतिक हो. साथ ही उनका पूरा फोकस शिक्षाविदों पर हो.’

अधिकारियों का कहना है कि कस्तूरीरंगन ने इनमें से किसी भी मोर्चे पर निराश नहीं किया.

उनके साथ काम करने वाले मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘ उन्होंने बड़े पैमाने पर एक गैर-विवादास्पद शिक्षा नीति दी है. शिक्षा के लिए मातृभाषा के इस्तेमाल को लेकर हुई अगर कुछ आलोचनाओं को छोड़ दें तो नीति की सभी ने सराहना की है.’

शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा है कि शिक्षा नीति को लेकर किसी भी तरह का असमंजस होने पर उन्हें मोटे दस्तावेजों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं होती है. उनके मुताबिक, कस्तूरीरंगन शिक्षा का एक ‘इनसाइक्लोपीडिया’ है और जब भी पॉलिसी के किसी भी हिस्से के बारे में कोई सवाल उठता है तो वे उनके पास चले जाते हैं.

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया ‘शिक्षा से संबंधित मामलों पर उनके पास जिस तरह का ज्ञान है, वह काफी विशाल है – चाहे वह स्कूली शिक्षा हो, उच्च शिक्षा हो या तकनीकी शिक्षा. हम नीति के कार्यान्वयन के लिए भी नियमित आधार पर उनसे सलाह लेते रहते हैं.’

आई.के. गुजराल से लेकर मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी तक कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने के बाद भी कस्तूरीरंगन ‘राजनीति से दूर रहने’ वाली एक शख्सियत बने रहे हैं.

लगभग 35 सालों तक वह इसरो से जुड़े रहे. 1994 से 2003 तक संस्थान का नेतृत्व करने के बाद कस्तूरीरंगन ने 2003 से 2009 तक राज्यसभा सांसद के रूप में कार्य किया और साथ ही साथ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी के निदेशक की जिम्मेदारी भी संभाली.

पूर्व की यूपीए सरकार में वह 2009-20014 तक योजना आयोग के सदस्य थे. उन्होंने 2008 में कर्नाटक नॉलेज कमिशन का भी नेतृत्व किया था.

वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रुड़की और मद्रास, भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) , बेंगलुरु जैसे विभिन्न संस्थानों के साथ बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य के रूप में जुड़े रहे हैं. 2012 में उन्हें विशेष तौर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) का चांसलर नियुक्त किया गया था.

इतने पदों पर रहने के बाद भी कस्तूरीरंगन ने दिप्रिंट को बताया था कि वे अब तक का अपना सबसे चुनौती पूर्ण काम यानी एनईपी तैयार कर रहे हैं. उन्होंने कहा था, ‘ यह अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर मैं कहूं कि इस देश के लिए एक शैक्षिक नीति तैयार करने की दिशा में काम करना उनके सार्वजनिक जीवन में अब तक की सबसे बड़ी चुनौती रही है.’


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अंतरिक्ष वैज्ञानिक से लेकर शीर्ष शिक्षाविद तक

जो लोग कस्तूरीरंगन को लंबे समय से जानते हैं, उनके लिए कस्तूरीरंगन का भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संचालन से लेकर सरकार के शीर्ष शिक्षाविद बनने तक का उनका सफर कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.

इसरो के पूर्व वैज्ञानिक मुकुंद राव ने कहा कि कस्तूरीरंगन के वैज्ञानिक स्वभाव और नॉलेज के अलावा, किसी के साथ संवाद – एक दार्शनिक से, एक बच्चे से, एक राजनेता या एक साथी वैज्ञानिक से- करने की उनकी क्षमता की वजह से लगातार आगे बढ़ते रहने का उनका ये सफर ‘स्वाभाविक प्रगति’ की तरह लगता है.

राव ने कस्तूरीरंगन के सान्निध्य में रहते हुए अपनी पीएचडी पूरी की और उन्हें पिछले 35 सालों से एक मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में माना है.

उन्होंने कहा, ‘मैंने उन्हें बहुत सी सफलताओं को संभालते हुए देखा है, लेकिन उनके सामने असफलताएं भी आई, जिसे उन्होंने उसी तरह से संभाला था. वह अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सक्षम है.’

राव के लिए एक वह पल काफी डरावना था, जब एक उपग्रह प्रक्षेपण से ठीक पहले आग का पता चला.

उन्होंने कहा, ‘ वैसे तो ऐसे कई उदाहरण हैं जहां (कस्तूरीरंगन) उन्होंने अपने नेतृत्व गुणों को दिखाया था. लेकिन एक जीएसएलवी उपग्रह प्रक्षेपण के समय की एक खास घटना मुझे याद है. सब कुछ तैयार था, प्रक्षेपण यान प्रक्षेपण के लिए तैयार था. उससे कुछ ही मिलीसेकंड पहले एक आग का पता चला था और प्रक्षेपण को रोकना पड़ा.’

कस्तूरीरंगन ने इस संकट को सहजता से संभाला. राव ने बताया, ‘वह घबराए या चिंतित नहीं हुए. उन्होंने शांति बनाए रखी और टीम के साथ मिलकर समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की. और कुछ दिनों में टीम फिर से लॉन्च के लिए तैयार थी और तब यह प्रयास सफल रहा.’

इसरो के साथ कस्तूरीरंगन की कई सफलताएं जुड़ी हुई है. जिन वैज्ञानिकों को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले डॉ विक्रम साराभाई के साथ काम करने का अवसर मिला था, वह उनमें से एक हैं, जो अभी भी लगातार काम कर रहे हैं.

इसरो के साथ काम करते हुए उन्होंने नई पीढ़ी के अंतरिक्ष यान, इंडियन नेशनल सैटेलाइट (INSAT-2), इंडियन रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट (IRS-1A& 1B) और साइंटिफिक सैटेलाइट को तैयार करने से संबंधित गतिविधियों का निरीक्षण किया है.

वह भारत के पहले दो एक्सपेरिमेंटल अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट, भास्कर- I और II के परियोजना निदेशक भी थे. इसके साथ-साथ उन्होंने सबसे पहले ऑपरेशनल इंडियन रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट, IRS-1A के पूरे काम की जिम्मेदारी भी संभाली हुई थी.

एक अन्य पूर्व इसरो वैज्ञानिक श्रीधर मूर्ति, जिन्होंने उस समय वैज्ञानिक सचिव के रूप में काम किया था, जब कस्तूरीरंगन अध्यक्ष थे, ने कहा कि वह एक ‘बहुआयामी व्यक्तित्व’ हैं. उन्होंने चंद्रयान लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोगरेशन शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उसके अलावा वैज्ञानिक समुदाय और राजनीतिक नेतृत्व के साथ बातचीत को सुविधाजनक बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

रिपोर्टों के अनुसार, यह 1999 में कस्तूरीरंगन का एक भाषण था जिसने राजनीतिक प्रतिष्ठान को भारतीय चंद्र के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया था. पहला चंद्रयान मिशन 2008 में चांद पर गया था.

मूर्ति ने कहा, ‘एक नेता के रूप में वह असाधारण रहे हैं. उनका तकनीकी दृष्टिकोण और विभिन्न स्तरों के लोगों से निपटने की उनकी क्षमता उल्लेखनीय है.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या )

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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