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Thursday, 25 April, 2024
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VC की नियुक्ति पर SC का फैसला राज्यों के कानून बनाने के अधिकार में दखल है- केरल कानून मंत्री पी. राजीव

दिप्रिंट के साथ बात करते हुए राजीव ने कहा कि केरल सरकार यूजीसी मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए कुलपति की नियुक्तियों को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती देगी, इसके लिए वे अन्य राज्यों से समर्थन जुटाने की कोशिश भी कर रहे हैं.

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तिरुवनंतपुरम: केरल में सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार में कानून मंत्री पी. राजीव ने दिप्रिंट को बताया कि उनकी सरकार अन्य राज्यों के राजनीतिक दलों के साथ संपर्क में है, ताकि उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के 21 अक्टूबर के उस फैसले के मुद्दे पर एक साथ लाया जा सके जिसके तहत शीर्ष अदालत ने कहा है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए.

मंत्री पी राजीव ने दिप्रिंट को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा कि पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली केरल सरकार ने यूजीसी मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए कुलपति की नियुक्तियों को रद्द करने के अदालती आदेशों को कानूनी रूप से चुनौती देने का भी फैसला किया है.

राजीव सुप्रीम कोर्ट द्वारा अक्टूबर में सुनाये गए उस फैसले का जिक्र कर रहे थे, जिसमें इसने तिरुवनंतपुरम के एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर (कुलपति) एम.एस. राजश्री की नियुक्ति को रद्द कर दिया था. अदालत ने 21 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा था कि इस नियुक्ति में कुलपतियों की नियुक्ति से संबंधित यूजीसी के नियमों का उल्लंघन किया गया है.

राजीव ने कहा कि यूजीसी के दिशानिर्देश संसद के सबोर्डिनेट लेजिस्लेशन (संसद के एक अधिनियम द्वारा प्रदत्त शक्ति के अधिकार के तहत बनाया गया कानून) हैं और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि केंद्र सरकार किसी भी राज्य द्वारा किसी ऐसे विषय पर पारित किसी भी कानून को रद्द कर सकती है जो समवर्ती सूची में है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले के निहितार्थ केवल शिक्षा तक ही सीमित नहीं हैं. यूजीसी के दिशानिर्देश ‘सबोर्डिनेट लेजिस्लेशन’ हैं. इसे केवल संसद में पेश भर किया जाता है और यदि संसद इसमें कोई संशोधन नहीं करती है तो इसे पारित माना जाता है.’

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राजीव का तर्क है कि यह फैसला केंद्र-राज्य संबंधों और समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने के राज्यों के अधिकारों के संबंध में कई बड़े सवाल उठाता है.

राजीव ने कहा, ‘यह बेहद गंभीर मसला है. हम अन्य राज्य सरकारों के साथ इस पर चर्चा कर रहे हैं और उनका समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं.’

राज्यसभा की ‘प्रैक्टिस एन्ड प्रोसीजर सीरीज’ के अनुसार अधीनस्थ विधायन (सबोर्डिनेट लेजिस्लेशन) किसी भी विधायिका के इतर किसी अन्य प्राधिकार द्वारा बनाया गया कानून है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, राजीव ने बताया कि 21 अक्टूबर के फैसले से पहले कानूनी स्थिति अलग थी.

राजीव ने कहा, ‘साल 2015 के कल्याणी मथिवानन मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि यूजीसी के दिशानिर्देश केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए अनिवार्य हैं और राज्य के विश्वविद्यालयों के लिए निर्देशात्मक हैं. इसका मतलब यह है कि अगर राज्य अधिनियम और यूजीसी के नियम में कोई विरोधाभास हैं, तो राज्य का अधिनियम ही अधिक महत्वपूर्ण होता है. ‘

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर के फैसले ने इस स्थिति को बदल दिया है. साथ ही उन्होंने कहा कि अब यह स्पष्ट करना सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर है कि यह कानून पूर्वव्यापी रूप से (रेट्रोस्पेक्टिवली) लागू होता है या नहीं.

राजीव ने कहा, ‘चांसलर (कुलाधिपति) को यह तय करने का अधिकार नहीं है.’

वह केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के द्वारा दिए गए उस निर्देश का जिक्र कर रहे थे, जिसमें एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर नौ अन्य राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को इस्तीफा देने के लिए कहा गया था.

इस आदेश का अनुपालन करने के बजाय, कुलपति इस मामले को अदालत में ले गए हैं, जहां फ़िलहाल इसकी सुनवाई हो रही है.

राजीव की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब पिनाराई विजयन सरकार ने सिफारिश की है कि राज्यपाल 5 से 15 दिसंबर तक विधानसभा सत्र बुलाएं. इस कदम से इस तरह की अटकलें तेज हो गई हैं कि राज्य सरकार राज्यपाल को राज्य के कुलाधिपति के रूप में प्राप्त उनकी शक्तियों से वंचित करने के लिए एक विधेयक पारित कर सकती है.


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‘पूर्वव्यापी रूप से लागू किये जाने पर 100 से अधिक कुलपतियों को हटाना होगा’

एक तरफ जहां राज्य में कुलपतियों की नियुक्तियों पर बहस जारी है, वहीं केरल उच्च न्यायालय ने केरल यूनिवर्सिटी ऑफफिशरीज एंड ओशन स्टडीज के कुलपति के रूप में के. रिजी जॉन की नियुक्ति को भी रद्द कर दिया है.

जॉन उन कुलपतियों में से एक थे जिन्हें खान ने इस्तीफा देने का आदेश दिया था.

राजीव ने दिप्रिंट को बताया कि यह फैसला ‘कानून बनाने के राज्य के अधिकार’ पर अतिक्रमण करता है.

राजीव ने कहा, ‘हम इसे बदलवाने की कोशिश कर रहे हैं. उप-कुलपति अपनी तरफ से एक समीक्षा याचिका दायर कर रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार के भी इस मामले में एक पक्ष होने की संभावना है क्योंकि इसके अन्य निहितार्थ हैं जो राज्य के कानून बनाने के अधिकार का अतिक्रमण करते हैं. ‘

उन्होंने कहा कि राज्यपाल एक संवैधानिक प्राधिकार हैं और चांसलर का पद एक वैधानिक प्राधिकरण है. उन्होंने कहा, ‘विधायी प्राधिकरण को यह तय करने का अधिकार है कि वर्तमान आवश्यकताओं के आधार पर चांसलर कौन बनता है.‘ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि राज्य अधिनियम के अनुसार, कुलाधिपति कुलपति को केवल दो आधारों – वित्तीय गबन और दुराचार – पर हटा सकते हैं.

उन्होंने कहा, ‘पर उसके लिए भी एक न्यायिक अधिकारी के अधीन एक आयोग के गठन की आवश्यकता होती है, जिसकी सिफारिश के आधार पर ही चांसलर को कोई भी कार्रवाई करनी होती है. किसी अन्य कारण से उन्हें हटाने का कोई प्रावधान नहीं है.’

अगर सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर के फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू किया गया, तो पूरे भारत में 100 से अधिक कुलपति अपने पद से हाथ धो बैठेंगें.

राजीव ने दिप्रिंट को बताया, ‘यदि यही स्थिति रहती है तो 100 से अधिक वी-सी हटा दिए जाने चाहिए. राजस्थान में, (वी-सी की नियुक्ति के लिए) सर्च कमेटी में राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व होता है. यूजीसी के नियमों में इसका कोई प्रावधान नहीं है. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में, सरकार एक सर्च कमिटी का गठन करती है जो कुछ नाम सरकार को सौंपती है, जो फिर उनमे से एक नाम की सिफारिश चांसलर को करती है.’

उन्होंने कहा, ‘गुजरात में, राज्य सरकार हो वी-सी नियुक्त करती है न कि चांसलर और यह संशोधन तब लागू हुआ था जब नरेंद्र मोदी उस राज्य के मुख्यमंत्री थे. सर्च कमेटी में राज्य सरकार के प्रतिनिधित्व का प्रावधान पश्चिम बंगाल में भी है. अगर अदालत एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के वी-सी की नियुक्तियों को शुरू से ही रद्द मानती है, तो इन सभी नियुक्तियों पर सवाल उठाया जाएगा.’


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‘राज्यपाल की नियुक्ति निचले स्तर से से होनी चाहिए न कि ऊपर से नीचे’

मंगलवार को, तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और महाराष्ट्र की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जैसे कई दल सत्तारूढ़ एलडीएफ द्वारा केरल के राजभवन के सामने किये गए शक्ति प्रदर्शन में शामिल हुए. ये पार्टियां राज्यपाल के कार्यालय को समाप्त करने की मांग कर रही थीं.

राजीव ने स्पष्ट किया कि फिलहाल उस मोर्चे पर कोई औपचारिक हलचल नहीं हुई है. हालांकि, उन्होंने कहा कि संविधान सभा में राज्यपाल की नियुक्ति और भूमिका पर विस्तार से चर्चा की गई थी. राजीव ने बताया, ‘राज्यपालों के निर्वाचित होने के बारे में मांग की गई थी, और डॉक्टर अंबेडकर ने आश्चर्य व्यक्य किया था कि क्या कोई ऐसे पद के लिए चुनाव लड़ेगा जिसके पास कोई विवेकाधीन शक्तियां ही नहीं हैं?’

राजीव ने कहा, ‘शमशेर सिंह के मामले में यह हमेशा के लिए यह तय हो गया था कि ‘राज्यपाल की संतुष्टि’ का अर्थ मंत्रिपरिषद की संतुष्टि है न कि (राज्यपाल की) व्यक्तिगत संतुष्टि. लेकिन (राजयपाल की) नियुक्ति के तरीके के बारे में भी कई सिफारिशें हैं. आदर्श रूप से, यह एक ऐसे पैनल के जरिए होना चाहिए जिसे राज्य केंद्र को भेजते हैं न कि टॉप-डाउन अपॉइंटमेंट (ऊपर से नीचे थोपी गई नियुक्ति) के जरिए, जैसा कि वर्तमान में होता है.’

शमशेर सिंह मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ‘संविधान द्वारा आवश्यक संतुष्टि (का अर्थ) राष्ट्रपति या राज्यपाल की व्यक्तिगत संतुष्टि नहीं है, बल्कि कैबिनेट प्रणाली वाली सरकार के तहत संवैधानिक अर्थ में राष्ट्रपति या राज्यपाल की संतुष्टि है.’

(अनुवाद: रामलाल खन्ना )

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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