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Thursday, 10 October, 2024
होममत-विमतबाली में शी के प्रति मोदी के दोस्ताना रुख से धोखा न खाइए, हम चीन से धोखा नहीं खाएंगे

बाली में शी के प्रति मोदी के दोस्ताना रुख से धोखा न खाइए, हम चीन से धोखा नहीं खाएंगे

गलवान नदी में काफी धोखा बहा और ऐसी स्थिति बनी कि भारत प्रगति का दावा करता है, जबकि असलियत में उसे अपनी लंबे समय की सीमा से पीछे रोक दिया गया है.

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हाल ही में पुनर्निवाचित चीन के सुप्रीमो शी जिनपिंग से बाली में हाथ मिलाने के लिए प्रधानमंत्री अपनी सीट से उठे, तो उसे दोस्ताना रुख समझा जा सकता है, लेकिन धरातल पर चीन की ओर से ऐसा कोई दिखावा नहीं हुआ. अप्रैल 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार एकतरफा कार्रवाई के बाद से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) लगातार अपने कड़े रुख का संकेत दे रही है. ऐसे रुख की भारतीय सेना लंबे समय से आदी हो गई है. इसलिए बाली में हाथ मिलाना जमीनी हकीकतों से मेल नहीं खाता, और इससे चीन का रुख शायद बदलने वाला नहीं.

हाथ मिलाना स्क्रिप्ट में नहीं था और उसको लेकर कई सारी अटकलें और टिप्पणियां हो सकती हैं. लेकिन यह साफ है कि चीन की नीति ऐसे प्रतीकोंं से प्रभावित नहीं होगी. थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि चीन के बारे में राय सिर्फ उसके कार्यों से बनाई जानी चाहिए, न कि उसके बोले गए किसी भी मित्रवत शब्दों से. उन्होंने चीन पर एलएसी पर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के उसके आक्रामक अभियान पर भी विस्तार से बात की. जनरल पांडे ने स्पष्ट किया कि दो एशियाई पड़ोसियों के बीच तनाव में ‘कोई खास कमी नहीं’ आई है. यही चीन का पूर्व या पश्चिम में जाना-पहचाना फौजी रवैया है.

सेना प्रमुख बतौर इंजीनियर चीन की तरफ बुनियादी ढांचे के नाटकीय विकास के दीर्घकालिक प्रभावों से अच्छी तरह वाकिफ हैं. कुछ इंस्टॉलेशन में सिर्फ चालू या फौरी नहीं, बल्कि हमेशा के लिए संदेश छुपा होता है. और बतौर सैनिक, उन्होंने पीएलए की तैनाती और उसके राजनीतिक-सैन्य उद्देश्यों की सराहना की होगी. चीन का मौजूदा रवैया उन डाक्ट्रिन के माफिक है जो उसके ऊपरी सैन्य हलकों की सोच में मुख्य हो गया है. बीजिंग के सैन्य योजनाकारों की अधिकांश डाक्ट्रिन की तरह, यह पूरी तरह से चीन का नहीं है, बल्कि पूर्वी और पश्चिमी सोच का चतुर मिश्रण है.


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चीनी खेल को समझने अभी बाकी

सैन्य रणनीति के रूप में छलावा का जिक्र सदियों पुराने चीनी ग्रंथों में है. उपलब्ध नई टेक्नोलॉजी और चीन की राज्य-व्यवस्था में निहित भारी क्रूरता के मद्देनजर, अब खंडन और चीजों को तोड़-मरोड़कर पेश करने का अभियान भी पूरे जोरों पर है. बेशक, दुष्प्रचार का मकसद कहो कुछ, करो उलटा होता है, जो मौजूदा फ्रेम में एकदम फिट बैठता है.

चीन और भारत के नेताओं के बीच दर्जन से अधिक बैठकों से भी नई दिल्ली को यह भनक नहीं लगी कि अप्रैल 2020 में एलएसी के पार वार्षिक ग्रीष्मकालीन सैन्य अभ्यास के दौरान दोनों तरफ से खाली इलाका उसके बाकायदा कब्जे में आ जाएगा.

गौरतलब है कि मिलिट्री ऑपरेशंस अदर दैन वॉर (एमओओटीडब्लू) एक सौम्य अवधारणा थी, जिसे पहली बार अमेरिका ने पेश किया था. एमओओटीडब्लू के तहत खोज, बचाव, और एंटी-पायरेसी से लेकर ड्रग तस्करी के खिलाफ अभियानों से उसके पक्ष में अच्छी कहानियां बनीं. लेकिन अब चीन इसे दूसरे दायरे में भी ले गया है. पीएलए की अकादमी ऑफ मिलिट्री साइंस की प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस ऑफ मिलिट्री स्ट्रैटेजी के 2013 के संस्करण में सेना के लिए तीन आम रणनीतिक कार्यों का जिक्र है: युद्ध की गतिविधि, प्रतिरोध की गतिविधि और युद्ध के अलावा सैन्य अभियान. इसलिए जब एमओओटीडब्लू के साथ छल-धोखे को जोड़ दिया जाए तो उसका दायरा मौजूदा कब्जे वाले क्षेत्रों तक बढ़ाया जा सकता है.

हाल ही में ताइवान की नौसेना का एक पोत चीनी डिस्ट्रायर जहाज के साथ भिड़ंत हुई और दोनों के बीच बड़ा दिलचस्प रेडियो टेलीफोनी एक्सचेंज हुआ. चीनी जहाज ने ताइवान की किसी भी तरह की समुद्री सीमा के अस्तित्व से इनकार कर दिया. यह बातचीत बगल के समुद्र में एक वाणिज्यिक पोत के जरिए लीक हो गई, वरना इसे कोई जान नहीं पाता. मोटे तौर पर चीनी पोत की दलील उससे बहुत अलग नहीं थी, जिसका प्रदर्शन पूर्वी लद्दाख में किया गया. यानी खंडन या इनकार अब मुख्य नीति का हिस्सा है, और निकट भविष्य इसके कायम रहने की संभावना है.

बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के साथ, घबराहट में चीन हर तरह की आशंका-संभावना की तैयार कर रहा है. तैयारियों की एक सटीक मिसाल यह है कि हाल ही में 20वीं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस की रिपोर्ट में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के जिक्र में असाधारण वृद्धि हुई, जिससे मानसिक बनावट और अपने लोगों को बड़ा संदेश देने की कोशिश का अंदाजा लगता है. जैसा कि एक जानकार ने लिखा, ‘20वीं पार्टी कांग्रेस की रिपोर्ट में, उनकी ‘व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा’ का एक अलग अध्याय है, और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का जिक्र पिछली 2017 की रिपोर्ट के मुकाबले 60 प्रतिशत अधिक है.’ निंदनीय सैन्य सिद्धांतों के आक्रामक इस्तेमाल के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा पर बढ़ा हुआ राजनीतिक जोर विस्फोटक माहौल तैयार करता है.
हालांकि, यह विस्फोट बिना धमाके के है, शायद, मकसद यह है कि दूसरे उपायों से लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं. गलवान नदी में ऐसा काफी धोखा बह चुका है, ताकि ऐसी स्थिति बनाई जा सके, जिसमें भारत प्रगति का दावा करता है, जबकि असलियत में उसे उसकी लंबे समय से तय सीमा से काफी पीछे रोक दिया गया है. सैन्य नुकसान से आजीविका का नुकसान भी होता है. यह एमओओटीडब्लू में धोखे और दुष्प्रचार को जोडऩे की बेहतरीन मिसाल है, लेकिन विडंबना यह है कि भारत कुछ और ही समझ रहा है.

मानवेंद्र सिंह कांग्रेस नेता, डिफेंस ऐंड सेक्युरिटी अलर्ट के एडिटर-इन-चीफ और राजस्थान में सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के अध्यक्ष हैं. उनका ट्विटर हैंडल @ManvendraJasol है. व्यक्त विचार निजी हैं.

(अनुवाद- हरिमोहन)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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