नई दिल्ली: इंजीनियरिंग जैसे गूढ़ विषयों की जानकारी, सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों की समझ या फिर प्रबंधन सिद्धांतों को जानने वाले ग्रेजुएट छात्रों का चयन करना अब उनके लिए काफी नहीं है. उनका फोकस समाज, अर्थशास्त्र, राजनीति, इतिहास आदि की गहरी समझ के साथ ‘उत्कृष्ट पेशेवर’ तैयार करने पर भी है. पूरे भारत में शीर्ष के तकनीकी और पेशेवर संस्थान के इन विषयों के प्रति बढ़ते रुझान को देखते हुए लगता हैं कि उनके बीच मानविकी विषयों को पढ़ाने को लेकर आम सहमति बढ़ती जा रही है.
पिछले कुछ सालों से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (IIIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) ‘ह्युमैनिटी और लिबरल आर्ट’ को बड़े पैमाने पर आगे लेकर आ रहे हैं. अब चाहे वह नए डिग्री प्रोग्राम को पेश करना हो या इलेक्टिव कोर्स की सीमा का विस्तार करना या फिर ट्रांस डिसिप्लिनरी पहल शुरू करना हो.
उदाहरण के लिए इस महीने आईआईटी-जोधपुर ने अपने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन आर्ट्स एंड डिजिटल इमरसन का उद्घाटन किया था. इसमें कथित तौर पर ‘आर्ट एंड डिजिटल तकनीक के इंटरसेक्शन के बारे में पढ़ाया जाएगा.’ वहीं इस साल की शुरुआत में IIT-गुवाहाटी ने लिबरल आर्ट में मास्टर कार्यक्रम शुरू किया. उधर, IIT-मद्रास भी 2023 से अर्थशास्त्र, अंग्रेजी और डवलपमेंट स्टडीज में मास्टर डिग्री लेकर आ रहा है. IIM-बैंगलोर ने भी अगले साल से लिबरल आर्ट में चार साल के स्नातक कार्यक्रम की पेशकश करने की योजना बना हुई है.
दिप्रिंट से बात करने वाले विशेषज्ञों ने कहा कि मल्टी-डिसिप्लिनरी एजुकेशन के लिए छात्रों और उद्योग की ओर से बढ़ती मांग के चलते बेहतर जानकारी रखने वाले पेशेवरों की मांग ने इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है.
उधर, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 भी इन विषयों को बढ़ावा दे रही है. नई शिक्षा नीति में युवाओं की रोजगार क्षमता को बढ़ाने के मकसद से अन्य विषयों के साथ गहराई से जुड़ने के लिए तकनीकी प्रशिक्षण को जोड़ने की बात कही गई है.
हालांकि, IIT अपनी स्थापना के बाद से अर्थशास्त्र, दर्शन और अंग्रेजी जैसे पाठ्यक्रम चला रहे हैं. लेकिन अब इसने इस दिशा में अपने पैर और बढ़ा लिए हैं. IIIT और IIM फिलहाल इन कोर्सेज के लिए बिल्कुल नए हैं. ये संस्थान अपने बोर्ड में उच्च रैंकिंग वाले नेशनल और इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से डिग्री प्राप्त कर चुके प्रोफेसरों की भर्ती पर ध्यान दे रहे हैं.
मौजूदा समय में दिल्ली के इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IIIT) में दर्शनशास्त्र पढ़ा रहे निषाद पटनायक ने बताया, ‘आईआईटी में हमेशा से मानविकी पढ़ाई जा रही है. उनके पास फिलॉसफी और सोशियोलॉजी के कुछ बेहतरीन विभाग हैं. लेकिन अब आईआईआईटी और अन्य संस्थान भी अपने पाठ्यक्रम में सामाजिक विज्ञान और मानविकी को प्रमुख रूप से शामिल कर रहे हैं.’ निषाद ने न्यूयॉर्क के न्यू स्कूल फॉर सोशल रिसर्च से पीएचडी की हुई है.
यह भी पढ़ें: मोदी सरकार की PMJAY स्वास्थ्य योजना का इस्तेमाल करने वालों में दक्षिणी राज्य सबसे आगे, तमिलनाडु अव्वल
‘लाइफ स्किल्स और मल्टीडिसीप्लिनरी दक्षता’
आईआईटी-जोधपुर के स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स के प्रमुख फरहत नाज के अनुसार, अगर तकनीकी पाठ्यक्रम छात्रों को जरूरी डोमेन नॉलेज मुहैया कराते हैं, तो मानविकी पाठ्यक्रम उन्हें एक ग्लोबल सिटीजन बनाने में मदद करेगा. संस्थान ने इस साल कम्प्यूटेशनल सोशल साइंस में मास्टर कार्यक्रम शुरू किया है.
नाज़ ने दिप्रिंट को बताया, ‘मानविकी पाठ्यक्रम न सिर्फ छात्रों को लाइफ स्किल सिखाते हैं, बल्कि उन्हें ह्यूमन सेल्फ हुड, लिटरेचर एंड कल्चर, नागरिकता, अधिकार और राजनीति के बारे में अपने पाठ्यक्रम से परे सोचने के लिए भी प्रेरित करते हैं.’
आईआईटी रुड़की का सामाजिक विज्ञान और मानविकी विभाग मुख्य रूप से स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों को वैकल्पिक और मुख्य पाठ्यक्रम प्रदान कर रहा है. संस्थान ने 2016 से अर्थशास्त्र में दो वर्षीय मास्टर कार्यक्रम शुरू कर दिया था. इस पाठ्यक्रम में फायनेंशियल इकोनॉमिक, पब्लिक पॉलिसी और डवलपमेंट इकोनॉमिक्स पर खासा ध्यान दिया जाता है.
2021 में संस्थान ने इकोनॉमिक्स में पांच साल का बीएस-एमएस कोर्स भी शुरू किया था. इसमें स्नातक की डिग्री के लिए चार साल का एग्जिट ऑप्शन भी दिया गया है. डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमैनिटी एंड सोशल साइंस के प्रमुख अनिंद्य जयंत मिश्रा ने कहा, ‘कार्यक्रम का लक्ष्य एप्लाइड इकोनॉमिक एनालाइज (थ्योरी एंड प्रैक्टिस), निर्णय लेने की क्षमता और इंटर- और मल्टीडिसीप्लिनरी दक्षताओं – गणित, कंप्यूटिंग, उद्यमशीलता और प्रबंधकीय में सक्षम उत्कृष्ट पेशेवरों को तैयार करना है.’
मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के प्रमुख ज्योतिर्मय त्रिपाठी ने कहा कि आईआईटी-मद्रास पहले से ही इंग्लिश और डेवलपमेंट स्टडीज में मास्टर डिग्री दे रहा है. अब 2023-24 शैक्षणिक वर्ष से अर्थशास्त्र में एमए भी की जा सकेगी.
इसके साथ सभी IIT संस्थान पहले से ही ह्युमैनिटी में वैकल्पिक पाठ्यक्रम उपलब्ध करा रहे हैं, जिसके लिए छात्रों को अकैडमिक क्रेडिट मिलता है. आमतौर पर IIT में अंडर ग्रेजुएट स्टूडेंट को एक साल में ह्युमैनिटी के विषयों- मानव विज्ञान, समाजशास्त्र, भाषा विज्ञान, साहित्य, इतिहास, राजनीति, दर्शन, अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीति जैसे विषयों से तीन को इलेक्टिव के तौर पर चुनना होता है.
‘तकनीक और सामाजिक मुद्दों को एक-साथ पढ़ने की जरूरत’
जहां IIT पहले से इन विषयों को पढ़ा रहा हैं, वहीं IIIT के लिए सोशल साइंस और ह्युमैनिटी में डिग्री प्रोग्राम की पेशकश करना एक नया कदम है.
उदाहरण के लिए, इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी-दिल्ली ने 2017 में ‘बेहतरीन इंजीनियरों’ तैयार करने के उद्देश्य से अपने ह्युमैनिटी और सोशल साइंस विभाग की स्थापना की. इसके प्रस्तावों में कंप्यूटर विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में एक इंटरडिसिप्लिनरी बी.टेक कार्यक्रम शामिल है.
आईआईआईटी-दिल्ली के मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के एक फैकल्टी मेंबर पारो मिश्रा ने कहा, ‘विचार ऐसे इंजीनियर तैयार करने का है जो जमीन स्तर पर लोगों के लिए महत्वपूर्ण समाधान के साथ आने में सक्षम हों और समाज व सामाजिक मुद्दों की समझ रखते हैं. सिर्फ इंजीनियरिंग आना काफी नहीं है.’
उन्होंने कहा कि ह्युमैनिटी डिपार्टमेंट का विस्तार हो रहा है. इसमें 14 पूर्णकालिक संकाय सदस्य और छात्र हैं जो अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और कॉग्निटिव साइकोलॉजी जैसे विषयों में पीएचडी कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘हाल के कुछ सालों में मानविकी पाठ्यक्रमों में रुचि बढ़ी है. उधर उद्योग भी ऐसे पेशेवरों की मांग करता रहा है जिन्हें वास्तविक जीवन की चुनौतियों की समझ हो, जो लोगों के साथ संवाद कर सकें और साथ ही बेहतरीन प्रोफेशनल भी हों.’
2019 में हैदराबाद में अंतर्राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान ने कंप्यूटर विज्ञान में बी.टेक और कंप्यूटिंग व ह्युमन साइंस में एमएससी को शामिल करते हुए पांच साल का दोहरी डिग्री कार्यक्रम शुरू किया था.
विभाग की वेबसाइट में लिखा है, ‘आईआईआईटी हैदराबाद का ह्यूमन साइंस रिसर्च ग्रुप सामाजिक विज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान को एक साथ लाने का एक अनूठा प्रयास है. हम मानते हैं कि डिजिटल तकनीकों द्वारा सामने लाए गए परिवर्तनों की प्रकृति को समझने के लिए दोनों विषयों के साथ समझने की जरूरत है.’
ह्युमन साइंस रिसर्च ग्रुप के एसोसिएट प्रोफेसर अनिकेत आलम ने बताया कि न सिर्फ तकनीकी संस्थानों ने बल्कि उच्च शिक्षा के सभी संस्थानों ने ‘ लिबरल आर्ट को अधिक गंभीरता से लेने के महत्व को महसूस किया है.’
उन्होंने कहा, ‘पहले, संस्थान मानविकी विषयों को क्रेडिट कोर्स में से एक के रूप में पेश करते थे, लेकिन अब उन्हें इसकी वास्तविक क्षमता का एहसास हो गया है. इनमें से कई संस्थानों ने फुल-टाइम कोर्स शुरू कर दिया है.’
यह भी पढ़ें: ‘PM को भारत की देखभाल करनी है, हमें गुजरात दो’- सरकार बनाने के लिए AAP ने BJP से मांगी मदद
रियल-वर्ल्ड मैनेजमेंट
इस क्षेत्र में हाल-फिलहाल में अपना कदम बढ़ाने वाले भारतीय प्रबंधन संस्थानों में एक नया नाम आईआईएम-कोझिकोड का है. इसने 2019 में लिबरल स्टडीज और मैनेजमेंट में एमबीए शुरू किया था.
पाठ्यक्रम के बारे में संस्थान के वेब पेज पर लिखा है, ‘इस डिग्री कोर्स को शुरू किया गया है क्योंकि ‘प्रबंधन शिक्षा के वैकल्पिक रूप की सख्त जरूरत है. ‘अकेले टीचिंग और लर्निंग का साइंटिफिक मेथड भविष्य के प्रबंधकों को तैयार करने के लिए पर्याप्त नहीं है’.
आगे लिखा है कि प्रबंधन शिक्षा पारंपरिक रूप से नियंत्रित वातावरण में तथ्य-खोज के वैज्ञानिक तरीकों के साथ तैयार की गई है. लेकिन वास्तविक दुनिया में बिजनेस अक्सर ऐसे माहौल में किया जाता है जहां फैसले अपूर्ण, उलझे हुए और असंगत डेटा के साथ लिए जाते हैं.’
नए कार्यक्रम का विवरण देते हुए IIM-K के निदेशक देबाशीष चटर्जी ने कहा कि विचार ‘बेहतरीन प्रबंधन विचारकों का तैयार करने’ और ‘इनोवेटिव, सामाजिक रूप से जिम्मेदार और पर्यावरण के अनुकूल चिकित्सकों, नेताओं और शिक्षकों’ को विकसित करना था, जो वैश्विक मंच पर अपनी पकड़ बना सकें.’
2020 में IIM-बैंगलोर ने घोषणा की कि वह 2023 से लिबरल आर्ट में चार साल के स्नातक कार्यक्रम शुरू करेगा ताकि ‘नेताओं की नई पीढ़ी’ तैयार की जा सके, जो भारत की जमीनी समस्याओं को नए नजरिये से सुलझा पाने में सक्षम हो.
फैकल्टी सलेक्शन
जब फैकल्टी चयन की बात आती है, तो IIT, IIIT, और IIM बेहतरीन लोगों के साथ आगे आ रही है. इनके शिक्षकों में ऑक्सब्रिज या आइवी लीग की डिग्रीधारी शामिल हैं. इनके कई फैकल्टी मेंबर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से भी हैं.
IIM-K में लिबरल आर्ट प्रोग्राम की फैकल्टी के बारे में चटर्जी ने कहा कि मौजूदा संकाय सदस्य प्रतिष्ठित अमेरिकी और भारतीय विश्वविद्यालयों से लिए गए हैं. उन्होंने जिन नामों का हवाला दिया उनमें इंडियाना यूनिवर्सिटी ब्लूमिंगटन, आईआईएम-कलकत्ता, जेएनयू, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिडिकल साइंसेज, कोलकाता शामिल हैं.
IIT और IIM में चयन मानदंडो में शैक्षणिक योग्यता और पब्लिकेशन की संख्या के लिए सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों को शामिल किया गया है.
जिन्होंने या तो विदेश में पीएचडी की है या विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाया है, ऐसे कुछ फैकल्टी सदस्यों का मानना है कि भारतीय संस्थान आखिरकार एक ग्लोबल ट्रेंड को पकड़ने में कामयाब हो रहे हैं.
न्यूयॉर्क में पढ़ा चुके आईआईआईटी-दिल्ली के पटनायक ने कहा कि अमेरिकी कॉलेज ‘संगठित और पेशेवर’ तरीके से मानविकी को एक स्ट्रीम के रूप में देखते हैं. यह ट्रेंड अब भारत में भी बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, ‘यहां के संस्थानों ने ह्युमैनिटी पढ़ाने के महत्व को महसूस किया है.’
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: गुजरात चुनाव: 1980 से अब तक भाजपा ने सिर्फ एक ही मुसलमान को दिया विधानसभा का टिकट