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Wednesday, 11 December, 2024
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गुजरात चुनाव: 1980 से अब तक भाजपा ने सिर्फ एक ही मुसलमान को दिया विधानसभा का टिकट

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( ब्रजेन्द्र नाथ सिंह )

नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 1980 में अपनी स्थापना के बाद गुजरात में हुए सभी नौ विधानसभा चुनावों में सिर्फ एक मर्तबा एक मुसलमान को उम्मीदवार बनाया है। पिछले 27 सालों से राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा ने आखिरी बार 24 साल पहले भरूच जिले की वागरा विधानसभा सीट पर एक मुसलमान उम्मीदवार उतारा था, जिसे हार का सामना करना पड़ा था।

मुसलमानों को उम्मीदवार बनाने के मामले में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का रिकार्ड बेहतर रहा है लेकिन आबादी के अनुरूप उन्हें टिकट देने में उसने भी कंजूसी ही बरती है। वर्ष 1980 से 2017 तक हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कुल 70 मुसलमान नेताओं को उम्मीदवार बनाया और इनमें से 42 ने जीत दर्ज की।

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छह मुसलमानों को टिकट दिया था, इनमें से चार ने जीत दर्ज की थी। वर्ष 2012 के चुनाव में उसने पांच मुसलमानों को टिकट दिया तो दो ने जीत हासिल की। साल 2007 के चुनाव में कांग्रेस ने छह उम्मीदवार उतारे थे, इनमें से तीन को जीत नसीब हुई। इसी प्रकार साल 2002 में पांच में से तीन, 1998 में आठ में से पांच, 1995 में एक में एक, 1990 में 11 में दो, 1985 में 11 में से आठ और 1980 में 17 उम्मीदवारों में से 12 ने जीत दर्ज की।

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, गुजरात में मुसलमान सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है, जिनकी आबादी में 10 फीसदी के करीब हिस्सेदारी है और राज्य विधानसभा की कुल 182 सीटों में से करीब 30 सीटों पर उनकी आबादी 15 प्रतिशत से अधिक है।

इस साल के अंत तक गुजरात विधानसभा के चुनाव होने हैं। 182-सदस्यीय गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 18 फरवरी 2023 को समाप्त हो रहा है। ऐसे में निर्वाचन आयोग कभी भी विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर सकता है।

नब्बे के दशक से ही गुजरात की राजनीति में भाजपा का दबदबा रहा है। वर्ष 1990 के चुनाव में विधानसभा त्रिशंकु हुई और भाजपा व जनता दल गठबंधन की सरकार बनी। इसके बाद 1995 के चुनावों से लेकर 2017 तक सभी विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जीत दर्ज की। प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेन्द्र मोदी 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे।

भाजपा ने 1998 के विधानसभा चुनाव में वागरा विधानसभा से अब्दुल काजी कुरैशी को टिकट दिया था। इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार इकबाल इब्राहिम ने हराया था। इब्राहिम को 45,490 मत मिले थे जबकि कुरैशी को 19,051 मतों से संतोष करना पड़ा था। इसके बाद भाजपा ने आज तक किसी भी मुसलामन को उम्मीदवार नहीं बनाया।

इस बारे में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा कि यह सही है कि भाजपा ने पिछले कई गुजरात चुनावों में मुसलमानों को टिकट नहीं दिया लेकिन ऐसा नहीं है कि यह उसके संविधान में लिखा है कि वह उन्हें टिकट ही नहीं देगी।

उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा धर्म और जाति के आधार पर उम्मीदवार तय नहीं करती बल्कि उम्मीदवारों की स्थानीय लोकप्रियता और उनके जीतने की क्षमता के आधार पर टिकट तय करती है।’’

सिद्दीकी ने बताया कि भाजपा ‘‘अल्पसंख्यक मित्र’’ कार्यक्रम के जरिए बूथ और जिला स्तर पर मुसलमानों को पार्टी से जोड़ रही है और यह सुनिश्चित कर रही है कि उन्हें केंद्र व राज्य सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिले।

उन्होंने उम्मीद जताई कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा जीत की क्षमता के आधार पर मुसलमानों को भी टिकट देगी।

साल 1960 में गुजरात राज्य के गठन के बाद 1962 से लेकर 1985 तक के चुनावों में कांग्रेस का दबदबा था। हालांकि इस दौर में भी मुसलमानों को टिकट देने में राजनीतिक दलों ने कंजूसी बरती। इस दौरान विधानसभा पहुंचने वाले मुसलमान उम्मीदवारों की संख्या तीन दर्जन के करीब रही।

गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष वजीरखान पठान ने पीटीआई-भाषा से कहा कि कांग्रेस की बदौलत ही मुसलमान गुजरात विधानसभा की दहलीज लांघता रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस बार के चुनाव में हम उन्हीं सीटों पर मुसलमान उम्मीदवार उतारेंगे, जहां जीत की संभावना प्रबल होगी। शेष सीटों पर हमारी कोशिश भाजपा के उम्मीदवार को पराजित करने की होगी। हम पार्टी पर टिकटों के लिए अनावश्यक दबाब नहीं बनाएंगे।’’

पठान ने कहा कि जब से गुजरात की सत्ता में भाजपा आई है, मुसलमानों का चुनाव जीतना दूभर हो गया है।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘भाजपा सांप्रदायिक राजनीति करती है और यह इस बात से भी साबित होता है कि वह इतने वर्षों में उसने सिर्फ एक ही मुसलमान को टिकट देने योग्य समझा।’’

गुजरात के विधानसभा चुनावों के इतिहास में सिर्फ दो ही बार त्रिशंकु विधानसभा बनी है। पहली बार 1975 के चुनाव में बाबू भाई पटेल के नेतृत्व में जनता मोर्चा और दूसरी बार 1990 के चुनाव में चिमन भाई पटेल के नेतृत्व में किसान मजदूर लोक पक्ष (केएमएलपी), जनता दल और भाजपा गठबंधन की सरकार बनी।

भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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