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Thursday, 12 December, 2024
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हिंदू और मुस्लिमों के लिए दो अलग-अलग राष्ट्रों का विचार मात्र ही BJP के सिद्धांतों के ‘प्रतिकूल’ है

7 जून 2005 को आडवाणी ने भारत लौटने के बाद भाजपा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया. बहरहाल, 8 जून को पार्टी में चर्चा के बाद सर्वसम्मति से आडवाणी से अनुरोध किया गया कि वह अपने पद पर बने रहें.

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जून 2005 में, आडवाणी पाकिस्तान के दौरे पर गए. उनका जन्म 1927 में कराची में हुआ था और उन्होंने इस दौरे को ‘निजी और राजनैतिक’ दोनों बताया था. अपने पाकिस्तान दौरे के दौरान, आडवाणी मोहम्मद अली जिन्ना के मकबरे पर भी गए थे. उन्होंने वहां फूल अर्पित किए और वहां से जाते वक्त वहां की अतिथि पुस्तिका में अपनी टिप्पणी दर्ज कीः ‘बहुत सारे लोग इतिहास पर अपनी छाप छोड़ते हैं, लेकिन बहुत कम लोग असल में इतिहास बनाते हैं. कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना असल में उन कुछेक लोगों में से एक थे. उनके शुरुआती जीवन में भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख हस्ती, सरोजिनी नायडू ने श्री जिन्ना को ‘हिंदू-मुस्लिम एकता का राजदूत’ कहा था. 11 अगस्त 1947 को पाकिस्तान की संविधान सभा को उनका संबोधन वास्तव में उत्कृष्ट है, यह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का सशक्त समर्थन है जिसमें हर नागरिक अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र होगा, राज्य आस्था के आधार पर एक नागरिक से दूसरे के बीच कोई भेदभाव नहीं करेगा.

इस महान शख्सियत को सादर श्रद्धांजलि. ’5 जिन्ना को आडवाणी द्वारा एक धर्मनिरपेक्ष नेता और हिंदू-मुस्लिम एकता का ध्वजवाहक कहे जाने पर पार्टी और व्यापक संघ परिवार में बहस छिड़ गई. भाजपा हमेशा से भारत विभाजन को एक दुर्भाग्यपूर्ण और टाले जाने लायक राजनैतिक गलती मानती रही है और इसके लिए वह जिन्ना को ही ज़िम्मेदार मानती रही है. मीडिया को तो भानुमति का खजाना हाथ लग गया था.

4 जून 2005 को द टेलीग्राफ की सुर्खी थी, ‘आडवाणी सैल्यूट्स सेकुलर जिन्ना’. मीडिया में खबरें आईं कि सुधींद्र कुलकर्णी ने उनकी टिप्पणी का टेक्स्ट प्रकाश जावडेकर को फैक्स किया, जो उन्हें वेंकैया नायडू, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली तक ले गए और उन्होंने फैसला किया कि इसे वह प्रकाशित नहीं करेंगे या फिर इसको प्रेस को नहीं देंगे. जब कुलकर्णी ने जोर दिया कि इसे प्रकाशित किया जाना चाहिए, तो उन्हें झिड़क दिया गया. इस टिप्पणी को पार्टी के वेबसाइट पर उपलब्ध कराने के लिए सोमवार को आडवाणी के लौटने तक का वक्त लग गया. नींव का निर्माण फिर (2004-2008) 115 संघ और विहिप ने जिन्ना की आडवाणी द्वारा तारीफ की खुलेआम आलोचना की. बहरहाल, वाजपेयी आडवाणी के पीछे खड़े रहे. उन्होंने कहा, ‘जिन्ना पर उनकी टिप्पणी का गलत मतलब निकाला जा रहा है.’ बहरहाल, अधिकतर पार्टी नेताओं ने इन बयानों पर किनारा करने की ही कोशिश की. संघ परिवार, ख़ासतौर पर विहिप, ने उनपर ज़ोरदार हमला किया और मांग की कि वह अपना बयान वापस लें.

बहरहाल, आडवाणी दृढ़ रहे और कहा, ‘मैंने पाकिस्तान में न तो कुछ ऐसा कहा है न किया है जिसे मुझे वापस लेने की ज़रूरत पड़े.’ उन्होंने मांग की कि पार्टी जिन्ना पर उनके रुख का स्पष्ट समर्थन करे और इसके लिए एक प्रस्ताव पारित करे. आडवाणी ने कहा कि मीडिया की गलत रिपोर्टिंग के कारण, उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया. उन्हें लगता था कि खासतौर पर टीवी न्यूज, पर रिपोर्टिंग का मकसद सुर्खियां बटोरना और सनसनी पैदा करना था. यही नहीं, उन्हें यह लगा कि जाने-अनजाने में, मीडिया ने इस बयान के ऐतिहासिक संदर्भ को नहीं समझा न ही बयान की बारीकियों, संदर्भगत तर्कों, इस कहानी से जुड़े लोगों और मुद्दे की जटिलता पर ध्यान दिया.

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7 जून 2005 को आडवाणी ने भारत लौटने के बाद भाजपा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया. बहरहाल, 8 जून को पार्टी में चर्चा के बाद सर्वसम्मति से आडवाणी से अनुरोध किया गया कि वह अपने पद पर बने रहें. 10 जून को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आहूत की गई और त्वरित प्रभाव से लागू एक प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद एक बयान जारी किया गयाः ‘भारतीय जनता पार्टी अपने अध्यक्ष श्री एलके आडवाणी की लीक से हटकर अभूतपूर्व पाकिस्तान यात्रा की प्रशंसा करती है…जिन्ना को पंथनिरपेक्ष न बताते हुए उन्होंने पाकिस्तान के लोगों को उस देश की संविधान सभा में पाकिस्तान के संस्थापक द्वारा दिए गए भाषण का स्मरण कराया, जिसमें जिन्ना ने सभी नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता और धर्म के आधार पर नागरिकों से किसी प्रकार का भेदभाव न करने पर जोर दिया था. भाजपा यह दोहराती है कि भले ही जिन्ना की पाकिस्तान के बारे में कोई भी परिकल्पना रही हो, लेकिन उनके द्वारा संस्थापित राज्य मजहबी तथा गैर-सेक्युलर है.

हिंदू और मुस्लिमों के लिए दो अलग-अलग राष्ट्रों का विचार मात्र ही भाजपा के सिद्धांतों के प्रतिकूल है. भाजपा ने सांप्रदायिक आधार पर भारत के विभाजन की हमेशा ही निंदा की है तथा करती रहेगी और जिन्ना द्वारा प्रवर्तित एवं ब्रिटिश औपनिवेशकों द्वारा समर्पित द्विराष्ट्र सिद्धांत को दृढ़ता से नकारती रहेगी. इस यथार्थ से मुंह नहीं फेरा जा सकता कि जिन्ना ने पाकिस्तान बनाने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक सांप्रदायिक आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसकी चपेट में आकर हजारों निरपराध लोग मारे गए तथा लाखों लोग बेघर और बेरोजगार हो गए.’

जब यह प्रस्ताव पारित हुआ तो आडवाणी भाजपा के अध्यक्ष पद पर बने रहे लेकिन उन्होंने कहा कि वह आगामी मुंबई बैठक के बाद इस पद पर नहीं रहेंगे. जब दिसंबर 2005 में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक मुंबई में हुई तो राजनाथ सिंह का पार्टी का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. 31 दिसंबर, 2005 को राजनाथ सिंह ने पार्टी के मुखिया का कार्यभार संभाल लिया.

(केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता भूपेंद्र यादव और अर्थशास्त्री इला पटनायक की लिखी किताब भाजपा का अभ्युदय: दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल का उत्थान पेंगुइन से प्रकाशित हुई है.)

(भूपेन्द्र यादव भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय पर्यावरण, रोजगार और श्रम मंत्री है. इला पटनायक एक अर्थशास्त्री हैं और नेशनल इंस्टिटयूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी, नई दिल्ली में प्रोफेसर हैं.)


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