सुबह नाश्ता करके हम कारगिल से श्रीनगर की ओर बढ़ चले. रास्ते में चमकती हुई ‘टाइगर हिल’ फिर से दिखाई दी. मौसम आज भी बड़ा खुशगवार था. हमने जोजिला दर्रे पर गाड़ी रोककर चाय का लुत्फ उठाया, कुछ फोटो खिंचवाईं और निकल पड़े अपनी मंजिल श्रीनगर की ओर. दोपहर का भोजन फिर से हमने सोनमर्ग में ही किया. मन में खीर भवानी माताजी के दर्शनों का विचार कई दिनों से आ रहा था. जैसे ही हमने यह बात बट्ट को बताई तो वह हमें लेकर चलने के लिए सहर्ष तैयार हो गया. गांधरबल आते ही उसने गाड़ी तुलमुला गांव की तरफ मोड़ दी. यहीं विराजी हुई हैं मां खीर भवानी.
कश्मीरी पंडित खीर भवानी माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं और बड़ी ही आस्था से उनका पूजन करते हैं. यहां हमें सेना के ट्रकों की काफी हलचल दिखाई दी. बट्ट ने बताया कि यहां आतंकवादी हमलों का खतरा अधिक रहता है. मंदिर परिसर में भी भारी चौकसी थी. सुरक्षा के व्यापक प्रबंधों के बीच पहले हमें एक गेट से निकाला और फिर दूसरे, वह भी सघन सुरक्षा जांच के बाद. हम समझ गए कि यहां के मौसम में थोड़ा तनाव छाया हुआ है.
पत्थरबाज़ों से हुआ सामना
मंदिर में करीब एक घंटा गुजारने के बाद हम श्रीनगर की ओर बढ़ने लगे. हमने बट्ट को सड़क मार्ग द्वारा डल झील का चक्कर लगवाने को कहा. शाम के करीब 5 बजे हम हजरतबल के नजदीक से कुछ खरीदारी करके लौट रहे थे. चप्पे-चप्पे पर केंद्रीय सुरक्षा बल और जम्मू व कश्मीर पुलिस दिखाई दे रही थी. मैं महिंद्रा स्काॅर्पियो की आगेवाली सीट पर बैठा था. तभी अचानक एक जगह बट्ट ने ब्रेक लगा दिया. मेरी नजर बाईं ओर खड़े कुछ नौजवानों पर पड़ी, जिन्होंने अपने चेहरे ढंके हुए थे और उनकी केवल आंखें दिखाई दे रही थीं, केवल नाक से हवा जाने का रास्ता दिखाई दे रहा था. आज तक इन तथाकथित पत्थरबाजों को केवल टी.वी. पर ही देखा था. उन्हें समक्ष देखकर एकबारगी हम सभी सन्न रह गए. उनके हाथ में गेंद की आकार के गोल बड़े पत्थर थे, जिसे उन्होंने विशेष इस्तेमाल के लिए तैयार किया था.
बट्ट ने मुझे शांत बैठे रहने का इशारा किया और फिर उन लड़कों को भी कुछ इशारा किया. फिर न जाने क्या हुआ कि उन्होंने हमारी गाड़ी को जाने दिया. उन नवयुवकों के पीछे कुछ लड़के बड़े इत्मीनान से क्रिकेट खेल रहे थे. यह सब कुछ केवल 60 सेकंड में घटित हो गया. लेकिन इस घटना ने हमें बुरी तरह से झिंझोड़कर रख दिया. यह तो शुक्र है कि अब घाटी में हालात तेजी से सुधर रहे हैं, वरना आज कुछ भी हो सकता था. हमने घर के लिए कुछ ड्राई फ्रूट्स और केसर खरीदा. कश्मीर जैसा केसर संपूर्ण विश्व में कहीं नहीं मिलता. दिन ढल रहा था. बट्ट ने हमें थोड़ा जल्दी करने को कहा.
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लेकिन फिर भी, अपने गंतव्य पर पहुंचने से करीब एक घंटा पहले अंधेरा हो ही गया. बड़गाम का रेलवे गेस्ट हाउस, जहां हमें रात्रि-विश्राम के लिए रुकना था, अभी भी करीब 10 किमी दूर था. फोन सिग्नल भी गायब था. हम सब थोड़ा दहशत में थे. गाड़ी में पूरी तरह से सन्नाटा था. गाड़ी सुनसान कच्ची सड़क पर दौड़ी जा रही थी. हर पांच मिनट में हम में से कोई बट्ट से पूछ लेता—भाई, कितनी देर में पहुंचेंगे? ऐसा लग रहा था कि हमारे जीवन की डोर बट्ट के हाथों में थी. एक तो इलाका सुनसान, पत्थरबाजों का डर और ऊपर से बार-बार लग रहा था, जैसे अभी कोई हमारी गाड़ी के सामने बंदूक लेकर खड़ा हो जाएगा और हमें नीचे उतरने को कहेगा तथा गोलियां हमारी छाती में उतार देगा. इसी उधेड़बुन में हमारा गेस्ट हाउस आ गया और हमने चैन की सांस ली.
अगले दिन हम श्रीनगर स्टेशन गए. शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था. इक्का-दुक्का गाड़ियां ही सड़कों पर दिख रही थीं. ज्यादातर सेना और सी.आर.पी.एफ. के जवान दिख रहे थे. किसी तरह से श्रीनगर स्टेशन देखकर हम सीधे एयरपोर्ट पहुंच गए. पता चला कि फ्लाइट री शेड्यूल हो गई थी, वह भी पांच घंटे बाद के लिए. बड़ा ही उदासी भरा दिन था वह फिर किसी तरह से शाम 7 बजे हम दिल्ली पहुंच गए.
युद्ध के बाद सेना के खरीदे काफी हथियार
कारगिल युद्ध के बाद सेना ने वे सभी हथियार खरीद लिये हैं, जिनकी कमी कारगिल युद्ध के दौरान खली थी. अब तो भारत के पास राफेल भी आ गया है, जिससे हमारी वायु सेना की ताकत भी कई गुना बढ़ गई है. इसके अलावा, भारत सरकार ने हथियार बनाने के लिए गैर-सरकारी और निजी कंपनियों के दरवाजे भी खोल दिए हैं. इससे हथियारों को बनाने के समय में भी कमी आएगी और गुणवत्ता भी बढ़ेगी.
वर्ष 1999 के अमरनाथ और 2007 एवं 2018 के मेरे कारगिल दौरों ने मुझमें बैठे एक नए इंसान से मेरा परिचय करवाया, जो शहीदों के प्रति और देश के प्रति अत्यंत निष्ठा रखता है. वैसे तो ये जज्बात हर भारतवासी के हृदय में होने ही चाहिए और यही अपेक्षा की जाती है और यकीनन ऐसी भावनाएं हम सभी के दिलों में हैं भी.
लेकिन इन जगहों पर जाने के बाद और कारगिल युद्ध से जुड़े सभी स्थान देखने के बाद यह एहसास हो गया कि सभी शूरवीरों को यह तो पता ही था कि लड़ाई अत्यंत घातक है और इससे जुड़ा खतरा अत्यंत बड़ा, जिसमें कुछ भी हो सकता था, जान जाने का जोखिम कहीं अधिक था. इसके बावजूद अपनों को भुलाते हुए, सभी निजी भावनाओं को दरकिनार रखते हुए ये सभी वीर युद्धभूमि में गए और भारत माता की अस्मिता की खातिर हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया. यह बलिदान इतना बड़ा है कि हम कभी भी इस ऋण को उतार नहीं पाएंगे.
हम, बस इतना अवश्य करें कि उन शहीदों की वीरता, साहस और बलिदान की गाथाओं को सदैव अपनी स्मृतियों में संजोकर रखें, उन्हें याद करते रहें और आनेवाली पीढ़ियों को इससे अवगत करवाते रहें.
जय हिंद!
(‘कारगिल एक यात्री की जुबानी ’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब पेपर बैक में 300 ₹ की है.)
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