‘कभी तो इंसान ज़िंदगी की करेगा इज़्ज़त, ये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है.‘
मशहूर गीतकार, शायर और संवाद लेखक पद्मश्री, पद्मविभूषण जावेद अख्तर ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से देश में फिल्मों को लेकर जो बायकाट बायकाट चल रहा है, वो इंडस्ट्री के बाहर की बात है. इंडस्ट्री में कोई दूरी या दो फाड़ नहीं है. उन्होंने कहा कि ये सब बाहर हो रहा है फिल्म इंडस्ट्री के अंदर नहीं.
फिल्म इंडस्ट्री के लोगों के बीच दूरियों पर उन्होंने कहा, ‘नहीं ये दूरी सिर्फ मीडिया ने और बाहरियों ने बांटी है.’
उन्होंने कहा, ‘जब फिल्म बना रहे होते हैं तो इंडस्ट्री के लोगों का और हमारा मकसद सिर्फ उसे बेहतरीन बनाना और उसे हिट करने का होता है. इंडस्ट्री कभी इस मामले में भेद-भाव नहीं करती. अगर इंडस्ट्री की एकता देखनी है तो आप फिल्म निर्माण में जुटे ओपनिंग क्रेडिट और क्लोजिंग क्रेडिट देखिए. आपको हमारी एकता भी दिखेगी और मजबूती भी. इंडस्ट्री में जाती, धर्म से ऊपर अगर कोई जगह है तो वह हमारा बॉलीवुड है.’
उन्होंने कहा, ‘हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हर धर्म, जाती, हर विचारधारा, हर भाषा का बोलने वाला व्यक्ति मिल जाएगा. बंटते तो वो लोग है जिनकी प्राथमिकता कामयाबी नहीं होती.’
हमारी फिल्म इंडस्ट्री की धूम दुनिया के कोने कोने में है. हमारे गाने दुनिया के कोने-कोने में सुने जा रहा हैं और जिसे देश ही नहीं दुनिया के लोगों ने काफी पसंद किया है.
जावेद अख्तर की जिंदगी पर लिखी एक किताब आई है ‘जादूनामा.’ जिसमें जादू से जावेद अख्तर बनने की कहानी को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया गया है. पिछले दिनों किताब जश्न-ए-रेख्ता में इस किताब का लोकार्पण खुद जावेद अख्तर ने किया था. इस किताब को लिखा है लेखक और बिजनेसमैन अरविंद मंडलोई ने. जावेद किताब के बारे में बताते हैं कई ऐसे पल अरविंद ने इस किताब में उकेरे हैं जिसे मैं भूल चुका था. उन्होंने इस किताब में उनके बचपन और जवानी और खोए पाए सभी दोस्तों को एकत्रित कर दिया है.
भारत जोड़ो यात्रा का हासिल क्या
इस किताब पर दिप्रिंट से खास बातचीत के दौरान जावेद अख्तर ने भारत जोड़ो यात्रा से लेकर जादू से जावेद बनने और उर्दू-हिंदी का एक दूसरे का पूरक होने तक की कई बातें शेयर कीं. उन्होंने इस दौरान अपनी ज़िन्दगी के काफी किस्से भी शेयर किए.
जब उनसे पूछा गया कि इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा चल रही है उसे वह कैसे देखते हैं तो उन्होंने बहुत बेबाकी से कहा कि उसका हासिल क्या है. कहां पहुंचेगी ये यात्रा और इससे देश की राजनीति पर क्या असर पड़ने जा रहा है अभी तक ये समझ नहीं पाया हूं. न तो विपक्षी पार्टियां ही एक हुई हैं और न ही देश में इससे कुछ बड़ा बदलाव होता ही दिखाई दे रहा है.
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किताब पर चर्चा के दौरान अपने पुरानी बातों को याद करते हुए जावेद अख्तर ने अपने बचपन का एक किस्सा साझा करते हुए कहा कि 56 साल मैंने भोपाल में अपने पैसों से एक अंग्रेजी नॉवल ‘इंकलाब’ खरीदी थी, जिसे लिखा था ख्वाजा अहमद अब्बास ने. उसी लॉयल बुक डिपो के मंजुल प्रकाशन ने आज मेरी इस किताब को छापा है. तो इस तरह मेरा 56 साल पुराना इन्वेस्ट आज मेरे काम आया.
उन्होंने आगे बताया कि उस वक़्त मैं काफी गरीब लड़का था जो किताब मिल जाती थी मैं पढ़ लेता था. लेकिन उस वक़्त मैंने अपने जिंदगी में पहली बार अपने खुद के पैसों से इस किताब को खरीदा था और अब मुझे ये मेरे किताब के जरिए बढ़िया रिटर्न गिफ्ट मिल रहा है.
उन्होंने तेजी से बदलती दुनिया और परिवेश के बारे में अपनी बात रखते हुए कहा कि आज के मध्यम परिवार और लोअर मिडिल क्लास के पास हर वो लक्जरी वाली चीजे घरों में मिल जाएंगी. वह कहते हैं मेरा परिवार खासकर ननिहाल जहां मैं पढ़ा-लिखा बड़ा हुआ उस समय मर्फी रेडियो और एक बिजली की आयरन हुआ करती थी वह इस दौर की लग्जरी थी. तांगा गाड़ी घूमने फिरने के लिए बुलाई जाती थी.
मुझे अपनी ज़िन्दगी के 10-12 सालों का गम है
बचपन में ही जब उनसे किसी ने पूछा था कि कुछ पढ़ लो पोस्ट ऑफिस में स्टैंप लगाने का काम मिल जाएगा उसी दौरान बालक जादू ने सोच लिया था कि उन्हें बड़े होकर अमीर बनना है. लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि अब जब आप पीछे पलटकर देखते हैं तो वो कौन से पल या साल होंगे जो वो फिर से जीना चाहेंगे या हटाना चाहेंगे. इस बात को कुछ सोचते हुए बोले, ‘जिंदगी एक स्क्रिप्ट है. इसमें से न तो मुझे कुछ हटाना है न जोड़ना है. आज में जो भी हूं वो उस दिन या उस पल की वजह से हूं.’
उन्होंने कहा फिल्म तैयार हो गई 76 नंबर सीन आपको हटाना है तो आपको 76 को बनाने वाले 36 वें सीन को भी हटाना होगा और पूरी फिल्म में फिर बदलाव करना पड़ता है. जिंदगी भी वैसी ही है आज जहां मैं हूं वो इस पल या जिंदगी की वजह से हूं जो मेरे साथ बचपन में या जवानी में उस समय बीता था इसलिए मैं कुछ नहीं बदलना चाहता हूं.
उन्होंने कहा कि, ‘हमारी जिंदगी जो है वो बड़ा ही गठा हुआ स्क्रिप्ट है’. मुझे अपने ज़िन्दगी के कुछ 10-12 सालो का गम है कि जब मेरी ज़िंदगी अच्छी हो रही थी, पैसा मिल गया था वो वक़्त ऐसा था कि मैं चाहता तब मैं अपना वक़्त बचा कर नई भाषाएं या कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट सीख लेता पर ऐसा मैंने नहीं किया और वो कीमती वक़्त मैंने शराब पीने में बर्बाद किया.’ अगर कुछ बदलना होगा तो मैं वो जरूर बदलना चाहूंगा.
इस किताब को लिखने के दौरान लेखक अरविंद मंडलोई की जावेद की जिंदगी से कितने प्रभावित हुए क्योंकि उन्होंने भी कहा कि मेरी जिंदगी कुछ कुछ अख्तर साहब की जिंदगी जैसी ही रही है.
ज़िन्दगी की पढ़ाई की, स्कूल वाली तो छूट गई
लेखक अरविंद मंडलोई ने बताया कि किस तरह से वो जावेद अख्तर से प्रभावित हुए. उन्होंने बताया कि जावेद अख्तर की जो जिंदगी रही है उसने मुझे अपनी ओर काफी आकर्षित किया, उसकी वजह ये थी की मेरे भी हालत कुछ ऐसे ही थे. इनसे मिलने से पहले मेरे अंदर जिंदगी को लेकर एक कड़वाहट थी पर इन्होंने मुझे जीने का तरीका बताया जिसके बाद मैंने एक पॉजिटिव माइंड के साथ जीना सीखा.
उन्होंने आगे कहा, जावेद अख्तर और मेरी मुलाकात उनकी एक किताब ‘तरकश’ के जरिए हुई. उस किताब को पढ़ने के बाद मैं उन्हें जान पाया और वो किताब मैंने कितनी बार पढ़ी मुझे खुद भी याद नहीं है.
उनसे पूछे जाने पर कि आप को जादूनामा लिखने का आईडिया कैसे आया. तब उन्होंने जवाब में कहा कि, ‘जैसे-जैसे मेरा और इनका रिश्ता मजबूत होता गया वैसे-वैसे मेरे दिमाग ने जादूनामा को एक शक्ल देना शुरू कर दिया था’. जावेद अख्तर की जिंदगी को कवर करना और मेरे जैसे और भी लोगों को इन खास बातों का पता चलेगा कि आप आज जिस मुकाम पर हैं उसके लिए बचपन, जवानी की वो तपश कितनी जरूरी है. इसलिए मैंने ये किताब लिखी.
अरविंद मंडलोई बताते है कि मैंने ज्यादा पढाई नहीं की. प्राथमिक स्कूल के बाद मैंने स्कूल छोड़ दिया क्योंकि हालात कुछ ऐसे थे. उसके बाद मैंने ज़िन्दगी की पढाई शुरू कर दी और स्कूल वाली पढ़ाई छूट गई और आज मैं यहां हूं.
जावेद अख्तर और अरविंद का मानना है कि ‘अगर हमारे वो संघर्ष वाले दिन न होते तो आज ये दिन नहीं होते.’
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