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Saturday, 20 April, 2024
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22 गज का बादशाह, कैप्टन कूल: नंबर-7 धोनी ने कैसे जिताई भारत को तीन आईसीसी क्रिकेट ट्राफी

पूरी एक पीढ़ी का सिर्फ एक व्यक्ति के लिए मैच देखना बंद करना ये साबित करता है कि खिलाड़ी किस स्तर का है और कितना शानदार और असरदार है.

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भारतीयों की एक पीढ़ी ने सुनील गावस्कर के बाद क्रिकेट देखना बंद किया होगा. उसके बाद एक पीढ़ी ने सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट से अलविदा कहने के बाद बंद कर दिया और अब महेंद्र सिंह धोनी के शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास लेने की घोषणा के बाद एक पीढ़ी ऐसा करने वाली है. पूरी एक पीढ़ी का सिर्फ एक व्यक्ति के लिए मैच देखना बंद करना ये साबित करता है कि खिलाड़ी किस स्तर का है और कितना शानदार और असरदार है.

क्रिकेट के मैदान में जिस तरह धोनी ने अपने फैसलों से हर बार दर्शकों को चौंकाया उसी तरह अपने सन्यास के फैसले से भी उन्होंने अचंभित कर दिया. शायद ही कोई जानता हो कि 15 अगस्त के दिन वो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से अलविदा कह देंगे. यूं तो 2019 में हुए वर्ल्ड कप मैच के बाद से ही वो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से दूर थे, लेकिन उनका हर प्रशंसक एक बार फिर 22 गज की दूरी को तेजी से नापने की उनकी कला को देखना चाहता था.

दिलचस्प बात ये हैं कि दिसंबर 2004 में जब महेंद्र सिंह धोनी ने बांग्लादेश के खिलाफ एकदिवसीय मैच से अपने कैरियर की शुरुआत की थी, तो उस मैच में वो बिना कोई रन बनाए रनआउट हो गए थे. क्रिकेट की भाषा में कहे तो बिना खाता खोले पवैलियन लौट गए थे. उसी तरह 2019 के वर्ल्ड कप सेमिफाइनल मैच जो उनका आखिरी अंतर्राष्ट्रीय एकदिवसीय मैच था. उसमें भी वो रनआउट हो गए थे. लेकिन इस बार उनके चेहरे पर एक अलग तरह का अफसोस था. वो था भारतीय टीम को वर्ल्ड कप फाइनल में न पहुंचा पाने का.

22 गज की क्रिकेट पिच के बादशाह को न केवल उसके क्रिकेट के लिए याद किया जा सकता है. बल्कि इस दौरान उन्होंने मैदान और उससे बाहर जो खेल भावना दिखाए वो काबिले तारीफ और दिल जीतने वाली है.

अक्सर देखते हैं कि युवा खिलाड़ी जोश में आकर कई तरह की हरकतें करते हैं. लेकिन इससे इतर शुरुआत से ही धोनी क्रिकेट मैदान के अंदर और बाहर लगातार कूल बने रहे जो उनकी यूएसपी बन गई.

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आइए नज़र डालते हैं धोनी के नेतृत्व में जीती गई आईसीसी की तीन ट्रॉफियों पर.

2007 का टी-20 वर्ल्ड कप

भारतीय टीम 2007 में हुए 50 ओवर के वर्ल्ड कप को हार चुकी थी जिस कारण लोगों में काफी गुस्सा था. जब भारतीय टीम देश लौटी तो काफी विरोध किया गया. राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली जैसे धुरंधर खिलाड़ियों के बावजूद भारतीय टीम वर्ल्ड कप के शुरुआती चरण से ही बाहर हो गई थी. क्रिकेट टीम को संभालने और उसका नेतृत्व करने के लिए नए चेहरे की जरूरत थी. चयनकर्ताओं ने धोनी पर दांव लगाया और उसके कुछ दिनों बाद ही होने वाले पहले टी-20 वर्ल्ड कप का नेतृत्व धोनी को दे दिया.

धोनी के नेतृत्व में युवाओं की एक टीम पहले टी-20 वर्ल्ड कप में उतरी. एक के बाद एक मैच जीतकर भारत ने फाइनल मैच में जगह बना ली, जहां उसका मुकाबला उसके चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान से होने वाला था. कहा जा सकता है कि उस वक्त तक धोनी अपने अचानक से लिए हुए फैसलों के लिए जाने नहीं जाते थे. यह शायद पहला मौका था, जब उन्होंने एक दिलचस्प दांव लगाया. मैच के अंतिम ऑवर में उन्होंने जोगिंदर शर्मा को गेंद थमाई जो उस वक्त एक अजीबोगरीब फैसला फैसला लग रहा था क्योंकि वो काफी महंगे गेंदबाज साबित हो चुके थे.

धोनी के इस चौंकाने वाले फैसले का अंजाम ये हुआ कि मिस्बाह-उल-हक को आउट कर भारत पहला टी-20 वर्ल्ड कप जीत गया और इस तरह धोनी के नेतृत्व में युवाओं की टीम ने पहली उपलब्धि हासिल की. इसके बाद हर तरफ धोनी की ही चर्चा आम बात थी.

2011 वर्ल्ड कप

टी-20 वर्ल्ड कप के बाद धोनी एक जाना माना चेहरा हो चुके थे जिनपर विश्वास किया जा सकता था. इसे देखते हुए उन्हें एकदिवसीय और टेस्ट क्रिकेट में भी कप्तानी दे दी गई. हालांकि, अनिल कुंबले ने भी कुछ समय तक टेस्ट क्रिकेट का नेतृत्व किया था. धोनी की कप्तानी में टेस्ट क्रिकेट में भारत पहले स्थान पर आया जो एक बड़ी उपलब्धि थी.

इसके बाद 2011 का वर्ल्ड कप भारत में ही होने वाला था. 1983 के बाद से भारत ने एक भी बार वर्ल्ड कप नहीं जीता था. लोगों को भरोसा था कि इस बार शायद भारत विश्व विजेता बन जाए.


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लीग मैचों में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भारत ने सेमीफाइनल में पाकिस्तान को हराते हुए फाइनल में जगह बनाई थी. पाकिस्तान के साथ हुए सेमीफाइनल मैच में सचिन तेंदुलकर ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था. उन्हें इस मैच में कई बार जीवनदान मिला था. पूरी श्रृंखला में युवराज सिंह बेहतरीन फॉर्म में थे. अंतिम मैच श्रीलंका के साथ हुआ था जिसमें महेला जयवर्धने ने शतक जड़कर एक अच्छा टार्गेट भारत के सामने रखा था.

बैटिंग करने उतरी सचिन और सहवाग की जोड़ी जल्द ही टूट गई थी. जिसके बाद लगने लगा था कि भारत का विश्व विजेता बनने का सपना फिर से अधूरा ही रह जाएगा. लेकिन गौतम गंभीर की शानदार पारी काम आई. लेकिन दूसरे छोर पर डटे धोनी मैच को आखिर तक ले गए. युवराज सिंह से पहले मैदान पर उतरकर उन्होंने उस वक्त भी लोगों को चौंका दिया था.

धोनी ने नुवान कुलासेकरा की गेंद पर वो यादगार छक्का जड़कर भारत को 28 सालों बाद वर्ल्ड कप विजेता बना दिया. जिसपर सुनील गावस्कर ने कहा भी था कि वो छक्का हमेशा उन्हें याद रहेगा.

2013 चैंपियंस ट्राफी

2011 का वर्ल्ड कप जीतने के दो सालों बाद भारतीय टीम धोनी के नेतृत्व में एक बार फिर आईसीसी चैंपियनशिप में उतरी थी. सेमिफाइनल में श्रीलंका को हराकर भारत फाइनल में पहुंचा था. इंग्लैंड की टफ पिच पर भारत का मुकाबला मेजबान के साथ ही होने वाला था. लेकिन बारिश ने इस मैच में खलल डाल दी. जिसके बाद मैच को घटाकर 20 ऑवर का कर दिया. भारत ने बैटिंग कर 129 रन बनाए जो 20 ऑवर के हिसाब से काफी कम था. सभी को लग रहा था कि भारत ये मैच हार जाएगा.

शिखर धवन और रवींद्र जड़ेजा के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने धोनी के नेतृत्व में एक बार फिर से आईसीसी ट्राफी जीत ली.

धोनी ने सन्यास की घोषणा पर जो वीडियो इंस्टाग्राम पर डाला था उसमें गायक मुकेश का वो कालजयी गीत था- ‘मैं पल दो पल का शायर हूं….पल दो पल मेरी कहानी है…’ इस गीत के जरिए विदाई लेते धोनी ने ये साबित कर दिया कि वो आने वाले खिलाड़ियों को मौका मिलने के पक्षधर हैं, जैसा उन्होंने अपनी कप्तानी में भी किया. जहां वो विराट कोहली, रोहित शर्मा जैसे युवा खिलाड़ियों पर दांव लगाते रहे.

भले हम अब उन्हें भारत की नीली जर्सी में न देख पाएं. लेकिन उनकी असंख्य गौरवशाली यादें हमारे बीच हैं, जहां उनकी कूलनेस, उनका क्रिकेट स्पिरिट और वो बेमिसाल हेलिकॉप्टर शॉट हमारे जहन में जगह बनाए रहेंगी.

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