जिन लोगों ने शेख हसीना को महज़ 80 दिन पहले सत्ता से बेदखल किया था, उनके लिए शेख हसीना पर राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन का बयान आखिरी बात थी जिसे वह सुनना चाहते थे.
मोदी सरकार को आंतरिक जांच करवानी चाहिए थी और जहाँ जरूरी हो वहां ज़िम्मेदारी तय करनी चाहिए थी. अहम बात यह है कि विपक्षी नेताओं को भरोसे में लेना चाहिए था
नवजात संगठन होने और इसके सदस्यों में मुख्य रूप से मध्यम वर्ग के हिंदू शामिल होने के कारण, आरएसएस के पास कभी भी अपने खिलाफ स्थापित किए गए नैरेटिव का मुकाबला करने के लिए वित्तीय साधन नहीं थे.
सिख अलगावादी अगर सिरदर्द हैं तो उनके मेज़बान देशों के लिए हैं जहां वह बसे हुए हैं. उनका एक ‘अंडरवर्ल्ड’ है जिसमें गिरोहों के बीच खूनी लड़ाई चलती रहती है और उनके पड़ोसी असुरक्षित होते हैं, तो भारत इस सबसे क्यों परेशान हो?
सोशल मीडिया यूज़र्स सांप्रदायिक झड़पों के दौरान एक पक्ष या दूसरे पक्ष को दोष देने पर ज़्यादा ध्यान देते हैं, बजाय इसके कि वे आम सहमति बनाने की कोशिश करें.
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बन गई है, लेकिन मतदाताओं में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी भाजपा की है. उसे कुल वोटों का 25.5% मिला है, जो किसी भी अन्य पार्टी से ज्यादा है.
आरएसएस के सरसंघचालक अगर ‘मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने’ के बढ़ते दावों पर रोक लगाने की अपील कर रहे हैं तो इसके पीछे यह एहसास है कि यह मसला कहीं भाजपा सरकार के काबू से बाहर न हो जाए .
पेशावर, 22 दिसंबर (भाषा) सुरक्षा बलों ने रविवार को अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में दो अभियानों में प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के एक कमांडर...