भारत सरकार द्वारा गरीब सवर्ण आरक्षण बिल की मंजूरी और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में संस्थान के आधार पर...
लक्ष्मीबाई महिला-पुरुष विभाजन में कमज़ोर पक्ष में खड़ी थीं, लेकिन ब्राह्मण होने के कारण जातियों की सीढ़ी में वे सबसे ऊपर खड़ी थीं. झलकारी बाई एक साथ जाति और जेंडर दोनों विमर्श के हाशिए पर थीं.
‘तीसरे मोर्चे’ के प्रधानमंत्री के चयन के तरीके पर गौर करने से स्पष्ट हो जाता है कि क्यों मायावती के चुने जाने की कोई संभावना नहीं है. मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा से सिर्फ भाजपा को ही फायदा होगा.
राहुल गांधी के न्यूनतम आय गारंटी का प्रस्ताव कितना कारगर है और इसे कैसे लागू किया जाय उस पर चाहे चर्चा हो, पर एक बात तय है कि इस बार का चुनाव आर्थिक मुद्दों पर लड़ा जायेगा.
‘नाइन ऑवर्स टू रामा’ सेंसरशिप से हमारे जटिल संबंधों को दर्शाता है. भारत में प्रतिबंध लगाए जाने के 57 वर्ष बाद आज भी सेंसरशिप का वो प्रकरण प्रासंगिक बना हुआ है.
यह समझ से परे है कि भाजपा जब भारत की सबसे मज़बूत पार्टी की स्थिति में है, तब वह जाति जनगणना जैसे विघटनकारी कदम को क्यों उठाए. अगर राहुल गांधी जैसे विपक्षी नेता ऐसी विघटनकारी राजनीति करते हैं, तो बात समझ में आती है. वे भाजपा के राजनीतिक प्रभुत्व को तोड़ने के लिए बेताब हैं, लेकिन भाजपा क्यों?