ऐसा कैसे मुमकिन हो पा रहा है कि अपने ही देश कि किसी हिस्से से संबंधित किसी कानूनी प्रावधान में फेरबदल को किसी 'दुश्मन देश' पर जीत के मर्दाना उत्सव में तब्दील करने की कोशिश की गई.
एक तरह से हम यह भी कह सकतें हैं कि ये सभी गणमान्य व्यक्ति उस भयावह हिंसा को देखने से बच गये, जो स्वतंत्र भारत के उनके सपने के हकीकत मे पूरा होने से पहले हीं पूरे भारत को लहू-लुहान कर चुकी थी.
मेक्सिको मेट्रोपोलिटन क्षेत्र के वायु प्रदूषण के स्रोत लगभग वही थे, जो आज दिल्ली के हैं और इसने सीमित संसाधनों के साथ वायु प्रदूषण से लड़ने में सफलता हासिल की है. आज जरूरत है हमें मेक्सिको से प्रेरणा लेने की.
कुशल राजनीतिज्ञ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मुखौटों के साथ जीते हैं. अपने समर्थकों के सामने वो कुछ और होते हैं तो वहीं चुनाव के समय वोटरों के सामने कुछ और. वो लगातार अपने कामों के अनुसार खुद को बदलते रहते हैं.
लंबे समय से यही कहा जा रहा था कि शेष भारत के मुसलमान कश्मीरी मुसलमानों के हितों से अपना जुड़ाव महसूस नहीं करते हैं. पर मोदी के शासन में यह स्थिति बदलती नज़र आती है.
भारत में तो आदिवासियों को जंगल से बाहर निकाल फेंकने का प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. ऐसा लगता है, जैसे पूरी व्यवस्था के अंग और धार्मिक सोच भी इन आदिवासियों के खिलाफ खड़ी हो गई है और उन्हें न बख्शने की ठान ली है.
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद प्रकरण के सीधे प्रसारण या कार्यवाही की रिकार्डिंग की अनुमति देने से संविधान पीठ ने इंकार किया तो ऐसा करने की वजह के बारे में वही बेहतर जानती होगी.
कांग्रेस से लेकर भाजपा तक दलितों को साधने की होड़ में जुटे हैं सभी दल, लेकिन क्या सपा-बसपा अपनी ज़मीनी पकड़ और भरोसे को फिर से बहाल कर पाएंगे या हिंदुत्व को खुला मैदान मिलेगा?