‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ के बारे में मोदी का ज़िक्र हमें 1970 वाले दशक में ले जाता है जब इंदिरा गांधी की सरकार ने मुख्य न्यायाधीश के पद पर वरिष्ठतम जज को नियुक्त करने की मान्य परंपरा का दो बार उल्लंघन किया था.
केजरीवाल और उनकी पार्टी जिस ‘आइडिया’ के बूते उभरी थी वह भ्रष्टाचार के खिलाफ बेरोकटोक लड़ाई का था. इसीलिए मोदी सरकार ने उन पर, उनकी पार्टी तथा सरकार पर भ्रष्टाचार की कालिख पोती है
भाजपा की सीएए वाली सियासी चाल बहुत कारगर नहीं रही क्योंकि इससे जिन लोगों को लाभ मिलता उन्हें पहले से मौजूद कानून के तहत भी आसानी से शामिल किया जा सकता है और नए प्रवासियों को अलग-थलग रखा जा सकता है.
‘माइलेज’ वाले नेता मानते हैं कि वे उम्र आदि की सीमाओं से ऊपर हैं, मसलन शी जिनपिंग, बाइडन, ट्रंप, एर्दोगन या पुतिन को ही देख लीजिए. तो फिर मोदी 75 की उम्र के बाद भी प्रधानमंत्री क्यों नहीं बने रह सकते?
भारतीय राजनीति इतनी आकर्षक नहीं होती अगर इसकी राहें टेढ़ी-मेढ़ी न होतीं, इसकी खासियत यही है कि साफ-सपाट सी दिखने वाली किसी बात का भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं होता, किसी भी स्थिति को लेकर दावे के साथ नहीं कहा जा सकता-बेशक इसका कारण यही होगा.
ओबीसी का मुद्दा, चुनाव सुधार, दल-बदल विरोधी कानून का खात्मा और यूनिवर्सल बेसिक इनकम की शुरूआत उन प्रमुख लक्ष्यों में से हैं, जिन्हें पीएम को तीसरा कार्यकाल जीतने पर अपनाना चाहिए.
इतिहास में पहली बार 70 फीसदी से ज्यादा मतदान करके पाकिस्तानी वोटर्स ने फौज के खिलाफ वोटिंग करके शिकस्त दी है, इसे जम्हूरियत की जीत नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?
इंदिरा ने इमरजेंसी में आरएसएस को निशाना बनाकर उसे राजनीतिक वैधता प्रदान करने; राजीव ने 1989 में जनादेश का सम्मान नहीं करने; वाजपेयी-आडवाणी ने समय से पहले चुनाव करवाने की जो गलतियां की उन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा बदली.
कांग्रेस की सरकारों और भाजपा सरकार में मूल अंतर विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता का ही है. विचारधारा कांग्रेस के नेतृत्व की नीतियों को तो दिशा देती थी मगर कभी उन पर राज नहीं करती थी. भाजपा में विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता कट्टरपंथी किस्म की है.
इंदिरा गांधी ने जिन्हें इमरजेंसी में जेलों में कैद किया था उनके वारिस भारत के बुनियादी वैचारिक आधारों की आज नयी परिभाषा गढ़ रहे हैं, उन्हें उसी तरह परास्त किया जा सकता है जैसे 1970 के दशक में इंदिरा को किया गया था.
इस नई दुनिया में ‘पॉपुलिज़्म’ वाम, दक्षिण, मध्य, सभी मार्गों को ध्वस्त कर रहा है. बेशक हर एक देश, मतदाता समूह, और समाज के लिए यह अलग-अलग रूप में उभर रहा है, इसका आकर्षण और इसकी सफलता इसके प्रयोग में निहित है. यह आपके दिल या दिमाग पर ज्यादा बोझ नहीं डालता.