बाढ़ के कारण दशकों के सबसे मुश्किल दौर में, पंजाब को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी आएंगे. अगर उनके पास बिहार दौरे का समय है, तो पड़ोसी पंजाब का एक छोटा सा दौरा क्यों नहीं?
आसिम मुनीर मानते हैं कि उनके डंपर ट्रक के रास्ते में यहां-वहां कुछ ठोकर हो सकते हैं लेकिन वे इसे ड्राइव करके इसे और खुद को मौत के मुंह तक नहीं ले जाने वाले हैं. वे इसे एक सामरिक और रणनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं.
पुतिन इसे अपनी जीत मान रहे हैं. यूरोपीय देशों ने बड़े पश्चिमी गठबंधन को बचाने के लिए ट्रंप की शर्तों पर उनसे समझौता करने का फैसला किया है. अब देखते हैं कि भारत के लिए इसमें क्या सबक छिपा है.
अब जबकि मई की 87 घंटे लंबी जंग में IAF और PAF दोनों ने एक-दूसरे के विमान गिराने का औपचारिक दावा किया है, तो बड़ा सवाल यह उठता है: क्या ऐसे आंकड़े वाकई मायने रखते हैं?
अमेरिका को चुनौती देना भारत के किसी नेता के लिए आमतौर पर निजी जोखिम नहीं होता. विदेशी दबाव की बात आते ही देश एकजुट होकर उस नेता के साथ खड़ा हो जाता है जिसे वे इस लड़ाई में अपना अगुआ मानते हैं.
ट्रंपियन कूटनीति से अपनी रक्षा करने के लिए सबसे पहले हमें अपने सत्तातंत्र के अंदर के विमर्श में जो विरोधाभास हैं उनका विश्लेषण करना होगा. आप तब से शुरू कर सकते हैं जब 2014 की गर्मियों में मोदी सत्तासीन हुए थे.
नरेंद्र मोदी जबकि प्रधानमंत्री पद पर लगातार सबसे लंबे समय तक बने रहने वाले दूसरे नेता बन गए हैं, हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं चार अहम मामलों में वे इंदिरा गांधी की तुलना में कैसे लगते हैं.
खुली, तीखी, खरी, अनीतिपूर्ण और कभी-कभी अपमानजनक विशेषणों से लैस तारीफों से भरी कूटनीति. इसे हम ‘ट्रंप्लोमैसी’ कहते हैं. लेकिन इस सबके पीछे बड़ा मकसद होता है: अमेरिकी वर्चस्व बनाए रखना.
बीजेपी में, कम-से-कम शीर्ष स्तर पर पारिवारिक उत्तराधिकार का कोई उदाहरण नहीं मिलेगा. आप देख सकते हैं कि यह वाजपेयी-आडवाणी के दौर में भी हुआ. युवा प्रतिभा की पहचान और उसे मजबूती देने का यह चलन पार्टी अध्यक्ष के चयन के मामले में ज्यादा उल्लेखनीय दिखता है.