गुरुवार को जारी नवीनतम क्यूएस रैंकिंग के मुताबिक, अकैडमिक रेप्यूटेशन, फैकल्टी/ स्टूडेंट रेश्यो और इंटरनेशनलाइजेशन की बात करें तो भारतीय संस्थानों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है.
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरफ से पिछले महीने लर्निंग गैप का पता लगाने और उसे दूर करने की अपनी योजनाओं को साझा किए जाने के बाद शिक्षा मंत्रालय ने बजट निर्धारित करना शुरू कर दिया है.
कोर्स का शीर्षक 'आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग' यह 10 साल या उससे ऊपर सभी के लिए हैं, और इसे एक मिलियन छात्रों तक पहुंचाने का लक्ष्य है. पहले बैच की शुरुआत 1 जुलाई को निर्धारित है.
एआईसीटीई ने पिछले सप्ताह संबद्ध संस्थानों को भेजे गए पत्र में ये सुझाव दिया है. बोर्ड-आउट कैडेट लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे और उन्होंने इस प्रावधान की मांग करते हुए केंद्र सरकार को पत्र भी लिखा था.
सर्वे में शामिल करीब 36 प्रतिशत लड़कों और 21 प्रतिशत लड़कियों ने कहा कि उन्होंने स्कूल छोड़ दिया क्योंकि उन्हें ‘पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी.’ लेकिन यह कोई नया ट्रेंड नहीं है.
दिल्ली सरकार ने पिछले साल सीओए के आंबेडकर विश्वविद्यालय के साथ विलय की घोषणा की थी. दिल्ली सरकार द्वारा वित्तपोषित ये कॉलेज 1942 से ही दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध है.
राजनेतागण पाठ्य पुस्तकों में फेरबदल करने के इन फैसलों का बचाव करते दिखते हैं और इसे उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा नैरेटिव के साथ हेरफेर करने के प्रयासों की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ बताते हैं. लेकिन इतिहासकारों और अकादमिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है.
भारत आज दुनिया में जिस बेहतर हैसियत में है वैसी स्थिति में वह शीतयुद्ध के बाद के दौर में कभी नहीं रहा. हमें तय करना पड़ेगा कि विश्व जनमत को हम महत्वपूर्ण मानते हैं या नहीं. अगर मानते हैं तो हमें उनकी मीडिया, थिंक टैंक, सिविल सोसाइटी के साथ संवाद बनाना चाहिए.