नुसरत फ़तेह अली खां जब टोक्यो गए तब लोगों ने प्यार से उन्हे ' सिंगींग बुद्धा ' कहा, जब लंदन गए तो वो ' स्पीरीट ऑफ़ इस्लाम ' हुए और अपने खुद के मुल्क़, पाकिस्तान में तो वो ' शहनशाह- ए- क़व्वाली ' थे ही.
एक वक्त था जब हमारी फिल्में त्योहारों से जुड़ी सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा देती थीं. उस समय करवा चौथ या ऐसे ही अन्य अवसरों का फिल्मों में जिक्र भी प्रासंगिक और प्रभावी होता था.
पेश है दिप्रिंट का इस बारे में साप्ताहिक राउंड-अप कि उर्दू मीडिया ने पिछले एक सप्ताह के दौरान विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में किस तरह की खबरे छापी, और उनमें से कुछ ने इन के बारे में किस तरह की संपादकीय टिप्पणियां की.
पेश है दिप्रिंट का इस बारे में साप्ताहिक राउंड-अप कि उर्दू मीडिया ने पिछले एक सप्ताह के दौरान विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में किस तरह की खबरे छापी, और उनमें से कुछ ने इन के बारे में किस तरह की संपादकीय टिप्पणियां की.
इकिगाई को हमारे अस्तित्व होने के कारण के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो हमें अपने दैनिक जीवन में संतुलन, आनंद एवं संतुष्टि की खोज करने में मदद करता है.
इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी इसकी कसी हुई स्क्रिप्ट है. ऐसी दमदार, नए दाव-पेंच दिखाती, हर मोड़ पर चौंकाती पटकथाएं ही इस किस्म की फिल्मों को ऊंचाई पर ले जाती हैं.
नई वाली हिन्दी के चहेते लेखकों में शुमार दिव्य प्रकाश दुबे ‘मसाला चाय, ‘मुसाफिर कैफे’, ‘इब्नेबतूती’ जैसी बैस्टसेलर किताबें लिखी हैं. इनदिनों सैंकड़ों करोड़ की बजट वाली निर्देशक मणिरत्नम की फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन’ का हिन्दी संवाद लिखकर चर्चा में हैं.
उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन को कवर करने के लिए मैंने तैमूर की सरजमीं देखी, जिसे भारतीय इतिहास की किताबों में हमेशा दिल्ली के 'लुटेरे' के रूप में याद किया जाता है.
कॉर्पोरेट वालों की मलामत करना आसान है. लेकिन अपने उद्यमियों, संपदा और रोजगार पैदा करने वालों को प्यार और सम्मान न देने वाला समाज निम्न-मध्यवर्गीय आय के खांचे में ही अटके रहने को अभिशप्त होता है.