यहां ज़िक्र उस इस्लाम का नहीं जो एक आस्था है, बल्कि उस सियासी इस्लाम का है जहां आस्था मुल्क का मज़हब है और एक राष्ट्र को परिभाषित करता है और/ या उसके ज्यादातर अनिर्वाचित नेताओं को सत्ता में बनाए रखता है.
मंदिर के समारोह में भाग लेने से कांग्रेस के इनकार से सवाल खड़े होते हैं कि 1996 के बाद से उसकी विचारधारा में आया ठहराव क्या आज की चुनावी राजनीति के अनुकूल है? बेहतर होता कि वह हिंदू समुदाय के साथ समारोह में शामिल होती और इस मसले का राजनीतिकरण करने के लिए मोदी-भाजपा-आरएसएस की आलोचना भी करती.
विपक्ष तब तक विफल होता रहेगा जब तक वह इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ लेता कि मोदी सरकार के खिलाफ उसकी कोई भी मुहिम राजनीतिक विमर्श पर हावी क्यों नहीं हो पाती
जिस शहर में लगभग किसी को कुछ भी निर्माण करने की इजाजत नहीं थी वहां डीडीए फ्लैट विशेषाधिकार जैसा ही था. आज वही डीडीए ख़रीदारों को ढूंढ रहा है जबकि उसके 40,000 से ज्यादा फ्लैट अनबिके पड़े हैं.
यह कहना एक आलसी सरलीकरण होगा कि भारतीय राजनीति भाजपा-प्रेमी उत्तर भारत, और भाजपा- विरोधी दक्षिण में बंट चुकी है. 2024 का मुक़ाबला भाजपाई ‘हार्टलैंड’ बनाम परिधि वाले राज्यों का होगा.
न्यूयॉर्क की अदालत को लड़ाई का मैदान बनाने की बजाय पंजाब में विश्वसनीय राजनीतिक ताकतों (चाहे वे आपके प्रतिद्वंद्वी ही क्यों न हों) के साथ मिलकर काम करने से ही देश का ज्यादा भला होगा.
यह पहला मौका है जब भाजपा ने विपक्ष के जवाब में अपना आजमाया हुआ और कामयाब चुनावी सुर बदल दिया है. यह जाति, और कभी निंदित की गई “रेवड़ी संस्कृति” के मुद्दों पर उसके रुख से स्पष्ट है.
यह दो दशकों से शिखर की ओर बढ़ने की भारतीय कामयाबी की कहानी है, 1983 वाले गौरव की क्षणिक उपलब्धि नहीं! भारत में इस खेल में व्यवस्थागत बदलाव किए गए; फास्ट बॉलिंग, फिटनेस और फील्डिंग इसकी नींव के पत्थर हैं.
जब ऐसा लग रहा था कि मध्य-पूर्व अमन की गहरी नींद में सोने लगा है, तभी वहां फिर से आग सुलगाकर हमास ने वहां के कई विरोधाभासों और इस्लामी दुनिया से जुड़े सवालों को उभार दिया है
पिछले कुछ दशकों से क्लब स्पोर्ट और पेशेवर नजरिए ने सख्त राष्ट्रवादी भावनाओं को नरम किया है, फुटबॉल से शुरू हुआ यह चलन क्रिकेट में भी आ पहुंचा है, जिसका सबूत इस वर्ल्ड कप में दिख रहा है.
1976 तक तो लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों की विधानसभाओं की सीटों की संख्या इस तरह तय की जाती रही ताकि आबादी के प्रतिनिधित्व का समान अनुपात बना रहे, लेकिन 42वें संविधान संशोधन ने सीटों की संख्या 2001 की जनगणना के आधार पर स्थिर कर दी.