जब पंजाबी नाखुश होते हैं तो वे अपनी सरकार को वोट से हटा देते हैं. वे सत्ता परिवर्तन के लिए मदद मांगने किसी ट्रूडो या गुरपतवंत सिंह पन्नून के पास नहीं जाते.
विपक्षी गठबंधन को पूरा ‘अधिकार’ है कि वह किसका बायकॉट करे. वह अपने नेताओं, सदस्यों और प्रवक्ताओं को कुछ टीवी शो में जाने से मना कर सकता है लेकिन जब वे इन एंकरों के नाम और उनकी सूची जारी करते हैं तब यह मामला विवादास्पद हो जाता है
1983 में NAM शिखर सम्मेलन से लेकर बाइडेन, मैक्रॉन और सुनक के साथ इस G20 द्विपक्षीय बैठक तक के 40 साल भारत के नकली गुटनिरपेक्षता से लेकर आपसी लेन-देन वाली स्वायत्त नीति तक के सफर को दिखाता है.
2024 के बाद अगर कम-से-कम 18 राज्य ऐसे हो जाते हैं जिनमें भाजपा सत्ता में नहीं हैं, तो उसके लिए उस तरह की सत्ता उपभोग करना एक बड़ी चुनौती हो जाएगी जिसकी मोदी सरकार आदी हो चुकी है
ग्लोबल साउथ का विचार, जिसके मुताबिक भारत या इसके नेता, बाकी देशों के अगुआ बन सकते हैं. नरेंद्र मोदी इसके सबसे प्रमुख और ताकतवर ग्लोबल एम्बेसडर बनकर उभरे हैं.
पंजाबियों को संकट से जूझना आता है. देश के बंटवारे के बाद और फिर 1993 में समाप्त हुए आतंक और उग्रवाद के दौर में उन्होंने यह साबित किया है, लेकिन इसके बाद यह प्रदेश रास्ता भटक गया.
कांग्रेस ने अगर गलती की थी, तो भाजपा तो वहां असली बदलाव ला सकती थी लेकिन मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने हिंसा से पहले और उस दौरान जो बयान दिए उनसे भाजपा की वही विभाजनकारी नीति उभरी.
‘सामान्य’ चुनावों में वोटर्स राष्ट्रीय और विधानसभा चुनावों में फर्क समझने लगे हैं और अलग-अलग तरीके से वोट करते हैं. ऐसा ही समकालिक चुनावों में भी होगा, इसमें कोई शक नहीं है.