प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महामारी के दौर में राष्ट्र के नाम जो संदेश दिए हैं वे मुख्यतः मध्य वर्ग या इलीट तबके को संबोधित रहे हैं, उनमें करोड़ों गरीबों के प्रति हमदर्दी ना के बराबर दिखती है, तो क्या मोदी अपना राजनीतिक अंदाज भूल रहे हैं?
भारत को धीरे-धीरे अपने कामकाज पर लौटाने की जरूरत थी, बजाय कि देश को लॉकडाउन की मूर्छा से बाहर न निकालकर रेड, ग्रीन, ऑरेंज जोन में सेलेक्टिव तौर पर खोलने की.
भारत कोई पिकनिक नहीं मना रहा है मगर ऐसा भी नहीं है कि यहां लाशों के ढेर लग रहे हैं, अस्पतालों में मरीजों को बिस्तर की कमी पड़ रही है, श्मशानों में लकड़ी की या कब्रिस्तानों में जगह की कमी पड़ रही है.
लॉकडाउन कारगर रहा है मगर इसे ज्यादा खींचने के कई दूसरे दीर्घकालिक नतीजे हो सकते हैं जो इससे हुए फ़ायदों को खत्म कर दे सकते हैं. इसलिए बेहतर यही होगा कि इसे धीरे-धीरे, व्यवस्थित तरीके से वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की जाए.
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और पैरासिटामोल लंबे समय से पेटेंट-मुक्त और सस्ती जेनेरिक दवाएं हैं. भारत के पास दुनिया के लिए इनके उत्पादन की विशिष्ट क्षमता है. हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए, इसे बेकार नहीं जाने देना चाहिए.
मोदी को अच्छी तरह मालूम है कि उन्हें किसे संबोधित करना है, किसकी उपेक्षा करनी है, और किसे लाभ पहुंचाना है. इसलिए आप उनकी ताली, थाली, दीया, मोमबत्ती का मजाक उड़ाते रहिए.
कोरोनावायरस से कितने भारतीय संक्रमित हो सकते हैं या कितने मौत के मुंह में समा सकते हैं इसको लेकर कई भयावह आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं जिन्हें सुनकर ऐसा लगता है मानो हम अपनी किस्मत बदलने के लिए कुछ नहीं करेंगे, हाथ पर हाथ धरे बैठे ही रहेंगे.
इधर के कुछ हफ्तों से तनाव बढ़ रहा है क्योंकि जिहादी तत्व पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में एलओसी की ओर से घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले महीने अखनूर में जिहादियों द्वारा किए गए विस्फोट में दो भारतीय सैनिक मारे गए.
श्रीनगर, सात अप्रैल (भाषा) जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू के बीच सोमवार को एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डन...