हर साल यह रस्म निभाई जाती है, सालाना बजट तैयार होने लगता है तो तमाम कारोबारी चाहें वे किसी भी ट्रेड या इंडस्ट्री में हों, इकट्ठे हो जाते हैं और अपनी-अपनी चादरें वित्त मंत्री के सामने फैला देते हैं. प्रोफेशनल जैसे सीए, डॉक्टर्स, वकील वगैरह भी पीछे नहीं रहते, वे भी मांगों की फेहरिस्त लेकर खड़े हो जाते हैं. लेकिन इन सबके बीच एक बहुत बड़ा वर्ग
चुपचाप खड़ा रहता है और कहना-बोलना तो बहुत चाहता है लेकिन मौका नहीं मिल पाता है. इसलिए हर साल का बजट उसके लिए कोई खास मायने नहीं रखता है. यह मिडल क्लास है.
कभी-कभार सरकार कुछ दे भी देती है. लेकिन यही मिडल क्लास है जो देश की अर्थव्यवस्था का पहिया घुमाता रहता है. उसके खपत करने की ताकत से जीडीपी का बढ़ना संभव होता है. कोरोना काल में भी उसने अपनी खरीदारी या खपत की ताकत दिखाई और मृतप्राय अर्थव्यवस्था में जान फूंक दी. लेकिन आज इस मिडस क्लास को आगे बढ़ने और अपने
सपने पूरे करने के लिए सरकार की मदद या यूं कहें कि वित्त मंत्री से राहत की मांग करनी पड़ रही है-वह भी गैर संगठित तरीके से.
मिडल क्लास इस बार वित्त मंत्री से काफी कुछ चाह रहा है और सच तो यह है कि उनके पास देने को काफी कुछ है. उनकी तिजोरी भरी हुई है और टैक्स वसूली भी खूब हो रही है. प्रत्यक्ष कर बोर्ड यानी सीबीडीटी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 10 जनवरी 2023 तक कुल प्रत्यक्ष कर वसूली 14.71 लाख रुपये हुई जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 24.58 फीसदी ज्यादा है. इतना ही नहीं उम्मीद है कि यह सिलसिला जारी रहेगा. रिफंड वगैरह देने के बाद यह राशि 12.31 लाख रुपये है जो पिछले वर्ष की तुलना में 19.55 फीसदी ज्यादा है और यह बजट में डायरेक्ट टैक्स वसूली के अनुमानों का 86.68 फीसदी है. यानी सरकारी खजाना अनुमान से ज्यादा भरेगा.
दूसरी ओर परोक्ष कर यानी इनडायरेक्ट टैक्स में भी अब तक 24 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है जबकि कॉरपोरेशन टैक्स में भी आशातीत बढ़ोतरी हुई है और कुल प्राप्ति 6.35 लाख करोड़ रुपए रही है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में टैक्स वसूली पिछले बारह वर्षों से लगातार बढ़ती जा रही है.
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ऑक्सफैम की रिपोर्ट और टैक्स देने वाला आम आदमी
इस समय जो खबर मिडल क्लास के लोगों के दिलों में चुभ रही है, वह है ऑक्सफैम नाम की अंतर्राष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट जिसमें बताया गया है कि भारत के 21 सबसे बड़े अरबपतियों के पास देश के 70 करोड़ लोगों से ज्यादा दौलत है.
दावोस में पेश की गई इस रिपोर्ट में बताया गया कि अगर भारत के अरबपतियों पर सिर्फ दो फीसदी ही टैक्स लगाया जाये तो इससे अगले तीन साल तक कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए सभी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया हैं कि 2012 से 2021 तक भारत में जितनी संपत्ति सृजित हुई उसका 40 फीसदी देश के महज एक फीसदी अमीरों के हाथों में गया. वहीं 50 फीसदी जनता के हाथ में महज तीन फीसदी संपत्ति ही आई है.
इस रिपोर्ट का लब्बे-लुआब यह है कि यहां आर्थिक विषमता तेजी से बढ़ती जा रही हैं और जो भी नई संपत्ति सृजित हो रही है उसका बहुत बड़ा हिस्सा मुट्ठी भर उद्योगपतियों, कारोबारियों वगैरह को जा रहा हैं जो अरबपति से खरबपति बनते जा रहे हैं. जनता कमोबेश वहीं खड़ी है जबकि, उसकी मेहनत में कोई कमी नहीं है.
इन पूंजीपतियों ने रोजगार के नये मार्ग खोलने की बजाय अपनी-अपनी कंपनियों के लाभ बढ़ाने के लिए छंटनी का भी सहारा लिया जिससे लाखों लोगो का रोजगार छिन गया.
ज़ाहिर है इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद सरकार को कोई न कोई कदम उठाना ही पड़ेगा और आसान सा रास्ता है कि टैक्सों में कटौती की जाये. उम्मीद है कि इस बार वित्त मंत्री टैक्स स्लैब में बदलाव करेंगी और न केवल न्यूनतम इनकम टैक्स की सीमा बढ़ाएंगी बल्कि पांच लाख रुपये से अधिक आय वालों के लिए भी कुछ राहत देंगी.
मुद्रास्फीति के प्रभाव को देखते हुए वित्त मंत्री स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा में बढ़ोतरी कर सकती हैं. यह एक तार्किक कदम हो सकता है. संभवतः वह स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ाकर 40,000 रुपये तक कर सकती हैं.
बचत करना मुश्किल
जनता चाहती है कि होम लोन ईएमआई में राहत दी जाये तथा बच्चों के एजुकेशन फी वगैरह में छूट की सीमा बढ़ाई जाये. होम लोन लेने वालों को अब बढ़ती हुई ब्याज दरें परेशान कर रही हैं. इसके अलावा इस बार वित्त मंत्री सीनियर सिटीजन्स के लिए मेडिकिल इंश्योरेंस पर लगे भारी-भरकम जीएसटी को घटाये क्योंकि पिछले सालों में स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम के नाम पर जनता की जेब से मोटी रकम निकाली जाने लगी है. या फिर वित्त मंत्री इस मद में मिलने वाली टैक्स छूट के लिए 25,000 रुपये को बढ़ाकर कम से कम 40,000 रुपये तक कर सकती हैं.
वित्त मंत्री बच्चों के एजुकेशन फी पर छूट की सीमा भी बढ़ा सकती हैं क्योंकि स्कूलों की फीस तो काफी बढ़ ही गई है होस्टल के खर्च भी बढ़ गये हैं. अभी यह 80 सी के अंतर्गत ही है. सच तो यह है कि समय आ गया है कि 80 सी के अंतर्गत निवेश करके इनकम टैक्स में छूट की डेढ़ लाख रुपये तक की छूट की सीमा काफी पुरानी हो चुकी है और लोग बचत नहीं कर पा रहे हैं. महंगाई की वज़ह से उनकी बचत करने की क्षमता भी प्रभावित हुई है.
आम घरों का बचत वित्त वर्ष 2022 में गिरकर महज 10.8 फीसदी रह गया जबकि 2020-21 में यह 15.9 फीसदी था. इसका बुरा प्रभाव लघु बचत योजनाओं पर पड़ रहा है, बढ़े हुए खर्चों और महंगाई के कारण लोग पर्याप्त बचत नहीं कर पा रहे हैं. यह सरकार के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि वह जनता की बचत के पैसे से ही अपनी बहुत सी योजनाओं को लागू कर पाती है.
आखिरी पूर्ण बजट
इस बार यानी 2023-24 का बजट लोक सभा चुनाव के पहले का पूर्ण बजट होगा. ज़ाहिर है कि मोदी सरकार चाहेगी कि कई सारी ऐसी घोषणाएं इसमें हों जो लोक लुभावन ही नहीं, वोट खींचने वाली हों. सच तो यह है कि यह देश वोट की राजनीति पर चलता है और यहां ज्यादातर उसी तरह के कदम उठाये जाते हैं जिनसे वोट मिलें. यह बात इस बार भी सच होती दिखेगी, ऐसा विश्लेषकों का मानना है. इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि वित्त मंत्री किसानों और खेती के लिए अपने खजाने का मुंह खोल देंगी.
एक और बात हो सकती है. वित्त मंत्री इस बार वह सुपर रिच वर्ग के टैक्स में बढ़ोतरी भी कर दें जैसा यूपीए सरकार ने किया था. इससे उसकी लोकप्रियता में निश्चित रूप से बढ़ोतरी होगी. यहां पर यह भी बताना जरूरी हो जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में अच्छी खासी कमी आई है. ध्यान रहे कि वर्तमान वित्त मंत्री ने कुछ साल पहले कॉरपोरेट टैक्स को 25 से बढ़ाकर 30 फीसदी किया था लेकिन उद्योग लॉबी के दबाव में उसे घटाकर फिर से 25 फीसदी कर दिया था.
दिल थाम कर बैठिये. बस बजट प्रस्तावों की घोषणा शीघ्र ही होने वाली है. उम्मीद पूरी है कि यह एक आकर्षक बजट होगा जिसमें हर किसी के लिए कुछ न कुछ होगा.
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