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Wednesday, 23 October, 2024
होमफीचरझरने, गुफाएं, टाइगर रिजर्व: पर्यटन के जरिए कैसे अपनी छवि बदलने की कोशिश कर रहा है बिहार

झरने, गुफाएं, टाइगर रिजर्व: पर्यटन के जरिए कैसे अपनी छवि बदलने की कोशिश कर रहा है बिहार

बिहार लंबे समय से बनी अपनी नकारात्मक छवि को बदलने की कोशिश कर रहा है और पर्यटन इसका सबसे नया प्रयास है. बड़ी इंडस्ट्रियों के अभाव में राज्य ने राजस्व बढ़ाने का एक आसान तरीका चुना है.

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राजगीर, बिहार: नमन कुमार अपने ड्रोन को उड़ाने के लिए सबसे अच्छा एंगल तय नहीं कर पा रहे हैं. राजगीर में बादलों के बीच घिरी स्थित पहाड़ी पर बने कांच के पुल (ग्लास ब्रिज) को कैमरे में कैद करने के लिए वे एक बेहतरीन शॉट की तलाश में हैं. 21-वर्षीय यूट्यूबर ने वायरल कंटेंट की तलाश में अपने दो दोस्तों के साथ जहानाबाद से 60 किलोमीटर तक बाइक राइड की. इस दौरान भारी बारिश भी उनके इरादों को नाकाम नहीं कर पाई. यह सब ज्यादा से ज्यादा सब्सक्राइबर्स हासिल करने की कोशिश है. राज्य के पर्यटन विभाग ने कंटेंट क्रिएटर्स के लिए रील बनाने का मुकाबला शुरू किया है, जिसमें एक लाख रुपये तक के इनाम दिए जाएंगे.

कुमार ने अपने दोस्तों का हाथ कसकर पकड़कर 130 फीट लंबे और छह फीट चौड़े ब्रिज पर कदम रखा. उनके दोस्त उनके चेहरे के डरे हुए भावों को देखर हंस रहे थे. पुल ज़मीन से 250 मीटर की ऊंचाई पर है और एक बार में केवल 15 लोग ही इस पर कदम रख सकते हैं.

नागपुर स्थित एडवेंचर पार्क और राइड्स कंपनी नेल इंडिया एडवेंचर्स द्वारा 2020 में बनाए गए पुल को देखकर कुमार ने कहा, “का गजब चीज़ बनाए देले भाई अपना बिहार में.” राजगीर पुल चीन के हांगझोऊ में बने ग्लास ब्रिज के जैसा ही है.

कुमार ने रिमोट की मदद से ड्रोन को हवा में एडजस्ट करते हुए कहा, “ट्रांसपेरेंट (पारदर्शी) कांच के पुल पर चलना मेरे लिए रोमांचकारी अनुभव है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह बिहार में हो सकता है. हवा में लटका यह पुल चमत्कार की तरह है.” उन्होंने ईएमआई पर ड्रोन खरीदा है. उन्होंने कहा, “मैंने अपने लेंस के जरिए बिहार की अद्भुत जगहों को दिखाने का फैसला किया है, जिसे अब तक एक्सप्लोर नहीं किया गया है.”

बिहार लंबे समय से अपनी बनी नकारात्मक छवि को बदलने की कोशिश कर रहा है और पर्यटन इसका नवीनतम प्रयास है. बड़े उद्योगों की कमी के कारण राज्य ने राजस्व बढ़ाने का एक आसान तरीका चुना है. बिहार एक ऐसी डेस्टिनेशन नहीं है जहां से कोई दुनिया को पोस्टकार्ड्स भेज सके, लेकिन राज्य अब अपने धार्मिक सर्किट से परे भारत के पर्यटन मानचित्र पर खुद को लाने की कोशिश करके सभी को चौंका रहा है — राज्य अपने इतिहास में लौटकर प्रकृति के दिए तोहफों को दुनिया को दिखा रहा है. इस बदलाव की अगुआई में बिहार के युवा इन्फ्लुएंसर्स हैं जो राज्य की कम प्रसिद्ध जगहों पर जाते हैं, इंटरनेट पर उनकी वीडियो और रील्स पोस्ट करते हैं. वह बिहार के लोगों को अपने राज्य की खोज करने में मदद कर रहे हैं. इस बीच, नीति निर्माताओं ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, राजस्थान और उत्तराखंड के पर्यटन मॉडल का अध्ययन किया और बिहार के लिए नई पर्यटन नीति बनाई.

राजगीर के ग्लास ब्रिज का एरियल नज़ारा | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
राजगीर के ग्लास ब्रिज का एरियल नज़ारा | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

बिहार पर्यटन विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले दस सालों में राज्य में पर्यटकों की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई है. 2013 में 2.23 करोड़ पर्यटकों ने बिहार के विभिन्न स्थानों का दौरा किया. 2023 में यह संख्या बढ़कर 8.21 करोड़ हो गई. हालांकि, यह संख्या पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के पर्यटकों की संख्या का छठा हिस्सा है, जो 2023 में 48 करोड़ थी, लेकिन यह एक ऐसे राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव है जिसे अक्सर देश के सबसे कम विकसित क्षेत्रों में से एक माना जाता है.

बिहार सरकार पहली बार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई मोर्चों पर काम कर रही है. एक समर्पित पर्यटन नीति पेश करने से लेकर दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में बिलबोर्ड विज्ञापनों तक, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के साथ साइन अप करने और ज़मीनी स्तर पर बुनियादी ढांचा तैयार करने तक, राज्य बैकपैकर्स को एक संदेश दे रहा है.

बिहार के पर्यटन मंत्री नीतीश मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, “बिहार एक छवि का शिकार रहा है और ज़्यादातर लोगों ने बिना देखे ही राज्य के बारे में नकारात्मक धारणा बना ली है. जो लोग अब आ रहे हैं, उनका कहना है कि राज्य वैसा नहीं है जैसा वह इसके बारे में पहले सुनते थे.” उन्होंने कहा कि पर्यटन एक ऐसा क्षेत्र है जो बहुत अधिक निवेश लाता है और कई राज्यों की अर्थव्यवस्था इसके इर्द-गिर्द घूमती है और बिहार में बहुत अधिक संभावनाएं होने के बावजूद हम इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं.

इस क्षेत्र से जुड़े कई अधिकारी मानते हैं कि बिहार ने इस क्षेत्र में देरी से शुरुआत की है और अतीत में खराब सड़क संपर्क और बिजली को बड़ी बाधा बताया, लेकिन अब जब ये बाधाएं दूर हो गई हैं और राज्य में प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, तो सरकार पर्यटन बाज़ार का लाभ लेने की दिशा में आगे बढ़ रही है.

बिहार एक छवि का शिकार रहा है और अधिकांश लोगों ने बिना यहां आए ही राज्य के बारे में नकारात्मक धारणा बना ली है. जो लोग अब यहां आ रहे हैं, उनका कहना है कि राज्य वैसा नहीं है जैसा वे पहले सुनते थे

— नीतीश मिश्रा, बिहार के पर्यटन मंत्री

पटना सचिवालय में अपने कार्यालय में उम्मीद से भरे मिश्रा ने कहा, “ऐसी कई जगहें हैं जिन्हें मुख्यधारा में लाने की ज़रूरत है. आने वाले वर्षों में पर्यटन क्षेत्र बिहार की जीडीपी में प्रमुख भूमिका निभाएगा. अब हम तैयार हैं. हम इसे बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं ताकि असली बिहार, जिसे लोग नहीं जानते और जिसे उन्होंने कभी महसूस नहीं किया, दिखाया जा सके.”


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इन्फ्लुएंसर एंबेसडर

दीपक कुशवाहा अपने ड्रोन के साथ हर रविवार को बाइक पर रोहतास जिले और उसके आसपास के कम प्रसिद्ध जगहों की तलाश में निकलते हैं, उन्हें अपने कैमरे से कैद करते हैं और उन्हें बिहार के पर्यटन मानचित्र पर लाते हैं.

कुशवाहा, जो पहले एक डायग्नोस्टिक कंपनी के लिए काम करते थे, को 2021 में एहसास हुआ कि इन स्थानीय स्थलों के बारे में ऑनलाइन जानकारी गायब थी.

रोहतास के 100 किलोमीटर के दायरे में कई झरने, ऐतिहासिक रोहतासगढ़ किला और मुंडेश्वरी मंदिर (कैमूर) हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मंदिर को 108 ईस्वी का बताया है और यह 1915 से संरक्षित स्मारक है. मुंडेश्वरी मंदिर नागर शैली की मंदिर वास्तुकला का सबसे पुराना नमूना है.

रोहतास में कैमूर पहाड़ियों से बहने वाला एक झरना, धुआं कुंड | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
रोहतास में कैमूर पहाड़ियों से बहने वाला एक झरना, धुआं कुंड | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

शुरू में, कुशवाहा ने अपने मोबाइल कैमरे से तस्वीरें खींचीं, लेकिन वे इससे संतुष्ट नहीं थे. इसलिए उन्होंने ईएमआई पर एक ड्रोन खरीदा, जिसकी कीमत 1 लाख रुपये थी.

लगभग दो साल पहले तक, सासाराम के तुतला भवानी झरने को देखने के लिए केवल स्थानीय लोग ही आते थे. झरने के पास तुतला भवानी मंदिर उनका आकर्षण था. आज, यहां प्रतिदिन हज़ारों लोग आते हैं. पिछले साल, पर्यटन विभाग ने झरने तक बेहतर कनेक्टिविटी के लिए एक सस्पेंशन ब्रिज का निर्माण किया.

रोहतास में मांझर कुंड एक और जगह है, जिसने हाल ही में लोकप्रियता हासिल की है. साइट पर लगे वन विभाग के साइनबोर्ड के अनुसार, गुरु ग्रंथ साहिब को मांझर कुंड तक ले जाने की परंपरा थी. 17वीं शताब्दी से, सिख समुदाय के सदस्य हर साल सावन के महीने में तीन दिनों के लिए मांझर कुंड पर रुकते थे.

कुशवाहा ने कहा कि सभी पर्यटन स्थलों तक जाने वाली सड़कें अब बेहतर हो गई हैं और कनेक्टिविटी अब कोई मुद्दा नहीं है. उन्होंने कहा, “जब मैंने 2021 में काम शुरू किया था, तब रोहतास में धुआं कुंड और सीता कुंड जैसे झरनों तक जाने वाली सड़क कीचड़ से भरी होती थी.”

इस साल पटना में बिहार पर्यटन सम्मेलन का आयोजन किया गया, यह पहला ऐसा सम्मेलन था जिसमें पर्यटन क्षेत्र के सभी हितधारकों ने हिस्सा लिया | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
इस साल पटना में बिहार पर्यटन सम्मेलन का आयोजन किया गया, यह पहला ऐसा सम्मेलन था जिसमें पर्यटन क्षेत्र के सभी हितधारकों ने हिस्सा लिया | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

कुशवाहा अब पार्ट-टाइम वीडियो क्रिएटर हैं और इंस्टाग्राम पर “ग्रीनलाइफबिहार” नाम से पेज चलाते हैं. उनके 37,000 से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं, लेकिन वे अभी भी सरकार के रील मेकिंग प्रतियोगिता के पात्र नहीं हैं, जिसके तहत किसी इन्फ्लुएंसर के 50,000 से ज़्यादा फॉलोअर्स होने ज़रूरी हैं. उन्होंने शिकायत भरे लिहाज में कहा, “राज्य में ज़्यादातर पर्यटन इन्फ्लुएंसर जो अच्छा काम कर रहे हैं, उनके फॉलोअर्स की संख्या 50,000 से कम है, सिर्फ शहरी व्लॉगर्स के पास ही इतनी संख्या है.”

उनके वीडियो की लोकप्रियता ने उन्हें प्री-वेडिंग शूट जैसे काम के ज़्यादा मौके दिलाए, जो अब उनकी कमाई का मुख्य स्रोत है.

20 जुलाई को उन्होंने रोहतास में तुतला भवानी झरने का एक वीडियो पोस्ट किया, जिसका टाइटल था बिहार का एक अजूबा. कमेंट सेक्शन में कई लोग इस लोकेशन के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे. कुशवाहा ने दावा किया कि उनके वीडियो देखने के बाद कई पर्यटक बिहार घूमने आए हैं.

कुशवाहा ने याद किया कि कैसे उन्हें कोहरे से घिरे रोहतासगढ़ किले की एक तस्वीर के लिए तीन साल तक इंतज़ार करना पड़ा था. उन्होंने इस साल आखिरकार अगस्त में यह तस्वीर ली. वीडियो के नीचे एक कमेंट था: “बिहारी हैटर्स बी लाइक : ऐसा बिहार हो ही नहीं सकता इतना सुंदर); आप आज नहीं तो कल वायरल होने वाले हो भाई.”

उन्होंने कहा, “पिछले चार सालों में, मैं ऐसी जगहों पर रुका हूं जहां लोग शाम के बाद जाने से डरते हैं.”

2022 में कुशवाहा रोहतास के चौरासन मंदिर के पास एक टेंट में रात में रुके थे. वहां एक भी व्यक्ति नहीं था. उन्होंने याद किया कि इस जगह तक जाने वाली सड़कें सुनसान और दुर्गम थीं.

इनफ्लुएंसर्स, डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर्स और व्लॉगर बिहार पर्यटन के अनौपचारिक राजदूत हैं और पर्यटन विभाग के वन-लाइनर — ब्लिसफुल बिहार और बिहार को निहार — दिल्ली और मुंबई के बस स्टैंड, मेट्रो, रेलवे स्टेशनों पर राज्य के इन पर्यटन स्थलों के विज्ञापन मौजूद हैं.

बेंगलुरु के एक बस स्टैंड पर बिहार को निहार और ऐसे कईं स्थलों को दिखाने वाला एक होर्डिंग | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
बेंगलुरु के एक बस स्टैंड पर बिहार को निहार और ऐसे कईं स्थलों को दिखाने वाला एक होर्डिंग | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

मिश्रा ने स्वीकार किया, “राज्य के पर्यटन को बढ़ावा देने में इनफ्लुएंसर्स असली नायक हैं.” जून में मिश्रा ने पर्यटन विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर पर्यटन को बढ़ावा देने के विभिन्न तरीकों पर सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स और रेडियो जॉकी (आरजे) के साथ बैठक की थी.

आशीष कौशिक पटना के एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर हैं और वर्तमान में राज्य सरकार के साथ कई सारे टूरिज़्म प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं. 2017 में जब उन्होंने पहली बार रोहतास के मांझर कुंड और कैमूर पहाड़ियों की घुमावदार सड़कों जैसे पर्यटन स्थलों की तस्वीरें पोस्ट कीं, तो दर्शकों ने कहा कि वे भूटान की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “यह शुरुआत थी. बिहार के लोगों तक पहुंचने की शुरुआत थी.” उन्होंने कहा कि लोगों ने बिहार के बारे में सुना है, लेकिन इसे देखा नहीं है.

मुझे फोटोग्राफी का शौक है. इस हुनर के ज़रिए, मैंने बिहार के बारे में इस मिथक को तोड़ने का फैसला किया है कि राज्य में कुछ भी नहीं है. कोई भी यहां आना और घूमना नहीं चाहता था, लेकिन कुछ ही वर्षों में स्थिति पूरी तरह बदल गई है

— आशीष कौशिक, पटना स्थित डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर

कौशिक बिहार के कम चर्चित पर्यटन स्थलों के शुरुआती डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर में से एक हैं. उन्हें जिस चीज़ ने प्रेरित किया, वह नोएडा में अपने कॉलेज के दिनों में उनके साथ हुई अपमानजनक घटना थी. यह बिहार की पहचान का सवाल था.

27-वर्षीय कौशिक ने कहा, “मुझे फोटोग्राफी का शौक है. इस हुनर का इस्तेमाल करते हुए मैंने बिहार के बारे में यह मिथक तोड़ने का फैसला किया कि राज्य में कुछ भी नहीं है. कोई भी यहां आना और घूमना नहीं चाहता था, लेकिन कुछ ही सालों में स्थिति पूरी तरह बदल गई है.”

कौशिक ने कहा कि एक दशक पहले बिहार के ज़्यादातर पर्यटन स्थलों पर बुनियादी ढांचा पूरी तरह से नदारद था, लेकिन अब स्थिति में काफी सुधार हुआ है. 2018 तक वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व (VTR) में बहुत कम लोग आते थे और वहां सिर्फ एक सरकारी होटल था, लेकिन पिछले पांच सालों में रिजर्व के पास 50 से ज़्यादा होटल खुल गए हैं. यह देश के 54 बाघों का घर है और इसकी क्षमता सिर्फ 45 है.

पश्चिमी चंपारण स्थित वाल्मीकि टाइगर रिजर्व | फोटो: आशीष कौशिक/स्पेशल अरेंजमेंट
पश्चिमी चंपारण स्थित वाल्मीकि टाइगर रिजर्व | फोटो: आशीष कौशिक/स्पेशल अरेंजमेंट

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सोशल मीडिया आउटरीच और सपोर्ट

सितंबर में राज्य ने बिहार पर्यटन, ब्रांडिंग और मार्केटिंग पॉलिसी 2024 लॉन्च की, जिसका फोकस घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राज्य को उजागर करने के लिए आधुनिक मार्केटिंग तकनीकों के साथ हैरिटेज साइट्स को बढ़ावा देने पर है. राज्य जल्द ही पर्यटन क्षेत्र के लिए एक ब्रांड एंबेसडर नियुक्त करेगा. मेरा प्रखंड मेरा गौरव — अभियान स्थानीय लोगों को टारगेट करने के लिए है, ताकि वे अपने इलाकों में छिपे पर्यटन स्थलों को खोज सकें.

बिहार टूरिज्म हैंडल इंस्टाग्राम, फेसबुक और एक्स पर बहुत एक्टिव है. इसके कुल मिलाकर 2.25 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं.

राजगीर को बढ़ावा देने वाले पर्यटन डिपार्टमेंट के पेज पर एक फेसबुक पोस्ट में रोपवे, ज़ू सफारी और ग्लास ब्रिज को दिखाया गया है. कैप्शन है, “क्या आप भीड़-भाड़ से जल्दी छुटकारा पाना चाहते हैं? राजगीर आपके अगले वीकेंड के लिए एकदम परफेक्ट जगह है.”

बिहार टूरिज्म डिपार्टमेंट एक थीम सॉन्ग पर काम कर रहा है और हिस्ट्री टीवी जैसे कई अंतर्राष्ट्रीय चैनलों के माध्यम से पर्यटन स्थलों की डॉक्यूमेंट्री शूट करने के लिए चर्चा चल रही है.

बिहार का पर्यटन सर्किट आकार ले रहा है, यह टूर ऑपरेटर्स की बढ़ती संख्या और उनके द्वारा पेश किए जा रहे पैकेज में भी दिखता है, जो राज्य के लिए एक नई अवधारणा है.

बिहार पर्यटन विभाग एक थीम सॉन्ग बनाने पर काम कर रहा है और हिस्ट्री टीवी जैसे कई अंतर्राष्ट्रीय चैनलों के माध्यम से पर्यटन स्थलों की डॉक्यूमेंट्री शूट करने के लिए चर्चा चल रही है | फोटो: स्पेशल अरेजमेंट
बिहार पर्यटन विभाग एक थीम सॉन्ग बनाने पर काम कर रहा है और हिस्ट्री टीवी जैसे कई अंतर्राष्ट्रीय चैनलों के माध्यम से पर्यटन स्थलों की डॉक्यूमेंट्री शूट करने के लिए चर्चा चल रही है | फोटो: स्पेशल अरेजमेंट

टूर ऑपरेटर और बिहार पर्यटन संघ (टीएबी) के सचिव प्रकाश चंद्र ने कहा, “पिछले दो-तीन साल में ऑपरेटर वीकेंड पैकेज पेश कर रहे हैं, जिसमें गुफाओं और किलों में घूमना शामिल हैं.”

टीएबी के 125 से अधिक सदस्य हैं, जिनमें टूर ऑपरेटर, ट्रैवल एजेंट, ट्रैवल ब्लॉगर, गाइड, फोटोग्राफर शामिल हैं.

ऑपरेटर तीन रात-दो दिन का पैकेज दे रहे हैं, जिसमें वाल्मीकि नगर टाइगर रिजर्व, वैशाली, लौरिया नंदनगढ़ और बेतिया की यात्रा शामिल है. बिहार की गुफाओं का दौरा भी चार रात और पांच दिनों के लिए उपलब्ध है — जिसमें बराबर कैव्स, कौवा डोल, बोधगया, राजगीर और नालंदा शामिल हैं.

नालंदा विश्वविद्याल के खंडहर | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
नालंदा विश्वविद्याल के खंडहर | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

अगस्त में TAB ने पटना में राज्य का पहला पर्यटन सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें राज्य में पर्यटन विकास, धार्मिक पर्यटन-शक्ति और अवसर, अंतर-राज्यीय पर्यटन, पर्यटन संवर्धन-एक नज़रिए से आदि विषयों पर पैनल चर्चाएं हुईं.


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बीता वक्त, नई नीति पर फोकस

इंडिया टुडे टूरिज्म सर्वे 2023 में बिहार के दो स्थलों — वाल्मीकि टाइगर रिजर्व और कैमूर हिल्स — ने एडवेंचर और माउंटेन डेस्टिनेशन कैटेगरी में जीत हासिल की. आठ अक्टूबर को, नरेंद्र मोदी सरकार ने कैमूर में टाइगर रिजर्व के लिए हरी झंडी दे दी — यह राज्य में दूसरा रिजर्व होगा.

इस साल की शुरुआत में भारत की सबसे बड़ी हॉस्पिटैलिटी कंपनी ताज ने पटना में एक होटल खोला. नीतीश मिश्रा ने कहा, “पटना में ताज होटल के खुलने से हलचल मच गई है. बड़े ब्रांड अब बिहार आ रहे हैं, जो पहले नहीं हो रहा था.”

बड़े होटल ब्रांड्स का राज्य में प्रवेश राज्य के पर्यटन उछाल की एक और पहचान है. पिछले साल बोधगया में हयात होटल खुला था.

राजद सरकार के दौरान पर्यटन सचिव ने कहा, आज का बिहार 20 साल पहले के बिहार से बहुत अलग है.

उन्होंने कहा, “उस समय, सड़क संपर्क और बिजली प्राथमिकता थी. पर्यटन विभाग पर सबसे कम ध्यान दिया गया था. नीतीश कुमार को भी इस क्षेत्र पर ध्यान देने में 15 साल से अधिक का समय लग गया.”

2022 में वैशाली के अशोक स्तंभ का दौरा करने वाले ऑस्ट्रेलियाई प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के साथ डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर आशीष कौशिक (बीच में). कौशिक बिहार के अनोखे पर्यटन स्थलों का दस्तावेजीकरण करने वाले पहले लोगों में से एक हैं | फोटो आशीष कौशिक/स्पेशल अरेंजमेंट
2022 में वैशाली के अशोक स्तंभ का दौरा करने वाले ऑस्ट्रेलियाई प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के साथ डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर आशीष कौशिक (बीच में). कौशिक बिहार के अनोखे पर्यटन स्थलों का दस्तावेजीकरण करने वाले पहले लोगों में से एक हैं | फोटो आशीष कौशिक/स्पेशल अरेंजमेंट

पिछले साल नीतीश कुमार सरकार ने राज्य को विश्वस्तरीय पर्यटन केंद्र बनाने के उद्देश्य से पांच वर्षीय पर्यटन नीति बनाई थी. सरकार ने निवेशकों को पूंजीगत सब्सिडी देते हुए “लैंड बैंक” बनाने की पहल की है. 10 करोड़ रुपये के निवेश पर सरकार कुल 3 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे रही है. एससी/एसटी, ईबीसी, थर्ड जेंडर, एसिड अटैक सर्वाइवर्स के स्वामित्व और प्रबंधन वाली परियोजनाओं को 5 प्रतिशत अतिरिक्त सब्सिडी मिलती है.

कोई भी व्यक्ति जो नए होटल, रिसॉर्ट, वे-साइड एमिनिटीज, वेलनेस सेंटर, एंटरटेनमेंट जोन, एम्यूजमेंट पार्क, कैंपिंग साइट स्थापित करता है, वह सरकारी सब्सिडी के लिए पात्र है. सब्सिडी में भूमि की खरीद लागत शामिल नहीं है. प्रस्तावित वित्तीय प्रोत्साहनों के अनुसार, निवेशकों के लिए दो विकल्प हैं — पूंजीगत सब्सिडी और ब्याज में छूट. नई पर्यटन इकाइयों को पांच साल के लिए बिजली शुल्क, स्टांप शुल्क, भूमि रूपांतरण शुल्क पर 100 प्रतिशत प्रतिपूर्ति और एसजीएसटी का 80 प्रतिशत प्रतिपूर्ति मिलेगी.

नीतीश मिश्रा ने कहा, “पर्यटकों के आने-जाने के साथ-साथ बुनियादी ढांचा भी बहुत महत्वपूर्ण है, हम इस पर काम कर रहे हैं. बिहार आने वाले लोगों की संख्या हर साल बढ़ रही है और लोग अच्छी यादें लेकर जा रहे हैं और आने वाले समय में जब लोग बिहार में ज़्यादा दिन रुकेंगे, तो यहां की अर्थव्यवस्था को भी फायदा होगा.”

पर्यटन विभाग ने बेड-एंड-ब्रेकफास्ट योजना शुरू की है, जिसके तहत 15 जिलों — गया, नालंदा, कैमूर, रोहतास — के 28 पर्यटन स्थलों के आस-पास रहने वाले घर के मालिकों को पर्यटकों की मेज़बानी करने की अनुमति दी गई है.

बड़े प्रोजेक्ट्स अभी भी पारंपरिक केंद्रों पर ही जा रहे हैं. वैशाली में 315 करोड़ रुपये की लागत से बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय और स्मारक स्तूप का निर्माण किया जा रहा है. 2022 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजगीर के लिए हवाई अड्डे की घोषणा की. बोधगया में 145 करोड़ रुपये की लागत से 2022 में अंतर्राष्ट्रीय महाबोधि सांस्कृतिक केंद्र बनाया गया.

कौशिक ने कहा, “पुराने सर्किट के अलावा पर्यटन स्थलों के विकास में विविधता लाने की ज़रूरत है. कैमूर, रोहतास जैसे उन स्थानों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है, जहां पर्यटकों की आवाजाही बढ़ रही है. ज़मीनी स्तर पर अभी भी बहुत काम बाकी है.”

वित्त वर्ष 2025 के केंद्रीय बजट में बिहार को 58,900 करोड़ रुपये का विशेष पैकेज मिला, जिसका उद्देश्य राज्य को औद्योगिक, रसद और पर्यटन केंद्र में बदलना है. विष्णुपद मंदिर कॉरिडोर (गया) और महाबोधि मंदिर कॉरिडोर (बोधगया) का व्यापक विकास प्रस्तावित किया गया है. हालांकि, बिहार पर्यटन के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि अभी इस पर कोई प्रगति नहीं हुई है.

राज्य सरकार ने अगले दो वर्षों में कई परियोजनाएं शुरू की हैं.

पर्यटन विभाग के जनसंपर्क अधिकारी रविशंकर उपाध्याय ने बताया कि पर्यटन विभाग पर्यटकों के आंकड़े एकत्र करने के लिए विभिन्न पर्यटन स्थलों पर फुट क्रॉसिंग सेंसर जैसी नई तकनीक का उपयोग कर रहा है.

2023 में 5.46 लाख विदेशी पर्यटक बिहार आए, जो गोवा में आए 4.03 लाख विदेशी पर्यटकों से अधिक है. पर्यटन विभाग बिहार में आयोजित होने वाले बड़े मेलों जैसे सोनपुर मेला, श्रावणी मेला, पितृ पक्ष मेला में आने वाले पर्यटकों की संख्या को भी पर्यटकों के आंकड़ों में शामिल करता है. चर्चा के बावजूद, बिहार के पास इस क्षेत्र से राजस्व संग्रह के बारे में कोई डेटा उपलब्ध नहीं है.

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, पर्यटन के लिए बजट में लगभग छह गुना वृद्धि हुई है — 2018-19 में 84.6 करोड़ रुपये से 2022-23 में 490 करोड़ रुपये.

पिछले साल सरकार और आईआईएम बोधगया ने सोनपुर मेले के आर्थिक उत्पादन को समझने के लिए एक स्टडी की थी, जिससे पता चला कि मेले का बाज़ार मूल्य 500 करोड़ रुपये है. अब सरकार बिहार में आयोजित होने वाले ऐसे सभी मेलों का आर्थिक अध्ययन कराने पर विचार कर रही है.

उपाध्याय ने कहा कि सीतामढ़ी जिले में सीता की जन्मस्थली पुनौरा धाम में 100 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा. गया में 125 करोड़ रुपये की लागत से 1080 बिस्तरों वाली धर्मशाला बनाई जा रही है. पूर्वी चंपारण के केसरिया स्तूप के पास 20 करोड़ रुपये की लागत से बिहार के सभी प्रमुख स्तूपों की प्रतिकृति बनाई जा रही है. 15वीं सदी के मैथिली कवि विद्यापति के संपूर्ण जीवन पर 20 करोड़ रुपये की लागत से एक हेरिटेज सेंटर बनाया जा रहा है. गया में सरकार दुनिया के सात अजूबों की प्रतिकृति बनाने की योजना बना रही है. सुपौल में मिड-वे सर्विस प्लाजा बनाने की योजना है.

सुमित सिंह (दाएं) अपने तीन दोस्तों के साथ पटना से जहानाबाद आए. उन्हें राज्य में बुनियादी सुविधाओं की कमी को लेकर शिकायत है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
सुमित सिंह (दाएं) अपने तीन दोस्तों के साथ पटना से जहानाबाद आए. उन्हें राज्य में बुनियादी सुविधाओं की कमी को लेकर शिकायत है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

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संस्कृति में बदलाव की दरकार

सुमित सिंह और उनके तीन दोस्त जब पटना से जहानाबाद के बराबर कैव्स तक बाइक से जाने की योजना बना रहे थे, तो वह बहुत उत्साहित थे, लेकिन ऐतिहासिक प्रवेश द्वार के खुलने के बाद उनका उत्साह निराशा में बदल गया.

बराबर कैव्स भारत की दुर्लभ चट्टानी गुफाओं में से एक हैं. सिंह और उनके दोस्त 300 से अधिक सीढ़ियां चढ़कर पहाड़ की चोटी पर स्थित शिव मंदिर पहुंचे, लेकिन उनकी थकान ने इस आनंद को पछतावे में तब्दील कर दिया.

20-वर्षीय सिंह ने कहा, “यहां किसी भी चीज़ की कमी नहीं है. यहां गुफाएं, प्रकृति के नजारे और फल्गु नदी तो दिखती है, लेकिन रास्ते में एक भी दुकान नहीं है, जहां पीने का पानी हो. बिहार सरकार पर्यटन को इतना बढ़ावा दे रही है, जबकि ग्राउंड पर कोई बुनियादी ढांचा नहीं है.”

कैमूर और रोहतास में स्थित झरनों के आसपास भी बुनियादी ढांचे की कमी साफ दिखाई देती है. दोनों जिलों में तेलहर कुंड, मांझर कुंड, धुआं कुंड, तुतला भवानी जैसे एक दर्जन से ज़्यादा झरने हैं. पिछले दो सालों में यहां पहुंचने के लिए सड़कें कुछ हद तक बेहतर हुई हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं.

यहां किसी भी चीज़ की कमी नहीं है. यहां गुफाएं, प्रकृति के नजारे और फल्गु नदी तो दिखती है, लेकिन रास्ते में एक भी दुकान नहीं है, जहां पीने का पानी हो. बिहार सरकार पर्यटन को इतना बढ़ावा दे रही है, जबकि ग्राउंड पर कोई बुनियादी ढांचा नहीं है

— स्थानीय पर्यटक सुमित सिंह

औद्योगीकरण के मामले में बिहार जैसा ही राज्य मध्य प्रदेश ने खुद को भारत में सबसे बड़े पर्यटन केंद्र के रूप में पेश किया है और बड़ी सफलता हासिल की है. इसने अपने किलों की देखभाल की है, कई राष्ट्रीय उद्यानों से बाघों की दहाड़ पर्यटकों को आकर्षित करती है. दो दशकों में इसकी संस्कृति में बदलाव आया है. बिहार को अभी बहुत दूर जाना है.

बराबर की गुफाओं के बाहर खीरे और चने बेचने वाले इस बूढ़ व्यक्ति के पास कैव्स की चाबियां रहती हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
बराबर की गुफाओं के बाहर खीरे और चने बेचने वाले इस बूढ़ व्यक्ति के पास कैव्स की चाबियां रहती हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

सुमित सिंह और उनके दोस्तों की निराशा सिर्फ बुनियादी ढांचे तक सीमित नहीं थी. इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि यहां आतिथ्य का अभाव है. बराबर कैव्स की चाबियां, जो कि एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक है, एक बूढ़े व्यक्ति के पास थी, जिन्होंने प्लास्टिक की मेज पर एक खोखा लगा रखा था और वहां खीरे और चने बेच रहे थे.

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