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Saturday, 21 September, 2024
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कपिल शर्मा और वीर दास से पहले थे — राजू श्रीवास्तव आम लोगों के कॉमेडी के बादशाह

राजू श्रीवास्तव की हास्य-व्यंग्य की शैली दर्शकों को खूब पसंद आई, लेकिन भारतीय स्टैंड-अप के बढ़ने के साथ उनकी लोकप्रियता कम होती गई.

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कुली के सेट पर एक जानलेवा दुर्घटना का शिकार हुए, तो कानपुर के 18-वर्षीय एक व्यक्ति ने अपने आइडल से मिलने के लिए सब कुछ छोड़ दिया. कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव ने न केवल अपना सपना साकार किया, बल्कि कॉमेडी की दुनिया में अपनी एक अलग जगह भी बनाई और आखिरकार ‘कॉमेडी के बादशाह’ की उपाधि अर्जित की.

श्रीवास्तव ने एक बार एक टेलीविजन शो में खुलासा किया था, “मैंने शोले (1975) देखी थी और जय की मृत्यु से इतना प्रभावित हुआ था, जिसके बारे में मैं मासूमियत से मानता था कि वो असल ज़िंदगी में मर गया है, और मैं उसका अवतार बन गया.” बच्चन के प्रति यह गहरी प्रशंसा उनके शुरुआती करियर की आधारशिला बन गई.

कॉमेडियन की प्रसिद्धि को बढ़ाने में अमिताभ की मिमिक्री, परखने वाला हास्य और रोजमर्रा की ज़िंदगी की विचित्रताओं की जांच करने वाले संबंधित पात्रों द्वारा चिह्नित की गई थी. वे आम आदमी के कॉमेडियन थे, “छोटे शहरों की चिंताओं के ब्रांड एंबेसडर”, उस समय जब भारत में स्टैंड-अप अभी भी शुरू नहीं हुआ था — कपिल शर्मा, वीर दास और केनी सेबेस्टियन से कईं पहले.

परखने वाले हास्य के उनके ब्रांड ने दर्शकों को प्रभावित किया. अपने मंचनों के जरिए, उन्होंने गजोधर भैया जैसे पात्रों का निर्माण किया, जो एक ग्रामीण व्यक्ति थे, जिनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर तीखी टिप्पणियां साधारण को असाधारण पंचलाइन में बदल देती थीं. चाहे वे गांव के चौराहे पर जम्हाई लेती गाय हो या शादी के बुफे की अराजकता या बॉम्बे लोकल ट्रेन की दिक्कतें, श्रीवास्तव ने आम ज़िंदगी की छोटी-छोटी बातों को कंटेंट के लिए खंगाला. ममता बनर्जी और लालू प्रसाद यादव जैसे राजनेता भी इससे अछूते नहीं थे.

लेकिन उनकी कॉमेडी बदलते भारत के साथ तालमेल नहीं बिठा पाई.

पॉडकास्ट होस्ट अनुराग माइनस वर्मा ने दिप्रिंट में लिखा, “राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी वैसी ही रही और समय के साथ, बिना किसी नयेपन के दोहराव वाली बन गई.”

‘कॉमेडी के बादशाह’

सत्य प्रकाश श्रीवास्तव का जन्म कवि पिता के घर हुआ था, वे साहित्यिक समारोहों वाले माहौल के ईर्द-गिर्द में पले-बढ़े. ऐसे ही एक कार्यक्रम में पड़ोस के एक बुजुर्ग ने उन्हें “राजू” नाम दिया, जो उनके दिल में बस गया. किशोरावस्था में उन्होंने स्थानीय शादियों में परफॉर्म करना शुरू कर दिया, एक शराबी मिमिक्री कलाकार की जगह ली और बच्चन की नकल करके दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

1980 के दशक में उन्होंने अपनी नकल और मूल चुटकुलों को दिखाते हुए एक ऑडियो कैसेट, ‘हंसना मना है’ जारी किया और यह काफी हिट रहा, जिसने बॉलीवुड की पार्श्व गायिका आशा भोसले का ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने उन्हें संगीत निर्देशक जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी से मिलवाया. जल्द ही, राजू श्रीवास्तव जॉनी लीवर के साथ लाइव शो में रेगुलर शामिल होने लगे.

जैसे-जैसे स्टैंड-अप कॉमेडी भारत में लोकप्रिय होने लगी, खासकर ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ जैसे शो के साथ, श्रीवास्तव का करियर आसमान छूने लगा. शो के एक स्पिन-ऑफ में उन्हें “कॉमेडी के बादशाह” का खिताब दिया गया था, जिसमें उन्होंने बॉलीवुड की अपनी छापों से बाहर निकलकर अपने अवलोकनात्मक हास्य का प्रदर्शन किया था. हालांकि, वे अपनी जड़ों को कभी नहीं भूले, मेलों में परफॉर्म करते रहते थे और हमेशा चमकीले रंग के कपड़े पहनना एक मुद्दा बनाते थे.

उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, “मैं लखनऊ और पटना जैसे शहरों में मेलों में परफॉर्म करता हूं, जहां बड़ी भीड़ इकट्ठा होती है. इस तरह के कपड़े पहनने से लोग मुझे दूर से ही पहचान लेते हैं.”

उनकी बेटी अंतरा अपने ‘टास्कमास्टर पिता’ के बारे में प्यार से बात करती हैं, जो उन्हें कड़ी मेहनत का पाठ पढ़ाते थे और उन्हें उनकी जड़ों की याद दिलाते थे.

उन्होंने कहा, “वे हमेशा सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करते थे और लोगों के साथ अपनी बातचीत की हर डिटेल को याद रखते थे जो बाद में उनके मंचनों का हिस्सा बन गए. यही उनकी कॉमेडी की खासियत थी”.

उनके भतीजे, निर्देशक कुणाल श्रीवास्तव उन्हें “ज़िंदगी सिखाने वाले” के रूप में याद करते हैं.

कुणाल ने दिप्रिंट को बताया, “उन्होंने मुझे मेरे पहले जन्मदिन पर केक काटना सिखाया…जब मैं 10 साल का था, तो उन्होंने मुझे बताया कि मुंबई में फिल्में कैसे बनाई जाती हैं और जब मैं 25 साल का हुआ, तो उन्होंने मुझे बताया कि मैं अपनी फिल्म कैसे बनाऊं और मुझे मेरा पहला हैंडीकैम दिया — ऐसा गिफ्ट जिन्होंने मेरी यात्रा को आकार दिया.”


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कॉमेडी में बदलाव और घटती प्रासंगिकता

श्रीवास्तव ने कपिल शर्मा, भारती सिंह, सुनील ग्रोवर और कृष्णा अभिषेक जैसे हास्य कलाकारों की अगली पीढ़ी के लिए आधारशिला रखी.

उनका हास्य बेहद निजी था, जिससे दर्शकों को ऐसा लगता था कि वे उनके साथ हैं और वे रोज़मर्रा की ज़िंदगी की बेतुकी बातों का मज़ाकिया अंदाज़ में विश्लेषण करते हैं.

प्रशंसकों के साथ इस गहरे जुड़ाव ने राजनीतिक दलों का ध्यान खींचा. 2014 में समाजवादी पार्टी (सपा) ने उन्हें कानपुर से लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारा, लेकिन उन्होंने स्थानीय समर्थन की कमी का हवाला देते हुए चुनाव लड़ने से मना कर दिया. कुछ ही समय बाद, वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए और उन्हें स्वच्छ भारत अभियान का राजदूत नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने विभिन्न सार्वजनिक मंचों के माध्यम से इस पहल को प्रभावी ढंग से बढ़ावा दिया.

हालांकि, भारत में स्टैंड-अप कॉमेडी के बढ़ने के साथ श्रीवास्तव की अपील कम होने लगी, जबकि श्रीवास्तव का हास्य टेलीविजन पर खूब फला-फूला, लेकिन डिजिटल युग ने फिर से नई चुनौतियां खड़ी कर दीं. भिखारियों का किरदार निभाने सहित उनकी कुछ पुरानी भूमिकाओं की आलोचना की गई, जबकि बाद के वर्षों में उन्हें इस्लामोफोबिक कंटेंट के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.

इन बदलावों के बावजूद, श्रीवास्तव का भारतीय कॉमेडी पर प्रभाव निर्विवाद है.

जब 21 सितंबर 2022 को 58-साल की उम्र में कार्डियक अरेस्ट के कारण उनका निधन हुआ, तो साथियों से लेकर राजनेताओं तक सभी ने उनकी मृत्यु पर शोक व्यक्त किया. हालांकि, आजीवन बच्चन के प्रशंसक के लिए शायद यह उचित विदाई खुद अमिताभ बच्चन ने दी. अपने ब्लॉग में अमिताभ बच्चन ने बताया कि कैसे श्रीवास्तव के निधन से एक दिन पहले, उन्होंने कॉमेडियन को 1971 की फिल्म आनंद से उनकी प्रसिद्ध पंक्तियों को उद्धृत करते हुए एक वॉयस नोट भेजा था.

बच्चन ने लिखा, “मैंने इसे रिकॉर्ड किया, उन्होंने इसे श्रीवास्तव के लिए बजाया…एक बार उन्होंने अपनी आंख थोड़ी खोली और फिर चले गए.”

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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