नई दिल्ली: इतिहासकार वान्या वैदेही भार्गव की नई किताब, Being Hindu, Being Indian: Lala Lajpat Rai’s Ideas of Nationhood के विमोचन के बाद पंजाब के यह शेर फिर से सुर्खियां में हैं, लेकिन सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी, विभाजन से पहले की संस्था जिसे राय ने 1921 में राष्ट्र निर्माण के लिए स्थापित किया था, दशकों से काफी हद तक नज़रअंदाज की गई है.
सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी (SOPS) को गरीबी से लड़ने के लिए स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शवाद में ढाला गया. यह 103 साल पुरानी संस्था केवल अतीत का एक दर्शन नहीं है. यह योगा, मसाला सेंटर्स जैसी पहलों के साथ भी काम कर रही है और यहां तक कि फल-फूल भी रही है. लेकिन राष्ट्र की सेवा के लिए स्वयंसेवकों की एक सेना बनाने का इसका मिशन लड़खड़ा भी रहा है.
राय ने अपने प्रस्तावना में लिखा था, “शुरू से ही विचार यह रहा है कि ऐसी राष्ट्रीय मिशनरी तैयार की जाएं जिनका एकमात्र उद्देश्य सेवा की भावना से अपना पूरा समय राष्ट्रीय कार्य के लिए समर्पित करना हो, बिना अपने सांसारिक हितों को आगे बढ़ाने और पदोन्नति की लालसा के.” यह प्रस्तावना एसओपीएस की 1927 में आई पहली वार्षिक रिपोर्ट में छपी थी.
दक्षिण दिल्ली के लाजपत नगर के पास मूलचंद मेट्रो स्टेशन के ठीक बगल में पांच एकड़ में फैली सोसाइटी की एक स्थायी विरासत इसकी महत्वाकांक्षी लाइब्रेरी है जिसमें 60,000 से अधिक किताबें हैं. यह वो जगह है जहां स्टूडेंट्स जो भारत के कामकाजी समाज में शामिल होने का सपना तो देखते हैं, लेकिन निजी कोचिंग की फीस भरने में सक्षम नहीं हैं और वो सिविल सेवा जैसी परीक्षाओं की तैयारी के लिए यहां इकट्ठा होते हैं.
लाजपत नगर वाले मुख्यालय में योगा सेशन चलते हैं, नेचुरोपैथी सेंटर चलाया जाता है, डेंटल सर्विस के लिए एक क्लिनिक है, एक जिम और स्पा सेंटर भी है. यहां इन सुविधाओं के अलावा मसाले और दालें भी बेची जाती हैं. सोसाइटी के आस-पास के निवासियों, युवा और वृद्ध दोनों के लिए है. इन पहलों के ज़रिए SOPS अपने खर्चों को पूरा करने के लिए पैसे जुटाता है. हालांकि, सर्विस रियायती दरों पर दी जाती हैं.
“आज की पीढ़ी में सेवा भाव की कमी है. लोग व्यक्तिगत लाभ के बिना कुछ भी नहीं करना चाहते हैं.”
राय की परपोती अनीता गोयल बताती हैं, “सोसायटी भी समस के साथ बदल रही है और उसके अनुसार अपनी गतिविधियों और सेवाओं में बदलाव भी कर रही है.” उन्होंने आगे कहा कि सोसाइटी के मूल मूल्य नहीं बदले हैं. “लाला जी हमेशा ज़मीनी स्तर पर बदलाव लाना चाहते थे और सोसाइटी अभी भी शिक्षा प्रदान करके, बुजुर्गों की सेवा करके और अन्य तरीकों से अपने मसाला केंद्रों में महिलाओं को रोज़गार देकर ऐसा कर रही है.”
राय, जिन्हें लोकप्रिय रूप से ‘पंजाब केसरी’ के नाम से जाना जाता था, स्वतंत्रता, न्याय और समानता के आदर्शों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता रखते थे.
उन्होंने एक बार कहा था: “अगर मेरे पास भारत में अखबारों और पत्रिकाओं को बदलने या प्रभावित करने की शक्ति होती, तो मैं पहले पेज पर मोटे अक्षरों में लिखवाता : शिशुओं के लिए दूध, वयस्कों के लिए भोजन और सभी के लिए शिक्षा.”
आर्य समाज से अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले राय न्यूयॉर्क में रैंड स्कूल ऑफ सोशल साइंस जैसी संस्थाओं से प्रेरित थे, जो उन लोगों को “सामाजिक विज्ञान में शिक्षा” प्रदान करती थी, जिनकी परिस्थितियों के कारण वह रेगुलर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई नहीं कर पाते थे. वे चाहते थे कि स्वयंसेवक प्रकाश की किरण बनें और दूसरों के लिए एक उदाहरण बनें. सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी का औपचारिक उद्घाटन 9 नवंबर 1991 को महात्मा गांधी ने किया था.
लेकिन हर बीतते साल के साथ सोसाइटी के लिए स्वयंसेवक ढूंढना मुश्किल होता जा रहा है.
सोसाइटी के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “आज की पीढ़ी में सेवा भाव की कमी है. लोग बिना निजी लाभ के कुछ भी नहीं करना चाहते.” उन्होंने बताया, लाइफ मेंम्बर को बहुत कम उम्र में ही SOPS से जुड़ना होता है और बहुत कम पैसे में काम करना पड़ता है, लेकिन आज की पीढ़ी लेविश लाइफ जीने की शौकीन है.” जो व्यक्ति 20 की उम्र में एसओपीएस से जुड़ते हैं और अपनी पूरी ज़िंदगी सोसाइटी को समर्पित कर देते हैं, उन्हें लाइफ मेंम्बर्स कहा जाता है. एसओपीएस की दिल्ली शाखा में वर्तमान में 40 वॉलंटियर्स हैं.
लाहौर में स्थापित और विभाजन के बाद दिल्ली शिफ्ट की गई सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी के चंडीगढ़, मुंबई, बेरहामपुर, कानपुर और इलाहाबाद समेत देशभर में 17 सेंटर हैं.
सोसाइटी के अध्यक्ष राज कुमार ने कहा, “हम अभी भी बिना किसी सरकारी मदद के लगातार सामाजिक कल्याण का कार्य कर रहे हैं.” उन्हें इस बात पर गर्व है कि एसओपीएस आत्मनिर्भर है. कुमार ने कहा कि “हमारे सभी खर्च हमारे सोसायटी की आय और लोगों द्वारा स्वेच्छा से दिए गए दान से पूरे होते हैं. कई बार ऐसा होता है कि हमारे पास पैसे की कमी होती है, लेकिन फिर भी हम काम चला लेते हैं.”
जैसे-जैसे भारत आज़ादी के अमृत महोत्सव की ओर बढ़ रहा है, स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी नए सिरे से लिखी जा रही है. कुछ के नाम पर स्मारक और संग्रहालय बनाए जा रहे हैं और दूसरों का इतिहास की किताबों में दर्ज किया जा रहा है. हालांकि, उनमें से कुछ स्थायी संस्थागत विरासत का दावा कर सकते हैं.
गोयल ने भार्गव की किताब के विमोचन के अवसर पर दिप्रिंट से कहा, “लाला जी के बारे में बहुत सारी गलत जानकारी है. अधिकांश लोगों ने उनके काम को नहीं पढ़ा है और इसलिए वो नहीं जानते कि वे (लाला जी) एक महान वक्ता और सभी धर्मों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों के बड़े समर्थक थे.”
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क्लीनिक, मसाला और योगा सेंटर
चिलचिलाती धूप भरी दोपहर में 25-वर्षीया सेजल केशवानी लाइब्रेरी से बाहर निकलती हैं और पार्क में अपना लंच खाने के लिए एक बेंच ढूंढ रही हैं. आसपास शांति है और माहौल भी खुशनुमा है, लेकिन जिस उद्देश्य के लिए इसे बनाया गया था, उससे बहुत दूर है. यह अब एक स्पा, एक मेडिकल सेंटर, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स के लिए एक लाइब्रेरी और यहां तक कि मसालों और दालों के लिए एक दुकान भी है.
यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर रहीं केशवानी ने कहा, “मुझे यह जगह बहुत शांतिपूर्ण लगती है और लाइब्रेरी की रजिस्ट्रेशन फीस भी बाकी जगह की तुलना में कम है.”
आस-पास से गुजरते लोग कई बार बगीचे में लगे कई पेड़ों की छांव में बैठकर अपना खाना खाते हैं. कई लोग सामान खरीदने के लिए मसाला और नमकीन सेंटर पर रुकते हैं. जूस की दुकान पर खूब बिक्री होती है क्योंकि लोग मेट्रो से घर जाने से पहले संतरे, अंगूर, अनार और दूसरे फलों के जूस के ऑर्डर के साथ कतार में खड़े रहते हैं.
मसालों और नमकीन का एक सफेद प्लास्टिक बैग पकड़े हुए एक बुजुर्ग ने कहा, “हम दशकों से यहां से मसाले खरीदते आ रहे हैं. यहां ताज़े मसाले मिलते हैं. हम यहां के मसालों पर भरोसा करते हैं.” उनकी पत्नी एक छोटी सी दुकान में बनी अलमारियों में रखे पैकेटों के लेबल पढ़ने में व्यस्त हैं.
मसाला सेंटर पूरी तरह से महिलाओं द्वारा चलाया जाता है, जिन्हें सोसाइटी द्वारा सैलरी दी जाती है. महिलाओं में से एक ने कहा, “हम मिर्च और अन्य मसालों को ऊपर छत पर सुखाते हैं और उन्हें चक्की में पीसते हैं.”
एक बार, एक महिला एसओपीएस की सहायक सचिव ज्योति प्रकाश वर्मा के पास जाती हैं और पूछती हैं कि क्या सोसाइटी के स्पा से कोई स्टाफ घर आ सकते हैं. यह नियमों के खिलाफ है. उन्होंने गुज़ारिश की, “लेकिन यह मेरे पिता के लिए है; वे 92 साल के हैं.” वर्मा ने मेडिकल क्लिनिक की ओर इशारा करते हुए बताया कि यहां सभी डॉक्टर्स मुफ्त में सर्विस देते हैं. क्लिनिक में 50 रुपये के मामूली रजिस्ट्रेशन में 5 दिन की दवाई मुफ्त में मिलती है जो जूस के कीमत के समान है.
लाजपत नगर निवासी ललित कुमार ने कहा, “मैं पास में ही रहता हूं और हम कई साल से यहां की मेडिकल सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं. कैंपस बहुत साफ-सुथरा है और यहां की मेडिकल सुविधाएं बहुत सस्ती और अच्छी हैं.”
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युवाओं और बूढ़ों के लिए खानपान
एसओपीएस में बच्चों, युवा, कामकाजी लोगों और वरिष्ठ नागरिकों – सभी के लिए किसी न किसी प्रकार से सर्विसेस मौजूद है.
पुरूषोत्तम दास टंडन लाइब्रेरी में 20 से अधिक स्टूडेंट्स अपनी किताबों और लैपटॉप में अपनी पढ़ाई करते देखे जा सकते हैं.
राय ने अपनी प्रस्तावना में लिखा, “मेरी अपनी किताबें, शायद एक हज़ार या उससे भी ज्यादा क्योंकि मैंने उन्हें कभी नहीं गिना, इस लाइब्रेरी का केंद्रबिंदु बनीं.”
स्टील की अलमारियों की शेल्फ में हिंदी और अंग्रेज़ी में इतिहास, राजनीति विज्ञान, मेडिकल और इंजीनियरिंग की किताबों की कतार लगी हुई है. यहां तक कि एक फिक्शन किताबों का सेक्शन भी है जहां आर्थर कॉनन डॉयल के शेर्लोक होम्स के खंड रस्किन बॉन्ड, रॉबिन कुक, एलेक्स हेली (रूट्स: द सागा ऑफ एन अमेरिकन फैमिली एंड द ऑटोबायोग्राफी ऑफ मैल्कम एक्स), बिल ब्रायसन द्वारा लिखित किताबें मौजूद हैं और यहां तक कि स्वीडिश लेखक हाकन नेसेर की क्राइम थ्रिलर, वुमन विद बर्थमार्क भी.
कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में आधुनिक भारतीय इतिहास के पूर्व प्रोफेसर केएल तुतेजा ने कहा, “लाला लाजपत राय हमेशा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली चाहते थे, जो हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दे. राय हिंदू राष्ट्रवाद के समर्थक थे और भारत में ‘मुस्लिम प्रभुत्व’ के बारे में वीडी सावरकर की तरह ही चिंतित थे. हालांकि, बीइंग हिंदू, बीइंग इंडियन में, भार्गव का तर्क है कि राय कभी भी उग्रवाद के पक्ष में नहीं थे.”
लाइब्रेरी में वाई-फाई तो नहीं है, लेकिन स्टूडेंट्स जिन्होंने साल के लिए अनलिमिटेड एक्सेस के लिए 1,000 रुपये दिए हैं – अपने हॉटस्पॉट का इस्तेमाल कर सकते हैं. एक स्टूडेंट ने कहा, “मैं इस लाइब्रेरी में इसलिए आता हूं क्योंकि यहां इंटरनेट नहीं है. यहां कोई डिस्ट्रैक्शन नहीं है और मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सकता हूं.”
“यह जगह अब मेरा घर बन गई है.”
लाजपत नगर से करीब 21 किलोमीटर दूर सेक्टर 2, द्वारका में राय की सोसायटी द्वारा संचालित वृद्धाश्रम है – गोधुली सीनियर सिटीजन होम . 65-वर्षीया सीमा भट्टाचार्य तवे से उतरी ताज़ा रोटी खाती हैं. वे अपने बगल में बैठी महिला से कहती हैं, “इसे लौकी की सब्जी के साथ खाइए.” घर के अन्य पुरुष और महिला निवासी – सभी 60 और 70 के आसपास – भट्टाचार्य के साथ डाइनिंग रूम में खाना- खाते हैं.
गोधुली सीनियर सिटीजन होम का डाइनिंग रूम | फोटो: अलमिना खातून/ दिप्रिंटगोधुली, जिसका मतलब होता है गाय के पैरों से उड़ने वाली धूल, इसे एक निजी उद्यम की तरह चलाया जाता है, जहां निवासी 3-4 लाख रुपये की सुरक्षा राशि जमा करवाते हैं. 25 लोगों का स्टाफ 50 से अधिक बुजुर्ग निवासियों की देखभाल करता है. भट्टाचार्य बगीचे, मंदिर, एक जिम, एक एंटरटेनमेंट रूम, एक मेडिकल क्लिनिक और एक प्रार्थना कक्ष की ओर इशारा करते हुए बताती हैं, यहां सभी तरह की सुविधाएं हैं. नीचे हॉल में कुछ लोग चुपचाप अखबार पढ़ रहे हैं. यहां रहने वाले ज्यादातर लोग इस चार मंजिला इमारत में सिंगल और डबल कमरे के लिए 9,000 से 14,000 रुपये के बीच देते हैं.
भट्टाचार्य ने कहा, “मैं अपने बेटे और बहू के साथ रहती थी, लेकिन वे अपने काम में इतने व्यस्त थे कि मैं बिल्कुल अकेली हो गई थी. इसलिए मैंने यहां एक कमरा ले लिया. अब, मेरे पास दोस्त हैं. मैं शाम को टहलने या पास में रहने वाले अपने बेटे से मिलने के लिए बाहर जाती हूं.”
“यह जगह अब मेरा घर बन गई है.”
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अमेरिका की यात्रा
अनीता गोयल ने कहा, “सोसायटी बदल रही है और अपनी गतिविधियों और सेवाओं में बदलाव कर रही है, जो एक अच्छी पहल है.”
लाला लाजपत राय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले से प्रेरित थे, जिन्होंने 1905 में पुणे, महाराष्ट्र में सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी (एसआईएस) की स्थापना की थी.
तुतेजा ने कहा, “वे किसी भी विषय पर बोलने या लिखने से कभी नहीं कतराते थे, चाहे वो सामाजिक, सांस्कृतिक या धार्मिक विषय हो और वे पहले से ही गोखले की सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी से प्रभावित थे, जो लोगों को न केवल ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के अनुसार, नौकरियों के लिए तैयार कर रही थी, बल्कि उससे आगे भी कुछ करने के लिए तैयार कर रही थी.”
इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए राय ने भारत की शैक्षिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उन्नति के लिए काम करने के लिए राष्ट्रीय मिशनरियों को ट्रेनिंग देने के लिए अपना बंगला सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी को दान कर दिया था. यह वही घर है जहां से उन्हें 1907 में बर्मा (अब म्यांमार) के मांडले में निर्वासन से पहले गिरफ्तार किया गया था. अब यह नई दिल्ली के लाजपत नगर में सोसाइटी का मुख्यालय है.
भार्गव लिखती हैं, राय के अमेरिका में बिताए गए पांच साल के दौरान, उनकी मुलाकात कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री एडविन आरए सेलिगमैन जैसे लोगों से हुई, जिन्होंने उन्हें प्रिंसटन में अमेरिकी आर्थिक, समाजशास्त्र और सांख्यिकी एसोसिएशन की वार्षिक बैठकों में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया. उन्होंने द न्यू रिपब्लिक के तत्कालीन एडिटर, वाल्टर लिपमैन और हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले के प्रगतिशील बुद्धिजीवियों से मुलाकात की. उन्होंने बोस्टन, वाशिंगटन, शिकागो, अटलांटा, न्यू ऑरलियन्स, सैन फ्रांसिस्को और लॉस एंजिल्स की यात्रा की और जिम क्रो अमेरिका के “निर्बाध नस्लवाद” से हैरान थे.
यही वो समय था जब राष्ट्रीयता के बारे में उनकी दृष्टि में वह बदलाव आया जिसे भार्गव “पूर्णत: विपरीत” के समान बताती हैं.
वे लिखती हैं, “50-वर्षीय राय ने अब ‘धार्मिक राष्ट्रवाद’ और ‘सांप्रदायिक देशभक्ति’ की ‘झूठे विचारों’ के रूप में स्पष्ट रूप से आलोचना की और लगातार इस बात पर जोर दिया कि भारत के हिंदू और मुसलमान एक ही ‘भारतीय’ राष्ट्र के हैं.” भार्गव इस बदलाव का श्रेय “भारत से दूरी” को देती हैं, जिसने उन्हें “एक वैश्विक भावना प्रदान की जिसके माध्यम से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेद कम महत्वपूर्ण लगने लगे”. इसने सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी के लिए उनके दृष्टिकोण को भी सूचित किया.
सोसाइटी की सभी 17 शाखाएं अलग-अलग सेवाएं और गतिविधियां प्रदान करती हैं, जिनका प्रबंधन लाइफ मेम्बर्स द्वारा किया जाता है. वे सोसाइटी की आम सभा का गठन करते हैं, जो एक अध्यक्ष और कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों का चुनाव करती है. ये सात सदस्य ही हैं जो इस सोसाइटी को आगे बढ़ा रहे हैं.
सोसाइटी की रिपोर्ट, जो हर साल प्रकाशित होती है, के पीछे लाइफ मेम्बर्स की प्रतिज्ञा लिखी होती है: “देश की सेवा मेरे विचारों में पहले स्थान पर होगी और देश की सेवा में मैं व्यक्तिगत उन्नति के उद्देश्यों से प्रेरित नहीं होऊंगा.”
गोयल बताती हैं, “सोसायटी बदल रही है और अपनी गतिविधियों और सेवाओं में भी बदलाव कर रही है, जो एक बेहतरीन पहल है.” वे कहती हैं कि वो चाहती हैं कि अधिक से अधिक लोग उनके परदादा की कृतियों को पढ़ें और स्कूल और कॉलेज में राय के संघर्षों और उनके विचारों के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए.
गोयल आगे बताती हैं, “लेकिन उन्हें केवल उनकी जयंती और उस लाठीचार्ज के दिन ही याद किया जाता है, जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई.” वे 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में राय द्वारा किए गए अहिंसक मार्च का ज़िक्र कर रही थीं, जिसमें उन्होंने साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन किया था. साइमन कमीशन ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति थी, जिसे भारत सरकार अधिनियम 1919 (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) के कार्यान्वयन का अध्ययन करने के लिए नियुक्त किया गया था.
राय उससे कभी उबर नहीं पाए. उन्होंने उस समय कहा था, “मैं घोषणा करता हूं कि आज मुझ पर हुए हमले भारत में ब्रिटिश शासन के ताबूत में आखिरी कीलें साबित होंगे.” 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु — घटना के 15 दिन से कुछ अधिक समय बाद — ने ब्रिटिश शासन के अधीन भारत की आग को भड़का दिया था.
सोसाइटी में सभी शाखाओं के सदस्य विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और सेमिनारों का आयोजन करके राय की पुण्यतिथि मनाते हैं. अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय रेल मंत्री; कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और दिल्ली सरकार के पूर्व प्रधान सचिव एस रेगुनाथन, सोसाइटी में राय की जयंती समारोह में मुख्य अतिथि थे.
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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