नई दिल्ली: मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों की लगातार मौत के बाद उठ रहे सवाल पर ‘प्रोजेक्ट चीता’ के प्रमुख एसपी यादव ने कहा है कि किसी भी चीते की मौत “रेडियो कॉलर के कारण नहीं हुई है.” चीतों की लगातार मौत के बाद यह आशंका जताई जा रही थी कि उसके मौत का कारण रेडियो कॉलर से जुड़ा संभावित संक्रमण हो सकता है.
एसपी यादव ने एक स्पेशल इंटरव्यू में एएनआई से कहा कि पूरी दुनिया में मांसाहारी जानवरों की निगरानी रेडियो कॉलर द्वारा की जाती है. यह एक विकसित तकनीक है.
यादव राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के सदस्य सचिव भी हैं.
उन्होंने कहा, “इस बात में कोई सच्चाई नहीं है कि किसी चीते की मौत रेडियो कॉलर के कारण हुई है. मैं बताना चाहता हूं कि रेडियो कॉलर के बिना जंगल में उनकी निगरानी संभव नहीं है.”
यादव ने कहा, “कुल 20 चीते नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए थे. इनमें से 14 पूरी तरह से स्वस्थ हैं और अच्छा कर रहे हैं. भारत की धरती पर चार चीतों का जन्म भी हुआ है और उनमें से एक अब छह महीने का हो गया है और स्वस्थ है. तीन शावकों की मौत जलवायु संबंधी कारणों के चलते हुई.”
बता दें कि इस साल मार्च से लेकर अब तक कूनो नेशनल पार्क में नौ चीतों की मौत हो गई.
यादव ने कहा कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में “अवैध शिकार” के कारण किसी भी चीते की मौत नहीं हुई.
उन्होंने कहा, “आम तौर पर देखा जाता है कि दूसरे देशों में अवैध शिकार से मौतें होती हैं, लेकिन हमारी तैयारी इतनी अच्छी थी कि एक भी चीता अवैध शिकार या किसी भी प्रकार के जहर के कारण नहीं मरा है. साथ ही कोई भी चीता मानव संघर्ष के कारण नहीं मरा है.”
यादव ने कहा, “चीते को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में ले जाने का प्रयास कभी नहीं किया गया था. यह पहली बार था जब ऐसा हुआ. यह जंगल से दूसरे जंगल में उनका ट्रांसफर था. इसमें बहुत सारी चुनौतियां थीं. आमतौर पर, इस तरह की लंबी दूरी के ट्रांसफर में चीतों के मरने का डर रहता है, क्योंकि यह एक संवेदनशील जानवर है. लेकिन यहां ऐसी कोई मौत नहीं हुई और यह सफलतापूर्वक किया गया.”
यादव ने कहा कि चीता को 75 साल बाद पिछले साल देश में दोबारा लाया गया था.
उन्होंने कहा, “अगर हम पिछले साल को सफलता के नजरिए से देखें तो हमने जो बेंचमार्क तय किया था, उसे हासिल कर लिया गया है.”
उन्होंने कहा कि चीतों के जीवित रहने की दर 50 प्रतिशत से अधिक है.
यादव कहते हैं, “भारत की धरती पर चीतों का जन्म हुआ है. वे इस जलवायु के अनुकूल अपना दिनचर्या बना रहे हैं. अब वे अपना क्षेत्र भी बना रहे हैं और अपने क्षेत्र के लिए लड़ रहे हैं. यह सब प्राकृतिक है.”
यादव ने कहा कि एमओयू के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका हर साल 12 से 14 चीते देने के लिए तैयार है.
उन्होंने कहा, “चीतों के अगले बैच के लिए दो जगहों पर तैयारी चल रही है, जिसमें एक मध्य प्रदेश का गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य है, जहां बाड़े बनाने का काम बहुत तेज गति से चल रहा है. मुझे उम्मीद है कि नवंबर-दिसंबर में बाड़े का काम पूरा हो जाएगा और निरीक्षण के बाद वहां चीतों को लाने का निर्णय लिया जाएगा.”
अगस्त में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दक्षिण अफ्रीका दौरे के दौरान, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने भारत में चीतों को लाने की पहल की सराहना की और कहा कि उनका देश और अधिक चीते देने को तैयार है क्योंकि भारत बड़ी बिल्लियों की देखभाल अच्छी तरह से करता है.
पीएम मोदी ने पिछले साल 17 सितंबर को भारत में विलुप्त हो चुके जंगली चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था.
नामीबिया से लाए गए चीतों को ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत भारत में लाया गया था. यह दुनिया में पहली बार हुआ था जब एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में चीतों का ट्रांसफर किया गया था.
नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से बीस चीतों को दो बैचों में कुनो नेशनल पार्क लाया गया था. पहला बैच पिछले साल सितंबर में आया था जबकि दूसरा बैच इस साल फरवरी में आया था.
सभी चीतों में रेडियो कॉलर लगाए गए हैं और सैटेलाइट से भी निगरानी की जा रही है. इसके अलावा एक निगरानी टीम उनकी देखभाल कर रही है.
भारत में वन्यजीव संरक्षण का एक लंबा इतिहास रहा है. सबसे सफल वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रम में से एक ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ को माना जाता है, जिसे सत्तर के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया था. इससे बाघों के संरक्षण में काफी मदद मिली.
भारत में अंतिम तीन चीतों का शिकार 1947-48 में छत्तीसगढ़ में कोरिया के महाराजा द्वारा किया गया था. भारत सरकार ने 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया और मोदी सरकार ने लगभग 75 वर्षों के बाद चीतों को फिर से देश में लाने की पहल की.
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