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Tuesday, 19 November, 2024
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कांग्रेस-आप के बीच गठबंधन संभव नहीं, ‘मिशन-24’ में शामिल पार्टियों को ध्यान से आगे का रास्ता तय करना चाहिए

केजरीवाल विपक्षी पार्टियों की बैठक के लिए पटना पहुंच तो गए है और मान लीजिए कुछ सहमति भी बन जाती है तो भी कांग्रेस के लिए 'आप' के साथ गठबंधन करना काफी मुश्किल होगा.

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23 जून को पटना में देशभर की विपक्षी पार्टियों की महाबैठक से पहले ही अरविंद केजरीवाल, के.चंद्रशेखर राव और जीतन राम मांझी ने विपक्षी एकता की संभावना पर ग्रहण लगा दिया है. केसीआर ने शामिल होने से मना कर दिया. जीतन राम मांझी ने बिहार की महागठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. वहीं, केजरीवाल को कांग्रेस नेतृत्व द्वारा मिलने का समय न दिए जाने के बाद उन्होंने मीटिंग का एजेंडा ही बदल दिया है और कहा कि बैठक में सबसे पहले केंद्र द्वारा दिल्ली सरकार के अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग से संबंधित लाए गए अध्यादेश पर चर्चा की जाए.

आखिर केजरीवाल ऐसा क्यों बोल रहे हैं?

मीटिंग से ठीक पहले केजरीवाल के इस बयान के कुछ स्पष्ट संकेत है, जिसे शायद वह अप्रत्यक्ष रूप से सभी विपक्षी पार्टियों को बताना चाहते हैं. पहला, केजरीवाल को पता है कि विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस के साथ रहकर वह अपना उद्देश्य कभी पूरा नहीं कर सकते. उनका उद्देश्य प्रधानमंत्री बनना है. वह दिल्ली विधानसभा में अपने भाषण के दौरान कई बार अपनी पार्टी की केंद्र में सरकार बनने की बात कर चुके हैं.

दूसरा, उन्हें यह भी पता है कि केंद्र के ऑर्डिनेंस के खिलाफ अगर कांग्रेस साथ आ भी जाती है तो भी वह बिल संसद के दोनों सदनों से आसानी से पास हो जाएगा, क्योंकि नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी हर मुद्दे पर संसद में मोदी सरकार का साथ देते आए हैं.

तीसरा, केजरीवाल की राजनीति कांग्रेस के ही विरोध से शुरू हुई थी. अभी भी हकीकत यही है कि वह कांग्रेस का वोट आसानी से काट लेते हैं, लेकिन भाजपा के वोट बैंक में बिल्कुल भी सेंध नहीं लगा पाते. 2013 में दिल्ली में वह कांग्रेस की सरकार गिराकर ही मुख्यमंत्री बने और 2022 में पंजाब में भी उन्होंने कांग्रेस को ही सत्ता से बाहर कर अपनी पार्टी की सरकार बनायी.

दिल्ली में कांग्रेस का वोट शेयर 2008 के 40 प्रतिशत से घटकर 2020 में 4 प्रतिशत पर आ गया. कांग्रेस के सारे वोट आम आदमी पार्टी को मिले. वहीं, भाजपा के वोट शेयर में कोई खास अंतर नहीं पड़ा. 2020 में तो भाजपा के वोट शेयर करीब छह प्रतिशत बढ़ गए. भाजपा को 2015 के 32 प्रतिशत के मुकाबले 2020 में 38 वोट वोट मिले.

पंजाब में भी ऐसा ही हुआ. ‘आप’ को 2017 के मुकाबले 18 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले और कांग्रेस को 15.5 प्रतिशत का नुकसान हुआ. ताजा उदाहरण गुजरात विधानसभा चुनाव है, जहां आम आदमी पार्टी को करीब 13 प्रतिशत वोट मिले और कांग्रेस को करीब 14 प्रतिशत का नुकसान हुआ. नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस 77 से 17 सीट पर आ गई. इस बार कांग्रेस विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं बन सकी.

इसके अलावा गोवा में आम आदमी पार्टी की वजह से कांग्रेस को नुकसान हुआ. वहां आम आदमी पार्टी की वजह से चुनाव में माहौल त्रिकोणीय हो गया. वैसे यहां ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया. गोवा विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा को 33.3 प्रतिशत वोट मिले. वहीं कांग्रेस को 23.5, आप को 6.8 और टीएमसी को 5.2 प्रतिशत वोट मिले. तीनों के वोट को मिला दें तो भाजपा से सवा दो प्रतिशत ज्यादा हो जाता है. अगर माहौल त्रिकोणीय नहीं होता तो शायद कांग्रेस को और ज्यादा वोट मिलते.

पंजाब में ‘आप’ सरकार बनने के बाद दूरियां और बढ़ी……

मार्च 2022 में पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से लगातार कांग्रेस नेताओं और पूर्व मंत्रियों पर लगातार विजिलेंस की कार्रवाई चल रही है. कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी समेत करीब आधा दर्जन पूर्व कांग्रेसी मंत्री विजिलेंस के घेरे में हैं. जांच के दौरान कांग्रेस के कई पूर्व मंत्री जेल भी गए, बाद में बेल पर बाहर आए.
विजिलेंस के तौर-तरीकों पर पंजाब की विपक्षी पार्टियां लगातार सवाल उठा रही है और आरोप लगा रही है कि जिस तरह केंद्र की मोदी सरकार विपक्षी पार्टियों को दबाने के लिए ईडी-सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है उसी तरह पंजाब में ‘आप’ सरकार विजिलेंस का कर रही है.

अभी कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री भगवंत मान ने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पूर्व मुख्यमंत्री चन्नी पर एक खिलाड़ी से नौकरी के बदले दो करोड़ रुपए रिश्वत मांगने का आरोप लगाया, जिसके बाद दोनों में काफी तू-तू मैं-मैं हुई. पंजाब में अभी दोनों पार्टियों के बीच इतनी दूरियां है कि गठबंधन तो दूर उसकी बात भी शुरू करना काफी मुश्किल है.


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कांग्रेस की मुश्किलें……

केजरीवाल विपक्षी पार्टियों की बैठक के लिए पटना पहुंच तो गए है और मान लीजिए कुछ सहमति भी बन जाती है तो भी कांग्रेस के लिए ‘आप’ के साथ गठबंधन करना काफी मुश्किल होगा. आप-कांग्रेस से मुख्य रूप से दो राज्यों पंजाब और दिल्ली में गठबंधन होगा और इन दोनों राज्यों के कांग्रेस गठबंधन करने के सख्त खिलाफ हैं. अगर दिल्ली में किसी तरह बात बन भी जाती है तो पंजाब में नामुमकिन है. गठबंधन की बात होते ही पंजाब कांग्रेस में फूट पड़ जाएगी. कई नेता तो पार्टी भी छोड़ सकते हैं.

सीटों के गणित के हिसाब में भी पंजाब में दोनों पार्टियों में गठबंधन मुश्किल है. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी पंजाब के कुल 13 में से 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं चार पर दूसरे नंबर पर रही. आम आदमी पार्टी के सिर्फ एक संगरूर की सीट जीत सकी थी जहां से मुख्यमंत्री भगवंत मान जीते थे. इसके अलावा सभी सीटों पर आम आदमी पार्टी तीसरे और चौथे स्थान पर थी. कांग्रेस के जो कैंडिडेट दूसरे नंबर पर थे, वह इस बार भी चुनाव लड़ने की तैयारी में है. ‘आप’ से गठबंधन की सूरत में वह इधर-उधर हो सकते हैं.

अभी पंजाब में कांग्रेस के सात सांसद हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर को छोड़ भी दें तो भी छह सांसद हैं. यहां भी 2024 लोकसभा में पूर्व सांसद डॉ धर्मवीर गांधी के कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की की संभावना है. वह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल भी हो चुके हैं. अभी पिछले महीने ही आम आदमी पार्टी ने जालंधर लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज की थी. लेकिन यह कांग्रेस की परंपरागत सीट है. कांग्रेस इसे छोड़ नहीं सकती. 2024 के लिए इस सीट पर कांग्रेस में कई दावेदार हैं. इसमें पूर्व मुख्यमंत्री चन्नी का नाम भी शामिल है.

यही कारण है कि कांग्रेस नेतृत्व ऑर्डिनेंस के मुद्दे पर खामोश है और अभी तक केजरीवाल को मिलने का समय नहीं दिया है. यह बात अरविंद केजरीवाल भी बखूबी समझते हैं. इसीलिए उन्होंने कांग्रेस को दिल्ली और पंजाब में चुनाव न लड़ने का असंभव सा ऑफर दिया. शायद यही वजह है कि एक तरफ कांग्रेस से समर्थन मांगते हैं तो दूसरी तरफ अपनी रैलियों में कांग्रेस को कोसते हैं. उसके नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं. यह बात विपक्षी पार्टियों (जो मीटिंग में शामिल हो रहे हैं) को भी समझनी चाहिए और इसको ध्यान में रखते हुए आगे का रास्ता तय करना चाहिए.

(अमरजीत झा पंजाबी यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के रिसर्च स्कॉलर है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन- आशा शाह)


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