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Friday, 22 November, 2024
होमदेश‘राम भरोसे बिहार में स्कूली बच्चे’, मिड डे मील में कहीं सांप तो कहीं छिपकली, घटिया खाना परोसा जा रहा

‘राम भरोसे बिहार में स्कूली बच्चे’, मिड डे मील में कहीं सांप तो कहीं छिपकली, घटिया खाना परोसा जा रहा

मई 2023 में बिहार के तीन स्कूलों में बच्चों को परोसे जाने वाले मिड डे मील में छिपकली, सांप जैसी चीजें मिली. इन तीन घटनाओं को देखने के बाद लगता है कि बिहार के स्कूलों में मिड डे मील खा रहे बच्चों की सुरक्षा राम भरोसे है.

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पटना: 17 मई को बिहार के छपरा जिले में मिड डे मील में छिपकली मिलने की खबर मिली. इस विषाक्त भोजन को खाने की वजह से 25 से ज्यादा बच्चे बीमार हो गए. 27 मई को अररिया जिला स्थित जोगबनी नगर परिषद के अमौना मिडिल स्कूल में मिड डे मील में बनी खिचड़ी में सांप मिला था. इस खिचड़ी को खाने से 100 से ज्यादा बच्चे बीमार हो गए थे. और फिर 28 मई को सुपौल जिले में मिड डे मील में छिपकली मिलने से हड़कंप मच गया था. इस खाने से करीब 45 बच्चे बीमार हुए. मई 2023 में हुई इन तीन घटनाओं को देखने के बाद लगता है कि बिहार के स्कूलों में मिड डे मील खा रहे बच्चों की सुरक्षा राम भरोसे है.

मिड डे मील और कुछ अहम सवाल

मिड डे मील में लगातार हो रही इस तरह की घटना को लेकर जहां आम लोगों में काफी रोष है वहीं उसके तौर तरीकों पर कई सवाल उठ रहे हैं. 27 मई को अररिया जिला स्थित जोगबनी नगर परिषद के अमौना मिडिल स्कूल में मिड डे मील में बने खिचड़ी में सांप मिला था. इस खिचड़ी को खाने से 100 से ज्यादा बच्चे बीमार हो गए थे. 

पांचवी कक्षा के छात्र शुभम के मुताबिक उस दिन शनिवार था. इसलिए स्कूल में खिचड़ी बनी थी. खाना परोसने के दौरान लक्ष्मी की थाली में छोटे आकार का सांप मिला. फिर शिक्षक ने सभी विद्यार्थियों को खाना खाने से रोक दिया और खाना बंटवाना भी बंद कर दिया. तब तक कुछ बच्चों को उल्टी होने लगी. रसोइया मशरून निसा के मुताबिक लगभग 30 बच्चे खाने के बाद बीमार पड़ गए थे. उन्हें अस्पताल ले जाया गया. सभी छात्र अभी सुरक्षित हैं. 

बच्चों के खाने में ज़हर कैसे पहुंचा?

स्कूल के शिक्षक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि सेंटर फॉर नेशनल डेवलपमेंट यूनी सेटिंव नाम की एक एनजीओ बच्चों के लिए खाना बनाती है. वो कहते हैं, “खाना स्कूल में एनजीओ द्वारा ही बनाया जाता है. स्कूल का रसोइया सिर्फ बच्चों को खाना पड़ोसता है. लेकिन इस तरह की घटना के बाद परेशानी हम लोगों को झेलनी पड़ती है. ग्रामीणों के द्वारा हमारे साथ मार-पीट भी की गई थी. इस एनजीओ के प्रोपराइटर अरुण जेपी दिल्ली में रहते हैं. जब स्कूल में खाना बनता था, तब इस तरह की घटना काफी कम होती थी.” 

शिक्षक के मुताबिक स्कूल में कोई प्राथमिक उपचार किट नहीं थी. सांप मिलने के तुरंत बाद हमने सभी बच्चों को छुट्टी दे दी और खाना खा चुके बच्चों के लिए मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराई. कुछ स्थानीय समाजसेवी और नेताओं ने भी मदद की. कुछ ग्रामीणों के द्वारा आक्रोश में हो हल्ला भी किया गया.

उन्होंने कहा, “ग्रामीणों द्वारा हो हल्ला मचाए जाने की वजह से हम लोगों ने खुद को एक क्लासरूम में बंद कर लिया था.” 

शिक्षकों की या प्रशासन की चूक?

समाजसेवी और स्थानीय नेता रहमत अली स्कूल सबसे पहले आकर छात्रों के उपचार में मदद की. वह बताते हैं, “सिर्फ फारबिसगंज और नरपतगंज प्रखंड में एक साल में कम से कम 10 बार इस तरह की घटना हो चुकी है. इसके बावजूद कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हो रहा है. इसमें एनजीओ की भारी चूक है. इसलिए उनपर कार्रवाई होनी चाहिए. वहीं शिक्षकों से भी गलती हुई है. उन्होंने पहले खाना नहीं खाया. पहले बच्चों को ही खाना खिलाया गया. जबकि सरकार के द्वारा निर्देश दिया गया हैं कि पहले शिक्षक खाना खाएंगे.”

शिक्षक संघ से जुड़े एक शिक्षक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि वह कई बार विभागीय अधिकारी से इस विषय को लेकर शिकायत दर्ज करा चुके हैं. वो कहते हैं, “लेकिन एनजीओ भारी-भरकम रुपया विभागीय अधिकारी को भेजते रहते हैं. इसलिए सब खामोश है.”

अररिया स्थित प्राइवेट कोचिंग संचालक शिक्षक प्रीतम बताते हैं, “इस तरह की घटनाएं अक्सर सुनने को मिलती रहती है. खाना के बदले छात्रों को पैसा मिलना चाहिए. लेकिन इससे संबंधित शिक्षकों एवं विभागीय अधिकारियों की कमाई रुक जाएगी.”

‘छात्र ने बताया छिपकली, शिक्षक बोले कीड़ा था’

सुपौल जिले के ठूठी गांव स्थित मध्य विद्यालय के कक्षा आठ के छात्र छोटू भगत मिड डे मील में खाना खाने के बाद बेहोश हो गए थे. छोटू कहते हैं, “स्कूल में उस दिन चावल-दाल और सब्जी खाने में बनी थी. खाने के दौरान ही स्कूल की छात्रा तमन्ना ने अपनी थाली में मरी हुई छिपकली देखी. तुरंत स्कूल में हंगामा शुरू हो गया. हमारे अलावा चांदनी, अंशु और कुछ छात्र बेहोश हो गए थी. अस्पताल में इलाज के बाद अब हम लोग ठीक हैं.”

सुपौल जिले के ठूठी गांव में मध्यविद्यालय में मिड डे मिल में छिपकली की सूचना के बाद लगी भीड़ | फोटो: विशेष प्रबंधन

स्थानीय अभिभावक संतोष कुमार बताते हैं, “स्कूल से आने के बाद कई छात्रों को उल्टी और दस्त आना शुरू हो गया. स्कूल के बच्चों ने बताया कि खाने में छिपकली मरी हुई मिली थी. उसके बाद अभिभावकों का आक्रोशित होना लाजमी है. घटना के बाद हमलोगों ने अपने बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया है.”

स्कूल के हेडमास्टर चंद्रनारायण मेहता ने बताया कि खाने में छिपकली नहीं कीड़ा था. उन्होंने कहा, “हमने तुरंत ही एक्शन लेते हुए स्कूल बंद कराकर छात्रों का इलाज करवाया.”

वहीं नरपतगंज पीएचसी में कर्यारत डॉ. रज्जी अहमद के मुताबिक फूड पॉइजनिंग का केस था.

सरकारी महकमों का क्या कहना है?

सुपौल के जिला शिक्षा पदाधिकारी सुरेंद्र कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि डीएम स्तर पर इसकी जांच हो रही है. जल्द ही सच सबके सामने होगा. वहीं एमडीएम प्रभारी डीपीओ राहुल चंद्र चौधरी कहते हैं, “शिक्षा विभाग के राज्य निदेशालय की ओर से तीन सदस्यीय टीम पूरी घटना की जांच कर रही है. जांच के आधार पर कार्रवाई की जाएगी.”

वहीं अररिया जिला शिक्षा पदाधिकारी से इसको लेकर संपर्क नहीं हो पाया. जिले के वेबसाइट पर दिया गया उनका मोबाइल नंबर स्विच ऑफ आ रहा था. वहीं एसडीओ सुरेंद्र कुमार अलबेला ने दिप्रिंट से सिर्फ इतना कहा कि जांच चल रही है. विस्तार से आगे बताता हूं. लेकिन बाद में उनसे भी संपर्क नहीं हो पाया.

सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर

राजकमल पब्लिकेशन से जुड़े लेखक संजय सिंह बताते हैं, “मिड डे मील योजना आज भी भोजन की गुणवत्ता में कमी, खाने में छिपकली निकलने से लेकर पानी पीने की उचित व्यवस्था और रसोईघर की उचित प्रबंधन का, इन सबसे पूरी तरह से जूझ रहा है. सरकारी आंकड़े से भी पता चलता है कि बिहार इन तमाम सुविधाओं में निचले पायदान पर है.”

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में कहा है कि भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से 50% से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित श्रेणी में आते हैं, जिसमें बिहार शीर्ष पर है.

दियारा क्षेत्र में एमडीएम की स्थिति

कोसी क्षेत्र के स्थानीय पत्रकार विमलेंदु सिंह कहते हैं, “सरकार लाखों रुपया खर्च कर रही है, लेकिन तटबंध के भीतर कई स्कूल में बच्चों की उपस्थिति नगण्य रहती है. वैसे भी बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे स्कूल में खाना खाते हैं, जिनके घरों में खाना मिलना मुश्किल होता है. इसके बावजूद भी एमडीएम के नाम पर घोटाला चलता है. खिलाया 200 बच्चे को जाता है तो पोर्टल पर 400 बच्चे का नाम जोड़ा जाता है. सरकार की गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की नीति सिर्फ कागज पर सीमित है.”

(संपादन: ऋषभ राज)


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