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Sunday, 24 November, 2024
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दक्षिणपंथी प्रेस ने कहा- हिंदू-विरोधी अभियान के लिए खालिस्तान कार्यकर्ता ‘उपयोगी बेवकूफ’ हैं

हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने पिछले कुछ हफ्तों में विभिन्न खबरों और समसामयिक मुद्दों को कैसे कवर किया और उन पर क्या संपादकीय टिप्पणी की, इसी पर दिप्रिंट का राउंड-अप.

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नई दिल्ली: इस हफ्ते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अंग्रेज़ी मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में छपे एक लेख में दावा किया गया, खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ता और इस्लामवादी पश्चिमी लोकतंत्रों में “हिंदू नफरत नेरैटिव” सेट करने के लिए सांठगांठ कर रहे हैं.

लंदन और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में खालिस्तान समर्थक विरोध के मद्देनज़र लेख में तर्क दिया गया है कि “हिंदू विरोधी अभियान” चलाने वाले इस्लामवादियों के लिए “खालिस्तानी उपयोगी बेवकूफ बन गए हैं”.

इन विवादों को मजबूत करने के लिए लेख “हिंदूफोबिया” में कथित वृद्धि को उजागर करने वाले विभिन्न अध्ययनों का हवाला देता है, जिसमें न्यू जर्सी के रटगर्स विश्वविद्यालय में नेटवर्क कॉन्टैगियन रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा पिछले साल जारी किया गया एक लेख भी शामिल है.

ऑर्गनाइज़र के लेख के मुताबिक, “एक (अध्ययन के अनुसार), सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंदू समुदाय के प्रति घृणास्पद भाषणों और घृणित मीमों में वृद्धि हुई है, जिसे अक्सर इस्लामवादियों और खालिस्तानी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है, जो हिंदुओं पर भारत में अल्पसंख्यकों का नरसंहार करने का आरोप लगाते हैं.”

विशेष रूप से विचाराधीन रटगर्स अध्ययन कहीं भी खालिस्तान का उल्लेख नहीं करता है, हालांकि, यह दावा ज़रूर करता है कि “इस्लामवादी चरमपंथी और श्वेत वर्चस्ववादी समुदाय नियमित रूप से हिंदुओं के खिलाफ नरसंहार और हिंसक प्रचार और मीम्स का प्रसार करते हैं”.

ऑर्गनाइज़र के लेख में उन विभिन्न घटनाओं की लिस्ट दी गई है जिनके लिए कथित रूप से खालिस्तानी अलगाववादी जिम्मेदार थे.

इसमें कहा गया है, “चाहे टोरंटो में स्वामीनारायण मंदिर की बेअदबी हो, न्यूयॉर्क में एक और हिंदू मंदिर को नुकसान पहुंचाया जाना, ब्रिटेन के लीसेस्टर में हुई हिंसा, हिंदू विरोधी भावनाओं को भड़काने में खालिस्तानी अलगाववादियों की भूमिका तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है.”

लेख में कहा गया है, “खालिस्तानी कट्टरपंथी अक्सर इस्लामवादियों के साथ हाथ मिलाते हैं और पश्चिम में शांतिपूर्ण हिंदू प्रवासी के लिए खतरा बन रहे हैं. वह हिंदू त्योहारों या स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान नियमित रूप से हिंदुओं को डराते-धमकाते हैं.”

लेख “इस्लामवादियों-खालिस्तानियों और उदारवादियों के अपवित्र गठबंधन” के खिलाफ बोलने के लिए हिंदू डायस्पोरा को कार्रवाई के आह्वान के साथ समाप्त होता है.


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‘हिंदी थोपना कांग्रेस निर्मित विवाद’

ऑर्गनाइज़र के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर 21 मार्च को छपे एक इंटरव्यू में कर्नाटक के उच्च शिक्षा मंत्री अश्वथनारायण सी.एन. 10 मई को होने वाले मतदान से पूर्व राज्य में “हिंदी थोपने” और “शिक्षा का भगवाकरण” करने के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के खिलाफ बार-बार लगने वाले आरोपों के बारे में सफाई पेश करने की कोशिश करते नज़र आए.

“हिंदी एजेंडा” को बढ़ावा देने के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर अश्वथनारायण ने कहा कि विवाद “कांग्रेस द्वारा बनाया गया” है.

मंत्री ने कहा, “हम हमेशा स्वदेशी संस्कृति और भाषाओं के संरक्षण में विश्वास करते हैं. इसलिए हम छात्रों को ऐसी भाषा में जवाब (परीक्षा) देने का विकल्प दे रहे हैं, जिसमें वह सहज हैं. हम छात्रों को उनकी मनपसंद भाषा में पढ़ाई करने का भी ऑप्शन दे रहे हैं.”

मंत्री ने कर्नाटक की “भारतीय ज्ञान प्रणाली की महान परंपरा” और “पिछली सभ्यताओं के उपलब्ध सभी ज्ञान को डिजिटल बनाने” के प्रयासों के बारे में भी बात की.

कांग्रेस और ‘हेकलर्स वीटो’

आरएसएस के हिंदी मुखपत्र पाञ्चजन्य में इस हफ्ते एक संपादकीय में मानहानि के एक मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि और उस पर विपक्ष की प्रतिक्रिया के बारे में टिप्पणी की गई है.

संपादकीय में तर्क दिया गया कि विपक्ष की जोरदार प्रतिक्रियाओं के साथ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल “हेकलर्स वीटो” को लागू करने की कोशिश कर रहे थे, जिसमें एक वक्ता को उनके भाषण से असहमत होने वालों द्वारा प्रभावी रूप से चुप कराया जा सकता है.

पाञ्चजन्य ने यह भी कहा कि कुछ प्रतिक्रियाएं न्यायिक प्रक्रिया के प्रति सम्मान की कमी को दर्शाती हैं.

आरोपी की बहन प्रियंका वाड्रा ने ट्विटर पर कहा, “‘पूरी सत्ता मशीनरी है’ क्या वह अदालत को भी सत्ता की मशीनरी कहने की कोशिश कर रही हैं? इसी तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इसे ‘षड्यंत्र’ बताया है और आरोपी के वकील ने खुद न्यायिक प्रक्रिया को दोषी ठहराया है.”

संपादकीय में कहा गया, “इस देश में ‘मानहानि’ और ‘आदतन मानहानि’ के आपराधिक गुणांक को अलग करना ज़रूरी हो गया है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ संस्थाएं और कुछ व्यक्ति…नियमित रूप से खुद को नियमों, कानूनों, तर्क और मर्यादा से परे महसूस करते हैं.”

इसमें कहा गया है, “हम ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकते, जिसमें किसी भी व्यक्ति को देश की एकता के खिलाफ कुछ भी कहने की अनुमति दी गई हो.”

पालघर लिंचिंग मामले पर विहिप

सुप्रीम कोर्ट में अगले महीने महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की 2020 में हुई हत्या की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई होने की उम्मीद है. यह फैसला अदालत को सूचित किए जाने के बाद आया कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली भाजपा-शिवसेना सरकार ने जांच करने के लिए एजेंसी को अपनी सहमति दे दी है.

सोशल मीडिया पोस्ट में इस डेवलपमेंट की सराहना करते हुए, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने महाराष्ट्र के पिछले उद्धव-ठाकरे के नेतृत्व वाले महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के तहत जांच की आलोचना की, जिसने इस मामले में सांप्रदायिक कोण से इनकार किया था.

कुमार ने दावा किया कि पालघर नक्सलियों और ईसाई मिशनरियों का भी घर है और इसलिए साधुओं की हत्या में उनकी कथित भूमिका की भी जांच की जानी चाहिए.

 


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संघ बनाम संघ?

दक्षिणपंथी लेखक शंकर शरण ने हिंदी पब्लिकेशन नया इंडिया में तर्क दिया है कि बीजेपी अपने आदर्शों से भटक गई है और तेज़ी से कांग्रेस की तरह होती जा रही है.

शर ने कहा, “अजीब नज़ारा है…एक तरफ जहां भाजपा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ खुद कांग्रेस ही उनके सिर पर बैठी आदर्श नजर आती है. जैसे भाजपा को हर हाल में,हर बात में कांग्रेस की नकल करनी है. न केवल विचारों, बल्कि कार्यों में, भावों, प्रतीकों, बहानों आदि सभी में ही.”

अडाणी ग्रुप पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर राजनीतिक विवाद का उदाहरण देते हुए, शरण ने कहा कि बीजेपी की ओर से जो पहला तर्क सुना गया, वो था, “अंबानी के साथ कांग्रेस के संबंध के बारे में पूछना?” जब चीन के प्रति नीति के बारे में सवाल उठाए गए, तो “नेहरू ने क्या किया का हंगामा करना”.

उन्होंने कहा, “भाजपा और आरएसएस की तरह कोई भी पार्टी अपने मूल नारों और उद्देश्यों से नहीं भटकी है.”

शरण ने आरोप लगाया, “संघ परिवार ने अपने संस्थापकों, पूर्व सरसंघचालकों और अध्यक्षों के विचारों और भावनाओं को नज़रअंदाज़ किया और प्रणब मुखर्जी को अपना मार्गदर्शक घोषित किया. इसी तरह जिन मुलायम सिंह को कोस कर बीजेपी ने तीस साल तक वोट बटोरे, उन्हें अब राष्ट्रीय आदर्श बताया जा रहा है.”

बीजेपी की ई-लाइब्रेरी में हज़ारों किताबों के बीच उन्होंने आरोप लगाया कि के.बी. हेडगेवार, एम.एस. गोलवलकर, नाना पालकर, एच.वी. शेषाद्री, गुरुदत्त, या आचार्य रघुवीर पर एक भी किताब उपलब्ध नहीं है.

उन्होंने आरोप लगाया, “अब ज्यादातर किताबें गायब हो रही हैं और ऐसा लगता है कि यह जानबूझ किया जा रहा है.”


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एसजेएम और भारत की उद्यमशीलता की महिमा

आरएसएस से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच की मासिक पत्रिका स्वदेशी में 30 से अधिक “स्वदेशी” उद्यमियों की कहानियां छपी हैं. यह सूची ऐसे समय में आई है जब अमेरिकी शॉर्टसेलर हिंडनबर्ग रिसर्च के उद्योगपति गौतम अडाणी के खिलाफ जनवरी में लगाए गए आरोप अभी भी सुर्खियों में हैं.

स्वदेशी पत्रिका ने अपने संपादकीय में लिखा है कि जब पश्चिम अपने “अल्प ज्ञान के अहंकार” में दुनिया को कोड़े मारने और विकासशील देशों पर नव-उपनिवेशवाद थोपने की साजिश कर रहा है, तो भारत अपने “शाश्वत मूल्यों” के साथ इसके खिलाफ खड़ा है.

संपादकीय में कहा गया, “भारत की पहचान अनादि काल से विश्व में एक औद्योगिक देश के रूप में रही है. हमारे उद्यमियों ने समय के साथ तालमेल बिठाया और समय की ज़रूरत के अनुसार उत्पादन को बढ़ावा दिया और अधिक से अधिक भारतीय वस्तुओं का निर्यात कर देश को समृद्ध बनाया.”

इसमें कहा गया, “आखिरी दौर में आज़ादी के बाद की लंबी गुलामी और सरकार की गलत नीतियों के चलते हमारा उद्योग धीरे-धीरे पिछड़ता गया. भारत में बेरोजगारी एक समस्या बन गई है, जो हमेशा अपने औद्योगिक उत्पादन के बल पर आत्मनिर्भर रही है.”

संपादकीय में आगे दावा किया गया कि 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आई है और वैश्विक मंच पर शानदार प्रभाव डालने के बाद भारत एक बार फिर “सोने की चिड़िया” बनने के लिए तैयार है.

नई वैश्विक व्यवस्था पर राम माधव

पिछले हफ्ते द इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख में आरएसएस के विचारक राम माधव ने लिखा था कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी शक्तियों द्वारा निर्मित विश्व व्यवस्था आज चीन से अपनी सबसे कड़ी चुनौती का सामना कर रही है.

उन्होंने लिखा, “युद्ध के बाद वैश्विक व्यवस्था मुख्य रूप से ‘संप्रभु अंतर-राज्य संबंधों और एक अपेक्षाकृत खुली वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में थी, जो समावेशी, नियम-बद्ध बहुपक्षवाद की प्रथाओं की विशेषता थी. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संस्थानों के मूल का गठन किया, जैसे-जैसे दशकों की प्रगति हुई, पश्चिमी शक्तियों ने इस प्रवचन में लोकतंत्र, उदारवाद और मानवाधिकारों जैसी अवधारणाओं को जोड़ा.”

उन्होंने लिखा कि चीन पिछले तीन दशकों में इस विश्व व्यवस्था के लाभार्थियों में से एक था, लेकिन शी के तहत इसने लगातार इस आदेश के सभी मूल सिद्धांतों का उल्लंघन किया.

माधव ने कहा, “भारत उस अधिनायकवादी और ज़बरदस्त विश्व व्यवस्था को खारिज करने के लिए प्रतिबद्ध है जिसे चीन बढ़ावा देता है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में स्वतंत्रता, मानवाधिकारों और शांति के प्रति इसकी प्रतिबद्धता भी बोर्ड से ऊपर है. इसने संयुक्त राष्ट्र और संबद्ध संस्थानों के माध्यम से बहुपक्षवाद को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.”

उन्होंने आगे कहा कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांत को बरकरार रखना यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि 21वीं सदी की विश्व व्यवस्था को आकार देने में ग्लोबल साउथ की महत्वपूर्ण भूमिका है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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