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Thursday, 21 November, 2024
होमBud Expectation‘बढ़ेगा बालश्रम और चाइल्ड ट्रैफिकिंग’, बाल कल्याण के Budget में 33% की कमी, विशेषज्ञों ने जताई चिंता

‘बढ़ेगा बालश्रम और चाइल्ड ट्रैफिकिंग’, बाल कल्याण के Budget में 33% की कमी, विशेषज्ञों ने जताई चिंता

श्रम मंत्रालय ने बाल कल्याण मद की राशि में 33 फीसदी की कटौती की है. श्रम मंत्रालय की ओर से बाल कल्याण के लिए 20 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जो पिछले साल के 30 करोड़ रुपये के मुकाबले 33 प्रतिशत कम है.

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नई दिल्ली: बजट 2023-24 में श्रम मंत्रालय को मिले फंड में बाल कल्याण के लिए आवंटित राशि में कटौती गई है जिसके कारण विशेषज्ञों ने बालश्रम और चाइल्ड ट्रैफिकिंग में बढ़ोतरी की आशंका जाहिर की है. विशेषज्ञों का कहना है कि पहले से ही बाल कल्याण के लिए काफी कम राशि मिलती थी और इस बार इसमें फिर से कटौती की गई है.

बजट 2023-24 में श्रम मंत्रालय ने बाल कल्याण मद की राशि में 33 फीसदी की कटौती की है.

पिछले साल भी बाल कल्याण मद की राशि में कटौती की गई थी. इस साल के बजट में बाल कल्याण को 20 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जो पिछले साल के 30 करोड़ रुपये के मुकाबले 33 प्रतिशत कम है. साल 2021-22 में इसके लिए 120 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था.

विशेषज्ञों ने जताई चिंता

बाल कल्याण के बजट में कमी होने पर विशेषज्ञों ने चिंता जताई है. नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था ‘कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन’ के डायरेक्टर (रिसर्च) पुरुजीत प्रहराज ने दिप्रिंट से कहा, ‘बजट में बाल कल्याण के लिए राशि घटाने से बालश्रम और चाइल्ड ट्रैफिकिंग में बढ़ोतरी होने की पूरी संभावना है. पिछले साल भी बजट में बाल कल्याण के लिए राशि में कटौती की गई थी और इस साल भी कटौती की गई है.’

उन्होंने कहा, ‘अगर हम ये कहें कि क्या बजट कम होने से सीधे तौर पर बालश्रम में बढ़ोतरी होगी तो यह जल्दबाजी होगी. लेकिन बजट कम होने से बाल कल्याण के लिए होने वाले कामों में कटौती की जाएगी. जिसके कारण बाल श्रम और चाइल्ड ट्रैफिकिंग में बढ़ोतरी हो सकती है.’

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने कहा, ‘इस साल के बजट से बच्चों के लिए और ज्‍यादा की उम्मीद थी. हालांकि बजट में बच्चों के लिए कुछ अच्छी बातें हैं तो कुछ मामलों में और भी बेहतर किया जा सकता था.’

टिंगल कहते हैं, ‘इस कमी के कारण यूनाइटेड नेशन के सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी- 2025) तक ‘चाइल्‍ड लेबर फ्री वर्ल्‍ड’ को हासिल करने के प्रयासों को धक्‍का लग सकता है. एसडीजी लक्ष्य 2025 को हासिल करने के लिए देश में काफी कुछ करने की जरूरत है, ऐसे में बच्चों के लिए सरकार को और अधिक प्रयास करने चाहिए. बालश्रम, चाइल्ड ट्रैफिकिंग और बाल विवाह जैसी बुराइयों के खात्मे के लिए श्रम मंत्रालय और मनरेगा जैसी योजनाओं के बजट में कमी के बजाए वृद्धि करनी चाहिए थी.’


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करोड़ों की संख्या में बच्चे बालश्रम और चाइल्ड ट्रैफिकिंग का शिकार

कोविड-19 महामारी के कारण गरीबी में बढ़ोतरी, सामाजिक सुरक्षा की कमी और घरेलू आय में कमी के कारण गरीब परिवारों के बच्चों को मजबूरी में बालश्रम करना पड़ रहा है. कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई है. भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, 5-14 वर्ष के आयु वर्ग के 1.01 करोड़ बच्चे बालमजदूरी करते थे, जिनमें से 81 लाख ग्रामीण क्षेत्रों के थे जो मुख्य रूप से कृषि (23%) और खेतिहर मजदूरों (32.9%) के रूप में कार्यरत थे.

अगर बात चाइल्ड ट्रैफिकिंग की करें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार साल 2019 में चाइल्ड ट्रैफिकिंग के लगभग 2,200 मामले सामने आए थे. हालांकि, बाल कल्याण से जुड़े एक्टिविस्ट्स का कहना है कि वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है क्योंकि कई बार पीड़ित पुलिस के पास मामला दर्ज नहीं कराते हैं, क्योंकि उन्हें कानून की जानकारी नहीं होती है और उन्हें चाइल्ड ट्रैफिकिंग से जुड़े लोगों का डर भी रहता है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 40,000 बच्चों का अपहरण कर लिया जाता है, जिनमें से 11,000 का पता नहीं चल पाता है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ‘क्राइम इन इंडिया’ 2019 रिपोर्ट के अनुसार, कुल 73,138 बच्चे लापता बताए गए थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2019 में लापता बच्चों की संख्या में 8.9% की वृद्धि हुई. 2018 में लापता बच्चों की संख्या 67,134 थी.

मनरेगा बजट में कमी का भी पड़ेगा असर

बाल अधिकार के लिए काम कर रहे प्रहराज कहते हैं, “बाल श्रम और चाइल्ड ट्रैफिकिंग का शिकार अधिकतर बच्चे गरीब और कम आय वाले परिवार के होते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “इस साल के बजट में मनरेगा का बजट भी कम किया गया है. इसके कारण गरीब परिवारों को रोजगार कम मिलेगा और उनके आय में कमी होगी. इससे इन परिवार के बच्चों पर काम करने का दबाव बढ़ेगा.”

गौरतलब है कि इस साल के बजट में मनरेगा की राशि में कमी की गई है. 2023-24 के बजट में मनरेगा के लिए 60,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है जो पिछले वित्त वर्ष के संशोधित बजट 89,000 करोड़ रुपए से करीब 34 फीसदी कम है.

पूरी दुनिया में बढ़ती बाल श्रमिकों की संख्या

पूरी दुनिया में बाल श्रमिकों और चाइल्ड ट्रैफिकिंग की संख्या बढ़ रही है.अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन(ILO) के बाल-श्रम को रोकने के लिए कई कानूनों और UNCRC के आर्टिकल 32.1 और दुनिया के कई देशों के राष्ट्रीय बाल-श्रम कानून होने के बावजूद आज पूरी दुनिया में 1.51 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं.

साथ ही संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों की 2021 की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि दो दशकों में दुनिया भर में काम पर लगाए जाने वाले बच्चों का आंकड़ा अब 16 करोड़ पहुंच गया है. पिछले चार वर्षों में इस संख्या में 84 लाख की वृद्धि हुई है.


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