हैदराबाद में, अभिलेखागार लड़ रहे हैं.
इतिहास के दो दावेदार हैं – तेलंगाना राज्य अभिलेखागार और आंध्र प्रदेश राज्य अभिलेखागार. आंध्र प्रदेश राज्य को एक दशक पहले दो भागों में विभाजित किया गया था. लेकिन इस क्षेत्र के इतिहास को दो निर्विवाद हिस्सों में बांटना कठिन हो गया है.
यह एक ऐसी रस्साकशी है, जिसमें दोनों राज्य अतीत के पुराने और भंगुर कागजों को अपनी ओर खींच रहे हैं. “किसका इतिहास?” यही इस युद्ध के केंद्र में है.
तेलंगाना राज्य अभिलेखागार की दीवारें, उनके द्वारा रखे गए दस्तावेजों की तरह ही, ढह रही हैं. निदेशक के कार्यालय के बाहर एक लीक करती हुई पाइप से एक बाल्टी में पानी टपक रहा है. फारसी और उर्दू में सदियों पुराने घिसे-पिटे रिकॉर्ड धूल भरे, अंधेरे, तंग कमरों में पड़े हैं. और 300 किलोमीटर दूर, राज्य की सीमाओं के पार, आंध्र प्रदेश राज्य अभिलेखागार के निदेशक काफी हद तक खाली लेकिन चमकदार नई इमारत में बैठे हैं. उनका शानदार नया कार्यालय उन कमरों से घिरा हुआ है जिन्हें अभी भरना बाकी है. वह अभिलेखीय कागजात के तेलंगाना से आने का इंतजार कर रहे हैं, जो उनके साथ साझा करने से मना कर रहा है.
और जो दांव पर लगा है वह आधुनिक हैदराबाद का इतिहास है.
वे 1948 और 1956 के बीच निज़ाम की सरकार के भूमि रिकॉर्ड और सरकारी आदेशों पर आपस में भिड़े हुए हैं – दस्तावेज़ जो कि उस शहर की नींव डालते हैं जो कभी आंध्र प्रदेश की राजधानी थी. विवाद की जड़ हैदराबाद राज्य के भारत में विलय और आंध्र प्रदेश राज्य के निर्माण के बीच संक्षिप्त ओवरलैप को लेकर है. और इन रिकॉर्ड्स पर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों ने ही अपना-अपना दावा ठोंक दिया है.
दोनों अभिलेखागार के निदेशक वी. रंगा राज और ज़रीना परवीन के मुताबिक यह सिर्फ इतिहास की बात नहीं है. यह भाषा, धर्म और दो अत्यधिक गौरवपूर्ण परंपराओं की सांस्कृतिक पहचान के बारे में है. दोनों एक अविभाजित आंध्र प्रदेश में करीबी सहयोगियों के रूप में काम करते थे, लेकिन 2014 में राज्यों के बीच विभाजन ने उन्हें अलग-अलग जगहों पर बैठकर अपने अपने दावों को लेकर लड़ने को मजबूर कर दिया.
तेलंगाना राज्य अभिलेखागार की निदेशक ज़रीना परवीन कहती हैं, “हमारे बीच सौहार्दपूर्ण और सही विभाजन हुआ, हमने किया.” “लेकिन मैं अभिलेखागार को आधे में कैसे विभाजित कर सकती हूं? यह उनका इतिहास नहीं है. यह हमारा इतिहास है. यह हैदराबाद और डेक्कन का इतिहास है.”
विशेषज्ञ समितियों का गठन किया गया, अभिलेखों को वर्गीकृत किया गया है, स्थानांतरण सूची तैयार की गई है, और अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए गए हैं. 2018 में दोनों निदेशकों द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन के जरिए “पारस्परिक सहयोग” का वादा किया गया था. रिकॉर्ड की 12 में से 7 वर्गों के रिकॉर्ड्स को तेलंगाना के हैदराबाद से ट्रकों के जरिए आंध्र प्रदेश के मंगलागिरी भेजा गया.
और फिर भी, लगभग एक दशक बाद, दोनों राज्य अभी तक अपने इतिहास को पूरी तरह से अलग करने में कामयाब नहीं हुए हैं. और यह भी तय नहीं किया कि क्या किसका है.
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किस बात पर लड़ रहे हैं अभिलेखागार
हैदराबाद के आखिरी निजाम, मीर उस्मान अली खान के शासनकाल साल 1948 से 1956 के बीच की अवधि को लेकर विवाद है.
इस अवधि के सरकारी आदेश और भूमि रिकॉर्ड की कई प्रतियां हैं क्योंकि निज़ाम सरकार के आदेश यानी फरमान के लिए ये जरूरी था. तेलंगाना इन मूल प्रतियों को रखने का अधिकार रखता है, और आंध्र प्रदेश में उनका डिजिटल संस्करण रख सकता है. आंध्र प्रदेश का कहना है कि उसके पास भी इन रिकॉर्ड्स को होना चाहिए – अगर नहीं, तो कम से कम मूल कॉपी की पहली प्रतियां तो होनी ही चाहिए.
तेलंगाना अभिलेखागार में मुगल काल और निज़ाम की सरकारों के सदियों पुराने के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ हैं. उदाहरण के लिए भारत के विभाजन के विरोध में एक मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी के मृत होने के दस्तावेज, या 1939 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को 1 लाख रुपये देने का निजाम का फरमान, या 1876 में हैदराबाद राज्य में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाने का आदेश शामिल हैं.
योग्य और जानी-मानी स्कॉलर परवीन, जिन्होंने अभिलेखागार के उर्दू और फ़ारसी अभिलेखों पर भी विस्तार से लिखा है, कहती हैं, “ये सभी दस्तावेज़ वैसे भी उर्दू या फ़ारसी में हैं. आंध्र प्रदेश में इनका ज्यादा यूज़ नहीं है क्योंकि वहां तेलगु और तेलगु स्क्रिप्ट का बोलबाला है.”
तेलंगाना राज्य अभिलेखागार में 43 मिलियन दस्तावेजों में से, 85 प्रतिशत रिकॉर्ड उर्दू और फ़ारसी में हैं – सबसे पुराना 1406 का बहमनी काल का भूमि अनुदान अभिलेख है. शाहजहां और औरंगज़ेब के शासनकाल के मुगलकाल के दस्तावेज़ भी यहां मौजूद हैं.
परवीन ने, “हमारा संग्रह एक सोने की खान है. लोगों को पता नहीं है कि यहां क्या ख़ज़ाना है.” दशकों तक उनके साथ एक ही संग्रह में काम करने के बाद, आंध्र प्रदेश में उनके समकक्ष निश्चित रूप से इस बारे में जानते हैं.
आंध्र प्रदेश राज्य अभिलेखागार में सबसे महत्त्वपूर्ण एक ऐसे व्यक्ति के व्यक्तिगत पत्र हैं जिसकी कहानी को गोल्डन ग्लोब के लिए नामांकित किया गया था. क्रांतिकारी अल्लुरी सीताराम राजू की डायरियां और पत्र, जिन पर ऐतिहासिक फिल्म आरआरआर आधारित थी, पूरी तरह से आंध्र प्रदेश राज्य अभिलेखागार से संबंधित हैं. तेलंगाना उन्हें रखने के लिए नहीं लड़ रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वे तेलुगु में हैं और बड़े पैमाने पर आंध्र प्रदेश के 13 जिलों में से संबंधित है और तेलंगाना के 10 जिलों में से एक के साथ संबंधित नहीं है
वी. रंगा राज चमड़े की कुर्सी पर बैठे हुए पीछे हटकर और हाथों आगे फैलाकर कहते हैं, “यह सार्वजनिक संपत्ति है, पहले हम साथ काम कर रहे थे, अब झगड़े होते हैं. इसलिए जब बंटवारा हुआ तो मुश्किल थी. हम उन पर निर्भर हो गए- क्योंकि हमारे रिकॉर्ड उनके पास हैं!”
कोई टेम्प्लेट नहीं है
लेकिन आंध्र प्रदेश को अपना खुद का आर्काइव मिलना परेशानी का सबब बन गया है. बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे अन्य पुनर्गठित राज्यों के राज्य अभिलेखागार ने यह लड़ाई नहीं लड़ी है.
बिहार राज्य अभिलेखागार के प्रभारी निदेशक सुमन कुमार ने कहा, “झारखंड का मूल राज्य होने के नाते, बिहार सभी रिकॉर्ड्स रखता है.”
बिहार उन कुछ भारतीय राज्यों में से एक है जहां सार्वजनिक रिकॉर्ड अधिनियम 2014 में पेश किया गया था, और यह बताता है कि कोई भी सार्वजनिक रिकॉर्ड उनके भंडार से स्थानांतरित नहीं किया जाएगा. कुमार ने नाजुक दस्तावेजों को ले जाने में होने वाली कठिनाइयों की ओर इशारा किया और कहा कि अगर विद्वानों या झारखंड सरकार को दस्तावेजों की आवश्यकता है, तो वे उन तक पहुंचने के लिए पटना की यात्रा कर सकते हैं. साथ ही, राज्य के बंटवारे से पहले, रांची में एक क्षेत्रीय रिकॉर्ड कार्यालय था. इस कार्यालय ने अपने रिकॉर्ड को बरकरार रखा है और अब यह झारखंड का आधिकारिक संग्रह है.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी ऐसा ही मामला है. मध्य प्रदेश राज्य अभिलेखागार के एक स्टाफ सदस्य कदम सिंह मेना के अनुसार, फोटोकॉपीज़ रायपुर ले जाई गई हैं, लेकिन सभी मूल प्रतियां भोपाल में ही हैं. हाल ही में एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कथित तौर पर गायब दस्तावेजों की लगातार शिकायतों के बाद, सार्वजनिक रिकॉर्ड की सुरक्षा के लिए राज्य कानून लाने का आह्वान किया.
आर्काइविस्ट्स के अनुसार, इस मुद्दे का एक हिस्सा यह है कि नए बने राज्य, अपने मूल राज्यों से रिकॉर्ड्स को खुद के पास रखने की मांग नहीं कर रहे हैं.
जिस तरह से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना आगे बढ़ना चाहते हैं, वह इतिहास को लेकर आने वाले समय में क्षेत्रीय संघर्षों का आधार बन सकता है.
सांस्कृतिक विभाजन
2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन के पीछे असंतोष की भारी भावना एक मुख्य फैक्टर था. तेलंगाना के लोगों ने महसूस किया कि आंध्र प्रदेश के लोग राज्य में वर्चस्व का आनंद ले रहे थे और राज्य के संसाधनों का उपयोग अपने खुद की तिजोरियां भरने के लिए कर रहे थे.
परवीन और रंगा राज अब इस क्षेत्र के इतिहास के संयुक्त रिकॉर्ड-कीपर हैं. लेकिन राज्य के बंटवारे की लंबी मांग ने इस बात की बहस बढ़ा दी है कि किसके पास इतिहास का कौन सा दस्तावेज रहेगा और किसका इतिहास उनके लिए प्राथमिकता है. कोई इसे दक्कन के इतिहास के रूप में देखता है; दूसरे इसे तेलुगु के इतिहास के रूप में देखते हैं.
इसलिए जब यह सवाल आया कि 2015 में तेलंगाना राज्य अभिलेखागार के निदेशक के रूप में परवीन की जगह कौन लेगा तो फैसला लिया गया कि आंध्र प्रदेश से संबंधित उनके बाद सीनियर उपनिदेशक, रंगा राज उनकी जगह लेंगे.
उन्हें कभी प्रमोशन नहीं मिला. परवीन पद पर रहीं. और इस निर्णय ने एक ऐसी घाव पैदा कर दिया जो अभी तक नहीं भरा है. जो व्यक्ति उसे रिपोर्ट करता था और उसे ‘अक्का’ (बड़ी बहन) भी कहता था, वह अब अपनी मांग रख रहा है.
2018 में जब आधिकारिक तौर पर अभिलेखागार विभाजित हो गए तो रंगा राज को उनका हक मिल गया. वह मंगलागिरी चले गए और पांच मंजिला इमारत का कार्यभार संभाला, जिसमें अब आंध्र प्रदेश के चार अन्य सरकारी कार्यालय हैं. अभिलेखागार पहले इमारत में शिफ्ट किया गया और उनके पास पूरी दो मंजिलें हैं. इमारत एक कस्बे में फैले हुए खेतों से घिरी हुई है जिसे देखकर ऐसा नहीं लगता कि यह महत्वपूर्ण राज्य कार्यालयों का मुख्यालय है.
यह उस्मानिया विश्वविद्यालय से 99 साल की लीज पर हैदराबाद के तरनाका में जीर्ण-शीर्ण तेलंगाना संग्रह भवन से बहुत दूर है.
रंगा राज नियमित रूप से अपने पुराने कार्यस्थल का दौरा करते हैं – उनका अनुमान है कि हर तीन महीने में एक बार. उन्होंने आखिरी बार दिसंबर 2022 की शुरुआत में दौरा किया था. वह शेष अभिलेखों की हस्तांतरण प्रक्रिया की देखरेख करने और अपने पुराने सहयोगियों और दोस्तों से मिलने के लिए यात्रा करते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें उनके साथ अच्छे संबंध बनाए रखने होंगे, ताकि अभिलेखों को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया सुचारू रूप से चले. रिकॉर्ड्स का ट्रांसफर होने के बाद वह सब कुछ सूचीबद्ध कर लेंगे और अभिलेखों की स्थिति का जायजा लेंगे.
तेलंगाना राज्य अभिलेखागार के सहायक निदेशक मो. अब्दुल रकीब ने कहा, ‘रंगा राज के साथ उनके अच्छे संबंध हैं, और दोनों लगातार संपर्क में रहते हैं. रकीब स्थानांतरण के दिन-प्रतिदिन की प्रक्रिया में अधिक शामिल हैं और इसकी प्रगति पर नजर रखते हैं. 1956 के बाद के सभी दस्तावेज़ – दोनों राज्यों के बीच आधिकारिक रूप से साझा संपत्ति – को कॉपी करके आंध्र को भेजने की आवश्यकता है. प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है क्योंकि किसी भी राज्य के पास इसके लिए बजट नहीं है.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने अपनी सभी संपत्तियों को 52:48 के अनुपात में बांटने का फैसला किया. लेकिन निदेशक इसे दोनों राज्यों के अमूर्त इतिहास पर लागू करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. और खास बात है कि उन्हें लगता है कि यह अभी भी अन्यायपूर्ण है. रंगा राज को लगता है कि उनके पास अधिक रिकॉर्ड होने चाहिए, लेकिन नए आंध्र प्रदेश में पांच क्षेत्रीय कार्यालय – तिरुपति, अनंतपुर, विजयवाड़ा, राजमुंदरी और विशाखापत्तनम – हैं, जबकि तेलंगाना को केवल एक ही आवंटित किया गया था. यह एक कारण है कि परवीन हैदराबाद में जो है उसे बनाए रखने के लिए इतनी मेहनत कर रही हैं.
अभिलेखागार के कर्मचारी, हर दूसरे राज्य संपत्ति की तरह, 58:42 के अनुपात में विभाजित थे.
अभिलेखागार में अधिकृत कुल पद 180 थे, जिनमें से 104 आंध्र प्रदेश को और 76 को तेलंगाना द्वारा बनाए रखा गया था. आंध्र प्रदेश अभिलेखागार में वर्तमान में केवल 11 स्थायी कर्मचारी हैं, जिनमें से केवल चार मंगलागिरी में हैं, और शेष सात विभिन्न क्षेत्रीय केंद्रों में तैनात हैं. तेलंगाना अभिलेखागार में वर्तमान में 36 स्थायी कर्मचारी हैं.
फंडिंग भी एक मुद्दा है. फरवरी 2022 में, तेलंगाना सरकार ने रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण के लिए 1 करोड़ रुपये मंजूर किए. अभिलेखागार ने हाल ही में ईरान सरकार के साथ पुराने दस्तावेजों को बांधने और संरक्षित करने और माइक्रोफिल्म को डिजिटाइज़ करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए.
परवीन ने कहा, “तेलंगाना हमारा राज्य है, हम इसके साथ विश्वासघात नहीं कर सकते हैं. आंध्र ने इस राज्य को छोड़ दिया. इसने अपना इतिहास पीछे नहीं छोड़ा है, वह हमारा इतिहास क्यों ले रहे हैं?
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नकली फाइलें, जालसाजी, झूठे दावे
विवादित दस्तावेज महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे आधुनिक हैदराबाद के गठन का विवरण देते हैं और कम से कम भूमि के स्वामित्व का एक सटीक रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं.
अभिलेखागार का इतिहास सीधा नहीं रहा है. वे कई अलग-अलग अभिलेखों का एक मिश्रण हैं, यही वजह है कि आज उन्हें अलग करना मुश्किल है. औरंगाबाद से दक्कन पर शासन करने वाले मुगलों ने इस क्षेत्र में अपना खुद का अभिलेखागार स्थापित किया, जिसे दफ्तर-ए-दीवानी के नाम से जाना जाने लगा. फिर, सभी तेलुगु भाषा के अभिलेखों को भाषाई आधार पर अलग करने के प्रयास में मद्रास प्रेसीडेंसी के औपनिवेशिक संग्रह से कुर्नूल में स्थानांतरित कर दिया गया. इन दोनों अभिलेखों को 1950 में हैदराबाद में निजाम की सरकार के तहत केंद्रीय रिकॉर्ड कार्यालय के रूप में एक साथ लाया गया था. आंध्र प्रदेश के गठन के बाद 1956 में यह आंध्र प्रदेश राज्य अभिलेखागार बन गया. द्विभाजन को अंतिम रूप देने के चार साल बाद 2018 में रिकॉर्ड को केवल आधिकारिक रूप से विभाजित किया गया था.
यहां मूल में तेलुगु गौरव इतिहास है जो तेलंगाना के इतिहास और उससे पहले के मद्रास प्रेसीडेंसी के इतिहास से टकरा रहा है. एक को दूसरे से अलग करना केवल दो अधिकारियों की ब्यूरोक्रैटिक एक्सरसाइज नहीं थी, बल्कि दोनों राज्यों के लोगों के लिए भारी भावनात्मक मामला था.
रंगा राज ने कहा, “आंध्र क्षेत्र से संबंधित दस्तावेजों को यहां (मंगलागिरी में) स्थानांतरित कर दिया गया है – लगभग 50 से 60 प्रतिशत काम पूरा हो गया है.” उनके अनुसार, मद्रास प्रेसीडेंसी से स्थानांतरित किए गए सभी दस्तावेज, साथ ही 1956 से 2018 तक के सभी रिकॉर्ड पर सिर्फ और सिर्फ आंध्र प्रदेश के हैं.
इस बात से परवीन असहमत होती हैं. उनके अनुसार 1956 से 2018 तक की अवधि को भी तेलंगाना का इतिहास माना जाना चाहिए और 1948 से 1956 तक के मूल दस्तावेज तेलंगाना के भीतर ही रहने चाहिए क्योंकि ये दस्तावेज हैदराबाद सेंट्रल रिकॉर्ड्स ऑफिस की संपत्ति थे.
भूमि संबंधी दस्तावेज, जो इस विवादित संपत्ति का बड़ा हिस्सा हैं, न केवल विद्वानों और शिक्षाविदों के लिए रुचिकर हैं. बल्कि विवादों को सुलझाने, दावों के इतिहास की जांच करने, या अपने दावों को मजबूत करने की मांग करने वाले कार्यकर्ताओं या नागरिकों द्वारा भी उनकी मांग की जाती है. यहां तक कि वक्फ बोर्ड जैसी राज्य एजेंसियां भी रुचि रखती हैं – वे अभिलेखागार को नियमित रूप से विजिट करते हैं और उन दस्तावेजों की तलाश में हैं जो जमीन के एक निश्चित टुकड़े को वक्फ (धर्मार्थ, शैक्षिक या धार्मिक कारण से किए गए बंदोबस्ती) के रूप में घोषित किया था.
यह आधुनिक हैदराबाद में विशेष रूप से प्रासंगिक है, एक ऐतिहासिक शहर जो भारत में एक तकनीकी और बुनियादी ढांचे के केंद्र में तेजी से विकसित हो रहा है. विभाजन से हैदराबाद की चमक फीकी पड़ने की आशंका थी. इसके बजाय, पिछले दशक में यह भारत के सबसे महंगे रेजीडेंशियल मार्केट में से एक बन गया है, आईकेईए और लॉकहीड मार्टिन जैसे वैश्विक दिग्गजों ने शहर को अपने आधार के रूप में चुना है.
बुनियादी ढांचे से जुड़े मुद्दे
रंगा राज के पास वह दुर्लभ अवसर है जिसका अधिकांश आर्काइविस्ट्स सपना देखते हैं – यानी मामूली संसाधनों से अपना मनपसंद अभिलेखागार बनाना.
आंध्र प्रदेश राज्य अभिलेखागार विद्वानों और अभिलेखों के लिए समान रूप से अपने दरवाजे खोलने के लिए तैयार है.
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इसके निदेशक अभिलेखागार को मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे हैं. आंध्र प्रदेश प्रशासन से पेपर्स पहले से ही मंगलागिरी में पहुंच रहे हैं और वे सभी एक बड़े से कमरे में रखे गए हैं और उनकी छंटाई का काम जारी है. अधिक नाजुक और भंगुर रिकॉर्ड एंटी-एसिड बक्से में या लकड़ी के तख्तों के बीच संरक्षित हैं.
अभी तक कोई रीडिंग रूम नहीं है, और स्कालर्स का अभी नए, दूरस्थ स्थान पर आना बाकी है. अभिलेखों के बारे में पूछताछ करने के लिए 2018 के बाद से केवल दो विदेशी विद्वान आर्काइव में पहुंचे हैं, जबकि आसपास के विश्वविद्यालयों से अभी कुछ ने ही दौरा किया है.
रंगा राज ने सार्वजनिक रिकॉर्ड को संरक्षित करने के लिए कानून भी तैयार किया था, जिसे उन्हें उम्मीद है कि फरवरी 2023 में शिक्षा मंत्री बोत्सा सत्यनारायण द्वारा आंध्र प्रदेश विधानसभा में पेश किया जाएगा. उन्होंने तेलंगाना में अपने समकक्षों के साथ इस कानून की एक प्रति साझा नहीं की है – आखिरकार, यह उनकी कड़ी मेहनत है.
उन्होंने अपने साथ काम करने के लिए कर्मचारियों को अनुबंधित किया है. वे सभी कॉलेज स्नातक हैं, लेकिन अभिलेखों के संरक्षण के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं. रंगा राज और स्टाफ के अधिक वरिष्ठ सदस्य उन्हें हर तीन महीने में प्रशिक्षण प्रदान करने का प्रयास करते हैं. राज्य की सीमाओं के पार, तेलंगाना में कर्मचारी सुस्त हैं – उनमें से कई लोग वहां काम करना छोड़ चुके हैं जो दशकों से वहां हैं और उन्होंने केवल अपने कार्यस्थल को अधिक से अधिक अराजकता में गिरते देखा है.
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बी ईश्वर राव जो सार्वजनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड तक पहुंचने के लिए तेलंगाना आर्काइव का उपयोग कर रहे थे उन्होंने कहा, “विभाजन के कारण कर्मचारी भी चले गए हैं और यहां काम करने वाले लोग रिकॉर्ड-कीपिंग के बारे में नहीं जानते हैं. बैठने और पढ़ने के लिए भी उचित सुविधाएं नहीं हैं.”
कर्मचारी और विद्वान दोनों सहमत हैं कि अभिलेखागार दोनों राज्य सरकारों के लिए प्राथमिकता नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि रंगा राज के अनुसार, अभिलेखागार एक सर्विस-ओरिएंटेड विभाग है जिससे राज्य को राजस्व की प्राप्ति नहीं होती है. कर्मचारियों का दोनों अभिलेखागारों का सालों से अनुबंध है. तेलंगाना अभिलेखागार में फारसी अभिलेखों की देखभाल करने वाली तीन सदस्यीय टीम के पास अभी भी स्थायी नौकरियां नहीं हैं, बावजूद इसके कि ऐसे दस्तावेजों को संभालने वाले विशेषज्ञों की घटती जा रही है.
विद्वानों ने इस पर भी गौर किया है. हैदराबाद में नागरिकता और संपत्ति की राजनीति पर काम कर रहे पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर इंदीवर जोनलगड्डा याद करते हुए कहते हैं कि एक स्टाफ ने उन्हें बताया था कि “जब दोनों राज्य आर्काइव और अभिलेखागार में वस्तुओं के लिए होड़ में लगे थे थे, तब कोई भी राज्य संस्था या इन्फ्रास्ट्रक्चर की जिम्मेदारी नहीं ले रहा था. इसलिए द्विभाजन ने केवल अभिलेखागार की स्थिति को बढ़ाया, जो संसाधनों और कर्मचारियों की कमी में से एक था. उन्होंने कहा कि यह उनके लिए स्पष्ट नहीं है कि समकालीन सरकारें अभिलेखागार को क्या मूल्य देती हैं. “सूचना के अधिकार और छात्रवृत्ति के दृष्टिकोण से, मुझे लगता है कि अभिलेखागार की सबसे बड़ी जरूरत बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों व इन्फ्रा में निरंतर निवेश है. मुझे नहीं लगता कि यह किसी सरकार के एजेंडे में है.’
नौकरशाहों और व्यवसायियों पर अपने स्वयं के लाभ के लिए कागजातों को चुराने और उनका जाली उपयोग करने के भी आरोप भी लगे हैं – अभिलेखागार को लेकर कई अफवाहें हैं.
तेलंगाना राज्य अभिलेखागार के भवन अधीक्षक राजन दास ने इन अफवाहों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे वे अभी हल करने की क्षमता रखते हैं. “धूल हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है!” झड़ते हुए प्लास्टर और पानी से सीलन वाली दीवारों की तरफ घूरते हुए उन्होंने कहा, “यह एक कठिन काम है. हमारे पास अपने रिकॉर्ड को ठीक से बनाए रखने के लिए तकनीक या जानकार कर्मचारी नहीं हैं. इस बीच, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस इमारत की हालत ठीक है.
उनके साथ दो स्थायी कर्मचारी हैं जो उनके साथ काम करते हैं. पिछले साल दिसंबर के मध्य में फारसी रिकॉर्ड रूम की छत का एक हिस्सा नीचे गिर गया था. खुले और दिखने वाले अभिलेखों वाली अभिलेखों को जल्दी से पुनर्व्यवस्थित किया जाना था, और धूल को बड़े करीने हटा दिया गया. मानसून के दौरान, बारिश से ग्राउंड फ्लोर के कमरों में पानी भर जाता है.
जिज्ञासा और तुलना
दोनों अभिलेखों में स्टाफ की कमी है और फंड की कमी है. दोनों को कभी दोस्त रहे दो लोगों द्वारा संरक्षण के उद्देश्य से चलाया जा रहा है.
और अभिलेखागार में सब कुछ – अभिलेखों से कर्मचारियों तक – उन्हीं दोनों के बीच फंसा हुआ है. हैदराबाद में एक स्टाफ सदस्य मजाक करते हुए कहता है, “आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भाई-भाई की तरह हैं. लेकिन कभी-कभी यहां काम करना भारत और पाकिस्तान के बीच काम करने जैसा है.
हैदराबाद में हर कोई अपने पूर्व उप निदेशक द्वारा चलाए जा रहे नए कार्यालय में रुचि रखता है. उन सभी ने सुना है कि यह कितना फैंसी और आधुनिक है, भले ही यह कहीं नहीं है. वे जो प्रश्न पूछते हैं वे इस बारे में कम होते हैं कि अभिलेखों को कैसे व्यवस्थित और संरक्षित किया जा रहा है और उनके कार्यालय के आकार या उनके द्वारा प्राप्त धन के बारे में अधिक होते हैं. एक कार्यकर्ता ने पूछा कि अभिलेखागार को अपनी दो मंजिलों के लिए कितना किराया देना पड़ता है.
लेकिन जिज्ञासा के बावजूद हैदराबाद से कोई भी वास्तव में मंगलागिरी घूमने नहीं गया है. यह केवल पांच घंटे की सड़क यात्रा है, लेकिन दो अभिलेखागार ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वे सदियों से अलग हो गए हों.
रंगा राज और आंध्र प्रदेश राज्य अभिलेखागार ने परवीन और तेलंगाना राज्य अभिलेखागार को आने और जाने के लिए कई बार आमंत्रित किया है. लेकिन वे कभी नहीं गए. उनका कहना है कि उनका काम हैदराबाद में काम को संभालना है.
यह लेख भारत के अभिलेखागार की स्थिति पर एक श्रृंखला का हिस्सा है. सभी लेख यहां पढ़ें.
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(संपादनः शिव पाण्डेय)
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