शर्म अल-शेख, मिस्र: यूरोपीय संघ ने यूरोपीय आयोग में कार्यकारी उपाध्यक्ष, यूरोपीय ग्रीन डील फ्रैंस टिम्मरमैन की अगुआई में गुरुवार देर रात जलवायु वार्ता में हस्तक्षेप करते हुए एक लॉस एंड डैमेज क्लाइमेट फाइनेंस फैसिलिटी की स्थापना पर सहमति जताई जो केवल ‘सबसे ज्यादा खतरे वाले देशों’ के हितों को ध्यान में रखकर काम करे और व्यापक डोनर बेस तैयार करे. एक तरफ यूरोपीय संघ की ये घोषणा सम्मेलन की एक बड़ी सफलता मानी जा रही है, वहीं इस मुद्दे को कॉप-27 के एजेंडे में शामिल कराने के लिए पूरी मशक्कत करने वाले कई विकासशील देशों का मानना है कि अपेक्षित नतीजों के लिहाज से यह प्रस्ताव कारगर नहीं है.
जी-77 और अलग-अलग आकार के 130 से अधिक देशों वाले चाइना ग्रुप ने जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसानों और उनकी क्षतिपूर्ति के लिए फाइनेंस फैसिलिटी यानी वित्त मुहैया कराने वाली एक व्यवस्था की मांग की थी, जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण तमाम प्राकृतिक आपदाएं झेल रहे सभी विकासशील देशों को धन मुहैया कराए. लेकिन बातचीत का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला और कॉप-27 अध्यक्ष ने लॉस एंड डैमेज फंड पर बातचीत की गेंद मंत्रिस्तरीय परामर्श के लिए प्रतिनिधिमंडल के प्रमुखों के पाले में डाल दी.
अनौपचारिक तौर पर स्थिति की समीक्षा के दौरान गुरुवार देर रात यूरोपीय संघ ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के पक्षकारों के सम्मेलन के तहत एक फंड स्थापित करने का प्रस्ताव दिया, जिसका उद्देश्य ‘सबसे ज्यादा जोखिम वाले देशों’ के हित में काम करना हो. टिम्मरमैन का कहना है कि ‘समाधानों के हिस्से के तौर पर ऋण मुहैया कराने और बहुपक्षीय डेवलपमेंट बैंकों में सुधार करना भी शामिल है.’
प्रस्ताव लॉस एंड डैमेज फाइनेंसिंग को जलवायु परिवर्तन में कमी लाने यानी मिटिगेशन के प्रयासों से जोड़ने की बात करता है, जैसा टिम्मरमैन ने कहा, ‘यदि हमने महत्वाकांक्षाओं या मिटिगेशन पर तत्काल उपयुक्त कदम नही उठाए जल्द ही टिपिंग पॉइंट (ग्लोबल वार्मिंग को सीमित रखने का लक्ष्य) पार कर जाएंगे और नुकसान व उसकी भरपाई के लिए कोई भी राशि पर्याप्त नहीं होगी.’
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गौरतलब है कि अमेरिका सहित पश्चिमी देश ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिक काल से पहले के स्तर से 1.5 डिग्री ऊपर सीमित रखने के लिए विकासशील देशों पर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने या रोकने पर अधिक जोर दे रहे हैं. 2015 के पेरिस समझौते में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचने के लिए जरूरी है कि तमाम देश ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिककाल के स्तर से 1.5 डिग्री से ऊपर न जाने दें और ‘बेहतर यही होगा’ कि इसे 2 डिग्री से नीचे सीमित रखा जाए.
हालांकि, प्रस्ताव नुकसान और क्षतिपूर्ति के लिए फंड स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता पर जी-77 की राय से सहमति जताता है, इन देशों के एक वार्ताकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘उसका जो भी नतीजा सामने आता है, वो विकासशील देशों के लिए ही हानिकारक होता है.’
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क में ग्लोबल पॉलिटिकल स्ट्रेटजी के हेड हरजीत सिंह ने कहा कि यूरोपीय संघ का प्रस्ताव स्वागतयोग्य तो है, लेकिन इसका फोकस जोखिम वाले देशों की अस्पष्ट कटेगरी पर है, साथ ही यह व्यापक डोनर बेस पर जोर देता है—जिसके बारे में विकासशील देशों का तर्क है कि यह कान्फ्रेंस के नियमों को कमजोर करने वाला है—और इसलिए ‘अस्वीकार्य’ है.
हरजीत सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसे समय में जबकि तमाम बड़े विकासशील देश भी जलवायु संकट का खामियाजा भुगत रहे हैं, जोखिम वाले देशों की सूची में किसी तरह की कटौती अस्वीकार्य है. अधिकांश विकासशील देश भी चाहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित रखें, और अपने डेवलपमेंट के प्रयासों में कम से कम कार्बन इस्तेमाल वाले उपायों को अपनाएं, लेकिन इसके लिए वित्तीय सहयोग की जरूरत होगी.’
उन्होंने कहा, ‘यूरोप का प्रस्ताव फाइनेंस टार्गेट पूरा करने की बात नहीं करता है जिसमें अपने प्रयासों में वे अब तक विफल रहे हैं, और न ही यह स्पष्ट करता है कि लो कार्बन डेवलपमेंट के रास्ते पर चलने वाले देशों को फंड कैसे दिया जाएगा.’
विशेषज्ञों का कहना है कि लॉस एंड डैमेज फैसिलिटी स्थापित होती है या नहीं, इसे ही कॉप-27 की सफलता का लिटमस टेस्ट माना जाएगा.
‘ऐतिहासिक उत्सर्जन को ही लॉस एंड डैमेज फाइनेंस का आधार बनाएं’
पर्यवेक्षकों के मुताबिक, अब तक, जी-77 और चीन यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के विरोध में एकजुट हैं.
एक अफ्रीकी देश के वार्ताकार ने कहा, ‘यूरोपीय संघ के प्रस्ताव में लॉस एंड डैमेज फाइनेंस का नुकसान झेल रहे विकासशील देशों को संकट से उबारने की कोशिश में एक हथियार बनाने की नैतिक प्रतिबद्धता का अभाव है.’
वार्ताकार ने कहा, ‘प्रस्ताव किसी भी अनुमानित, नए और अतिरिक्त फाइनेंस की बात नहीं करता, और इसमें संसाधन प्रदान करने को लेकर भी उनकी ओर से कोई प्रतिबद्धता नहीं दिखती बल्कि यह विकासशील देशों के अन्य स्रोतों के साथ मिलकर योगदान करने पर जोर देता है, जिनकी अभी पहचान की जानी बाकी है.
टिम्मरमैन ने पूर्व में कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि चीन लॉस एंड डैमेज फाइनेंस में योगदान देगा क्योंकि यह ‘दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है.’ विकसित देश विकासशील देशों की ‘प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं’ को शामिल करके क्लाइमेट फाइनेंस का डोनर बेस बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, यद्यपि जलवायु वार्ताओं का आधार रहे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) इस तरह के वर्गीकरण को मान्यता नहीं देता है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की प्रोग्राम मैनेजर अवंतिका गोस्वामी ने कहा, ‘अगर वे चाहते हैं कि चीन योगदान दे, तो अंततः भारत जैसे देश को भी शामिल किया जाएगा, जबकि भारत और चीन की स्थिति के बीच की जमीन-आसमान का अंतर है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘उन्होंने जो मैकेनिज्म सुझाए हैं, वो सम्मेलन के सिद्धांतों से मेल नहीं खाते क्योंकि ये उन्हें किसी भी बाध्यकारी ढांचे में नहीं रखते. सम्मेलन में क्लाइमेट फाइनेंस के लिए एक स्पष्ट व्यवस्था की मांग की जा रही है, और ‘समाधानों को एक साथ जोड़ना’ मांग से बहुत अलग है.
भारत सरकार के एक अधिकारी का कहना है कि भारत डोनर बेस को बढ़ाने के प्रस्ताव से सहमत नहीं होगा, क्योंकि इसका कोई सवाल ही नहीं उठता है.
अधिकारी ने कहा, ‘हम ऐसी स्थिति में नहीं अटकना चाहते जो उचित नहीं है. लॉस एंड डैमेज फंड सीधे तौर पर ऐतिहासिक उत्सर्जन और पर कैपिटा उत्सर्जन से जुड़ा होना चाहिए. यूरोपीय संघ का ‘सबसे ज्यादा जोखिम वाले’ देशों का आइडिया इसकी व्याख्या को काफी व्यापक बना देता है और चर्चा का सिरा यूं ही खुला छोड़ देने वाला है.’
ऐतिहासिक संदर्भ में अमेरिका सबसे बड़ा उत्सर्जक है, जिसने औद्योगिककाल के बाद से पूरे उत्सर्जन में लगभग एक चौथाई योगदान दिया. वहीं, इस मामले में यूरोपीय संघ दूसरे नंबर पर है जिसकी ऐतिहासिक उत्सर्जन में हिस्सेदारी 22 प्रतिशत रही है.
टिम्मरमैन के प्रस्ताव के विरोध का एक कारण इस तथ्य से भी उपजा है कि विकसित देश ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने का लक्ष्य 1.5 डिग्री से अधिक नहीं बढ़ाना चाहते हैं, जबकि मिटिगेशन के प्रयासों में समान योगदान देने के पक्षधर भी नहीं हैं. विकासशील देशों के वार्ताकारों का कहना है कि दूसरे शब्दों में कहें तो वे कम संसाधनों वाले देशों के लिए उच्च जलवायु महत्वाकांक्षाओं का प्रस्ताव करते समय इस पर विचार नहीं करना चाहते कि खुद ऐतिहासिक उत्सर्जन करके उन्होंने किस तरह लाभ उठाया है.
सूत्रों के मुताबिक, यूरोपीय संघ जलवायु परिवर्तन के नुकसान और उसकी क्षतिपूर्ति और क्लाइमेंट मिटिगेशन को ‘एक ही सिक्के के दो पहलू’ के तौर पर देखता है, और उसका मानता है कि लॉस एंड डैमेज फंड का इस्तेमाल किसी भी तरह की सहायता के साथ-साथ ‘अधिक घातक जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए बड़े पैमाने पर उत्सर्जन कटौती’ के लिए भी किया जाना चाहिए.
साइंटिफिक डेटा से पता चलता है कि दुनिया के अधिकांश कार्बन बजट को विकसित देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढ़ाने के लिए हड़प लिया है. पेरिस समझौते के तहत प्रस्तावित 2 डिग्री वार्मिंग की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करने से कार्बन बजट और भी कम हो जाता है. इससे विकासशील देशों पर कम कार्बन उत्सर्जन का दबाव बढ़ता है, जबकि विकसित देश भले ही इसके लिए पर्याप्त फंड मुहैया कराने के अपने वादे में विफल रहे हों.
गोस्वामी के मुताबिक, लॉस एंड डैमेज को मिटिगेशन से जोड़ना, जिस पर यूरोपीय संघ और अन्य विकसित देश जोर दे रहे हैं, इस पूरे प्रयास की कमजोर कड़ी है.
उन्होंने कहा, ‘आप कार्बन न्यूट्रल हो सकते हैं लेकिन फिर भी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की चपेट में आ सकते हैं.’ साथ ही जोड़ा, ‘यदि आप समुद्र के बढ़ते जलस्तर का सामना कर रहे एक कमजोर देश हैं, तो आप उस वास्तविकता से कैसे बच सकते हैं? यह संभव ही नहीं है.’
बहरहाल, कॉप-27 सम्मेलन अपने समापन दिवस के लिए निर्धारित समयसीमा से आगे बढ़ जाने के बीच तमाम देश अभी भी लॉस एंड डैमेज फंड पर किसी समझौते के करीब पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.
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