अहमदाबाद/गांधीनगर: 12 सितंबर 2021 को घाटलोदिया से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक भूपेंद्र पटेल अन्य दिनों की तरह ही अपने घर से बाहर निकले थे. वह पार्टी नेतृत्व द्वारा बुलाई गई एक जरूरी बैठक में शामिल होने के लिए जा रहे थे. राज्य सरकार में बदलाव होने ही वाला था और उनके बेटे अनुज ने पहली बार विधायक बने पटेल से पूछा कि क्या उन्हें इस बदलाव में कुछ मिलने की संभावना है. पटेल ने कंधे उंचकाये और फिर बाहर निकल गए.
उस रात जब वे घर लौटे, तो ये विनम्र से दिखने वाले पूर्व नगरसेवक गुजरात के नए मुख्यमंत्री बन चुके थे, वह भी बिना कभी कोई मंत्री पद संभाले. यह एक ऐसा कदम था जिसने हर किसी को भौंचक्का कर दिया था – चाहे वह स्थानीय मीडिया हो, राजनीतिक बिरादरी हो या फिर पटेल के अपने परिवार के सदस्य ही क्यों न हों.
32-वर्षीय अनुज, जो अब अपने पिता के रियल एस्टेट के कारोबार को संभालते हैं, उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, ‘हमने टीवी पर घोषणा देखी और फिर हम चौंक गए.’
उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि 60 वर्षीय भूपेंद्र पटेल की सरकार चलाने में सापेक्ष अनुभवहीनता की भरपाई इस बात से हो जाती है कि भाजपा नेतृत्व को उन पर पूरा विश्वास था कि वे खुद की धाक ज़माये बिना गुजरात में पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ायेंगे.
उन्हें एक गैर-विवादास्पद, जमीनी नेता के रूप में जाना जाता है, जो राजनेताओं के लिए आम तौर पर सबसे अच्छी माने जाने वाली पोशाक यानी कि कुर्ता-पायजामा या सफारी सूट के बजाय अपनी शर्ट और पैंट में अधिक सहज महसूस करते हैं. वह राजनीतिक रूप से मुखर नहीं हैं और गुजरात भाजपा के अन्य ‘शक्ति केंद्रों’ का सीधे तौर पर विरोध नहीं करते हैं. साथ ही उनकी पाटीदार नेता की पहचान सोशल इंजीनियरिंग में मदद करती है.
पटेल की अक्सर जिस बात के लिए सबसे ज्यादा आलोचना की जाती है – कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रबर स्टैंप हैं- उनके पार्टी सहयोगियों की नजर में वही उनकी सबसे बड़ी ताकत है.
पार्टी नेताओं ने अब घोषणा की है कि अगर भाजपा अगले महीने होने वाला विधानसभा चुनाव जीतती है तो भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री बने रहेंगे. गुरुवार को जारी पार्टी के उम्मीदवारों की पहली सूची के अनुसार पटेल फिर से घाटलोदिया से ही चुनाव लड़ेंगे.
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पटेल के मुख्यमंत्री बनने से करीब 10 दिन पहले वे गांधीनगर के वार्ड नंबर 9 स्थित एक भाजपा कार्यालय के बाहर साधारण सी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे थे. भाजपा विधायक के रूप में, गांधीनगर और अहमदाबाद में वार्डों का एक समूह, जिसमें वार्ड नं. 9 भी शामिल था जो पर्यवेक्षण के लिए उनके अधिकार क्षेत्र में आता था.
गांधीनगर के एक पार्टी पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम जोर दे रहे थे कि वह अंदर आए और पंखे के नीचे तथा टेबल के पीछे रखी एक मखमली कुर्सी पर बैठें. लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि वह कार्यालय के बाहर ही बैठना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इससे उन्हें किसी भी गुजरने वाले व्यक्ति से मिलने में आसानी होगी.’
पार्टी नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री के रूप में पटेल का सबसे प्रभावी बिंदु आम लोगों तक उनकी सुलभ पहुंच है.
गांधीनगर के एक अन्य स्थानीय भाजपा नेता का कहना है कि पटेल गांधीनगर और अहमदाबाद के हर पार्टी कार्यकर्ता को उसके नाम से जानते हैं.
इस नेता ने कहा, ‘वह कभी भी किसी का नाम या चेहरा नहीं भूलते. पिछले हफ्ते, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अहमदाबाद और गांधीनगर के बीच एक एलिवेटेड रोड का उद्घाटन करने वाले थे. आम तौर पर मुख्यमंत्री, गृह मंत्री के साथ ही आते हैं, लेकिन भूपेंद्र भाई आधे घंटे पहले आ गए. उन्होंने कहा कि उन्हें पता था कि भाजपा कार्यकर्ता पहले से मौजूद होंगे और वह खुद को पहले भाजपा कार्यकर्ता ही मानते हैं. उन्होंने वहां उपस्थित सभी लोगों से बात की.’
एक तीसरे भाजपा नेता, जो एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं, ने भी पटेल के व्यक्तिगत रूप से जान-पहचान के बारे में बात की. वह बताते हैं कि कैसे उन्होंने और कुछ पूर्व सरकारी कर्मचारी साथी के एक समूह ने कुछ महीने पहले एक समारोह आयोजित किया था और मुख्यमंत्री को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था. उस तारीख को पटेल को पार्टी आलाकमान से मिलने के लिए दिल्ली जाना था, इसलिए उन्होंने अपने कैबिनेट सहयोगी जीतू वघानी को इस कार्यक्रम में शामिल होने की जिम्मेदारी सौंपी.
ये नेता कहते हैं, ‘दिल्ली से लौटने के बाद, उन्होंने हममें से 10-15 लोगों को सीएमओ (मुख्यमंत्री कार्यालय) में बुलाया और कार्यक्रम में शामिल नहीं होने के लिए व्यक्तिगत रूप से माफी मांगने के बाद हमसे यह भी पूछा कि इसमें क्या कुछ हुआ.’
पटेल के करीबी लोग दिप्रिंट को बताते हैं कि वह हर सोमवार और मंगलवार को सीएमओ में सार्वजनिक दरबार लगाते हैं, जब उनके दरवाजे हर उस शख्स के लिए खुले होते हैं जो उनसे मिलना चाहता है. निरपवाद रूप से, उन दो दिनों में सैकड़ों लोग आते हैं – और पटेल उन सभी से मिलते हैं,
घाटलोदिया के उनके घर के करीब खुले मैदान में उनके पड़ोसी अर्जनभाई और मफाभाई रबारी अपने घर के बाहर लगे एक पेड़ के नीचे बैठे हैं. अपने सामने की सड़क की ओर इशारा करते हुए अर्जनभाई कहते हैं, ‘पहले कोई सड़क नहीं थी और यहां पानी भर जाया करता था. हमने इसकी कई बार शिकायत की लेकिन नगर निगम का कहना था कि तकनीकी दिक्कतों के कारण यह मामला अटका हुआ है.’
मफाभाई कहते हैं, ‘जब भूपेंद्र पटेल विधायक बने तो उन्होंने हमारी समस्या में व्यक्तिगत रुचि दिखाई और यह सड़क बनवाई.’
लेकिन मुख्यमंत्री के कई सारे आलोचक भी हैं. कांग्रेस नेता शशिकांत पटेल, जो 2017 के विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र से हार गए थे, का कहना है कि गुजरात में ‘मोदी सरकार के दूत’ के रूप में, मुख्यमंत्री को महंगाई और ईंधन की बढ़ती हुई कीमतों के बारे में भी बात करने की जरूरत है.
वह कहते हैं, ‘सिर्फ सड़कें बनवाने और स्ट्रीट लाइट लगवाने से काम नहीं चलेगा. देश महंगाई से जूझ रहा है. लोग त्रस्त हो रहे हैं. यह उनके लिए एक चुनौती बनने जा रहा है. ‘
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मीडिया से बचने वाले मुख्यमंत्री
पार्टी कार्यकर्ताओं और अपने मतदाताओं के लिए सर्वसुलभ होने के बावजूद, भूपेंद्र पटेल मीडिया की पहुंच से दूर रहने वाले व्यक्ति जैसे हैं. उनके करीबियों का कहना है कि उन्हें कभी भी सुर्खियों में रहने का शौक नहीं रहा.
गुजरात भाजपा की जनसंपर्क टीम के एक सदस्य का कहना है, ‘मुख्यमंत्री बनने से पहले भी वह ऐसे ही थे. अतीत में हमने उनसे कई बार पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में टीवी डिबेट में जाने का अनुरोध किया था, खासकर शहरी विकास के मुद्दों पर होने वाली बहस के लिए. वे हमेशा मना कर देते थे.’
उन्होंने आगे कहा कि पार्टी के साथ बिताये अपने लंबे करियर में, उन्होंने मुख्यमंत्रियों को अपनी टीमों को सुबह अखबारों पर ध्यान देने, नकारात्मक रिपोर्टों को चिह्नित करने और संबंधित पत्रकारों के साथ इसके बारे में फॉलो-अप की कार्रवाई करने के लिए कहते देखा है. उन्होंने कहा ‘पर ये मुख्यमंत्री? उन्होंने इन सबकी कभी परवाह ही नहीं की.’
पर इसके बाद भी जब विवाद उत्पन्न होते हैं, तो पटेल उनसे दूरी बना लेते हैं. उदाहरण के लिए, जब राजकोट पुलिस ने इस साल अगस्त में एक स्थानीय पत्रकार के खिलाफ यह खबर देने के लिए आरोप दर्ज किया था कि पार्टी नेतृत्व पटेल को मुख्यमंत्री के रूप में दोबारा नियुक्त नहीं भी कर सकता है, तो उन्होंने चुप्पी साध ली.
इसी तरह, पटेल ने साल 2021 में मुंद्रा में नशीली दवाओं की बरामदगी, इस साल अगस्त में बिलकिस बानो मामले में बलात्कार के दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले और पिछले महीने खेड़ा में एक गरबा के आयोजन पर हुए विवाद के बाद मुस्लिमों को खुलेआम पीटे जाने जैसे विवादास्पद मुद्दों पर भी चुप्पी साधे रखी.
पटेल को सार्वजनिक रूप से बोलना भी कुछ खास पसंद नहीं है. वह हमेशा एक ऐसे नेता रहे हैं जो रैलियों में अपने भाषण को 10 मिनट के भीतर खत्म करने के लिए जाने जाते थे. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद, भाजपा जनसंपर्क टीम के सदस्यों ने उनसे अपने भाषण को कम से कम 20 मिनट तक लंबा करने का अनुरोध किया था.
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जब पटेल ने इस साल अप्रैल में सत्ता में आने के बाद से अपने 200 दिन पूरे किए थे, तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने इतने कम समय में लोक कल्याण के लिए ‘दूरदर्शी निर्णय’ लेने के लिए पटेल की प्रशंसा की थी.
फिर अक्टूबर में, जामनगर में बोलते हुए, मोदी ने फिर से मुख्यमंत्री पटेल की द्वारका में अवैध ढांचों के विध्वंस अभियान चलाने और ‘बेट द्वारका के गौरव को बहाल करने’ हेतु ‘दृढ़ रहने’ के लिए सराहना की.
उसी महीने, आणंद में एक अन्य रैली को संबोधित करते हुए, प्रधान मंत्री मोदी ने कहा कि गुजरात ‘भाग्यशाली है कि उसके पास एक ऐसा मुख्यमंत्री है जिसके पास पंचायत से लेकर विधानसभा तक 25 वर्षों का काम करने का अनुभव है.’ मोदी ने आगे कहा कि जब वे खुद मुख्यमंत्री बने थे तो उनके पास कोई अनुभव नहीं था.’
गुजरात के भाजपा नेताओं का कहना है कि उन्होंने कभी प्रधान मंत्री मोदी को सार्वजनिक रूप से किसी नेता की वैसी सराहना करते नहीं सुना जैसी वे पटेल की करते हैं. अहमदाबाद के एक भाजपा नेता कहते हैं, ‘अमित शाह की भी नहीं.’
एक सिविल इंजीनियर की योग्यता रखने वाले भूपेंद्र पटेल का रियल एस्टेट उनका पारिवारिक व्यवसाय है, जिसके बारे में उनके पार्टी सहयोगियों का कहना है कि यह राज्य में बिना किसी ऋण के आधार पर चलने वाले कुछेक व्यवसायों में से एक है.
उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल 1995 में मेमनगर नगरपालिका से एक पार्षद के रूप में की, और फिर लगातार हर समस्या का समाधान करने वाले शख्स के रूप में ख्याति प्राप्त की.
वह साल 2010 से 2015 तक अहमदाबाद नगर निगम में थलतेज वार्ड के पार्षद भी रहे थे. उनके करीबी लोगों का कहना है कि यह तब हुआ था जब वह मोदी के ‘कृपापात्र’ बन गए.
उन्होंने शहर के शीर्ष शहरी नियोजन निकाय, अहमदाबाद शहरी विकास प्राधिकरण (अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी- औडा) की स्थायी समिति के अध्यक्ष के रूप में भी दो बार अपनी सेवाएं दी हैं . दिसंबर 2014 में, वह पहली बार औडा के अध्यक्ष बने थे.
साल 2014 में जब आनंदीबेन पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के उत्तराधिकारी बनी थीं, तो भूपेंद्र पटेल ने उनके मार्गदर्शन में काम किया था. साल 2016 में जब आनंदीबेन ने अपना पद छोड़ दिया, तो उन्होंने ने अपने शिष्य को अपनी सीट घाटलोदिया से चुनाव लड़ने की सलाह दी. फिर साल 2017 के विधानसभा चुनावों में भूपेंद्र पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को एक लाख से अधिक मतों से हराया था.
लेकिन कई आलोचक पटेल की कड़ी आलोचना भी करते हैं और कहते हैं कि वह सिर्फ मोदी के आदमी ही नहीं हैं, बल्कि उनकी ‘कठपुतली’ हैं.
अहमदाबाद स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन के निदेशक प्रोफेसर हरि देसाई कहते हैं, ‘भूपेंद्र पटेल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों की कठपुतली हैं.’
देसाई कहते हैं, ‘मोदी एक तरह से अभी भी गुजरात के मुख्यमंत्री हैं. गुजरात में लगभग हर विभाग में उनके लोग मौजूद हैं. पूरा मंत्रिमंडल ‘रिमोट कंट्रोल’ से चलता है और मुख्यमंत्री एक पोस्टमैन (डाकिया) की तरह हैं.’
वह आगे कहते हैं कि मुख्यमंत्री कार्यालय में पटेल के सभी सलाहकार मोदी के खास आदमी हैं, आईएएस अधिकारी कुनियिल कैलाशनाथन ‘सुपर मुख्यमंत्री ‘ हैं.
लोकप्रिय रूप से केके ने नाम से जाने जाने वाले कैलाशनाथन, मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव हैं. साल 2013 में यह पद विशेष रूप से उन्हीं के लिए तब सृजित किया गया था, जब वे तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे. अब केके को गुजरात सरकार में नरेंद्र मोदी की आंख और कान कहा जाता है.
लेकिन गुजरात के भाजपा नेताओं का दावा है कि पटेल द्वारा इस व्यवस्था को स्वीकार करने का एक फायदा है.
वलसाड विधायक भरतभाई पटेल सवाल करते हैं, ‘हमें केंद्र में गुजरात से नरेंद्रभाई मोदी और अमितभाई शाह जैसे बुद्धिमान प्रशासकों का आशीर्वाद मिला हुआ है. भूपेंद्रभाई बहुत ही सरल, सीधे-सादे व्यक्ति हैं, और वे गुजरात में पार्टी के एजेंडे को कुशलतापूर्वक लागू कर रहे हैं. इसमें गलत क्या है? ‘
पिछले महीने से, मुख्यमंत्री पटेल ने प्रधान मंत्री मोदी के साथ राज्य के कुछ हिस्सों का दौरा करने और गांधीनगर में मिशन स्कूल ऑफ एक्सीलेंस; राजकोट में 5,860 करोड़ रुपये की आवास, जलापूर्ति और परिवहन से जुड़े बुनियादी ढांचे वाली परियोजनाओं की आधारशिला रखने, और सूरत में विकास कार्यों के लिए 3,400 करोड़ रुपये के समर्पण जैसी परियोजनाओं की शुरआत और उनके उद्घाटन में काफी समय बिताया है.
भरतभाई पटेल कहते हैं, ‘पीएम के उद्घाटन के लिए गुजरात में इन सभी परियोजनाओं की देखरेख किसने की? यह भूपेंद्रभाई ही तो थे.’
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पिछले दो दशकों में, पटेल एक आध्यात्मिक गुरु, दादा भगवान, के उत्साही अनुयायी रहे हैं, और अडालज स्थित उनके (गैर-सांप्रदायिक) त्रिमंदिर में अक्सर जाते रहते हैं. अनुज बताते हैं कि उनके पिता हर साल जून-जुलाई के आसपास दादा भगवान के आध्यात्मिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अमेरिका भी जाते हैं.
अनुज कहते हैं कि उनके पिता हमेशा एक साधारण व्यक्ति रहे हैं, जो घर का बना खाना पसंद करते हैं, और उनका खाना आम तौर पर परिवार की रसोई में बनी गुजराती मिठाई के साथ समाप्त होता है. वे कहते हैं, ‘वह कभी भी एक सख्त पिता नहीं थे. वह इतने आध्यात्मिक है कि हर दिन जब वह जागते हैं, तो अपना एक घंटा सेवा में बिताते हैं – चाहे वह किसी भी प्रकार की हो – और उसके बाद ही घर से बाहर निकलते हैं. और अगर उनके पास समय होता है, तो वे टीवी पर दादा भगवान के सत्संग देखने के लिए रात 9 से 10 बजे तक एक घंटा बिताते हैं.’
अनुज कहते हैं, उनके पिता की एक मात्र खुशी, हिंदी में डब की गई दक्षिण भारतीय फिल्में देखना हैं. वे कहते हैं, ‘हम उन्हें कुछ ऐसी फिल्में भी सुझाते हैं जो वह देखते हैं. लेकिन अब उनके पास ज्यादा समय नहीं है.’
अनुज कहते हैं कि उनके पिता पुष्पा और के.जी.एफ जैसी लोकप्रिय फिल्में देखने के लिए उपलब्ध नहीं थे, लेकिन उन्होंने बाहुबली देखी थी और इसे काफी पसंद भी किया था.’
भाजपा के एक कार्यकर्ता पीयूष पटेल, जो भूपेंद्र पटेल को उनके नगर निगम के दिनों से जानते हैं, कहते हैं कि भूपेंद्र पटेल भाग्यवश मुख्यमंत्री जरूर बने थे, लेकिन उन्होंने दिखा दिया है कि उनके पास वहां टिके रहने का माद्दा है. पीयूष कहते हैं, ‘वह एक लंबी रेस का घोड़ा हैं और उन्हें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है.’
(अनुवाद-रामलाल खन्ना)
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