scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमदेशHP में BJP के लिए ट्रंप कार्ड बना ऊना का बल्क ड्रग पार्क, भाखड़ा नांगल बांध के बाद पहला बड़ा प्रोजेक्ट

HP में BJP के लिए ट्रंप कार्ड बना ऊना का बल्क ड्रग पार्क, भाखड़ा नांगल बांध के बाद पहला बड़ा प्रोजेक्ट

भाजपा का समर्थन करने वाले मतदाताओं के घरों में बल्क ड्रग पार्क के लिए निर्धारित जमीन के नक्शे की फोटोकॉपी यहां से वहां घूम रही है.

Text Size:

हिमाचल प्रदेश की बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ बेल्ट अपने फार्मास्युटिकल हब के लिए जानी जाती है. इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट के निर्माण के लिए राज्य के ऊना जिले में एक विशाल नया इंडस्ट्रियल बल्क ड्रग पार्क बनने जा रहा है, जो भारत की आगे बढ़ती फार्मा इंडस्ट्री को नए आयाम पर पहुंचा देगा.

शायद यही वजह है कि यह पार्क हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता बन गया है.

ऊना पार्क के लिए चयन की गई जमीन के आसपास के गांवों के लोगों के बीच राजनीतिक जुड़ाव के आधार पर विभाजन साफ तौर पर देखा जा सकता है. यानी आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन भाजपा के साथ है और कौन कांग्रेस के. जहां भाजपा को सपोर्ट करने वाले परिवार इस इलाके में बदलाव और रोजगार के अवसर को लेकर आशान्वित हैं, तो वहीं कांग्रेस का समर्थन करने वाले ग्रामीणों का एक ग्रुप प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण पर आपत्ति जता रहा है.

ऊना जिले के हरोली क्षेत्र की ओर जाने वाली डामर से बनी चिकनी सड़कों पर लगे भाजपा उम्मीदवार राम कुमार की तस्वीरों वाले बड़े बैनर, सत्ता में आने पर इस इलाके को एक नया रूप देने की उम्मीद जगा रहे हैं. उनके पोस्टर में कहा गया है कि बल्क ड्रग पार्क क्षेत्र में 40,000 नौकरियां लेकर आएगा. भाजपा का समर्थन करने वाले घरों में पार्क के लिए निर्धारित जमीन के नक्शे की फोटोकॉपी यहां से वहां घूम रही है.

Map of the land allotted for the bulk drug park with villagers in Una| Sonal Matharu, ThePrint
ऊना में बल्क ड्रग पार्क के लिए आवंटित भूमि का नक्शा | सोनल मथारू, दिप्रिंट

हिमाचल प्रदेश के इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने कहा, ‘भाखड़ा नंगल बांध के बाद शायद यह राज्य का अगला बड़ा प्रोजेक्ट है. जिले के लिए यह जल्द ही फिर से कभी न आने वाला अवसर है.’ उन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए काफी काम किया है और उन्हें इससे जुड़े होने पर गर्व है.


यह भी पढ़ें: हिमाचल चुनाव से पहले हट्टी समुदाय को ST दर्जे ने जगाईं नई उम्मीदें, पर आशंकाएं भी कम नहीं


जिंदगी में सिर्फ एक बार आने वाले अवसर

ऊना जिले में इंडस्ट्रीज डिपार्टमेंट के एक साधारण से ऑफिस के लिए एक ही जगह पर 14,00 एकड़ जमीन की पहचान करना, इसके लिए एक औद्योगिक योजना विकसित करना और महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे बड़े औद्योगिक राज्यों के साथ प्रतिस्पर्धा करना पहली बार में एक असंभव काम लग रहा था. लेकिन पंचायत कार्यालयों से लेकर राज्य मंत्रिमंडल तक विभिन्न सरकारी विभागों की टीमों ने दिन-रात इस पर काम किया और इसके लिए रास्ते तैयार कर लिए.

2020 में रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने तीन बल्क ड्रग पार्कों के लिए बोलियां आमंत्रित की थीं. हिमाचल प्रदेश इसके लिए मजबूत दावेदार बनना चाहता था.

राज्य के विभागों में पार्क के लिए दिन रात काम चलता रहा. प्रोजेक्ट पर हस्ताक्षर किए जाने वाले दस्तावेजों को प्राथमिकता के आधार पर तैयार किया गया. उसके बाद फाइलों को एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में रिकॉर्ड समय में भेजा गया, उन पर साइन लिए गए और जरूरी विभागों तक समय पर पहुंचाया गया.

ऊना के इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने बताया, ‘प्रोजेक्ट फाइल पर मुख्य सचिव के फाइनल सिग्नेचर दोपहर दो बजे मिले थे.’

उन्होंने कहा, ‘इतनी बड़ी योजना का हिस्सा बनने के लिए यह पूरी टीम के लिए एक बार आने वाला अवसर है. और टीम के प्रयास के बिना यह संभव नहीं था.’

उनकी मेहनत रंग लाई. एक सितंबर को इस पार्क के लिए देशभर से 13 बोलियों लगी थी. जिसमें ऊना जिले ने बाजी मार ली. हिमाचल की हरोली तहसील को बल्क ड्रग्स पार्क के लिए तीन जगहों में से एक के लिए चुना गया था.

यह सब कुछ बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के चल रहा था. लेकिन जब 13 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहाड़ी राज्य में चुनाव के लिए निर्धारित आदर्श आचार संहिता से एक दिन पहले ऊना में आयोजित एक रैली में पार्क की आधारशिला रखी, तो इस प्रोजेक्ट ने एक राजनीतिक मोड़ ले लिया. भाजपा की ओर से 1,900 करोड़ रुपये की परियोजना की घोषणा राज्य के लिए काफी बड़ी थी.

यह प्रोजेक्ट पिछले दो साल से पाइपलाइन में है, इसलिए चुनावों के समय इसे उछालना कांग्रेस को रास नहीं आया. कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस के वर्चस्व वाली सीट पर मतदाताओं को लुभाने के लिए भाजपा ने अब इसकी घोषणा की है.

कांग्रेसी विपक्षी नेता और हरोली के चार बार के विधायक मुकेश अग्निहोत्री ने कहा, ‘मुझे पता है यह सब राजनीतिक मकसद से किया जा रहा है. ऐसा करने की वजह भी मुझे पता है. क्योंकि यह विपक्षी नेता का निर्वाचन क्षेत्र है, इसलिए वो ये सब कर रहे हैं.’

कंपटिशन, उत्साह

जहां कुछ लोगों को बल्क ड्रग पार्क का बेसब्री से इंतजार है, तो वहीं कुछ लोगों के लिए इससे जुड़े नौकरी के वादे पर ज्यादा भरोसा नहीं है.

शिमला में काम करने वाले झाखेड़ा गांव के निखिल शर्मा ने कहा, ‘पार्क तैयार होने और लोगों को नौकरी मिलने में कुछ समय लगेगा.’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर स्थानीय लोगों को यहां नौकरी मिल जाए और उन्हें पलायन नहीं करना पड़े, तो ही यह पार्क अपने मकसद में कामयाब हो पाएगा.’

ऊना में लोग अतीत में इसी तरह के कड़वे सच का सामना कर चुके हैं.

पोलियन बीट गांव के निवासी सतीश कुमार ने कहा, ‘फैक्टरियों में बड़ी नौकरियों के लिए बाहर से लोगों को लाया जाता है. इलाके में रह रहे लोगों को तो निचले दर्जे की नौकरी दी जाती है और उनका सबसे ज्यादा शोषण किया जाता है.’ उनका बेटा ताहलीवाल (प्रस्तावित बल्क ड्रग पार्क से लगभग सात किलोमीटर दूर) फूड पार्क के एक कारखाने में 5,500 रुपये के मामूली वेतन पर क्वालिटी कंट्रोल मैनेजर के तौर पांच साल काम करता रहा था.

लेकिन शर्मा और कुमार इस बात से सहमत हैं कि उद्योग हरोली को दुनिया के नक्शे पर लाने का काम करेगा और स्थानीय लोगों को इस विकास का कुछ न कुछ फायदा तो मिलेगा ही, अब भले ही वह अप्रत्यक्ष रूप से क्यों न हो.

भारत ने 2021-22 में 1,75,040 करोड़ रुपये की थोक दवाओं समेत बाकी दवाइयों का निर्यात किया है. यह दुनिया में एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट (एपीआई) के प्रमुख उत्पादकों में से एक है और इसी साल 33,320 करोड़ रुपये एपीआई उत्पादों का निर्यात किया गया है.

जब मार्च 2020 में देश कोविड-19 महामारी की चपेट में आया तो इसके तुरंत बाद एपीआई के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की जरूरत महसूस की गई. इस दौरान भारत को दवाओं की भारी कमी का सामना करना पड़ा था. हालांकि भारत ने 1990 के दशक में एपीआई का उत्पादन किया था, लेकिन आर्थिक कारणों के चलते ये उद्योग धीरे-धीरे चीन के सस्ते विकल्पों में के बीच धीमा पड़ गया. आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के मुताबिक, महामारी ने एपीआई की सोर्सिंग के लिए चीन पर भारत की निर्भरता को उजागर कर दिया था.

इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (IDMA) के अध्यक्ष डॉ विरांची शाह बताते हैं, ‘जब फार्मास्युटिकल उद्योग भारत से बाहर की कंपनियों पर कुछ महत्वपूर्ण कंपोनेंट के लिए निर्भर है, तो सिस्टम कुछ स्तर पर दांव पर है. अगर सप्लाई करने वाली कंपनियां आपूर्ति करने की स्थिति में नहीं है, तो देश को नुकसान पहुंचा और वैसे भी हम दुनिया को आपूर्ति करने में भी सक्षम नहीं हैं.’ आईडीएमए भारतीय दवा कंपनियों का एक संघ है. इसमें भारत में एपीआई बनाने वाली 1,000 से ज्यादा कंपनियां शामिल हैं.

भारत को एपीआई उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने फरवरी 2020 में बल्क ड्रग पार्क स्थापित करने का विचार रखा था. नीति आयोग ने 19 फरवरी, 2020 को फार्मास्युटिकल उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ ‘एपीआई इंडस्ट्री टर्बो-चार्ज’ करने के तरीके पर एक बैठक की.

एक आत्मनिर्भर भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग की कीमत 41 बिलियन डॉलर आंकी गई और 2030 तक लगभग 120-130 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद की गई है. फार्मास्युटिकल विभाग ने 2020 में बल्क ड्रग पार्कों के लिए बोलियां आमंत्रित की थीं.

लेकिन पहाड़ी राज्यों के लिए परियोजना की लागत का 90 प्रतिशत कवर करने और मुख्य परियोजना के साथ उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों को कवर करने वाले केंद्र सरकार द्वारा प्रभावशाली प्रस्तावों का लाभ ऊना के लिए दूर की कौड़ी लग रहा था.

पंजाब के साथ अपनी सीमा साझा करने वाले ऊना की राज्य के अन्य पहाड़ी जिलों की तुलना में जगह का स्वरूप अपेक्षाकृत सपाट है, लेकिन एक ही जगह पर 1,400 एकड़ भूमि का मिलना मुश्किल था. जिला अधिकारी हरोली में दो अलग-अलग जगहों पर जमीन की पहचान कर सकते थे, लेकिन ऐसा करना काफी नहीं था. सोलन जिले का नालागढ़ इस मुकाबले में ऊना से पहले से ही आगे चल रहा था.

इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने बताया, ‘नालागढ़ इस प्रोजेक्ट के लिए जरूरी जमीन खोजने में कामयाब रहा. चूंकि ऊना में हमारे पास कम जमीन थी, इसलिए हमने पहले मेडिकल डिवाइस पार्क के लिए बोली लगाई, जिसके लिए लगभग 700 एकड़ जमीन की जरूरत थी.’

केंद्र ने उसी समय स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए चिकित्सा उपकरण पार्कों की भी घोषणा की थी.

लेकिन किस्मत ऊना के साथ थी. बल्क ड्रग पार्क के लिए बोली लगाने की समय सीमा लगभग 20 दिनों तक बढ़ा दी गई और जिले को निविदा के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए अपनी कमियों को दूर करने का अवसर मिल गया.

सरकारी जमीन के दो हिस्सों के बीच 40 एकड़ जमीन की कमी को कुथरबीट गांव से किसानों की निजी जमीन खरीदकर पूरा किया गया. और कुछ ही दिनों में उद्योग विभाग ने न सिर्फ दो अलग-अलग भूखंडों को समेकित किया, बल्कि बोली प्रक्रिया के लिए 1,400 एकड़ का बेंचमार्क भी पूरा किया.

हरोली निर्वाचन क्षेत्र के भाजपा उम्मीदवार राम कुमार ने कहा, ‘ग्रामीणों ने हमें एक पैसा लिए बिना हलफनामा दिया. हम उन्हें पहले ही भुगतान कर चुके हैं. हम उनके आभारी हैं.’ कुमार ने निजी भूमि अधिग्रहण में मदद करने के लिए लोगों को जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

BJP’s booth adhyaksh, Jaswant Singh, with Ashok Thakur, sarpanch of Kutharbeet village, Una | Sonal Matharu, ThePrint
ऊना के कुथारबीट गांव में बीजेपी के बूथ अध्यक्ष जशवंत सिंह, सरपंच अशोक ठाकुर के साथ | सोनल मथारू, दिप्रिंट.

स्थानीय लोगों ने बताया कि रेतीली मिट्टी और मोटी झाड़ियों वाली हरोली की जमीन का मूल्य कम था. ग्रामीण वहां से अपने मवेशियों के लिए जलाऊ लकड़ी और चारा इकट्ठा करते थे, यहां खेती नहीं की जा सकती थी. 50,000-60,000 रुपये प्रति कनाल (1 कनाल = 0.125 एकड़) की जमीन के लिए सरकार ने जमीन के मालिकों को एक लाख रुपये प्रति कनाल की दर की पेशकश की थी.

लेकिन पैसे से ज्यादा बल्क ड्रग पार्क परियोजना ग्रामीणों के लिए प्रतिष्ठा का विषय है.


यह भी पढ़ें: आखिर क्यों कॉप 27 वार्ता के तहत विवाद का एक प्रमुख कारण बना हुआ है क्लाइमेट फाइनेंस


कुथरबीट गांव के सरपंच अशोक ठाकुर ने कहा, ‘गांव वालों के लिए जमीन किसी काम की नहीं थी. इसलिए उन्होंने इसे क्षेत्र के विकास के लिए बेचने से कोई गुरेज नहीं किया. जमीन की कीमत अब 10 से 20 प्रतिशत बढ़ गई है.’

राज्य प्राधिकरण के नौ स्तरों के जरिए जमीन के कागजों के सत्यापन और अनुमोदन के बाद क्षेत्र में सरकारी भूमि को भी उद्योग विभाग को हस्तांतरित किया जाना था.

वन विभाग, बिजली, प्रदूषण, पानी सहित अन्य विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करने से लेकर भूमि अधिग्रहण की यह मुश्किल प्रक्रिया रिकॉर्ड समय में पूरी हुई, जिसमें आमतौर पर दो से तीन साल लग जाते हैं. राज्य विभाग की टीमें एक शहर से दूसरे शहर में पहाड़ियों के ऊपर और नीचे भागती रहीं, फाइलों पर दूसरी पार्टियों के हस्ताक्षर करने, दूसरे विभाग तक पहुंचाने का काम किया गया.

उद्योग विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘मैं सुबह 5 बजे धर्मशाला (ऊना से 116 किलोमीटर) जाता था, फाइलों पर हस्ताक्षर करवाता था और उसी दिन शाम 4 बजे से पहले (धर्मशाला से 230 किलोमीटर) शिमला पहुंच जाता था.’

समय सीमा के करीब आने पर ऊना ने नालागढ़ को पीछे छोड़ते हुए बल्क ड्रग पार्क के लिए बोली लगाई थी.

हालांकि नालागढ़, बद्दी की दवा बनाने वाली फैक्ट्रियों के काफी करीब है. लेकिन वहां की जमीन को समतल करना ऊना से तीन गुना महंगा पड़ता है. ऊना में भरपूर भूजल है, जिसकी वजह से उसे जिला ब्राउनी पॉइंट मिल गए. जिस दर पर राज्य द्वारा बिजली दी जा सकती है, हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन से कनेक्टिविटी के आधार पर बोली प्रक्रिया में अंक दिए गए थे.

विरोध और विवाद

लेकिन फिलहाल तो ड्रग पार्क सौदे को पाने के लिए राज्य के विभागों द्वारा की गई कड़ी मेहनत पर राजनीति भारी पड़ती नजर आ रही है.

हरोली कांग्रेस का मजबूत निर्वाचन क्षेत्र है. हरोली के विधायक और कांग्रेस के संभावित मुख्यमंत्री उम्मीदवार मुकेश अग्निहोत्री ने पिछले चार चुनावों से इस सीट को बरकरार रखा हुआ है और इस बार फिर से जीतने के लिए आश्वस्त हैं. अग्निहोत्री ने दिप्रिंट को बताया कि इससे उनकी स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है.

उन्होंने कहा, ‘सरकारों को अपने कार्यकाल के दौरान काम करना चाहिए. बीजेपी के पांच साल पूरे हो रहे हैं और उन्होंने आदर्श आचार संहिता से 24 घंटे पहले पार्क की घोषणा की. अगर उन्हें इस परियोजना पर इतना भरोसा था, तो वे इसकी घोषणा पांच साल के दौरान पूरा कर सकते थे. यह दिखाता है कि वे कितने असुरक्षित हैं.’

उन्होंने दावा किया कि राज्य में औद्योगिक इकाइयों को दिया जाने वाला लैंड बैंक उनके द्वारा तब बनाया गया था जब वह उद्योग मंत्री थे.

अग्निहोत्री ने कहा, ‘उद्योग मंत्री रहते हुए मैंने हिमाचल में ऐसी सरकारी भूमि की पहचान की थी जो उद्योगों को दी जा सकती है. इस लैंड बैंक को बनाने में भाजपा का कोई योगदान नहीं है.’

लेकिन भाजपा के कुमार ने पार्क को हरोली में लाने के पीछे के राजनीतिक मकसद के अग्निहोत्री के आरोपों को खारिज कर दिया.

कुमार ने कहा, ‘मैंने इस क्षेत्र में एक लैंड बैंक बनाया है. हमने हिमाचल में 4,000 एकड़ जमीन खोजी है जो उद्योगों को दी जा सकती है. इसमें से 50 फीसदी जमीन हरोली में है. अगर हमारे पास जमीन है, तो ही कोई परियोजना वहां आ पाएगी. मुकेश ने इस जमीन का एक इंच भी इकट्ठा नहीं किया है.

वहीं दूसरी तरफ गांवों में कांग्रेस समर्थकों की ओर से बल्क ड्रग पार्क का विरोध भी जोरदार तरीके से हो रहा है. पोलियां बीट गांव के कुछ लोग, जो कांग्रेस से जुड़े हैं, ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है. उन्होंने ऊना में जिला अदालत में दावा किया है कि बल्क ड्रग पार्क के लिए आवंटित भूमि उनकी निजी भूमि है और सरकार को उन्हें इसकी भरपाई करनी होगी.


यह भी पढ़ें: नेता जब आरक्षण को रेवड़ियों की तरह पेश कर रहे हों तब ‘EWS’ को आरक्षण देने से कैसे बचते


Petitioners Harish Kumar (in brown jacket) and Balbir Singh (in green cap) at the spot which they claim to be their land at the designated plot for the bulk drug park in Haroli tehsil, Una | Sonal Matharu, Theprint
याचिकाकर्ता हरीश कुमार (भूरे रंग की जैकेट में) और बलबीर सिंह (हरी टोपी में) ने हरोली तहसील, ऊना में बल्क ड्रग पार्क के लिए निर्धारित भूखंड पर मौजूद जिन्होंने अपनी जमीन होने का दावा किया है। सोनल मथारू, दिप्रिंट

पोलियन बीट गांव में रहने वाले याचिकाकर्ता हरीश कुमार ने बताया, ‘यह हमारी पुश्तैनी जमीन है. इस बल्क ड्रग पार्क परियोजना में 200 परिवारों की लगभग 11000 कनाल भूमि हमसे बिना मुआवजे के ले ली गई है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘राज्य ने हमारी निजी भूमि को सरकारी भूमि घोषित कर दिया और हमसे परामर्श किए बिना इसे परियोजना के लिए ले लिया. हम पार्क का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन हमें मुआवजे की जरूरत है.’

उनका यह भी दावा है कि गांव की सात बस्तियों में से तीन, पार्क के लिए निर्धारित भूमि में आती हैं. इन बस्तियों की आबादी लगभग 600 लोगों की है और सरकार के पास उनके पुनर्वास की कोई योजना नहीं है.

लेकिन जब दिप्रिंट ने इनमें से दो बस्तियों का दौरा किया, तो ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें उनकी जमीन पर किसी ड्रग पार्क के आने की जानकारी नहीं है.

जननी गांव की निर्मला देवी ने कहा, ‘हमने ऐसी किसी परियोजना के बारे में नहीं सुना है. किसी भी तरह से सर्वे के लिए यहां कोई सरकारी दल नहीं आया है.’

पोलियां बीट गांव के पूर्व सरपंच राज ठाकुर ने कहा कि गांव से भूमि अधिग्रहण के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया है.

हरोली मंडल के भाजपा उपाध्यक्ष ठाकुर ने कहा, ‘गांव से जो जमीन ली गई है वह सरकारी जमीन है. सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) कार्यालय ने इसके लिए एक पत्र भेजा था. मैंने एक ग्राम सभा बुलाई और सभी ग्रामीणों ने इस पर सहमति व्यक्त की और एक एनओसी पर हस्ताक्षर किए थे.’

हरोली में एसडीएम के कार्यालय के पास भी उस जमीन का कोई रिकॉर्ड नहीं है जिस पर कुमार और गांव के अन्य लोग अपना हक मांग रहे हैं.

हरोली के एसडीएम विकास शर्मा बताते हैं, ‘अगर कोई विवाद था, तो सरकार के पास उस जमीन का कुछ रिकॉर्ड होना चाहिए था जिस पर वे दावा कर रहे हैं. लेकिन ऐसा कुछ है ही नहीं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर कोई विवाद होता, तो मामला बोली लगाने के लिए आगे नहीं बढ़ाया जाता.’

ऊना के उपायुक्त राघव शर्मा ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, ‘सरकारी भूमि को उचित प्रक्रिया के बाद राजस्व विभाग से उद्योग विभाग को हस्तांतरित किया गया है. उस क्षेत्र में निजी भूमि का कोई रिकॉर्ड नहीं है.’

उद्योग विभाग के अधिकारी ने यह भी बताया कि अधिग्रहित की गई जमीन पर कोई बस्ती बसी हुई नहीं है. उन्होंने बताया, ‘जमीन के आस-पास भी कोई घर नहीं है. हां पास ही में गांव हैं, लेकिन ये उस जमीन के अंदर नहीं आते हैं, जिसे हमने अधिग्रहित किया है. किसी भी परिवार को स्थानांतरित नहीं किया जाएगा.’

बदलता हरोली

ऊना के एक व्यस्त रेस्टोरेंट में उद्योग विभाग के अधिकारी का लोगों ने स्वागत किया. वे जानना चाहते हैं कि बल्क ड्रग पार्क में लोग कब तक प्लॉट खरीद सकेंगे.

विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से बल्क ड्रग पार्क पर दी जाने वाली तवज्जो पीएम मोदी द्वारा शिलान्यास किए जाने के बाद साफ हो गया थी. गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत स्टार प्रचारकों ने भी ऊना में प्रचार किया है.

आईडीएमए के शाह ने कहा, हालांकि पार्क का विकास एक साइलो में नहीं होगा. उन्होंने कहा कि बल्क ड्रग पार्क एपीआई उत्पादक कंपनियों को आगे बढ़ाने में मदद करेगा.

शाह ने कहा, ‘बल्क ड्रग पार्क के अलावा, अगर कोई कंपनी भारत में नया कुछ ला रही है तो सरकार प्रोत्साहन राशि के जरिए उनकी मदद करेगी. यह कंपनियों को भारत में नई तकनीक लेकर आने में मदद करेगी.’

केंद्र से 300 करोड़ रुपये की पहली किश्त राज्य में पहुंच चुकी हैं. बल्क ड्रग पार्क के लिए राज्य बॉयलर और स्टीमर जैसी सामान्य सुविधाएं उपलब्ध कराएगा, जिनका वहां संचालन करने वाली कंपनियां उपयोग कर सकेंगी. एसडीएम विकास शर्मा ने कहा कि यह बद्दी में फार्मास्युटिकल्स के उत्पादन में 10 से 20 फीसदी का उछाल लेकर आएगा.

राम कुमार के मुताबिक, हरोली की पूरी तहसील बदल जाएगी.

उन्होंने कहा, ‘हरोली को इससे अलग समग्र विकास के लिए 2,000 करोड़ रुपये रुपये भी आवंटित किए गए हैं, जिसे राज्य और केंद्र के बीच समान रूप से बांटा किया जाएगा.’

राम कुमार और शाह के मुताबिक, सड़कें चौड़ी होंगी, पैकेजिंग, ट्रांसपोर्टेशन, हॉस्पिटेलिटी और आवासीय परिसर जैसे संबद्ध उद्योग विकसित किए जाएंगे और पार्क के चालू होने से पहले ही लोगों को रोजगार मिलना शुरू हो जाएगा.

जैसे-जैसे चुनाव करीब आते जा रहे हैं बल्क ड्रग पार्क कितना कुछ दे सकता है इसके दावे काफी जोर-शोर से किए जा रहे हैं. ऊना में कुमार के लगे पोस्टरों में, अक्टूबर में किए गए 20,000 नौकरियों के वादे अब बढ़कर 40,000 हो गए है. पार्क में निवेश के लिए 10,000 करोड़ रुपये के शुरुआती आंकड़े से बढ़कर अब यह आंकड़ा 50,000 करोड़ रुपये पर आ गया है.

ऊना से भाजपा के उम्मीदवार सतपाल सत्ती ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारा मानना है कि वहां 50,000 करोड़ रुपये का निवेश आएगा. जहां 50,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं, वहां 50,000 से ज्यादा लोगों को नौकरी भी मिलेगी.’

जहां उद्योग विभाग के कर्मचारी जमीन को समतल करने के लिए टेंडर शुरू करना है. इसके लिए चुनाव खत्म होने का धैर्यपूर्वक इंतजार किया जा रहा है. बीजेपी को उम्मीद है कि मेगा प्रोजेक्ट से उन्हें उम्मीद के मुताबिक नतीजा मिलेगा.

कुमार ने कहा, ‘बल्क ड्रग्स पार्क बीजेपी का तुरुप का पत्ता है.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य)

(संपादन: इन्द्रजीत)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: EWS के बाद कोई नहीं होगा जनरल, हर जाति अब लाभार्थी, आरक्षण पर नहीं बनेंगे चुटकुले


 

share & View comments