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Sunday, 24 November, 2024
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बिहार यात्रा पर कौन चल रहा है प्रशांत किशोर के साथ और कैसे उन्हें हर ट्वीट पर ‘पॉइंट’ मिलते हैं

पूर्व चुनाव रणनीतिकार ने पहले स्थानीय लोगों की समस्याओं को सुना और फिर उनसे अपने बीच से 'सही नेता' चुनने के लिए कहा. कुछ लोग उन्हें नहीं जानते थे, लेकिन उन्होंने माना कि उनके भाषण 'समझ में आ रहे हैं.'

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पश्चिम चंपारण: एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर जिन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, एक डॉक्टर जिन्होंने अपनी दशक पुरानी प्रैक्टिस को कुछ समय के लिए रोक दिया, एक एनजीओ प्रमुख जो राजस्थान से आए थे और एक कर्नाटक में रहने वाले व्यवसायी- ये कुछ ऐसे लोग हैं जो प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज यात्रा’ का समर्थन करने के लिए बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में उतरे हैं.

45 वर्षीय किशोर ने पैदल यात्रा करते हुए स्थानीय लोगों से कहा, ‘एक किलोमीटर साथ चलें और मुझे अपना आशीर्वाद दीजिए.’

पूर्व चुनावी रणनीतिकार ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन ऐसी अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि यह बिहार में एक नए राजनीतिक संगठन का आगाज हो सकता है. किशोर और उनके समर्थकों का लक्ष्य अगले 12-15 महीनों में राज्य भर में 3,500 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने का है.

उनके इस सफर का मुख्य आकर्षण ‘स्थानीय आबादी के भीतर’ से भविष्य के नेताओं की पहचान करने की पहल है. इसके लिए ‘पीके कनेक्ट’ नामक एक मोबाइल एप भी तैयार किया गया है. यात्रा पर किए गए हर ट्वीट, फेसबुक पोस्ट, इंस्टाग्राम स्टोरी या व्हाट्सएप स्टेटस के लिए यूजर को ऐप पर ‘प्वाईंट’ के साथ पुरस्कृत किया जाता है और सबसे ज्यादा प्वाइंट पाने वाले लोगों को ऐप के ‘लीडरबोर्ड’ पर जगह दी जाती है.

किशोर ने जमुनिया से ‘पीके कनेक्ट’ पर अपने एक लाइव सेशन के दौरान कहा, ‘हमारी योजना बिहार को देश के बाकी हिस्सों के लिए एक मॉडल बनाने की है. पिछले 10 सालों में मैंने महसूस किया कि सरकारें तो बदलती हैं, लेकिन व्यवस्था नहीं बदलती. हम यहां पूरी राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के लिए आए हैं.’


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 ‘नहीं जानता था कि वह कौन हैं, लेकिन उनके भाषण समझ में आए’

किशोर को सुनने के लिए 7 अक्टूबर को सैकड़ों लोग पटना से 250 किमी दूर एक दूरदराज के गांव बाजरा पहुंचे थे. इस इलाके में उचित स्वास्थ्य सेवा, स्कूलों और रोजगार की कमी है. हालांकि यात्रा के लिए रोजाना एक रास्ता निर्धारित किया जाता है. लेकिन गांववालों का किशोर को टूटा हुआ पुल या जलमग्न सड़क दिखाने के लिए अपने साथ ले जाते हुए देखना असामान्य नहीं था.

बिहार के लिए किशोर के विजन से आश्वस्त होकर यात्रा में शामिल होने वालों में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी शामिल है. उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और नंगे पांव उनके साथ चल रहे हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं बिहार से हूं लेकिन नौकरी की तलाश में कर्नाटक जाना पड़ा. अब बदलाव लाने का समय आ गया है.’

पश्चिम चंपारण के गांधी आश्रम से यात्रा में शामिल हुए एक पूर्व सैन्यकर्मी जयप्रकाश ने कहा, ‘मुझे नहीं पता था कि प्रशांत कौन हैं. लेकिन मैंने उनके भाषण सुने थे. उनके भाषणों से मैंने बहुत कुछ समझा और अब मैं उनकी विचारधारा से सहमत हूं. अगर हम बदलाव नहीं (बिहारी) करेंगे, तो कौन करेगा? इसलिए मैंने 2 अक्टूबर को उनके साथ उनकी यात्रा से जुड़ने का फैसला कर लिया.’

धीमी गति से चल रही इस यात्रा पर राजस्थान में एक गैर सरकारी संगठन के प्रमुख विवेक कुमार ने कहा, ‘अधीरता किसी भी आंदोलन का सबसे बड़ी दुश्मन है.’

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर लोगों तक संदेश नहीं पहुंचेगा, तो इस यात्रा का कोई मतलब नहीं है.’

यात्रा में भाग लेने वालों के बीच पीले रंग की महात्मा गांधी की तस्वीर वाली टोपी की लोकप्रियता ऐसी है कि उसके लिए लोगों को लड़ते हुए कोई भी देख सकता है.

भितिहारवा के निवासियों ने किशोर और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बीच तुलना करते हुए कहा कि यहां कितने राजनेता आए और चले गए. लेकिन हमें प्रशांत में एक आशा दिखाई दे रही है. एक किसान अब्दुल रशीद ने कहा, ‘चंद्रशेखर भी यहां आए थे और हमने उनकी यात्रा में उनका साथ भी दिया था. लेकिन जब उन्होंने कुछ नहीं किया, तो कोई भी उनकी रैलियों में वापस नहीं गया.’

बाजरा के एक शिक्षक शांतनु सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘2005 में एक सड़क और गांव के कुछ हिस्से पानी में डूब गए थे. कितने राजनेता आए और देख कर चले गए लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया.’


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बिहार की समस्याओं पर निशाना

जैसे ही यात्रा एक या दो किलोमीटर चलने के बाद रुकी, किशोर ने स्थानीय निवासियों की समस्याओं को सुना और उन्हें अपने बीच से ‘सही नेता’ चुनने के लिए कहा. उन्होंने कहा, ‘आप नेता चुनें और मैं उनके पीछे अपना प्रयास, पैसा और विचार रखूंगा.’

उनकी योजना अगले 15 सालों के लिए ब्लू प्रिंट तैयार करने, बिहार के सामने 10 सबसे बड़ी समस्याओं की पहचान करने और राज्य को देश के 20 सबसे विकसित राज्यों के बराबर लाने की है. किशोर द्वारा सह-स्थापित राजनीतिक सलाहकार फर्म इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) के साथ मिलकर यात्रा के आयोजक ‘स्थानीय लोगों से परामर्श’ के बाद ब्लॉक समितियां बना रहे हैं.

ब्लॉक सदस्य जिला समितियों के सदस्यों का चुनाव करेंगे. और इसके चुने हुए सदस्य राज्य समिति के सदस्यों का चुनाव करेंगे. किशोर की एक जनसभा में एमसी ने घोषणा की, ‘मेनिफेस्टो में समाधान के साथ प्रत्येक जिले के अनुसार समस्याओं का उल्लेख किया जाएगा.’

पटना में एक टीम के अलावा अप्रैल से पूरे राज्य में I-PAC स्वयंसेवकों को तैनात किया गया है. वे प्रत्येक स्टॉप पर कम से कम दो दिन पहले व्यवस्था करने के प्रभारी हैं. इनमें हेल्प डेस्क के साथ टेंट, लगेज काउंटर और हर स्टॉप पर करीब 200-300 लोगों के ठहरने की व्यवस्था करना शामिल है.

किशोर अपनी टीम और यात्रा के साथियों के साथ तंबू में रहते हैं जिसमें पंखे और वॉशरूम भी हैं. इस सेटअप को तैयार करने में टीम को कम से कम 60 घंटे का समय लगता है.

उनकी यात्रा के गवाह बनने वालों में से अभी कोई भी किशोर पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं हैं, आम सहमति यह है कि वह जमीनी स्तर पर संबंध बनाने के लिए काफी प्रयास कर रहे हैं.

पिपरिया गांव के एक दुकानदार विश्वदास ने बताया, ‘एक साल में 3,500 किलोमीटर की दूरी तय करने का दम हर किसी में नहीं होता है. निश्चित रूप से यह एक अच्छा प्रयास है.’

तो वहीं दमरापुर गांव की एक बुजुर्ग महिला ने किशोर को ‘मसीहा’ कहा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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