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Thursday, 25 April, 2024
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क्यों RJD की बैठक में अचानक लिए गए एक फैसले से JD(U) में उसके विलय की चर्चा तेज़ हो रही

लालू या तेजस्वी को पार्टी के नाम बदलने पर अंतिम फैसला लेने के अधिकार देने वाले प्रस्ताव को संभावित विलय के लिए मंच तैयार करने के रूप में देखा जा रहा है, जहां तेजस्वी बिहार में बागडोर संभालेंगे जबकि मुख्यमंत्री नीतीश राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभाने के लिए आगे आएंगे.

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पटना: राष्ट्रीय जनता दल ने अपने अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव या उनके बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह बदलने की शक्ति देने का प्रस्ताव पारित कर बिहार के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है.

इस कदम को राजद की ओर से नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) के साथ अपने संभावित विलय के लिए मंच तैयार करने के रूप में देखा जा रहा है, जिसका अर्थ होगा कि तेजस्वी बिहार में बागडोर संभालेंगे जबकि मुख्यमंत्री नीतीश राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभाने के लिए आगे बढ़ेंगे.

सोमवार को संपन्न हुई राजद की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी और परिषद की बैठक में लालू के भरोसेमंद सहयोगी भोला यादव ने पढ़कर सुनाया, ‘मैं प्रस्ताव करता हूं कि राष्ट्रीय जनता दल के चुनावी चिन्ह (लालटेन) या दल का नाम में बदलाव और इससे संबंधित फैसले राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद या राजद नेता तेजस्वी यादव द्वारा तय किए जाएंगे. उनका निर्णय अंतिम होगा.’

हालांकि अचानक से आए इस प्रस्ताव ने पार्टी के नेताओं को आश्चर्यचकित कर दिया, लेकिन उन सभी ने इसे पारित करने के लिए वोट किया. राजद के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह एजेंडे में नहीं था और अचानक से सामने आया.’

राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, ‘पार्टी तेजस्वी यादव के साथ है और हम उनके हर आदेश का पालन करेंगे. जद (यू)-राजद विलय संभावना के दायरे से बाहर नहीं है.

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संभावित विलय पर दिप्रिंट से बात करते हुए राजद के एक मंत्री ने कहा, ‘आखिरकार, दोनों पार्टियों की जड़ें एक ही विचारधारा से जुड़ी हैं. इस साल अगस्त में जब से दोनों दल एक साथ आए हैं, तब से नीतीश कुमार के पटना छोड़कर दिल्ली की राजनीति में आने की चर्चा हो रही है. यह बस वक्त की बात है. बिहार में नीतीश कुमार के बिना जद (यू) का कोई अर्थ नहीं है.’

गठबंधन के बारे में बोलने के खिलाफ राजद नेताओं पर कथित रूप से रोक लगाने के आदेश के चलते मंत्री ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, ‘नीतीश के लिए यह भी फायदेमंद होगा कि जब वह दिल्ली जाएंगे तो उन्हें एक मजबूत राजनीतिक आधार का समर्थन मिलेगा.’

जदयू इस मामले पर चुप्पी साधे हुए है. जद (यू) के एमएलसी नीरज कुमार ने कहा, ‘प्रस्ताव पार्टी का अंदरूनी विकास है. लेकिन हमें विलय के बारे में कोई जानकारी नहीं है.’

राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सूत्रों ने कहा, पूरा शो तेजस्वी के बारे में था. माना जा रहा है कि लालू ने घोषणा की थी कि पार्टी की नीतियों के संबंध में सभी निर्णय तेजस्वी द्वारा लिए जाएंगे.

सूत्रों ने कहा कि इसके अलावा लालू ने नहीं बल्कि तेजस्वी ने राजद के अनुयायियों को पार्टी में सभी जातियों और वर्गों के लोगों को समायोजित करने के लिए कहा. लालू किडनी संबंधी इलाज के लिए बुधवार को सिंगापुर के लिए रवाना हो गए, लेकिन किसी को भी इस बारे में कोई संदेह नहीं था कि पार्टी अध्यक्ष की गैरमौजूदगी में वह किसका अनुसरण करेंगे.

अगस्त में जब से महागठबंधन सरकार अस्तित्व में आई है, तब से राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा गर्म है कि नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में तेजस्वी के लिए रास्ता खोलेंगे. वास्तव में जगदानंद सिंह जैसे राजद नेताओं ने यह बात ऑन रिकॉर्ड कही थी कि तेजस्वी 2023 में नीतीश की जगह लेंगे. इसके बाद कथित तौर पर जद (यू) और राजद नेताओं के बीच खींचातानी शुरू हो गई.

नतीजतन तेजस्वी को यह बताने के लिए आगे आना पड़ा कि ‘उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं है’. राजद के एक अन्य मंत्री ने कहा, ‘तेजस्वी चाहते हैं कि बदलाव धीरे-धीरे आए. उनके पास समय है.’


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पुराना ‘जनता परिवार’

1990 के दशक के पुराने जनता दल के पुनरुत्थान की अफवाहें भी घूम रही हैं. 1990 के दशक के अंत तक जनता दल कई बार टूटा था. राजद, समता पार्टी, यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा), हरियाणा में इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो), कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) और जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) सभी तत्कालीन जनता दल के बिखरे हुए टुकड़े है.

2015 में जब नीतीश कुमार लालू के साथ थे, तब भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए ‘जनता परिवार’ के विलय के प्रयास किए गए थे.

दिल्ली में तीन दौर की वार्ता हो चुकी थी. लेकिन फिर, दिवंगत मुलायम सिंह यादव के बारे में माना जाता है कि अंतिम समय में उनके पैर ठंडे पड़ गए थे क्योंकि सपा की स्थिति अन्य पार्टियों की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर थी.

यहां तक कि जब नीतीश फिर से एनडीए में शामिल हुए, तो उन्होंने अपने मिशन को पूरी तरह से नहीं छोड़ा. माना जाता है कि उन्होंने जद (यू) के तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को जनता परिवार के साथ बातचीत करने के लिए कहा था.

ए.एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, पटना के पूर्व निदेशक डी.एम दिवाकर ने कहा, ‘2017 के बाद राजद की ओर से नीतीश से सीएम के रूप में उनके पास लौटने की अपील की गई थी. उस समय नीतीश के पास बीजेपी से ज्यादा विधायक थे. सो उन्होंने इस पर गंभीरता से कोई विचार नहीं किया. लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद जब (लोक जनशक्ति पार्टी के) ‘चिराग मॉडल’ के कारण उनके विधायकों की संख्या 43 रह गई, तो उन्होंने विश्वास हो चला कि भाजपा उन्हें खत्म करने के लिए तैयार है.’

उन्होंने बताया, ‘राजद और जद (यू) का विलय एक प्राकृतिक राजनीतिक घटना होगी. दिल्ली में पारित प्रस्ताव इन छिपे हुए मनोभावों की परिणति है.’

‘नीतीश के पास और कोई विकल्प नहीं’

भाजपा सांसद और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी के अनुसार, जद (यू) का राजद में विलय होने की संभावना है क्योंकि ‘नीतीश कुमार के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘नीतीश जद (एस) के अलावा (इनेलो) ओम प्रकाश चौटाला और (सपा के) अखिलेश यादव को लुभा रहे हैं. नीतीश प्रमुख दलों को एक पार्टी के तहत एक साथ लाने की उम्मीद कर रहे हैं ताकि वह दिल्ली में एक बड़े ब्लॉक के नेता बन सकें.’

भाजपा सूत्रों ने कहा कि विलय से जद (यू) को बचाए जाने की उम्मीद की जा रही है. 243 सदस्यीय विधानसभा में राजद और जद (यू) की संयुक्त संख्या 125 है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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