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Wednesday, 24 April, 2024
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कैसे प्रशांत किशोर बिहार में ‘जन सुराज यात्रा’ कर राजनीति में अपना स्थान तलाश रहे हैं

2 अक्टूबर से शुरू की गई प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज यात्रा’ का उद्देश्य पूरे बिहार को कवर करना है. उनका कहना है कि वह वोट की तलाश में नहीं हैं, बल्कि ग्रामीणों की समस्याओं को समझने और हल करने के लिए खड़े हो रहे हैं.

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पश्चिम चंपारण, बिहार: बिहार की राजधानी से लगभग 250 किलोमीटर दूर के एक सुदूर गांव बैरिया में शुक्रवार को एक ऐसे नेता को सुनने के लिए भारी भीड़ जमा हुई थी, जिसका अपना कोई राजनीतिक दल नहीं है और न ही कोई आगामी चुनाव ही है जिसमें वो खड़ा होने जा रहे हों.

यह पूर्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा के दिन के पड़ावों में से एक था.

किशोर की 3,500 किलोमीटर की पदयात्रा 2 अक्टूबर को पश्चिम चंपारण जिले के ऐतिहासिक भितिहारवा गांव स्थित उस गांधी आश्रम से शुरू हुई, जहां से महात्मा गांधी ने साल 1917 में अपना पहला सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था. इस कदम को बिहार की राजनीति में उनके प्रवेश का अग्रदूत बताया जा रहा है.

किशोर की योजना अगले 12-15 महीनों में अपने गृह राज्य में एक गांव से दूसरे गांव तक जाने और गांव वासियों से मिलने की है. बैरिया से पश्चिम चंपारण के भंगहा तक तीन दिनों तक दिप्रिंट उनकी यात्रा के साथ रहा.

वह अपने हर भाषण की शुरुआत ग्रामीणों को उनकी समस्याओं के बारे में बोलने के लिए आमंत्रित करते हैं. बैरिया में उन्होंने (ग्रामीणों ने) 30 किलोमीटर के दायरे में कोई भी अस्पताल न होने का मुद्दा उठाया. सात अक्टूबर को तीन गांवों बैरिया, बाजरा और दमरापुर में जमा भीड़ से उन्होंने पूछा, ‘आप सोच रहे होंगे कि जब कोई चुनाव पास में नहीं हैं तो यह राजनेता यहां क्या कर रहा है? उन्होंने आगे कहा कि वह यहां वोट मांगने के लिए नहीं बल्कि उनकी समस्याओं को समझने और जिस तरह से अनुभवी राजनेताओं ने उनलोगों के साथ बर्ताव किया है, उसे बदलने के लिए आये हैं.

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बाजरा में, किशोर ने दावा किया कि ‘मीडिया का कहना है कि किशोर ने पिछले 10 वर्षों में जिसका भी साथ दिया है, उसने ही चुनाव जीता है.’ लेकिन उन्होंने कहा कि वह अब किसी भी राजनीतिक दल अथवा नेता के लिए काम नहीं करेंगे.

रविवार को भांगहा में दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘हम छह महीने में पदयात्रा पूरी कर सकते थे, मगर हमने यह सुनिश्चित करने के लिए एक साल से अधिक समय तक इसकी प्लानिंग की है  और हम गांव गांव तक पहुंचना चाहते हैं. और अपना संदेश देना चाहते हैं. ‘

उन्होंने समझाया कि यात्रा के संदेश में तीन प्रमुख बिंदु हैं – सही लोग, सही सोच और सामूहिक प्रयास.

उन्होंने कहा कि वर्तमान में उनके सामने तीन लक्ष्य हैं: ‘एक, संदेश को व्यवस्थित रूप से लोगों तक पहुंचाना. दूसरा, संदेश को गांवों के सबसे सुदूर हलकों में पहुंचाना. तीसरा, सही संदेश भेजा जाना चाहिए.


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मोदी, नीतीश पर कर रहे हैं जुबानी हमले

बिहार में एक विकल्प के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे किशोर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जनता दल (यूनाइटेड) और कांग्रेस के साथ अपने पूर्व में रहे जुड़ाव के बावजूद उन्हें अपनी तीखी आलोचना कर रहे हैं.

उन्होंने 8 अक्टूबर को चौहट्टा में जमा ग्रामीणों की एक सभा से उन्होंने पूछा, ‘आप सब ने मोदी जी को वोट दिया, दिया है की नहीं, ‘ जवाब ‘हां‘ में था.

फिर किशोर कहते हैं, ‘अब अगली बार जब आप कमल (बीजेपी का चुनाव चिन्ह) का बटन दबाएंगे, तो गैस की कीमत 1,200 रुपये से 2000 रुपये हो जाएगी, पेट्रोल और डीजल 200 रुपये प्रति लीटर हो जाएगा. मोदी जी को फर्क नहीं पड़ता. वह जानते हैं कि आप फिर से हिंदू-मुस्लिम, राष्ट्रवाद और पाकिस्तान पर दागी गई एक मिसाइल के नाम पर वोट करेंगे.‘

किशोर ने 7 और 8 अक्टूबर को कई गांवों में अपने भाषण के दौरान बिहार को दरकिनार किए जाने का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने अपनी भाषा को हिंदी से भोजपुरी में बदलते हुए कहा, ‘भले ही गुजरात से केवल 26 भाजपा सांसद आते हैं, मगर मोदी जी प्रधान मंत्री बने. हमने (बिहार ने) 39 बीजेपी सांसदों को भेजा, लेकिन हमें कुछ नहीं मिला.’

इस जाने माने चुनाव रणनीतिकार ने आगे कहा, ‘अहमदाबाद को 1 लाख करोड़ रुपये की बुलेट ट्रेन परियोजना की सौगात मिलती है और यहां (बिहार के) नरकटियागंज में, हमारे पास एक ढंग की रेलवे लाइन भी नहीं हो सकती है?’

शुक्रवार को बाजरा में, किशोर ने कहा कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने केवल 9वीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है, पर वे ‘मुख्यमंत्री बनने के लिए इच्छुक’ हैं, लेकिन ‘यदि आपका बेटा कक्षा 9 तक ही पढ़ता है, तो उसे एक चपरासी की नौकरी भी नहीं मिल पायेगी.’

अगले दिन, दमरापुर में, उन्होंने मंच से घोषणा की, ‘जब नीतीश कुमार (बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री) साल 2014 का लोकसभा चुनाव हार गए थे, तो वे मेरे पास आए. मैंने उन्हें अगला चुनाव जितवाया. अब वह मुझ पर ही भाजपा के साथ होने का आरोप लगाते हैं. ये वह है, जिन्होंने पालाबदल किया और उनके (बीजेपी) के साथ शामिल हो गए.’

चौहट्टा के ग्रामीणों ने उन्हें राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को निशाना बनाते हुए सुना. वहां किशोर ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘लालू के जमाने में अपराधी रात में लूटते थे, नीतीश के राज में प्रशासन दिन में लूटता है. दोनों के बीच यही एकमात्र अंतर है.’

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर बोलते हए उन्होंने कहा, ‘वह मैं ही था जिसने सीएए के मुद्दे पर ममता बनर्जी के साथ मिलकर भाजपा से लड़ाई लड़ी थी.’

तंबू में रहकर सुन रहे हैं लोगों की बातें

भंगहा गांव में दिप्रिंट से बात करते हुए किशोर के भाषण में शामिल हुए एक ग्रामीण ने कहा, ‘बात तो सही कह रहे हैं, बदलाव का समय आ गया है.’

किशोर जिन गांवों में जाते हैं, वहां अन्य पदयात्रियों के साथ एक तंबू में रहते हैं. उनके आसपास कोई सुरक्षा दल नहीं है. हर पड़ाव पर वे ग्रामीणों की समस्याएं सुनते हैं और विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों की सभाओं को संबोधित करते हैं.

वह मुख्य रूप से भोजपुरी में बोलते हैं, और कभी-कभी हिंदी में स्विच कर जाते हैं. उन्होंने हर संबोधन पर यह प्रण दुहराया है कि जब तक वे पूरे बिहार का भ्रमण नहीं कर लेंगे, तब तक घर नहीं जाएंगे और न ही किसी वाहन में बैठेंगे. बाद में, उन्होंने कहा कि यह उनके अपने स्वास्थ्य और उनके परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘आलोचक तो हमेशा रहेंगे. हमारे लोग लगातार जमीन पर काम कर रहे हैं. हमने यह सुनिश्चित किया है कि हम हर पड़ाव पर हर घर तक पहुंचें.‘

उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि आम आदमी उनके इस ‘प्रयास’ के बारे में क्या सोचता है. उन्होंने भंगहा में उपस्थित जनसभा से पूछा, ‘लेकिन लोग प्रयास के बारे में क्या कह रहे हैं?’

किशोर के सामने हैं ढेर सारी चुनौतियां

किशोर राजनेताओं और पार्टियों को चुनाव जिताने में माहिर माने जाते हैं, लेकिन उनके अपने अभियान का चेहरा बनना उनके लिए नई चुनौतियां लेकर आया है.

बिहार की राजनीति में दलों की भरमार है. भाजपा, जद (यू) और राजद के अलावा, कई छोटी पार्टियों के पास जाति और समुदायों के आधार पर विभाजित अपने वफादार मतदाता हैं

किशोर ने दावा किया कि वह बिहार की पारंपरिक जाति और धर्म केंद्रित राजनीति से आगे निकल विकास, बेरोजगारी, महंगाई और गरीबी भगाने की राजनीति की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.

पिछले साल मई में, उन्होंने घोषणा की थी कि वह एक राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में अपना ओहदा छोड़ रहे हैं. यह एलान दो सफल चुनाव अभियानों – पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत और तमिलनाडु में एमके स्टालिन की जीत जिनमें किशोर भी शामिल थे – के बाद किया गया था.

फिर मई 2022 में, उन्होंने एक ट्वीट में अपने स्वयं के राजनीतिक रूप से सामने आने तथा ‘जन सुराज की राह’ अपनाने का संकेत दिया था. हालांकि उन्होंने अभी तक कोई पार्टी लॉन्च नहीं की है, या किसी ऐसे पार्टी के गठन में अपनी विशेषज्ञता वाली सेवा भी प्रदान नहीं की है, मगर उनकी यात्रा यह सुनिश्चित कर रही है कि उनका नाम लोगों की जुबान पर हो.

एक बार फिर से आकर ले चुके महागठबंधन – (जद (यू), राजद, वाम दलों और कांग्रेस का सत्तारूढ़ गठबंधन – के अलावा बिहार में भाजपा, और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और जन अधिकार पार्टी जैसी नई पार्टियां भी हैं, जिनका इस राज्य की राजनीति में सफल प्रवेश करने के प्रयास में किशोर को सामना करना पड़ेगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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