scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होमदेशअर्थजगतगिरता निर्यात, बढ़ता आयात दर्शाता है कि ग्रोथ बढ़ाने के लिए भारत को आत्ममंथन की जरूरत क्यों है

गिरता निर्यात, बढ़ता आयात दर्शाता है कि ग्रोथ बढ़ाने के लिए भारत को आत्ममंथन की जरूरत क्यों है

प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना निर्यात में तेजी लाने का सबसे बेहतर उपाय है. मुद्रास्फीति एक चुनौती बनी हुई है लेकिन आरबीआई को रुपये को धीरे-धीरे नीचे आने देना चाहिए.

Text Size:

भारत का माल निर्यात अगस्त महीने में 1.1 प्रतिशत घटकर 33 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया. वहीं वाणिज्यिक वस्तुओं के आयात में अगस्त 2021 की तुलना में 37 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

यद्यपि आयात में अच्छी-खासी वृद्धि मजबूत घरेलू मांग को दर्शाती है लेकिन कमजोर निर्यात वैश्विक मांग घटने का संकेत दे रहा है. कमजोर निर्यात और मजबूत आयात का नतीजा यह है कि माल व्यापार घाटा पिछले साल इसी महीने की तुलना में दोगुने से अधिक हो गया है. व्यापार घाटा बढ़ने का सीधा असर रुपये की कीमतों पर भी पड़ेगा.

दुनियाभर के देश संरक्षणवाद की ओर बढ़ रहे हैं, इससे एक्सचेंज रेट घटने, मुक्त व्यापार समझौतों में तेजी, टैरिफ कम होने और आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को दूर करने जैसी बाहरी चुनौतियों के समाधान में मदद मिलेगी.


यह भी पढ़ें: MP हाईकोर्ट ने ‘लोगों का धर्म बदलकर हिंदू बनाने’ के लिए गाज़ियाबाद आर्य समाज ट्रस्ट की जांच का आदेश दिया


निर्यात में गिरावट का क्या है कारण?

इंजीनियरिंग गुड्स, रत्न और आभूषण, रेडीमेड कपड़ों और सूती धागे आदि के निर्यात में साल-दर-साल आ रही कमी से निर्यात क्षेत्र में गिरावट आई है. 2021-22 में कुल निर्यात में इंजीनियरिंग गुड्स की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से अधिक थी, जिसमें 14 प्रतिशत की सबसे अधिक कमी देखी गई है. अगस्त में पेट्रोलियम उत्पादों को छोड़कर निर्यात में 2 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है.

दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में विकास धीमे होने की संभावना के बीच ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक बहुत साफ नजर नहीं आ रहा. अमेरिका पहले से ही तकनीकी मंदी की स्थिति में है, हालांकि इस पर आंकलन मिला-जुला ही है कि क्या अर्थव्यवस्था वास्तव में मंदी की स्थिति में है. यूएस फेडरल रिजर्व चेयर की ताजा टिप्पणी से संकेत मिलता है कि मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए फेड की तरफ से दरों में तेज वृद्धि की जाएगी. इससे मांग पर और अधिक दबाव पड़ने की संभावना है.

चीन में जीरो कोविड पॉलिसी और रियल एस्टेट क्षेत्र में मंदी के कारण आर्थिक गतिविधियां काफी धीमी हो गई हैं. नतीजतन, अप्रैल से अगस्त के बीच भारत की तरफ से चीन को होने वाला निर्यात पिछले साल इसी अवधि की तुलना में एक-तिहाई घट गया. वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक को लेकर आईएमएफ के जुलाई के अपडेट में विश्व व्यापार 2021 में 10.1 प्रतिशत से 2022 में 4.1 प्रतिशत और फिर 2023 में 3.2 प्रतिशत तक कम होने का अनुमान लगाया गया है.

हाल में फिनिश्ड स्टील जैसी चीजों पर निर्यात शुल्क लगाने से भी निर्यात पर असर पड़ने की संभावना है. इस्पात पर 15 प्रतिशत निर्यात शुल्क भारतीय इस्पात को विदेशों में महंगा कर देगा, इससे घरेलू स्तर पर आपूर्ति और सीमित निर्यात इस्पात निर्माताओं की बाध्यता बन जाएगी.


यह भी पढ़ें: अनफिट टीचर और इन्फ्रा- मुंबई में है 239 Unrecognised स्कूल, बंद हुए तो 5,000 बच्चों की पढ़ाई पर खतरा


निर्यात का बदलता स्वरूप और संवेदनशील ग्लोबल ग्रोथ

कपड़ा, चमड़ा, रत्न और आभूषण भारत के पारंपरिक निर्यात माने जाते रहे हैं. तेल को छोड़कर बाकी क्षेत्रों में निर्यात में इनकी हिस्सेदारी 2003 में 60 प्रतिशत रही थी.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

साजिद चिनॉय और तोशी जैन के एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में भारतीय निर्यात काफी हद तक टेक्नोलॉजी ओरिएंटेड हो गया है. नॉन-ऑयल उत्पाद बास्केट में करीब 60 फीसदी हिस्सेदारी इंजीनियरिंग गुड्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल/रासायनिक उत्पादों की है. पिछले कुछ सालों में श्रम प्रधान निर्यात में काफी गिरावट आई है.

निर्यात के स्वरूप में बदलाव ने ग्लोबल ग्रोथ की संवेदनशीलता को और भी ज्यादा बढ़ा दिया है. इंजीनियरिंग गुड्स, फार्मास्यूटिकल्स आदि क्षेत्र वैश्विक मांग से ज्यादा प्रभावित होते हैं. इसके विपरीत, भारत के परंपरागत निर्यात (वस्त्र, चमड़ा, रत्न और आभूषण) को ग्लोबल ग्रोथ के प्रति कम सेंसिटिव पाया गया है.

सेवाओं के निर्यात ने अब तक अच्छा प्रदर्शन किया है. माना जाता है कि वाणिज्यिक निर्यात की तुलना में उन पर वैश्विक मंदी का संकट अधिक असरदार होगा.


यह भी पढ़ें: कैसे मंत्रियों, उप मुख्यमंत्रियों को मनाने और असंतोष दूर करने की कोशिश में जुटी है योगी सरकार


ओवरवैल्यूड एक्सचेंज रेट और निर्यात

देश का वास्तविक रूप से प्रभावी एक्सचेंज रेट यानी आरईईआर निर्यात की दशा-दिशा तय करने वाला एक अन्य फैक्टर है. आरईईआर किसी देश की उन देशों— जिनके साथ वह व्यापार करता है- की मुद्रा की तुलना में उसकी अपनी मुद्रा की ताकत का संकेतक है. आरईईआर का इस्तेमाल यह तय करने के लिए किया जाता है कि किस देश की मुद्रा अंडरवैल्यूड, ओवरवैल्यूड या उचित मूल्य की है. 100 या लगभग 100 के मान का अर्थ है कि मुद्रा का मूल्य उचित है. रुपये के हालिया अवमूल्यन के बावजूद आरईईआर के संदर्भ में यह ओवरवैल्यूड है. आरईईआर के आधार पर इसकी कीमतें धीरे-धीरे नीचे जाने देने की गुंजाइश बनी हुई है.


यह भी पढ़ें: BJP ने उद्धव पर याकूब मेनन की कब्र का सौंदर्यीकरण करवाने का लगाया आरोप, बताया- ‘दाऊद का प्रोपेगैंडिस्ट’


रुपये के अवमूल्यन की गति धीमी

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को धीरे-धीरे रुपये के अवमूल्यन की अनुमति देनी चाहिए. यद्यपि, रुपया हाल में कमजोर हुआ है लेकिन कुछ अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में इसकी कीमतें गिरने की गति बहुत धीमी रही है. यह डॉलर की बिक्री के तौर पर बाजार में आरबीआई के भारी हस्तक्षेप के कारण हुआ. आक्रामक हस्तक्षेप के कारण, 26 अगस्त को समाप्त पखवाड़े में विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 560 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. एक हफ्ते के भीतर विदेशी मुद्रा भंडार में 3 अरब डॉलर की गिरावट आई है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से 27 हफ्तों में से 21 हफ्तों में विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है.

अवमूल्यन से आयातित मुद्रास्फीति बढ़ सकती है लेकिन मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाला यही एकमात्र फैक्टर नहीं है. आरबीआई के अनुमान के मुताबिक, डॉलर-रुपये की दर में हर एक रुपये की गिरावट के साथ मुद्रास्फीति लगभग 8-10 बेसिस प्वाइंट बढ़ जाती है. इस तरह 7 प्रतिशत मुद्रास्फीति दर में से 50-60 आधार अंक रुपये के अवमूल्यन के कारण है.

वैश्विक झटके नीतिगत दुविधा की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं. यद्यपि मुद्रा को स्थिर रखने की कोशिशें आयातित मुद्रास्फीति पर काबू पाने में मददगार हो सकती हैं लेकिन इसका निर्यात, श्रम प्रधान क्षेत्रों, नौकरियों और विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है.


यह भी पढ़ें: ब्लॉक, पजल्स, पपेट्स- मोदी सरकार ने स्कूली बच्चों के लिए खिलौना आधारित शिक्षा पर नीति पत्र जारी किया


मुक्त व्यापार समझौता और आपूर्ति पक्ष सुधारने में तेजी

हमारे कई प्रतिस्पर्धी देशों ने मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) कर रखे हैं जो उन्हें बाजार तक अधिक पहुंच देते हैं. सरकार भी एफटीए में तेजी ला रही है और हमारे पारंपरिक व्यापारिक भागीदारों ब्रिटेन, ईयू और अन्य देशों के साथ व्यापार वार्ता जारी है.

प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना निर्यात में तेजी लाने का सबसे बेहतर उपाय है. भारत में घरेलू विनिर्माण क्षमताएं और प्रचुर मात्रा में कच्चे माल और कार्यबल की उपलब्धता है लेकिन लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में सुधार के साथ-साथ फास्ट-ट्रैक क्लियरेंस और मंजूरी और कॉस्ट ऑफ क्रेडिट और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार पर काम करने की जरूरत है.


यह भी पढ़ें: ‘महिला होने के कारण हो रहा भेदभाव’- तेलंगाना राज्यपाल सौंदराराजन ने की KCR सरकार की आलोचना


ग्रोथ बढ़ाने वाले अन्य इंजन तलाशें

सकल घरेलू उत्पाद में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात का हिस्सा 1998-99 में 11 प्रतिशत से बढ़कर 2013-14 में 25 प्रतिशत हो गया. तब से, निर्यात की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है. पिछले साल, भारत ने माल निर्यात में 420 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि देखी लेकिन फिर भी सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात की हिस्सेदारी 21.5 प्रतिशत रही.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

डि-ग्लोबलाइजेशन की लहर और धीमी ग्रोथ के बीच निर्यात ग्रोथ बढ़ाने का एकमात्र इंजन नहीं बन सकता. भारत में घरेलू खपत और निवेश के जरिये मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं को बढ़ाने की पूरी क्षमता है.

(राधिका पांडेय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कांग्रेस हो या भाजपा, हरेक पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र कायम होगा लेकिन वह समय कब आएगा?


 

share & View comments