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Wednesday, 20 November, 2024
होमहेल्थमलेरिया, डेंगू के खिलाफ लड़ाई को बढ़ावा, वेक्टर-बीमारी विशेषज्ञों को ट्रेनिंग देंगे 4 और संस्थान

मलेरिया, डेंगू के खिलाफ लड़ाई को बढ़ावा, वेक्टर-बीमारी विशेषज्ञों को ट्रेनिंग देंगे 4 और संस्थान

वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर (VCRC) जो ICMR के अंतर्गत आता है, फिलहाल अकेला ऐसा संस्थान है जो जन स्वास्थ्य कीट विज्ञान में MSc कराता है.

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पुंडुचेरी: इस शैक्षणिक वर्ष से भारत में ऐसे पांच संस्थान हो जाएंगे, जो जन स्वास्थ्य कीट विज्ञान में एमएससी कराएंगे- एक ऐसा कोर्स जो वेक्टर्स और मलेरिया तथा डेंगू जैसे वेक्टर जनित रोगों की पढ़ाई में विशेषज्ञता कराता है.

पुदुचेरी में वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर (वीसीआरसी) के निदेशक डॉ. अश्वनी कुमार ने दिप्रिंट को बताया, कि गोरखपुर और दिब्रूगढ़ के क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र, पटना-स्थित राजेन्द्र मेमोरियल चिकित्सा विज्ञान संस्थान, और जबलपुर का राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान इस कोर्स की पढ़ाई शुरू कराने जा रहे हैं.

वीसीआरसी जो भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अंतर्गत आता है, अकेला ऐसा संस्थान है जो फिलहाल जन स्वास्थ्य कीट विज्ञान में ये कोर्स कराता है.

वेक्टर जनित रोग वो संक्रमण होते हैं जो किसी संक्रमित आर्थ्रोपोड प्रजाति के काटने से फैलता है, जैसे कि मच्छर, कुटकी, ट्रायटोमाइन कीड़े, बालू मक्खियां, और काली मक्खियां आदि.

वीसीआरसी की स्थापना 1975 में की गई थी. इसकी वेबसाइट के अनुसार ये ‘बुनियादी और प्रायोगिक खोज में लगा है, जिसका मूल उद्देश्य वेक्टर-जनित रोगों के लिए वेक्टर नियंत्रण के नए तरीक़े खोजना, और रणनीतियां विकसित करना है’.

संस्थान 2011 से ये कोर्स कराता आ रहा है.

ताज़ा घटनाक्रम का मतलब होगा कि कोर्स के लिए सीटों की संख्या जो अभी 8 है, बढ़कर 68 हो जाएगी. डॉक्टरों का कहना है कि इससे भारत में प्रशिक्षित कीट विज्ञानियों की कमी से निपटने में सहायता मिलेगी.

कुमार ने कहा, ‘वेक्टर जनित बीमारियों को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल नहीं है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन समस्या ये है कि नगरपालिका प्राधिकारी उसी समय हरकत में आते हैं, जब बीमारी बढ़ने लगती है. दिक्क़त ये भी है कि हमारे पास देश में ज़्यादा कीट विज्ञानी नहीं हैं. यही कारण है कि इस साल से हम अपनी सीटें 8 से बढ़ाकर 20 कर रहे हैं. ये कोर्स चार अन्य संस्थानों में भी शुरू किया जाएगा’.

योजना ये है कि सीटों की कुल संख्या को अंतत: 100 तक बढ़ाया जाएगा.

इसके अलावा, कुमार ने कहा कि वीसीआरसी अपने नए उपकरण का पेटेंट हासिल करके पैसा कमाएगी.


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‘प्रशिक्षित कीट वीज्ञानियों की कमी’

2001 के एक पेपर के अनुसार, जन स्वास्थ्य कीट विज्ञान में वेक्टर-जनित इन्फेक्शंस के जनसंख्या जीव विज्ञान पर ज़ोर दिया जाता है, और ये समझने की कोशिश की जाती है कि समय के साथ ऐसे पैथोजंस किस तरह स्थिर बने रहते हैं, और ऐसे तरीके निकालने की कोशिश की जाती है जिससे इंसानी स्वास्थ्य पर उनके बोझ को कम किया जा सके.

वीसीआरसी के एक अनुबंधक प्रोफेसर डॉ एस सबेसन ने दिप्रिंट को बताया कि राष्ट्रीय वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम की भारत के 755 में से हर एक जिले में, कीट विज्ञानियों को नियुक्त करने की एक योजना- वेक्टर्स के अध्ययन में प्रशिक्षित व्यक्ति जो उनके विकास के अनुकूल परिस्थितियों के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर होने वाले परिणामों का पूर्वानुमान लगाता है- प्रशिक्षित कर्मियों की कमी की वजह से अभी तक लटकी हुई है.

लगभग 43 करोड़ के सालाना बजट के साथ, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद वेक्टर्स पर रिसर्च के लिए देश में सबसे प्रमुख केंद्र है. इसके यहां एक मच्छर संग्रहालय और वेक्टर्स तथा पैथोजंस का एक विशाल संग्रह भी है.

एक कीट ज्ञानी कि भूमिका को समझाते हुए सबेसन ने कहा: ‘बीमारियों के प्रकोप को समझने और उनका पूर्वानुमान लगाने के लिए, हम बहुत सारे विभागों के साथ सहयोग करते हैं. हमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से नियमित रूप से जीआईएस डेटा मिलता है, जिससे वेक्टर घनत्व का पता लगाया जाता है, और फिर बाहरी एजेंसियां उस डेटा की पुष्टि करती हैं. एक जैसे या नज़दीकी संबंध रखने वाले वेक्टर्स में अंतर को समझने के लिए, आपको फील्ड में एक प्रशिक्षित कीट विज्ञानी की ज़रूरत होती है’.

पेटेंट आवेदन

वीसीआरसी ने कई वैज्ञानिक उपकरण विकसित किए हैं, जिन्हें फील्ड तथा लैबोरेट्री में वेक्टर रिसर्च के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

इनमें ऐसे यंत्र शामिल हैं, जो मच्छरों को पकड़ने, उन्हें स्टोर करने और मारने के काम आते हैं, एक लार्वानाशी जिसका अब व्यावसायिक पैमाने पर निर्माण हो रहा है, और एक प्रोटीन जेल प्लाज़्माफेरेसिस मशीन जो फिलहाल बाज़ार में उपलब्ध उपकरणों की अपेक्षा कहीं ज़्यादा सस्ती है. इनमें से बहुत से अभी तक पेटेंट के इंतज़ार में हैं.

कुमार ने कहा, ‘बहुत सालों तक हमें किसी भी मौद्रिक लेन-देन से दूर रहने के लिए कहा जाता था, लेकिन अब हम अपने शोधकर्ताओं से कह रहे हैं कि नए उपकरण विकसित करके उन्हें पेटेंट कराएं, और भारत सरकार के लिए पैसा अर्जित करें. शोधकर्ताओं को 1-2 प्रतिशत रॉयल्टी मिलेगी’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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