scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमहेल्थICMR ने केंद्र से कहा, मच्छर जनित बीमारी एलिफेंटियासिस की निगरानी के लिए COVID लैब इंफ्रा का इस्तेमाल करें

ICMR ने केंद्र से कहा, मच्छर जनित बीमारी एलिफेंटियासिस की निगरानी के लिए COVID लैब इंफ्रा का इस्तेमाल करें

भारत में RT-PCR टेस्ट करने वाली 3,000 लैब हैं. पुडुचेरी स्थित वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर चाहता है कि 2030 तक एलिफेंटियासिस को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर मच्छरों की टेस्टिंग के लिए इनका इस्तेमाल किया जाए.

Text Size:

पुडुचेरी: जैसे-जैसे कोविड-19 महामारी कम होती जा रही है, वायरस के नियंत्रण के लिए बनाए गए बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल अब अन्य बीमारियों की निगरानी के लिए किया जा सकता है. पुडुचेरी में वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर (वीसीआरसी) ने लसीका फाइलेरिया की निगरानी के लिए देश भर में 3,000 प्रयोगशालाओं का इस्तेमाल करने के लिए केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा एक ‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी‘ के रूप में वर्गीकृत, लिम्फैटिक फाइलेरिया (एलएफ) एक वेक्टर-जनित रोग है जो मच्छरों के काटने से फैलता है. इस बीमारी में व्यक्ति के पैरों में इतनी सूजन आती है कि उसका पैर हाथी के समान मोटा हो जाता है. इसलिए इसे अक्सर हाथी पांव या एलिफेंटियासिस के तौर पर भी जाना जाता है.

भारत इस बीमारी के खात्मे के लिए कई बार अपनी समय-सीमा से चूक गया है. दुनियाभर में फाइलेरिया के लगभग 40 प्रतिशत मामले अकेले भारत में हैं और संक्रमण के जोखिम वाले इन कीड़ों से निपटने के लिए सिर्फ Culex quinquefasciatus एक प्रकार का मच्छर है, जो भारत में इस बीमारी को फैलाने का सबसे बड़ा कारण है.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के तहत संचालित वीसीआरसी, डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया आदि जैसे वेक्टर जनित रोगों के नियंत्रण पर काम करने वाला एक संस्थान है.

वीसीआरसी के निदेशक डॉ अश्विनी कुमार ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा, ‘मौजूदा समय में देश में RT-PCR क्षमता वाली लगभग 3,000 लैब हैं. हमने एलएफ के कारक एजेंट डब्ल्यू. बैनक्रॉफ्टी की उपस्थिति का आकलन करने के लिए एक ज़ेनोमोनिटोरिंग नेटवर्क स्थापित करने के लिए सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है. इसके लिए हमने सिमडेगा (झारखंड) और यादगिरी (कर्नाटक) में दो प्रोजेक्ट शुरू किए हैं. इन लैब में पैथोजन के लिए कई हज़ार मच्छरों पर टेस्टिंग करने का विचार है.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

ज़ेनोमोनिटोरिंग का मतलब कीड़ों में ह्यूमन पैथोजन (मानव रोगजनकों) का पता लगाना है. जबकि प्रारंभिक प्रस्ताव एलएफ के लिए है. वीसीआरसी को उम्मीद है कि इसे बाद में बीमारियों के व्यापक स्पेक्ट्रम की निगरानी के लिए विस्तारित किया जा सकता है जिसके लिए संस्थान ने मल्टीप्लेक्स पीसीआर टेस्ट विकसित किए हैं.

उन्होंने समझाया कि इंसानों के बीच एलएफ सर्विलांस में चुनौती यह है कि पैथोजेन सिर्फ रात 9 बजे के बाद ब्लड में सर्कुलेट होना शुरू होता है.

डॉ कुमार ने आगे बताया, ‘मच्छर रात में काटता है, इसलिए पैथोजन सिर्फ रात में पेरीफेरल ब्लड में सर्कुलेट होता है. दिन के समय यह फेफड़ों में छिपा रहता है. यह उन स्मार्ट एवोल्युशन में से एक है जो अपनी फैलने की संभावना को अधिकतम करने के लिए आए हैं. लेकिन लोग इसके लिए रात में आने वाले स्वास्थ्य कर्मियों पर भरोसा नहीं करते हैं. ज़ेनोमोनिटोरिंग योजना इसमें मदद कर सकती है. अगर हमें 2030 तक एलएफ को खत्म करना है, तो हमें इससे निपटने के लिए और उपकरणों की जरूरत है.’


यह भी पढ़े: भारत में इंसान से जानवरों में टीबी फैलने का चला पता, ICMR ने पालतू जानवरों की जांच की योजना बनाई


विशेष आहार पर मच्छरों का प्रजनन

फिलहाल संस्थान ऑस्ट्रेलिया के मोनाश यूनिवर्सिटी से इम्पोर्टेड एक बग के ट्रांसमिशन के लिए कैद में रखे मच्छरों का प्रजनन करा रहा है. यह एडीज मच्छर को डेंगू वायरस को शरण देने से रोकता है.

‘डॉ कुमार ने कहा, ‘वल्बाचिया नामक एक बग है. जब यह मच्छर में होता है तो यह उसे डेंगू को फैलाने से रोक देता है. इसलिए हमने विशेष अनुमति के तहत मोनाश युनिवर्सिटी से लगभग 10,000 मच्छरों के अंडे आयात किए और यहां मच्छरों का प्रजनन शुरू किया. बग मादा रूप से ट्रांसमिटेड होता है. हमने देखा है कि जब नर में ये बग होता है, तो अगली पीढ़ी मर जाती है. इसलिए हम भारतीय नर और ऑस्ट्रेलियाई मादा पैदा करते हैं. लेकिन मच्छरों को जंगल में छोड़ने के बारे में नैतिक मुद्दे हैं. इसलिए हम फिलहाल तो इस अवधारणा को सही साबित करने के लिए लैब में वायरस चुनौती अध्ययन कर रहे हैं.’

वीसीआरसी निदेशक ने समझाया, ‘मच्छरों को एक खास डाइट पर रखा गया है जो उन्हें आवश्यक पोषण देता है. उन्हें देश में ही डिज़ाइन किए गए एक विशेष फीडर के साथ खिलाया जाता है. डाइट में एक प्रभावी प्रोटीन स्रोत, अमीनो एसिड, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लवण और पानी शामिल है जो व्यवहार्य अंडे के उत्पादन और कीड़ों के रखरखाव के लिए उपयुक्त है.’

फीडिंग डिवाइस में माइक्रोप्रोसेसर-कंट्रोल टेंपरेचर मॉनिटरिंग और एक हीटिंग सोर्स के साथ-साथ डाइट और एक फीडिंग प्लेटफॉर्म रखने के लिए एक जलाशय शामिल है.

डॉ कुमार ने बताया, ‘डेंगू के नियंत्रण के लिए एक डेमोंस्ट्रेशन प्रोजेक्ट के रूप में बड़े पैमाने पर 11 देशों में वोल्बाचिया रणनीति अपनाई गई है. इंडोनेशिया में इसकी सफलता दर 71 प्रतिशत है. ऑस्ट्रेलिया में यह बीमारी पर नियंत्रण करने की तुलना में बीमारी को 95 प्रतिशत तक कम करने में प्रभावी साबित हुआ है. दूसरी ओर सिंगापुर भविष्य में इसकी आबादी को नियंत्रित करने के लिए नर का इस्तेमाल कर रहा है.’

भारत में एक्सपेरिमेंट अभी भी लैब स्टेज में है. वीसीआरसी ने डेंगू और चिकनगुनिया दोनों के खात्मे के लिए इनका इस्तेमाल करने की कोशिश की है और आईसीएमआर को अध्ययन की रिपोर्ट सौंपी है। उन्हें अब निश्चित रूप से वायरस चुनौती अध्ययनों को दोहराने के लिए कहा गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


यह भी पढ़ें : ‘महंगाई मार गई’: ईंधन की क़ीमतों को लेकर केंद्र-राज्यों की खींचतान पर उर्दू प्रेस को याद आया हिट गाना


share & View comments