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Friday, 22 November, 2024
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ट्रेवल एंड टूरिज्म में परिसंपत्तियों के निपटारे और प्रोमोटर को जेल तक—कॉक्स एंड किंग्स का अर्श से फर्श तक का सफर

जांच एजेंसियों ने प्रमोटर पीटर केरकर और पूर्व सीएफओ अनिल खंडेलवाल के खिलाफ कम से कम 10 मामले दर्ज किए हैं. आरोप लगाया गया है कि बेशुमार खर्च किया गया और शैल कंपनियों के माध्यम से पैसों की हेराफेरी किए जाने के बाद इसका दिवाला निकल गया.

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मुंबई: किंग जॉर्ज के लिए अपनी सेवाएं देने वाले रेडकोट एजेंट जब फ्लैंडर्स, पुर्तगाल और स्पेन के पहाड़ी और सुदूरवर्ती इलाकों से लंदन लौटे तो उनके खाते में वेतन, प्रावधान और अन्य मामले संभालने जैसा बहुत कुछ था और ऐसे ही एजेंटों की एक फर्म ब्रिटिश साम्राज्य के साथ फलती-फूलती रही, जिसका पूरा ध्यान भारत पर केंद्रित था. ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के बाद फर्म ने खुद को फिर से स्थापित किया और दुनियाभर में अपना ट्रेवल एंपायर खड़ा किया.

लेकिन आज, 264 साल पुरानी यह कहानी खात्मे के कगार पर है, कॉक्स एंड किंग्स लिमिटेड (सीकेएल) का दिवाला निकलने के साथ स्टैनफोर्ड में पढ़े और शाही जीवनशैली वाले इसके शीर्ष प्रमोटर पीटर केरकर अपने आयरिश हॉलीडे होम में आराम फरमाने की बजाये मुंबई स्थित आर्थर रोड जेल में अपने दिन काट रहे हैं.

जांचकर्ताओं के एक पूरे समूह—मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा से लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और वित्त मंत्रालय तक—की तरफ से 5,500 करोड़ रुपए की कथित धोखाधड़ी के मामले में केरकर और कंपनी के पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) अनिल खंडेलवाल—यह भी जेल में हैं—के खिलाफ 10 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं.

भारतीय ट्रेवल इंडस्ट्री की एक अग्रणी कंपनी कॉक्स एंड किंग्स ने 2019 में अपना पतन शुरू होने से पूर्व लगभग 27 देशों में कार्यालयों के साथ अच्छा-खासा साम्राज्य कायम कर रखा था, जो सालाना पांच लाख से अधिक ग्राहकों को सेवाएं देती थी. बाहर से चीजें कभी इतनी अच्छी तरह समझ नहीं आईं और महामारी से पहले यात्रा उद्योग खूब फलफूल रहा था.

लेकिन जांचकर्ताओं और विशेषज्ञों के मुताबिक, लगभग एक दशक पहले ही गड़बड़ी शुरू हो गई थी क्योंकि केरकर ने कंपनी के विस्तार, दुनियाभर में दफ्तर और होटल खोलने के अपने अभियान के लिए कंपनी पर खर्च का बोझ बढ़ा दिया था.

जब कंपनी 2019 में अपना उधार चुकाने में चूक करने लगी तो उसके लेनदारों का इस ओर ध्यान गया, और बिग 4 फर्म प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (पीडब्ल्यूसी) को फोरेंसिक ऑडिट के लिए कहा गया. अपनी मसौदा रिपोर्ट में पीडब्ल्यूसी ने कहा, ‘सीकेएल ने अपने सेल्स के आंकड़ों को बढ़ाकर और ऋण संबंधी आंकड़ों को घटाकर अपने वित्तीय विवरणों में गलत जानकारी दी है. कई फर्जी लेनदेन की सूचना से सीकेएल की वित्तीय स्थिति खराब होने की जानकारी भी सामने आई.

पीडब्ल्यूसी ने यह भी बताया कि सीकेएल ने बिना किसी उचित मंजूरी या दस्तावेजीकरण के विभिन्न ‘संबंधित पक्षों’ को संदिग्ध ढंग से कर्ज और एडवांस के जरिए बड़ी मात्रा में धन का गबन किया था.

यहीं से कंपनी की उल्टी गिनती शुरू हो गई. कॉक्स एंड किंग्स को नवंबर 2020 में दिवालिया घोषित किया गया और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने पिछले साल दिसंबर में कर्ज चुकाने के लिए लेनदारों के बीच इसकी परिसंपत्तियों के बंटवारे का आदेश दे दिया.

इस बीच, 2020 के अंत में ईडी ने केरकर को पूछताछ के लिए बुलाया और फिर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. तबसे उन्हें जमानत भी नहीं मिली है.

मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने 2021 में मामले की जांच की कमान संभाली. ईओडब्ल्यू ने एक रिपोर्ट में कहा कि 2010 से फर्म की बैलेंस शीट में हेरफेर किया जा रहा था, जब लगभग 15 शेल कंपनियों का गठन करके पैसों की हेरफेर की गई थी.

प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत गठित एक विशेष अदालत ने अप्रैल 2021 में केरकर की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘यह मनी लॉन्ड्रिंग के महासागर का मामूली-सा हिस्सा भर है, जो देश के वित्तीय संस्थानों/बैंकों की पूरी वित्तीय प्रणाली को डुबा सकता है.

दिप्रिंट ने इस मामले में टिप्पणी के लिए केरकर की बहन और कंपनी की निदेशक उर्शीला केरकर को ईमेल भेजा लेकिन यह स्टोरी प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. उनका जवाब आने पर स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.


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दिवाला प्रक्रिया शुरू

मुंबई में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (दिवाला प्रक्रिया कोर्ट) ने 2019 में कॉक्स एंड किंग्स के खिलाफ इसकी परिसंपत्ति के निपटारे के लिए एक लेनदार रतनइंडिया फाइनेंस की तरफ से दिवाला प्रक्रिया याचिका को स्वीकार कर लिया.

2020 में कंपनी के दिवालिया घोषित होने के बाद मार्च 2021 में ऋणदाताओं ने उधार चुकाने के लिए कंपनी की परिसंपत्तियों के बंटवारे के लिए भी एक आवेदन दायर किया और एनसीएलटी ने मई 2021 में एक अन्य लेनदार, यस बैंक की एक दिवाला प्रक्रिया याचिका स्वीकार की.

कंपनी के एक समाधान योजना के तहत आने में असमर्थ रहने के बाद एनसीएलटी ने 16 दिसंबर 2021 को उसकी परिसंपत्तियों के निपटारे की प्रक्रिया शुरू करने के आदेश दिए.

मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के मुख्य वित्तीय विश्लेषक अश्विन शेट्टी ने कहा, ‘यह गलत फैसले का नतीजा है जिसमें पूरा व्यवसाय गड़बड़ हो गया और यह एक वित्तीय धोखाधड़ी का भी मामला है.’ शेट्टी ने किताब डायमंड्स इन द डस्ट के लेखन में अपनी फर्म के संस्थापक सौरभ मुखर्जी की सहायता की थी जिसे उन्होंने रक्षित रंजन और सलिल देसाई के साथ मिलकर लिखा है और जिसमें कॉक्स एंड किंग्स की वित्तीय ऑडिटिंग की विस्तृत जानकारी है.

जांच-पड़ताल

कॉक्स एंड किंग्स पर निवेशकों और बैंकों का 5,500 करोड़ रुपए से अधिक बकाया है और यह यस बैंक के प्रमुख कर्जदारों में से एक है. बैंक ने मुंबई पुलिस को दी अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि 2015 और 2018 के बीच केरकर ने ऐसे ऋण लिए जिनका उपयोग किसी स्पष्ट उद्देश्य के लिए कभी नहीं किया गया. मुंबई पुलिस इन आरोपों की और जांच कर रही है.

पीएमएलए कोर्ट ने अप्रैल 2021 में देखा कि एक ट्रैवल एंड टूरिज्म फर्म के रूप में ‘उसका अन्य कंपनियों की फाइनेंसिंग से कोई लेना-देना नहीं है. जब सीकेएल अपना व्यापार बढ़ाने और देश-विदेश में अपने विस्तार के लिए यस बैंक, एक्सिस बैंक, इंडसइंड बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक से कर्ज ले रही थी तो स्पष्ट तौर पर सवाल उठता है कि वो इस मद के तहत अन्य कंपनियों को कर्ज कैसे दे सकती थी.’

और अदालत ने कह कि इस तरह उधार ली गई राशि का इस्तेमाल उसके स्पष्ट उद्देश्य के लिए नहीं किया गया बल्कि व्यक्तिगत लाभ के लिए किया गया.

इस बीच, 2020 में केरकर ने मुंबई पुलिस से शिकायत की कि उनके कुछ कर्मचारियों ने कई बैंकों के अधिकारियों के साथ मिलकर उनके खिलाफ साजिश रची थी और उनकी जानकारी के बिना फंड डायवर्ट कर दिया. पुलिस ने इस शिकायत के आधार पर दो एफआईआर दर्ज कीं, जिन्हें बाद में ईओडब्ल्यू को ट्रांसफर कर दिया गया.

फिर, अक्टूबर 2020 में रहस्य और गहरा गया जब कॉक्स एंड किंग्स के लिए काम करने वाला एक चार्टर्ड एकाउंटेंट, जो इस पूरी कार्यवाही में गवाह था, कल्याण में एक रेलवे ट्रैक पर मृत पाया गया. पुलिस को आत्महत्या का संदेह था, हालांकि उसके परिवार ने हत्या का आरोप लगाया.

पिछले महीने ईओडब्ल्यू ने केरकर की शिकायतों के आधार पर दर्ज मामलों के लिए एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की, इस पर अतिरिक्त महानिदेशक और संयुक्त आयुक्त (ईओडब्ल्यू) निकेत कौशिक ने दिप्रिंट को बताया कि ‘वे आरोप झूठे थे.’

कौशिक ने कहा, ‘हां, हमने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है क्योंकि हमें केरकर की शिकायतों में कुछ नहीं मिला था.’

लेकिन केरकर का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों में से एक धर्मेश जोशी ने दिप्रिंट को बताया, ‘शिकायत पर क्लोजर रिपोर्ट की प्रति हमें अभी तक नहीं मिली है. पीटर को एक पन्ने का एक पत्र दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि हमने मामले को बंद कर दिया है. लेकिन हमें इसकी वजह से जुड़ा कोई सहायक दस्तावेज नहीं दिया जा रहा है. एक बार हमें यह मिल जाए तो इसे चुनौती देने का प्रावधान है.’

ईओडब्ल्यू के मुताबिक, कॉक्स एंड किंग्स में कई कंपनियों का संजाल था, जिसे कई जगहों से धन के हेरफेर में इस्तेमाल किया जाता था. इसने 2010 की शुरुआत में लगभग 15 शेल कंपनियां बनाई थीं, जब उसने उन फर्मों में से प्रत्येक के लिए अलग-अलग बैंक खाते खोले. जांचकर्ताओं का आरोप है कि इन कंपनियों से जुड़े सभी लेन-देन—जो जाहिर तौर पर टिकट बिक्री से जुड़े थे—केवल कागजों पर ही थे.

शेट्टी ने निष्कर्ष निकाला, ‘निवेशकों के लिए एक स्मोकस्क्रीन बनाई गई थी, ताकि वे इसे समझ न पाएं.’

लेकिन एक ऐतिहासिक, विश्व-स्तरीय फर्म का ऐसा अंजाम कैसे हुआ?


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सुनहरा काल

कॉक्स एंड किंग्स की शुरुआत वर्ष 1758 में हुई थी जब फर्स्ट फुट गार्ड्स के कर्नल लॉर्ड लिगोनियर को विदेशों में तैनात अधिकारियों के मामलों, वेतन और अन्य दायित्वों को संभालने के लिए एजेंट के तौर पर एक रिचर्ड कॉक्स नियुक्त किया गया. अगले कुछ सालों में यह ब्रिटिश सेना का एक अभिन्न अंग बन गया और एक प्रिंटर, प्रकाशक, बैंकिंग फर्म, बीमा एजेंट, ट्रैवल एजेंट और कार्गो एजेंट के तौर पर काफी कुछ अपनी कमान में ले लिया और यहां तक कि इसके अपने जहाज भी थे.

20वीं शताब्दी में कंपनी को लंदन में कॉक्स एंड कंपनी के रूप में इनकॉरपोरेट किया गया और इसने भारतीय हितों को देखने वाली एक छोटी-सी बैंक हेनरी किंग्स एंड कंपनी का अधिग्रहण कर लिया. इसलिए इसका नाम कॉक्स एंड किंग्स पड़ा.

लेकिन 1980 के दशक की शुरुआत में कंपनी के विदेशी मालिकों पर विनिवेश और ‘भारतीयकरण’ के लिए नियामक दबाव था और एक स्विस इंटीरियर डिजाइनर से शादी करने वाले लंदन-प्रशिक्षित होटल व्यवसायी अजीत केरकर ने ब्रिटिश पीआर कार्यकारी एंथनी गुड्स के साथ मिलकर इसकी बहुमत हिस्सेदारी हासिल कर ली. टाटा समूह के आतिथ्य विंग के प्रमुख के तौर पर अजीत केरकर को भारत में समूह के होटल साम्राज्य के विस्तार का श्रेय दिया जाता है—जो भारत में कॉक्स एंड किंग्स के सबसे बड़ा क्लाइंट में एक है.

1997 में रतन टाटा ने अजीत केरकर को इंडियन होटल्स से बाहर कर दिया. डायमंड्स इन द डस्ट में सौरभ मुखर्जी ने लिखा है कि टाटा समूह ने दावा किया कि केरकर परिवार ने संदेहास्पद तरीके से कॉक्स एंड किंग्स इंडिया पर अपना नियंत्रण बढ़ा लिया था—जिसमें टाटा समूह के अन्य अधिकारियों ने भी शेयर खरीदे थे.

लेकिन बाद के सालों में अजीत के बच्चों, पीटर और उर्शिला ने कंपनी को बदल दिया. भारत में आर्थिक उदारीकरण के साथ, ट्रैवल इंडस्ट्री में जबर्दस्त उछाल आया—और इसी तरह कॉक्स एंड किंग्स का व्यवसाय भी खूब फला-फूला.

पीटर 1986 में फर्म के लंदन कार्यालय का हिस्सा बने और 1994 में एक कार्यकारी निदेशक बनने के लिए स्नातक बने, जबकि उर्शीला भारतीय ऑपरेशन को संभाल रही थीं. 2006 और 2009 के बीच कंपनी ने छोटी और मध्यम आकार की फर्मों के अधिग्रहण की एक चेन बनाई.

2009 में कॉक्स एंड किंग्स का आईपीओ आने से पहले केरकर परिवार ने अपनी आउटस्टैंडिंग कैपिटल 78 प्रतिशत के करीब रखी और 286 करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ और प्रॉफिट 62 करोड़ रुपए के ऊपर रखकर इसे भारत में एक सबसे बड़ी और सबसे अधिक प्रॉफिट वाली ट्रैवल कंपनी बना दी.

509 करोड़ रुपए के आईपीओ को छह गुना अधिक सब्सक्राइब किया गया और वित्त वर्ष 2011 तक कंपनी के पास 300 करोड़ रुपए से अधिक का शुद्ध नकद अधिशेष हो गया था.

डायमंड्स इन द डस्ट के मुताबिक, 2009 और 2019 के बीच 10 सालों के दौरान, चूंकि कंपनी सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध की गई थी, इसलिए इसे ‘एक ठोस व्यवसाय के साथ पेशेवर रूप से प्रबंधित सूचीबद्ध इकाई’ माना जाता था.

इस बीच, यात्रा उद्योग तेजी से बढ़ रही थी. पर्यटन मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या 1981 में 12.8 लाख से बढ़कर 1991 में 16.8 लाख, 2001 में 25.4 लाख, 2012 में 65.8 लाख और 2019 में 1.093 करोड़ हो गई.

1991 में देश से जाने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या 19.4 लाख थी जो 2012 में बढ़कर 149.2 लाख और 2019 में 269.1 लाख हो गई.

स्टिक ट्रैवल्स के अध्यक्ष और इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स के पूर्व अध्यक्ष सुभाष गोयल ने कहा, ‘उद्योग फल-फूल रहा था और कॉक्स एंड किंग्स कंपनी शीर्ष पर थी. महामारी की दस्तक के पहले 2019 भारत में पर्यटन के लिए सबसे अच्छा वर्ष था’ लेकिन अभी बहुत कुछ आगे आने वाला था.


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अंधकारमय आगे की राह

2011 में कॉक्स एंड किंग्स ने 2,770 करोड़ रुपए में ब्रिटिश एजुकेशनल टूर ग्रुप हॉलिडेब्रेक के अपने महत्वाकांक्षी अधिग्रहण का ऐलान किया, जो सौदा समूह के तत्कालीन बाजार मूल्य से 36 प्रतिशत प्रीमियम ऊपर था. यह एक पैकेज डील थी—जिसके तहत हॉलिडेब्रेक का 1,132 करोड़ रुपए का बकाया कर्ज भी खरीदार को चुकाना था, इस अधिग्रहण को शेट्टी ‘मिसकैपिटल एलोकेशन’ करार देते हैं.

नतीजतन, शुद्ध नकदी अधिशेष की स्थिति से कंपनी का शुद्ध ऋण-इक्विटी अनुपात वित्त वर्ष 2012 के अंत तक 3.1 गुना बढ़ गया.

बढ़ते कर्ज के साथ कॉक्स एंड किंग्स अपना निर्धारित ऋण देने में चूकने लगा. 2019 में कंपनी 1,666 करोड़ के नकद और तरल निवेश के बावजूद 150 करोड़ रुपए का कॉमर्शियल लेटर चुकाने में असमर्थ थी.

धीरे-धीरे यह ट्रेंड बन गया और अंतत: अक्टूबर 2019 में कंपनी के मुख्य वित्तीय अधिकारी अनिल खंडेलवाल ने इस्तीफा दे दिया और एनसीएलटी ने एक दिवाला प्रक्रिया याचिका स्वीकार कर ली. डायमंड्स इन द डस्ट के लेखक बताते हैं कि  इस तरह सदियों तक खासी साख रखने वाली कंपनी—जो करीब 40 सालों तक केरकर परिवार के हाथों में रही—दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई.

बढ़ते खर्च, घटता नकदी प्रवाह

गोयल के मुताबिक, कॉक्स एंड किंग्स खर्च और मुनाफे के बीच संतुलन बनाने में असमर्थ थी.

उन्होंने कहा, ‘जब भी कोई व्यवसाय विफल होता है, तो तीन कारण होते हैं, एक है ओवरट्रेड (ज्यादा खर्च). वे खर्च बढ़ाते जाते हैं और लागत में कटौती नहीं करते हैं. कॉक्स एंड किंग्स के मामले में भी यही हुआ. उन्होंने जापान, यूएई समेत दुनिया भर में कार्यालय खोले और इस पर पैसा खर्च करते रहे.’

उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, पीटर और उर्शीला ने यूरोप के होटलों में उस नकदी का निवेश किया था जो उनके पास थी, इसका इस्तेमाल व्यवसाय या रिजर्व के तौर पर रखने के लिए नहीं किया और जब उन्हें धन की आवश्यकता थी, वह उपलब्ध नहीं था. मेरा अध्ययन तो यही कहता है.’

इसके विपरीत, थॉमस कुक और एसओटीसी जैसे प्रतिस्पर्धियों ने हमेशा अपने खर्चों को मुनाफे से कम स्तर पर बनाए रखा. उन्होंने कहा कि यह संतुलन महत्वपूर्ण था.

मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स द्वारा कंपनी की वित्तीय स्थिति के विश्लेषण से पता चलता है कि कॉक्स एंड किंग्स फर्जीवाड़े में शामिल थी जिसकी उधारदाताओं और इक्विटी निवेशकों ने आश्चर्यजनक ढंग से अनदेखी की थी.

शेट्टी कहते हैं, ‘कोई भी व्यवसाय जो तीन दशकों से चल रहा हो, उसे एक आत्मनिर्भर व्यवसाय होना चाहिए. इसके बावजूद वे पूंजी जुटाते रहे जिसका अर्थ है कि व्यवसाय मॉडल के साथ कोई समस्या है—जैसे आप पैसे का गबन कर रहे हैं. निवेशक ऐसी कई चीजें देख सकते थे और उन्हें धोखाधड़ी का पता लग जाना चाहिए था.’

मुखर्जी लिखते हैं, कंपनी का कैश कंवर्जन बहुत कमजोर था. वित्त वर्ष 2011 से वित्त वर्ष 2018 तक ब्याज, टैस्स, मूल्यह्रास और परिशोधन से पूर्व संचयी आय (ईबीआईटीडीए) का केवल 60 प्रतिशत हिस्सा कराधान से पहले ऑपरेटिंग कैश में बदला गया था.

शेट्टी ने आगे बताया, ‘सेवा उद्योग कंपनियां कैश जेनरेट करने वाली कंपनियां होती हैं. ये असेट-लाइट मॉडल हैं क्योंकि आपको इमारतों और अन्य संपत्तियों में निवेश करने की जरूरत नहीं होती है. इसलिए, परिभाषा तो यही है कि सेवा उद्योग कंपनियां नकदी प्रवाह उत्पन्न करती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर, हर कोई लाभ और हानि पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देता है और कोई भी नकदी प्रवाह विवरण नहीं देखता है. फर्जी कंपनियों के साथ एक विशिष्ट पैटर्न यह है कि लाभ और हानि का ब्योरा काफ अच्छा दिखता है. लेकिन कॉक्स एंड किंग्स कंपनी ने फ्री कैश फ्लो जेनरेट नहीं किया है—और अगर कोई कंपनी दस साल की अवधि में कम से कम दो से तीन बार फ्री कैश फ्लो जेनरेट नहीं करती है तो निश्चित तौर पर कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ी जरूर है.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि निवेशकों ने इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया. इसलिए उनसे सवाल होने चाहिए थे.’


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‘संबंधित पक्षों के साथ लेन-देन’

एक अन्य फैक्टर ‘संबंधित पार्टी लेन-देन’—कनेक्टेड कंपनियों के साथ—से जुड़ा था जो 2018 में कॉक्स एंड किंग्स के कुल राजस्व का 92 प्रतिशत और कुल खरीद का 81 प्रतिशत था. इनमें सबसे ज्यादा लेन-देन ईजीगो वनट्रैवल एंड टूर्स के साथ हुआ जो फ्लाइट, होटल और यात्रा संबंधी जरूरी बुकिंग में इस्तेमाल हो रहा पीटर केरकर के स्वामित्व वाला एक ऑनलाइन पोर्टल है. ईजीगो 2017 में शुरू हुए अपने घाटे के बाद से कभी इसकी भरपाई करने में सक्षम नहीं हो पाया.

जांचकर्ताओं का कहना है कि यह पैसा ईजीगो से केरकर, खंडेलवाल और आंतरिक लेखा परीक्षक नरेश जैन के स्वामित्व वाली कंपनी रेडकाइट में भेजा गया था.

हालांकि, केरकर के वकीलों ने अदालत में कहा कि ईडी के आरोपों में कोई दम नहीं है क्योंकि ईडी ने अजय अजीत पीटर केरकर और नरेश जैन के स्वामित्व वाली/निर्देशित/प्रोमोटेड कंपनियों के साथ लेनदेन और संबंधित पार्टी लेनदेन को एक मिलाकर उन पर आरोप लगाने की पूरी कोशिश की है और 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि पैसा मॉरीशस और अन्य विदेशी संस्थाओं के पास गया है.’

शेट्टी ने कहा कि आईपीओ, ग्लोबल डिपॉजिटरी रिपोर्ट (जीडीआर) और क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (क्यूआईपी) मुद्दों के साथ कॉक्स एंड किंग्स इक्विटी को भी कमजोर कर रही थी, जो चिंता का कारण था.

नतीजतन, 30 जून, 2021 तक कंपनी का शेयरहोल्डिंग पैटर्न ऐसा था कि प्रमोटरों के पास केवल 12.2 प्रतिशत शेयर थे.

शेट्टी ने कहा, ‘खुदरा निवेशकों को लेकर तो यह बात समझ आती है क्योंकि उनके पास इसका आभास होने के संसाधन नहीं हैं लेकिन बड़े-बड़े संस्थागत निवेशकों ने यह दांव कैसे लगाया? क्यूआईपी से पहले कंपनी के पास नकदी उपलब्ध थी, इसलिए सवाल उठाया जा सकता था कि कर्ज का भुगतान करने के लिए नकदी का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया था.’

(इस खबर को अंग्रजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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