scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमसमाज-संस्कृतिशिक्षा, बाल विवाह, जातिवाद...जानें किस तरह जाबाज लड़कियां सामाज के बंधन तोड़ बना रहीं आगे के रास्ते

शिक्षा, बाल विवाह, जातिवाद…जानें किस तरह जाबाज लड़कियां सामाज के बंधन तोड़ बना रहीं आगे के रास्ते

इन लड़कियों ने सामाजिक बंधनों को तो़कर उससे ऊपर उठकर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई और अब अपने आस-पास के गांव की लड़कियों के लिए भी शिक्षा की राह आसान कर रही हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: लड़कियां जब जब समाज में आवाज उठाती हैं तो रोल मॉडल बन जाती हैं. ऐसी ही हैं झारखंड की राधा और राजस्थान की ललिता और खुशबू. छोटी सी उम्र में जरा सी जागरूकता के साथ उन्होंने समाज में नई क्रांति पैदा की है..बाल विवाह रोकने से लेकर ये बेटियां समाज में व्याप्त छुआछूत और जातिवाद को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं.

राधा 16 साल की हैं और उनके परिवार वाले उसका बाल विवाह कराने जा रहे थे लेकिन राधा ने अपनी सूझ बूझ से न केवल अपनी शादी को रोका बल्कि अपने समाज में रोल मॉडल भी बन गईं..

झारखंड के गांवव टिकैत टोला की रहने वाली राधा कुमारी की उनके पिता 16 की उम्र में ही शादी कराने वाले थे. लेकिन न केवल राधा ने इस शादी से इनकार किया बल्कि परिवार वालों से कहा कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो वो चाइल्ड लाइन पर फोन कर देंगी और पुलिस से भी मदद मांगेंगी.

राधा बताती हैं कि, ‘उनके पिता ने उनकी शादी पास के एक गांव पांडे बारा में तय कर दी थी, तभी राधा ने फैसला किया कि उन्हें इतनी कम उम्र में शादी करके अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं करनी थी इसलिए उन्होंने अपने लिए खड़े होने का फैसला लिया.’

परिवार के खिलाफ जाकर रोकी शादी

राधा ने अपने परिवार के सदस्यों को साफ मना कर दिया कि, ‘वह शादी नहीं करेंगी,’ क्योंकि वह अभी 18 साल की नहीं है और कानूनी रूप से शादी की उनकी उम्र नहीं हुई है. उन्होंने अपने परिवार से कहा , ‘कानून इसकी अनुमति नहीं देता है.’

इतना ही नहीं उन्होंने अपने परिवार और लड़के के परिवार से यह भी कहा कि, ‘अगर वे उसे शादी के लिए मजबूर करते हैं या उस पर दबाव डालते हैं तो उसके पास चाइल्डलाइन और पुलिस में शिकायत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.’

ऐसे राधा ने अपना बाल विवाह रोक दिया.

राधा की तरह ही राजस्थान की ललिता दुहरिया भी अपने बंजारा समाज के लिए रोल मॉडल बन गई हैं. ललिता न केवल लड़कियों के अधिकारों के लिए  बल्कि शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी और समाज की रोल मॉडल बन गईं.

जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ उठा रहीं ललिता

राजस्थान के एक गरीब परिवार से आने वाली ललिता दुहरिया भी अपने आस-पास के गांवों की लड़कियों के लिए शिक्षा के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं. ललिता 18 साल की है और दुहरिया, डेरा गांव, विराटनगर ब्लॉक, राजस्थान की रहने वाली हैं.

ललिता के पिता एक लेबर और मां एक गृहिणी हैं. उनकी 1 बहन और 2 भाई हैं. वह लोगों को समानता के बारे में शिक्षित करने के लिए अपने जागरूकता अभियानों में सक्रिय रही हैं. वह अपने गांव में जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ भी आवाज उठा रही हैं.

ललिता ने लोगों को सभी धर्मों और जातियों का सम्मान करने और सबसे बढ़कर साथी मनुष्यों का सम्मान करने की शिक्षा दी है.

ये कहानी यहीं नहीं थमी, राजस्थान की 17 साल की खुशबू चाइल्ड एक्टिविस्ट हैं और उन्होंने अपने और आस-पास के गांवों में जाकर बच्चों के लिए शिक्षा को लेकर जागरुकता फैलाई और इसके अलावा कई समाज कल्याण के काम कर रही हैं.

ललिता के पिता किसान हैं. बीएमजी बाल परिषद के समन्वय से, खुशबू गांव में पर्यावरण, सभी के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता पर अभियान चलाने में बहुत सक्रिय है.

एक बाल कार्यकर्ता के रूप में, वह अपने गांव के सभी बच्चों को स्कूली शिक्षा में शामिल करना सुनिश्चित करती हैं. वह बच्चों के लिए शिक्षा के महत्व पर जागरूकता फैलाने और माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से पड़ोसी गांवों का दौरा करती हैं.

राधा और खुशबू की तरह ललिता भी कैलाशी सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन से जुड़ी हैं.

जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ उठा रहीं ललिता

राजस्थान के एक गरीब परिवार से आने वाली ललिता दुहरिया भी अपने आस-पास के गांवों की लड़कियों के शिक्षा के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है. ललिता 18 साल की है और दुहरिया, डेरा गांव, विराटनगर ब्लॉक, राजस्थान की रहने वाली हैं. ललिता साल 2015 से बाल पंचायत की सक्रिय सदस्य हैं.

ललिता के पिता एक निर्माण श्रमिक हैं और मां एक गृहिणी हैं. उनकी 1 बहन और 2 भाई हैं. वह लोगों को समानता के बारे में शिक्षित करने के लिए अपने जागरूकता अभियानों में सक्रिय रही हैं. वह अपने गांव में जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ भी आवाज उठाती रही हैं.

ललिता ने लोगों को सभी धर्मों और जातियों का सम्मान करने और सबसे बढ़कर साथी मनुष्यों का सम्मान करने की शिक्षा दी है.


यह भी पढ़ें- ‘अब समझ में आवत.. केतनी बुरी बेमारी बा’- कोरोना काल में ग्रामीण भारत की सच्चाई बयां करती ‘पुद्दन कथा’


share & View comments